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हिंडनबर्ग को भारत का अडानी दिखा, अपने देश का सिलिकॉन वैली नहीं, अमेरिका में धड़ाधड़ बंद हो रहे बैंक, लुटियंस गैंग और रेटिंग फर्म्स बेनकाब

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हिंडनबर्ग रिसर्च को भारत का अडानी तो दिखा जिस पर उसने लंबी-चौड़ी झूठी रिपोर्ट बना दी और भारत के खान मार्केट गैंग उसे लेकर छाती पीटने लगे थे। मोदी विरोध में अडानी की झूठी रिपोर्ट बनाकर भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने की साजिश रची गई। अब अमेरिका का सिलीकॉन वैली बैंक (एसवीबी बैंक), सिग्नेचर बैंक, सिल्वर गैट बैंक डूब गए। लेकिन हिंडनबर्ग को अपने देश के संस्थान नहीं दिखे। अगर अपने देश पर भी नजर डाल लेते तो कुछ भला हो जाता, लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी… चले थे अडानी के लिए गड्ढा खोदने और उसमें खुद ही गिर पड़े। क्रेडिट सुईस बैंक की रेटिंग पाताल में पहुंच गई।

अडानी ने सभी लोन चुका दिए, सिलिकॉन वैली डूब गया

हिंडनबर्ग ने एसवीबी बैंक का कोई अध्ययन क्यों नहीं किया। अडानी ग्रुप ने अपने सभी लोन (शेयर कोलेटरल पर) चुका दिए हैं, जबकि सिलिकॉन वैली बैंक धराशायी हो गया। अमेरिका में कई बैंक डूब गए और वीसा कार्ड, मास्टर कार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस, वालमार्ट डूबने की लाइन में खड़े हैं। अमेरिका की सिलिकॉन वैली बैंक के दिवालिया होने और बैंक पर ताला लगने के बाद सोशल मीडिया पर लोग हिंडनबर्ग से सवाल पूछ रहे हैं। हिंडनबर्ग की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। हिंडनबर्ग की खूब आलोचना हो रही है। लोग अडानी समूह पर हिंडनबर्ग के आरोपों को सिलिकॉन वैली बैंक से जोड़कर देख रहे हैं।

अडानी पर हाय-तौबा, सिलिकन वैली पर खामोशी

कल्पना कीजिए कि सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक भारत में होते तो क्या होता, मोदी विरोध में खान मार्केट गैंग, लेफ्ट लिबरल गैंग किस कदर छाती पीटता, आंदोलन, धरना प्रदर्शन आदि होते। सोशल मीडिया पर लोग सवाल कर रहे हैं कि हिंडनबर्ग को भारत में अडानी समूह की गड़बड़ियां दिखी, लेकिन अपने देश में हो रही इतनी बड़ी घटना पर उसकी नजर नहीं पड़ी। उसे अपने देश में हो रहे बैंकिंग घोटाले नहीं दिखे। वहीं दिलचस्प बात यह है कि जो लेफ्ट लिबरल गैंग अडानी मामले पर हाय-तौबा मचा रहा था अब सिलिकन वैली पर खामोश है।

एसवीबी बैंक डूबने से हिंडनबर्ग की साख पर लगा बट्टा

अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) डूबने से एक बार फिर 2008 की वैश्विक मंदी की याद ताजा हो गई है। इस बैंक के ग्राहक बड़े पैमाने पर स्टार्टअप और अन्य तकनीक कंपनियां थी। बैंक के डूबने से हजारों स्टार्टअप्स पर ताला लगने और लाखों लोगों को बेरोजगार होने का खतरा पैदा हो गया है। इस बीच एसवीबी बैंक के डूबने पर अमेरिकी शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग की साख पर सवाल खड़े होने लगे हैं। मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि जब अमेरिका में बैठे हिंडनबर्ग को अडानी ग्रुप के बारे में पता चल सकता है तो उसे अमेरिका के ही एक बड़े बैंक की वित्तीय स्थिति का पता क्यों नहीं चला। क्या अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट किसी खास अवधारणा से प्रेरित था।

अडानी और सिलिकान वैली पर रेटिंग एजेंसियों एवं विशेषज्ञों का दोहरा मानदंड देखिए-

1. विश्वसनीयता परीक्षण (Credibility Test)

