आम आदमी पार्टी के राज में पंजाब में जहां ड्रोन का उपयोग तस्करी, ड्रग्स और हथियारों के लिए किया जा रहा है, वहीं भाजपा शासित हरियाणा सरकार ड्रोन का कृषि के क्षेत्र में व्यापक उपयोग कर रही है। कृषि ड्रोन बनाने में हरियाणा देशभर में सबसे अव्वल है। इतना ही नहीं करीब पचास प्रतिशत कृषि ड्रोन तो यहीं बन रहे हैं। देश में ड्रोन बनाने वाली 400 कंपनियां में से एक चौथाई से ज्यादा हरियाणा में हैं और इसमें से भी करीब 28 अकेले गुरुग्राम में हैं। ड्रोन से फसलों में स्प्रे, बीज बिखेरने जैसे काम होने लगे हैं। इसके लिए प्रदेश में ही 1 हजार ड्रोन पायलट की सेना बनाई जा रही है। पीएम मोदी के विजन के चलते पिछले वर्षों में कृषि ड्रोन की लोकप्रियता बढ़ी है। इसके साथ भारत के कृषि परिदृश्य में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है। मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर भारत में ड्रोन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों और ड्रोन दीदी योजना के एकीकरण ने खेती के तरीकों को आधुनिक बनाने के लिए नए रास्ते खोले हैं। ये मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) एक गेम-चेंजर के रूप में उभरे हैं, जो भारतीय किसानों के सामने आने वाली सदियों पुरानी चुनौतियों के लिए अभिनव समाधान पेश करते हैं।
भारत में कृषि ड्रोन तकनीक को अपनाने के पीछे है पीएम मोदी का विजन
भारत में कृषि ड्रोन को अपनाने के पीएम मोदी के विजन के पीछे कई कारण हैं, जिनमें उत्पादकता में वृद्धि, श्रम लागत में कमी और टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं। सटीक छिड़काव प्रणाली से लैस ड्रोन कीटनाशकों और उर्वरकों के लक्षित उपयोग को सक्षम करते हैं, जिससे संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है। पहले श्रमसाध्य कार्यों को स्वचालित करके ड्रोन, किसानों का समय, शक्ति और पैसा बचाते हैं, जिससे उन्हें कृषि प्रबंधन के अधिक महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। इसके अलावा भारतीय कृषि के लिए विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने में कृषि ड्रोन सहायक साबित हुए हैं। विशाल कृषि भूमि की निगरानी से लेकर कीटों के संक्रमण और बीमारियों से निपटने तक, ये ड्रोन वास्तविक समय के डेटा और जानकारी प्रदान करते हैं, जो किसानों को तुरंत निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं। जैसा कि भारत खाद्य सुरक्षा हासिल करने और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। ड्रोन का उपयोग पैदावार को अनुकूलित करने और समग्र कृषि परिदृश्य को बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक उपकरण बन गया है।
ड्रोन दीदी योजना में स्वंय सहायता समूहों की होगी विशेष भूमिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 नवंबर 2023 को ‘ड्रोन दीदी योजना’ की शुरुआत की थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य है कि आने वाले चार वर्षों में 15,000 स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन उपलब्ध कराना है। यह ड्रोन महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। ये ड्रोन कृषि क्षेत्र में उर्वरकों का छिड़काव करने के लिए उपयोग किए जाएंगे। इस परियोजना के तहत, किसानों को स्वयं सहायता समूह का उपयोग करके ड्रोन किराए पर दिए जाएंगे। केंद्र सरकार इस परियोजना पर आगामी चार वर्षों में लगभग 1,261 करोड़ रुपए खर्च करेगी। यह योजना कृषि क्षेत्र में महिलाओं की सामर्थ्य और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। महिला स्वयं सहायता समूह को इस योजना के तहत ड्रोन खरीदने में 80 प्रतिशत की मदद दी जाएगी, साथ ही ड्रोन की कीमत और सहायक उपकरणों और सहायक शुल्क की लागत का अधिकतम 8 लाख रुपए व्यय होगा। यह योजना गांव के छोटे-मध्यम आय वाले किसानों को उत्पादन में वृद्धि और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करेगी।
देश में कृषि ड्रोन के 41 मॉडल उपलब्ध, हरियाणा में बन रहे 50 प्रतिशत ड्रोन
