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केजरीवाल सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन के मूड में डीटीसी कर्मचारी, जगह-जगह लगाए पोस्टर- केजरीवाल हटाओ, डीटीसी बचाओ

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के झूठ और नाकामी का असर अब दिल्ली सरकार के सभी विभागों पर देखने को मिल रहा है। शराब घोटाला, यमुना की सफाई, शिक्षा व्यवस्था की खुलती पोल, आरटीआई का गला घोंटना, दिल्ली जल बोर्ड की नाकामी से कई इलाकों में गंदे पानी की आपूर्ति, ये कुछ झांकी है जिससे दिल्ली की जनता त्रस्त है। इसी तरह दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) लंबे समय से आंतरिक संकट से जूझ रहा है क्योंकि इसके 11,286 संविदा चालक और परिचालक बेहतर वेतन की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। सत्ता में आने से पहले केजरीवाल ने सभी संविदा (कांट्रेक्ट) कर्मचारियों को नियमित करने और बेहतर वेतन देने की बात कही थी लेकिन पिछले नौ साल में उन्होंने डीटीसी कर्मियों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं किया। यहां तक कि डीटीसी बसों की खरीद में घोटाले का भी आरोप लगा। अब डीटीसी कर्मचारी केजरीवाल सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं। शहर में जगह-जगह पोस्टर लगाए हैं- केजरीवाल हटाओ, डीटीसी बचाओ। कर्मचारियों ने 10 अप्रैल को एक सांकेतिक प्रदर्शन कर केजरीवाल सरकार को चेतावनी दे दी है।

कट्टर ईमानदार सरकार में घोटालों के बाद डीटीसी के निजीकरण की तैयारी

दिल्ली के कट्टर ईमानदार सरकार के नाम पानी घोटाला, दारू घोटाला, स्कूलों में घोटाला, अस्पतालों में घोटाला, यमुना नदी में घोटाला, मोहल्ला क्लीनिक में घोटाला और डीटीसी जैसे न जाने कितने घोटाले को अंजाम देने के बाद कट्टर ईमानदार सरकार अब दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के निजीकरण की तैयारी कर रही है। यही नहीं, डीटीसी बसों की जगह प्राइवेट क्लस्टर बसों को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है। इसके साथ ही संविदा कर्मचारियों का वेतन भी नहीं बढ़ाया जा रहा है। इसी वजह से डीटीसी कर्मचारियों ने 10 अप्रैल 2023 को प्रदर्शन किया।

दिल्ली सरकार के खिलाफ डीटीसी कर्मियों का बैनर कैंपेन

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन ने बैनर कैंपेन के तहत शहर के प्रमुख चौराहों आईटीओ, लाजपत नगर, आनंद विहार, कश्मीरी गेट आदि जगहों पर बैनर लगाए हैं। यूनियन के प्रेसिडेंट ललित चौधरी का कहना है कि जनता को पता चलना चाहिए कि दिल्ली सरकार प्राइवेट बसों को बढ़ावा दे रही है। वहीं डीटीसी के संग सौतेला व्यवहार कर रही है। दिल्ली की जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। 9 साल में डीटीसी की एक भी बस नहीं खरीदी गई जबकि दूसरी तरफ प्राइवेट क्लस्टर बसों को मौका दिया जा रहा है। आरोप यहां तक है कि कमीशन के लिए प्राइवेट मालिकों और अपने चाहने वालों को डीटीसी की संपत्ति बेची जा रही है। उनका कहना है कि दिल्ली सरकार अपने निजी फायदे के लिए दिल्ली की सरकारी बसों को प्राइवेट कंपनियों के हाथों में सौंप रही है, जिसका हम विरोध कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।

डीटीसी फायदे में है तो इसे बेचा क्यों जा रहा?

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन का कहना है कि अगर डीटीसी फायदे में है तो इसे बेचा क्यों जा रहा है। और अगर डीटीसी घाटे में है तो प्राइवेट लोग क्लस्टर बस चलाने को तैयार क्यों हो रहे हैं। इतने सालों से कर्मचारी काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें स्थायी नहीं किया गया है। कर्मचारी समान काम-समान वेतन मांग रहे हैं। डीटीसी में कर्मचारियों को स्थायी किया जाए। अगर मांगे नहीं मानी जाती तो कर्मचारी बड़ा आंदोलन करने के लिए तैयार हैं।

आम आदमी पार्टी के पेट में बनने लगी सच्चाई की गैस

DTC कर्मचारी एकता यूनियन ने एक ट्वीट में 11 अप्रैल को कहा है कि डीटीसी बचाओ अभियान क्या चलाया और पूरी दिल्ली में डीटीसी बचाओ कैंपेन का बैनर क्या लगाया तो आम आदमी पार्टी के पेट में सच्चाई की गैस बनने लग गई, दर्द है तो अपना वादा पूरा करो, सच्चाई हमेशा कड़वी लगती है।

संविदा कर्मचारियों को सरकार सम्मानजनक वेतन दे

नीलम गहलोत ने ट्वीट किया- माननीय केजरीवाल जी से निवेदन है 1 अप्रैल से जो न्यूनतम वेतन बढ़ेगा उससे अलग संविदा कर्मचारियों का वेतन ₹35000 निर्धारित किया जाए। संविदा कर्मचारी कोई मजदूर नहीं है जिन्हें न्यूनतम वेतन मिले। सरकारी मंत्रालय में संविदा कर्मचारी को सम्मानजनक वेतन 35000 मिलना ही चाहिए।