-अडानी समूह अपनी जगह मौजूद है, उसने समय से पहले 2.15 अरब डॉलर का कर्ज चुका दिया।
– सिलिकॉन वैली बैंक के सीईओ, सीएफओ और सीएमओ ने पिछले 2 हफ्तों में स्टॉक में 40 लाख डॉलर बिक्री की।
-अब इससे अंदाजा लगाइए कि वेस्टर्न मीडिया ने किसे फ्रॉड करार दिया था।

2. रेटिंग फर्म (Rating Firms)

-फरवरी में, क्रेडिट सुइस ने व्यापार कदाचार का हवाला देते हुए अडानी समूह के बॉन्ड की स्वीकृति रोक दी।
-अब, क्रेडिट सुइस को खुद ट्रेडिंग से निलंबित कर दिया गया है। इसका शेयर 34.59 प्रतिशत तक गिर गया है।
-ये जो दूसरे को उपदेश देते हैं उन्हें खुद पर लागू क्यों नहीं करते❓

3. विशेषज्ञ निवेशक (Expert Investor)

-बिल एकमैन ने अडानी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को अत्यधिक विश्वसनीय बताया था।
-अब, बिल एकमैन चाहते हैं कि अमेरिकी सरकार सिलिकॉन वैली को राहत दे।
-ऐसी है स्टार निवेशक की ईमानदारी।

4. रैंकिंग विशेषज्ञ (Ranking expert)

-फ़ोर्ब्स ने सिलिकॉन वैली को लगातार 5 वर्षों तक अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ बैंक के रूप में स्थान दिया।
-फोर्ब्स ने अडानी की छवि खराब करने के लिए लेख प्रकाशित किया।
– क्या इन लेखों को गंभीरता से लिया जा सकता है ❓

5. वेस्टर्न मीडिया हाउस (Western Media House)

-ब्लूमबर्ग ने सिलिकॉन वैली बैंक के पतन को राइट ऑफ कर दिया क्योंकि यह क्रिप्टो मनी की अस्थिरता को उजागर करता है
-वहीं ब्लूमबर्ग के अनुसार, अडानी की परेशानी देश के संकट का आईना है।

“लुटियंस गैंग” हैं अमेरिका के रेटिंग फर्म्स और रैंकिंग एक्सपर्ट

वैश्विक वित्तीय कंपनी जेफरीज (Jefferies ) द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि जमा की गुणवत्ता और होल्ड-टू-मैच्योरिटी बुक पर मार्क-टू-मार्केट नुकसान के संभावित प्रभाव के मामले में भारतीय बैंक अच्छी स्थिति में हैं। इससे जाहिर है, भारतीय नियामक अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में कहीं बेहतर हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि ‘विशेषज्ञ’, ‘रेटिंग एजेंसियों’, ‘रैंकिंग फर्म’ और ‘मीडिया घरानों’ को भारत के मामले में नाक में दम करने के बजाय अपने घर पर ध्यान देना चाहिए था। इससे यह भी साबित होता है कि अमेरिका की ये रेटिंग फर्म्स, रैंकिंग एक्सपर्ट वहां के”लुटियंस गैंग” हैं जिनका काम बस अपना एजेंडा चलाना है।

ना लेते भारत से पंगे और ना होते आर्थिक तौर पर नंगे

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जहां अडानी समूह को करीब 100 अरब डॉलर का नुकसान किया गया। भारत को नुकसान करने की जो साजिश रची गई वह अब अमेरिका के ही गले पड़ गया। अमेरिका के चार बैंक Silicon Valley Bank, Signature, Bank, Credit Suisse Bank, First Republic Bank बंद हो गए। इन बैंकों के डूबने से 1800 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है। अडानी समूह को जो नुकसान पहुंचाया गया उसकी भरपाई तो भारतीय निवेशकों ने ही कर दी थी लेकिन अमेरिकी बैंकों के डूबने से 1800 अरब डॉलर के नुकसान की भरपाई कैसे होगा यह देखने वाली बात है।

अमेरिकी डीप स्टेट को भारत के खिलाफ साजिश से बाज आना चाहिए

अमेरिकी डीप स्टेट को चाहिए भारत को लेकर रिसर्च रिसर्च का खेल बंद कर दे। वह पीएम मोदी की छवि को खराब करने के लिए भारत की एक कंपनी के खिलाफ फर्जी रिपोर्ट बनाकर उसे तबाह करने की कोशिश करेंगे तो इससे उनका ही नुकसान होगा। एक तरफ अमेरिका के सारे बैंक धराशाई हो रहे, वहीं डॉलर की वाट लगनी शुरू हो गई है। अमेरिका की विश्वसनीयता कठघरे में खड़ी हो गई है। सनातन संस्कृति में कहा गया- बुरे काम का बुरा नतीजा। अभी अमेरिका के चार बैंक ही डूबे हैं कम से कम 6 और लाइन में लगे हुए हैं। अगर उनको बचाना है तो भारत के खिलाफ साजिश रचने से बाज आएं और भारतीय लेफ्ट लिबरल और लुटियंस गैंग को आंदोलन के लिए मुद्दा और टूलकिट देना बंद करें।