कृषि प्रधान भारत में इस देशव्यापी योजना के लिए कई कृषि ड्रोन की आवश्यकता को देखते हुए कई कंपनियां इसके निर्माण में जुटी हुई हैं। देशभर में करीब चार सौ से ज्यादा कंपनियां कृषि ड्रोन बना रही हैं। देश में कृषि ड्रोन के 41 मॉडल उपलब्ध हैं। इनमें छोटे व मध्यम आकार के 25 मॉडल हैं। कृषि ड्रोन बनाने में देशभर में हरियाणा सबसे आगे है। बताते हैं कि अकेले गुरुग्राम में ही करीब 15 कंपनियां कृषि क्षेत्र, 8 कंपनियां हवाई वीडियोग्राफी-फोटोग्राफी और 5 कंपनियां रक्षा क्षेत्र के लिए ड्रोन बना रही हैं। हरियाणा में इसी कृषि मॉडल के ड्रोन सबसे अधिक बन रहे हैं। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष स्मित शाह के मुताबिक 2030 तक ड्रोन के लिए कृषि क्षेत्र में 18 प्रतिशत, डिफेंस में 32 प्रतिशत और लॉजिस्टिक में 25 प्रतिशत निवेश बढ़ेगा। कंपनियां एआई के अलावा डेटा एनालिसिस करने वाले ड्रोन भी बनाने जा रही हैं।
एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद ड्रोन चलाने के लिए किसानों को किया जाएगा प्रशिक्षित
कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक ड्रोन पायलट बनने के लिए एक हफ्ते की ट्रेनिंग की जरूरत होती है। करीब 1 हजार ड्रोन पायलटों में से कुछ को कृषि गतिविधियों के लिए करने के लिए प्रशिक्षक के रूप में भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।। अभी देश में सिर्फ 3 हजार ड्रोन पायलट और 450 प्रशिक्षक हैं, जो ड्रोन पायलटों को प्रशिक्षित करते हैं। कृषि के क्षेत्र में ड्रोन के बढ़ते उपयोग को देखते हुए महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय (MHU) में ड्रोन पायलटों को ट्रेनिंग देने के लिए एक सेंटर बनाया जाएगा। इसके लिए विश्वविद्यालय की ओर से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के एक अधिकारियों के मुताबिक इस उभरती तकनीक के इस्तेमाल में प्रदेश तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है।एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग करने वाली निशा सोलंकी हरियाणा की पहली ड्रोन पायलट
मोदी सरकार के राज में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने विजयी पताका न फहराई हों। यूं कहें कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। ऐसा ही कारनामा हरियाणा की प्रथम महिला ड्रोन पायलट निशा सोलंकी ने कर दिखाया है। निशा सोलंकी वह महिला हैं जो महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय करनाल से जुड़कर किसानों को ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग देने में अहम भूमिका निभा रही हैं। हाल के दिनों में ड्रोन टेक्नोलॉजी सबसे कारगर तकनीक बनकर उभरी है। ड्रोन का इस्तेमाल हर बड़े काम में हो रहा है। लेकिन इसकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका खेती-किसानी में देखी जा रही है। डीसीए से सर्टिफाइड कोर्स कर एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग डिग्री हासिल कर चुकी निशा सोलंकी हरियाणा की प्रथम महिला ड्रोन पायलट बन चुकी हैं। बीते दिनों में निशा सोलंकी ने डीसीए से इंस्ट्रक्टर का कोर्स भी पूरा कर लिया। निशा सोलंकी आज बेटियों के लिए आदर्श बन चुकी हैं, क्योंकि उनको देखकर अन्य बेटियां भी इस क्षेत्र में करियर बना रही हैं।ड्रोन के इस्तेमाल से ऐसे बदल रहा है देशभर में खेती-किसानी का परिदृश्य
जनसंख्या के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां बड़ा देश है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को अन्न सुरक्षा देना बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसलिए जरूरी है कि पारंपरिक खेती की बजाय आधुनिक और तकनीकी खेती का विस्तार हो। खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी किसानों को खेती से नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में ड्रोन जैसी टेक्नोलॉजी के जरिए की गई प्रिसिजन फार्मिंग देश के किसानों को बेहतर विकल्प दे सकती है। ड्रोन का इस्तेमाल कर किसान लागत में कमी और समय की बचत कर अपनी आमदनी बढ़ा रहा हैं। पारंपरिक तरीके से कीटनाशकों का छिड़काव करने से हेल्थ पर इसका इफेक्ट पड़ता है। लेकिन ड्रोन के इस्तेमाल से इससे बचा जा सकता है। प्रौद्योगिकी-संचालित कृषि को बढ़ावा देने और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने पर भारत सरकार के बढ़ते फोकस के साथ, कृषि ड्रोन की लोकप्रियता और भी बढ़ने की उम्मीद है।