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दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल देश भारत, पांच साल में डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा कृषि या विनिर्माण से हो जाएगा ज्यादा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था काफी तेज गति से डिजिटल हो रही है। डिजिटलीकरण के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल देश है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2024 के अनुसार, ‘अर्थव्यवस्था-वार डिजिटलीकरण के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल देश बन गया है और निजी उपयोगकर्ताओं के डिजिटलीकरण के मामले में जी20 देशों में 12वें स्थान पर है।’

रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था के संपूर्ण अर्थव्यवस्था की तुलना में दोगुनी गति से बढ़ने की उम्मीद है। यह 2029-30 तक राष्ट्रीय आय में पांचवें हिस्से के बराबर योगदान देगी। इसका मतलब है कि अगले पांच साल में, देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा कृषि या विनिर्माण से ज्यादा हो जाएगा।

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2024 में यह भी कहा गया है कि सबसे ज्यादा वृद्धि डिजिटल इंटरमीडियरीज और प्लेटफार्मों के विकास से आने की संभावना है। इसके बाद बाकी अर्थव्यवस्था का ज्यादा डिजिटल प्रसार और डिजिटलीकरण होगा। इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में डिजिटल रूप से सक्षम आईसीटी (Information and Communication Technologies) उद्योगों की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।

मौजूदा समय में देश के आर्थिक विकास में डिजिटल अर्थव्यवस्था का अहम योगदान है। 2022-23 में जीडीपी (31.64 लाख करोड़ रुपये) में इसकी 11.74 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। 14.67 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बाकी अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक उत्पादक है।

आईसीटी सेवाओं और मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक घटकों, कंप्यूटर और संचार उपकरणों के विनिर्माण जैसे डिजिटल रूप से सक्षम उद्योगों ने जीवीए (Gross Value Added-सकल मूल्य वर्धित) में 7.83 प्रतिशत का योगदान दिया, जिसके 2029-30 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी और कृषि और विनिर्माण से आगे निकल जाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार पारम्परिक क्षेत्रों का भी तेजी से डिजिटलीकरण हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि थोक बिक्री की तुलना में खुदरा बिक्री कहीं अधिक डिजिटल हो रही है। कंपनियां ग्राहक अधिग्रहण और व्यवसाय विकास के लिए डिजिटल तरीकों में भी निवेश कर रही हैं। चैटबॉट और एआई एप्लीकेशन काफी आम हैं।

बीएफएसआई (Banking, Financial Services and Insurance) सेक्टर में बैंकिंग भुगतान लेनदेन का 95 प्रतिशत से अधिक डिजिटल है। वैसे लोन और निवेश जैसी गतिविधियां काफी हद तक ऑफलाइन रहती हैं, जबकि वित्तीय सेवाएं कुल मिलाकर कम डिजिटल होती हैं। शिक्षा ने ऑफलाइन, ऑनलाइन और हाइब्रिड मॉडल अपनाना शुरू कर दिया है। ज्यादातर संस्थान हाइब्रिड दृष्टिकोण अपना रहे हैं। हॉस्पिटैलिटी और लॉजिस्टिक्स एआई, मेटावर्स और डिजिटल टूल को अपना रहे हैं।

पिछले एक दशक में, डिजिटल-सक्षम उद्योगों की वृद्धि दर 17.3 प्रतिशत रही है। यह पूरी अर्थव्यवस्था की 11.8 प्रतिशत वृद्धि दर से काफी ज्यादा है। आने वाले वर्षों में यह वृद्धि दर लगभग 30 प्रतिशत रहने का अनुमान है। 2022-23 में, डिजिटल अर्थव्यवस्था में 14.67 मिलियन कर्मचारी थे, जो भारत के कार्यबल के 2.55 प्रतिशत के बराबर थे और इनमें से ज्यादातर नौकरियां करीब 58.07 प्रतिशत के साथ डिजिटल-सक्षम उद्योग में थीं। भले ही, कार्यबल में ज्यादातर पुरुष हैं, लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म ने महिलाओं के लिए नौकरी के अवसरों को बढ़ाने में योगदान दिया है।

अमेरिका को पीछे छोड़ सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग टैलेंट का हब बनेगा भारत
इसके साथ ही भारत प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी विजन के कारण अगले दो साल में अमेरिका को पीछे छोड़ सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग टैलेंट का हब बनने की राह पर है। यह देश को दुनिया की थर्ड एकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित होगा।