सिलिकॉन वैली बैंक डूबने की असली वजह और शासन परिवर्तन की कहानी पर एक नजर-

सिलिकॉन वैली बैंक ने ट्रम्प के खिलाफ 74 मिलियन डॉलर खर्च किए

सिलिकॉन वैली बैंक ने अमेरिका में दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ 74 मिलियन डॉलर ब्लैक लाइव्स मैटर के नाम पर खर्च किये थे। अमेरिकी डीप स्टेट नहीं चाहता था ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनें। ब्लैक लाइव्स मैटर का मुद्दा तब उठा जब दो गोरे पुलिस वालों ने एक काले आरोपी को जमीन पर गिराकर उसके सर पर पैर रख दिया था जिससे दम घुटने से उसकी मौत हो गयी थी। चूंकि सरकार ट्रम्प की थी तो इसे वहां “वाइट सुप्रीमेसी” करार दिया गया।

अमेरिका में वाइट सुप्रीमेसी तो भारत में हिंदुत्व

दुनिया को अपने हिसाब से चलाने वाले डीप स्टेट और शासन परिवर्तन एजेंट अपना नैरेटिव बनाने के लिए जिस तरह वाइट सुप्रीमेसी के जरिये आंदोलन चलाते हैं, कुछ उसी तरह भारत में हिंदुत्व के नाम पर आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस से लेकर लेफ्ट लिबरल अक्सर बयान देते हैं मोदी के नेतृत्व में भारत हिंदू राष्ट्र बन रहा है, हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाता है। इससे समझा जा सकता है कि डीप स्टेट शासन परिवर्तन के लिए किस तरह नैरेटिव तैयार करता है।

अमेरिका में एन्टीफ़ा तो भारत में पीएफआई

अमेरिका वाइट सुप्रीमेसी के नाम पर आंदोलन को चलाने वाले ग्रुप एन्टीफ़ा था। आंदोलन के तहत आगजनी, लूटपाट, हमले शुरू कर अराजकता फैलाई गई। इनको लीड कर रहा था एन्टीफ़ा नामक ग्रुप जैसे भारत में PFI है। इस ग्रुप में जो चेहरे सामने आ रहे थे उनमें ओबामा की बेटी, वो जिहादन इलहन ओमर आदि सामने थे जो इसे गोरों का कालों पर अत्याचार कहकर अमेरिका में आग लगवा रहे थे। हिलेरी क्लिंटन जैसी इसकी मास्टरमाइंड थी जो ट्रम्प से हार चुकी थी।

ट्रंप को हटाने के लिए रचा गया वाइट सुप्रीमेसी आंदोलन

अमेरिका में वाइट सुप्रीमेसी आंदोलन चलाने वालों की मदद इसी सिलिकॉन वैली बैंक की तरह अन्य कम्पनियां कर रही थी और करीब 83 बिलियन डॉलर अगले एक साल में खर्च कर दिए गए। कारण कुछ नहीं, बस ट्रम्प के खिलाफ माहौल बनाना था क्योंकि अप्रूवल रेटिंग से पता चल रहा था कि वापस ट्रम्प ही राष्ट्रपति बनने वाला है। इसमें एप्पल, अमेरिकन एक्सप्रेस, वालमार्ट, अमेजन, नाइक, बैंक ऑफ अमेरिका, गोल्डन सेश, मोर्गन स्टेनली जैसे अन्य बड़े बड़े बिजनेस हाउस फंड दे रहे थे।

ट्रंप के हारते ही अमेरिका में “लोकतंत्र” “आजादी” “संविधान” सब जीत गया

अमेरिका में चुनाव होता है और ट्रम्प चुनाव हार जाता है। आपको याद होगा कि ट्रम्प ने भी हार स्वीकार नहीं की थी और उसके समर्थक वाइट हाउस तक पहुंच गए थे और वोटों की गिनती एक महीने तक खत्म नहीं हुई थी। इस तरह पूरी धांधली और हिंसा कराई गई और बाइडन नया राष्ट्रपति बन गया। मजे की बात है कि बाइडन के सत्ता में आते ही सारा आंदोलन शांत हो गया और अमेरिका में “लोकतंत्र” “आजादी” “संविधान” सब जीत गया जो ट्रम्प के रहते खत्म हो गया था।

