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नारी शक्ति का सम्मान: आरएसएस की शाखाओं और संगठन में महिलाओं की बड़े पदों पर एंट्री लगभग सुनिश्चित, RSS के 100वें वर्ष में दिखेंगे कई अहम बदलाव, पानीपत में हुआ गंभीर मंथन 

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दो साल बाद बुराई पर अच्छाई के प्रतीक-पर्व विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ स्थापना की सौवीं वर्षगांठ मनाएगा। नागपुर में केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में आरएसएस की नींव रखी थी। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बदलाव के दौर में है। आरएसएस में हिंदुओं की तो अगाध श्रद्धा है ही, अब मुस्लिमों का झुकाव भी संघ और इसके कार्यों की ओर निरंतर हो रहा है। अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी संघ प्रमुख मोहन भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्र ऋषि’ बता चुके हैं। इससे पहले भागवत भी दोनों समुदाय का डीएनए एक होने का बयान दे चुके हैं। बदलाव के इस दौर में हरियाणा के समालखा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक हुई। इसमें जहां आरएसएस शाखा से महिलाओं को जोड़ने की बात पर जोर दिया गया. वहीं स्वदेशी, स्वाधीनता, स्लावलंबन और आत्मनिर्भरता पर भी मंथन हुआ। खास बात यह रही कि संघ की शाखाओं में मुस्लिम महिलाओं को भी जोड़ने पर फोकस दिया गया।आरएसएस में नारीशक्ति की भूमिका को और बढ़ाने पर गंभीरता से मंथन
संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने पहले ही दिन महिलाओं की संगठन में एंट्री को लेकर सकारात्मक संकेत भी दिए। उन्होंने कहा- ‘इस बैठक में महिलाओं को शाखा से जोड़ने पर विचार किया जा रहा है।’ सूत्रों के मुताबिक, महिलाओं की शाखाएं अलग होंगी या संगठन ही अलग होगा, इस पर विचार चल रहा है। हालांकि यह भी सही है कि आजादी से पहले ही 1936 से ही राष्ट्र सेविका समिति का गठन कर दिया गया था। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। इस समय लगभग दस लाख बहनें इससे जुड़ी हैं और देश के सभी प्रांतों में इनकी शाखाएं चलती हैं। अकेले राजधानी दिल्ली में ही लगभग 70 महिला शाखाएं राष्ट्र सेविका समिति चलाती है। इसके बावजूद भी आरएसएस पर महिलाओं के लिए रूढ़िवादी और पारंपरिक सोच रखने और संघ के पुरुष प्रधान होने का आरोप लगता है। इसी छवि को बदलने और संगठन में नारीशक्ति की भूमिका को और बढ़ाने पर गंभीरता से मंथन हो रहा है।छह साल में आई 7.25 लाख रिक्वेस्ट, देश में 71,355 जगहों पर है संघ
पानीपत में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह  डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि महिलाओं को ‘शाखाओं’ से जोड़ने पर बैठक में सकारात्मक मंथन हुआ है। उन्‍होंने बताया कि देशभर में 42,613 स्थानों पर 68,651 दैनिक शाखाएं चल रही हैं। इसके अलावा 26,877 साप्ताहिक बैठकें होती हैं। 10,412 संघ मंडली हैं। 2020 की तुलना में 6,160 शाखाएं बढ़ी हैं। साप्ताहिक बैठकें 32% और संघ मंडली में 20% की वृद्धि हुई है। संघ देश भर में 71,355 स्थानों पर मौजूद है। आरएसएस से देश भर से जुड़ने वालों का सिलसिला जारी है। संघ की वेबसाइट के माध्यम से वर्ष 2017 से वर्ष 2022 तक 7 लाख 25 हजार लोगों ने जुड़ने को लेकर रिक्वेस्ट डाली। यानी 1.20 लाख प्रति वर्ष। इनमें से ज्यादा की उम्र 20 से 35 वर्ष के बीच है। 75% का संघ से जुड़ने का मकसद समाज सेवा करना है।सामाजिक समरसता, सर्वधर्म समभाव और भारत के विकास पर हुआ मंथन
यह सभी जानते हैं कि आरएसएस की काम करने की शैली समाजसेवा से ही है। आदिवासी समाज में वनवासी कल्याण समिति हो या फिर एकल विद्यालय, ये सब इसके ही उदाहरण हैं। नॉर्थ-ईस्ट में लोगों के लिए मेडिकल सुविधा से लेकर शिक्षा तक संघ ने कई इंस्टिट्यूशन खड़े किए हैं। अब समाज में संघ को पूरी तरह समाहित करने, समाज के सिस्टम का अहम हिस्सा बनने की तैयारी है। अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने बताया कि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सामाजिक समरसता, सर्वधर्म समभाव, भारत के विकास की नीति, समाज का सहयोग और समाज के कार्यों की नीति पर विचार-मंथन किया गया।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में बड़े पदों पर महिलाओं के आने से बदलेगी छवि
संघ की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ तक राष्ट्र सेविका समिति में शामिल महिलाओं को संघ में बड़े पदों जैसे सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह पर भी लाया जा सकता है। 2025 में संघ 100 साल का हो रहा है, विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले या फिर 2025 के शुरुआती महीने में महिलाओं के लिए अलग संगठन या उनकी आरएसएस में एंट्री का ऐलान किया जा सकता है। हालांकि महिलाओं के लिए राष्ट्रसेविका समिति के नाम का एक संगठन है, जो संघ की तर्ज पर काम करता है। आरएसएस की इस महत्वपूर्ण चिंतन बैठक में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, महासचिव बीएल संतोष और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर भी शामिल हुए। बैठक में संघ से जुड़े देशभर के करीब 1400 लोगों ने भाग लिया।पहली बार नागपुर में संघ के दशहरा कार्यक्रम की मुख्य अतिथि बनी पर्वतारोही संतोष यादव 
यह सर्वविदित तथ्य है कि बीजेपी आज जिस मुकाम पर है, उसमें संघ की भूमिका बहुत की अहम रही है। वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं और इसके अगले साल आरएसएस की सौवीं वर्षगांठ होगी। इस वर्षगांठ से पहले संघ में महिलाओं को और आगे लाने की नीति पर विचार-विमर्श हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को प्रमुख पदों की नियुक्ति देने पर संघ का मंथन सहमति की ओर बढ़ चला है। इसी को देखते हुए पिछले साल  नागपुर में संघ के दशहरा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पर्वातारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया गया। महिला स्वयंसेविकाओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने पर हो रहा मंथन
दरअसल, दिल्ली में विदेशी प्रतिनिधियों ने बातचीत के दौरान संघ प्रमुख भागवत से इस संबंध में सवाल किए थे। नारीशक्ति को और आगे लाने के लिए महिला स्वयंसेविकाओं को जिम्मेदारी देने को लेकर गंभीरता से मंथन शुरू हुआ। संघ के सदस्य जब दशहरा कार्यक्रम के लिए संतोष यादव को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित करने के लिए गए तो वहां भी महिलाओं को लेकर संघ की सोच पर बात हुई थी। इसके बाद इस पर मंथन हुआ कि कैसे आने वाले सालों में महिलाओं की भूमिका संघ में और अहम बनाई जा सकती है।1936 में लक्ष्मी बाई केलकर ने की थी महिला राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना
संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि यह आरोप निराधार है कि संघ देश की आधी आबादी से कटा हुआ है। संघ की स्थापना के 11 साल बाद 1936 में दशहरे के दिन लक्ष्मी बाई केलकर ने महिलाओं के लिए राष्ट्र सेवा समिति की स्थापना की थी। संघ में महिलाएं तभी से अहम भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं के लिए बाल शाखा, तरुण शाखा और राष्ट्र सेविका समिति है। देशभर में राष्ट्र सेविका समिति की हजारों शाखाएं हैं। राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी महिलाएं भाजपा में प्रमुख पदों पर पहुंची हैं। इनमें सुषमा स्वराज और सुमित्रा महाजन जैसी बड़ी नेता शामिल हैं।

अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इलियासी ने कहा भागवत राष्ट्रपिता और राष्ट्र ऋषि हैं
संघ की इस सोच में बदलाव के साथ-साथ संघ के प्रति भी सोच में बदलाव आ रहा है। न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में पिछले दिनों अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी ने कहा, “मोहन भागवत से मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। वह हमारे राष्ट्रपिता और राष्ट्र ऋषि हैं।” उन्होंने कहा कि, “देश की एकता और अखंडता कायम रहनी चाहिए। हम सभी अलग-अलग तरह से पूजा कर सकते हैं, लेकिन उससे पहले हम सब इंसान हैं। हम भारत में रहते हैं और भारतीय हैं। भारत विश्व गुरु बनने की कगार पर है और हम सभी को इसके लिए प्रयास करना चाहिए।”

भागवत से दिल्ली में कई मुस्लिम विद्वानों ने की थी मुलाकात
आरएसएस प्रमुख भागवत ने इलियासी से राजधानी में कस्तूरबा गांधी मार्ग पर उनके कार्यालय में पिछले साल मुलाकात की थी। बैठक के बारे में जानकारी देते हुए आरएसएस के प्रचार प्रमुख ने कहा, “आरएसएस प्रमुख समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलते हैं। यह निरंतर बातचीत प्रक्रिया का एक हिस्सा है।” भागवत-इलियासी की अगस्त में भी मुलाकात हुई थी। 22 अगस्त को हुई बैठक में भागवत ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एलजी (सेवानिवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और उद्योगपति और सामाजिक कार्यकर्ता सईद शेरवानी से मुलाकात की थी।

 

 

 

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