2030 तक सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की मांग 21% तक बढ़ेगी
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 2015 में डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देश के लोगों को डिजिटल टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी और सेवाओं से जोड़ना था। सरकार ने इसके लिए कई कदम उठाए हैं। इसी अभियान के तहत नेशनल ओपन फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (NOFN) और भारत नेट (BharatNet) परियोजना की भी शुरुआत की गई। डिजिटल पेमेंट क्रांति, 5जी नेटवर्क, फिनटेक कंपनियां और कई डिजिटल स्टार्टअप इसी प्रोग्राम को नेक्स्ट लेवल पर ले जा रहे हैं। एआई और ग्लोबलाइजेशन के कारण न सिर्फ कोडिंग की प्रक्रिया आसान हो रही है, बल्कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की मांग और बढ़ रही है। देश में कई कंपनियों ने एआई का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से करने के प्रयास शुरू किए हैं। सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग में एआई का योगदान अहम साबित हो रहा है। एक आंकलन के मुताबिक एशिया में 2024 से 2030 तक सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की मांग 21 प्रतिशत तक बढ़ेगी। इस कारण, कंपनियां सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के लिए आउटसोर्सिंग के लिए सबसे ज्यादा फोकस भारत पर कर रही हैं। यहां 40 प्रतिशत से अधिक डेवलपर्स एआई का इस्तेमाल करने लगे हैं। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो वैश्विक डिमांड पूरी करेगी।

भारत है अमेरिका और ब्रिटेन से कहीं ज्यादा डिजिटल फ्रेंडली
एक वर्कप्लेस सर्वे के अनुसार, डिजिटल कार्यक्षेत्र में भारत दुनिया में सबसे अधिक कुशल देश है। इसके बाद ब्रिटेन और अमेरिका दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर भारतीय डिजिटल क्षेत्र की नई तकनीकों का उपयोग करना जानते हैं। साथ ही वे नई तकनीकों को सीखने में रुचि दिखा रहे हैं। रिसर्च एनालिटिक्स रश्मि चौधरी के मुताबिक भारत में कामकाज वाले 30 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी डिजिटल रूप से इस क्षेत्र में पूरी तरह कुशल हैं। वहीं, हर 10 में से 7 कर्मचारी नई तकनीकों को हाई सैलरी और बेहतर जॉब अवसर के रूप में देखते हैं। टेक्निकल प्रोफेशनल्स का मानना है कि मैन्युअल या सेमी स्किल्ड कर्मचारियों के बजाए डिजिटल तकनीक में कुशल लोगों की मांग ज्यादा है।

चीन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन भी हमसे हैं पीछे
सर्वे में यह भी देखा गया है कि रियल टाइम सहयोग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टूल को लेकर भारत और सिंगापुर के कर्मचारी काफी आगे हैं। वहीं, चीन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन पीछे है। रिपोर्ट के मुताबिक, 45 फीसदी भारतीय कर्मचारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि डिजिटल तकनीक उनके कामकाज की आदतों की निगरानी करती है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि डिजिटल कर्मचारी किसी प्रकार की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं चाहते हैं। वे सीधे जॉब करने के लिए तैयार हैं। भारत में 39 फीसदी डिजिटल कर्मचारी अपने मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स की नॉलेज के आधार पर सीधे नौकरी करना चाहते हैं, वे किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग की जरूरत नहीं समझते हैं।

सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में विकास और प्रोडक्टिविटी बढ़ी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के कारण सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में विकास और प्रोडक्टिविटी बढ़ रही है। इनकी मांग न सिर्फ तकनीकी कंपनियों में, बल्कि गैर-तकनीकी कंपनियों में भी बढ़ रही है। कुछ देशों में एक सॉफ्टवेयर डेवलपर का औसत वेतन सभी बिजनेसेज में टॉप 5 में आ गया है। भारत में भी इसका असर देखा जाने लगा है। इंटरनेट की तरह, एआई भी सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बना रहा है। को पायलट नामक एआई टूल, अब तक 20 लाख लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत जल्द ही अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर टैलेंट हब बन सकता है।

एआई उन कामों संभालेगा जो डेवलपर्स के लिए होते हैं बोरिंग
दरअसल, उभरते हुए बाजारों से सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है। इस कारण, अभी यह कहना गलत होगा कि एआई की वजह से सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इसके उलट एआई से सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की जटिलता और लागत कम हो रही है, जिससे कंपनियों को अधिक उत्पादकता प्राप्त करने में मदद मिल रही है। भविष्य में, एआई उन कामों संभालेगा जो डेवलपर्स के लिए बोरिंग होते हैं। एआई का अगले एक दशक में काफी आर्थिक असर होने वाला है। विशेषज्ञों के मुताबिक एआई डेवलपर से 2030 तक वैश्विक जीडीपी 1.5 ट्रिलियन डॉलर का प्रोडक्टिविटी बेनिफिट हो सकता है। भारत की इसमें बेहद अहम भूमिका रहने वाली है।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम बना एक परिवर्तनकारी शक्ति 
देश में मोदी सरकार आने के बाद 2015 में शुरू किया गया डिजिटल इंडिया कार्यक्रम एक परिवर्तनकारी शक्ति बन गया है। इसने भारत की विकास कहानी की गति को बदल दिया है और देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में बदल दिया है। इस दृष्टिकोण को तीन प्रमुख स्तंभों के माध्यम से साकार किया जा रहा है: मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा, सुलभ सरकारी सेवाएं और सशक्त नागरिक।

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