राहुल गांधी ने भी कहा- “लोकतंत्र” “आजादी” “संविधान” सब खतरे में

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ “लोकतंत्र” “आजादी” “संविधान” के नाम पर ही नैरेटिव बनाया गया था। आज भारत में वही काम राहुल गांधी कर कर रहे हैं। राहुल गांधी को भी आज देश में लोकतंत्र, आजादी और संविधान सब खतरे में लगता है। इससे समझा जा सकता है कि डीप स्टेट भारत में पीएम मोदी के खिलाफ किस स्तर पर काम कर रहा है और किस तरह नैरेटिव बनाए जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में अब एक साल से भी कम समय रह गया है तो इस तरह के नैरेटिव और हमलों में और तेजी आएगी।

ट्रम्प राज में काले लोग पीड़ित, मोदी राज में मुसलमान

डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे से ठीक पहले यहां हिंसा शुरू हुई ताकि इंटरनेशन मीडिया में दिखाया जा सके कि ट्रम्प और मोदी एक हैं क्योंकि जैसे ट्रम्प के राज में काले लोग पीड़ित हैं, मोदी के राज में मुसलमान पीड़ित हैं। जैसे वहां एन्टीफ़ा इस हिंसा को लीड कर रहा था, वैसे ही PFI यहां इस हिंसा को लीड कर रहा था। जब दिल्ली हिंसा की जांच हुई तो पता भी चला कि इस उपद्रव की फंडिंग विदेशों से हुई है। साथ ही पता चला कि इसके पीछे जार्ज सोरोस उसी तरह था जैसे एन्टीफ़ा की फंडिंग में सोरोस था। वही अमेरिकी कम्पनियों से ये फंडिंग BLM के लिए करवा रहा था। ऐसे ही आप पाएंगे कि सोरोस की फंडिंग से चलने वाली NGOs को यहां भी भारतीय कम्पनियां जैसे विप्रो, इंफोसिस फंड करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि दोनों जगह मूल फंडिंग करने वाला वही डीप स्टेट एजेंट जार्ज सोरोस है। आरोप है कि करीब 500 बिलियन डॉलर ट्रम्प के शासन काल में रहते हुए खर्च किये गए ताकि ट्रम्प के हर काम को लेकर विरोध भड़काया जा सके।

“दिल्ली टू लॉस एंजेलिस.. फक द पुलिस” के नारे का क्या मतलब

अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर जब आग लगा रहा था तो इस “आंदोलन” में बहुत से ऐसे लोग थे जो यहां दिल्ली में हुई हिन्दू विरोधी हिंसा और दंगे के प्लेकार्ड लेकर घूम रहे थे। “दिल्ली टू लॉस एंजेलिस.. फक द पुलिस” के नारे वहां लग रहे थे। बहुत से पाकिस्तान और भारतीय मूल के मुसलमान और लेफ्ट लिबरल वहां इस आंदोलन में दिख रहे थे जो अक्सर भारत के खिलाफ ये माहौल बनाते हैं कि मोदी राज में मुसलमान खतरे में है।

ट्रम्प हो या मोदी हर राष्ट्रवादी सरकार हटाना चाहता है डीप स्टेट

अब जब खुलासे बाहर आ रहे हैं तो पता चल रहा है कि किस तरह ट्रम्प के खिलाफ साजिश चल रही थी। क्यों ट्रम्प को फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म से हटा दिया गया और कैसे इनकी हिम्मत हो गयी कि अपने ही राष्ट्रपति के एकाउंट ये डिलीट कर दें। अब पता चल रहा है कि कैसे पूरे विश्व में ट्रम्प हो या मोदी हर राष्ट्रवादी सरकार समर्थकों के एकाउंट्स पर हमला होता था, बात बात पर उन्हें सस्पेंड किया जाता था, उनकी रीच खत्म कर दी जाती थी ताकि उनकी बात जनता तक न पहुंच सके जिससे एन्टी सरकार वाले ही अपना एजेंडा चला सकें। कैसे ट्रम्प की समर्थक मीडिया को भी उसके खिलाफ आखिरी समय में बंद कर दिया गया। इसके बावजूद ट्रम्प बिल्कुल नेक टू नेक लड़ाई तक तो तब भी पहुंचा लेकिन अंत में हार ही गया।

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