डीटीसी कर्मचारियों के आंदोलन से ठप हो जाएगी परिवहन व्यवस्था

ऐसे समय में जब दिल्ली की हवा पहले से ही खराब हो रही है, अगर अस्थायी ड्राइवर और कंडक्टर लंबी हड़ताल पर जाने का फैसला करते हैं, तो दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की 3,300 से अधिक बसों का बेड़ा शहर की सड़कों से हट जाएगा। जानकारों का कहना है कि यह कदम शहर में पहले से ही कमजोर पड़ रहे सार्वजनिक नेटवर्क को पंगु बना सकता है। इससे दिल्ली की परिवहन व्यवस्था पर खासा असर पड़ेगा और अंततः जनता को ही परेशानी उठानी पड़ेगी।

डीटीसी बसों का परिचालन निजी हाथों में सौंपने की तैयारी

देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली परिवहन निगम की डीटीसी बसों को लाइफ लाइन कहा जाता है और केजरीवाल सरकार डीटीसी बसों का परिचालन निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। दिल्ली सरकार ने परिवहन आयुक्त की निगरानी में एक समिति का गठन कर दिया है। यह समिति क्लस्टर बसों की तर्ज पर परिचालन से रखरखाव तक की जिम्मेदारी निजी संचालकों को देने पर एक रिपोर्ट तैयार कर रही है।

डीटीसी की इलेक्ट्रिक बसों के परिचालन की जिम्मेदारी निजी संचालकों को सौंपी

दिल्ली सरकार ने डीटीसी में आई 152 इलेक्ट्रिक बसों के परिचालन की जिम्मेदारी निजी संचालकों को सौंपी है। इसे डीटीसी के पूरे बेड़े का परिचालन निजी हाथों में सौंपने का ट्रायल माना जा रहा है।

क्लस्टर बसों का परिचालन प्राइवेट हाथों में

दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में कुल 7200 बसों का परिचालन दो मॉडल है। 3812 बसें ऐसी हैं, जिसमें चालक से लेकर परिचालक सब सरकार की निगरानी में हैं। वही दूसरा क्लस्टर मॉडल में जिसमें बसों के खरीद से लेकर परिचालन, रखरखाव प्राइवेट को सौंपा जा रहा है। दिल्ली में यह जिम्मेदारी डिम्ट्स नाम की कंपनी को सौंपी गई है।

डीटीसी बस का महंगा हो सकता है किराया

दिल्ली सरकार क्लस्टर बसों की तर्ज पर बाकी बसों को निजी कंपनी के हाथों ही सौंपना चाहती है। इसके लिए तैयारी भी की जा रही है। डीटीसी वर्कस भी यूनिट सेंटर के फैसले पर मीटिंग कर रहे हैं। हालांकि कई वर्कर सरकार के इस फैसले से खुश नहीं है लेकिन अभी सरकार बसों के निजीकरण का फैसला कर चुकी है। अगर बसों को प्राइवेट हाथों में सौंपा जाता है तो किराया महंगा हो सकता है।

2018 में कच्छा पहन-हाथ में कटोरा लेकर किया था प्रदर्शन

डीटीसी के अनुबंधित कर्मचारी 2018 में कच्छा पहनकर और हाथ में कटोरा लेकर प्रदर्शन किया था। उस दौरान अपने स्थायी करने के लिए कर्मचारियों ने तीन दिनों तक हड़ताल किया था। लेकिन झूठ बोलने के आदी केजरीवाल के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

केजरीवाल ने कहा था- सरकार बनते ही सभी कर्मचारियों को पक्का किया जाएगा

अनुबंधित कर्मचारियों ने कहा कि इस आंदोलन का मुख्य मकसद केजरीवाल सरकार को चुनावी वादा याद दिलाना था जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार बनते ही सभी कर्मचारियों को पक्का किया जाएगा। इससे पहले डीटीसी के अनुबंधित कर्मचारी हाथ में काली पट्टी बांध कर वेतन में कटौती का विरोध कर चुके हैं।

कर्मचारियों को स्थायी करने के बजाय वेतन में हो गई कटौती

डीटीसी के एक अनुबंधित कर्मचारी ने बताया कि स्थायी नौकरी और ‘समान काम समान वेतन’ की मांग पिछले कई सालों से की जा रही है। बीते दिनों इसको लेकर तमाम प्रदर्शन भी हुए। हालांकि नतीजा कुछ नहीं निकला। यहां तक कि पिछले दिनों कर्मचारियों के वेतन में भी कटौती कर दी गई।

DTC की वजह से दिल्ली सरकार को बड़ा नुकसान

CAG रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में दिल्ली राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम को जो नुकसान हुआ, उसमें 99 फीसदी हिस्सेदारी DTC की थी। मतलब डीटीसी बस सर्विस दिल्ली सरकार के लिए ‘घाटे का सौदा’ साबित हो रही है। केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार के मेट्रो और बस सवारी को महिलाओं के लिए मुफ्त करने के बाद से दिल्ली परिवहन निगम अपनी हर एक बस के लिए अनुमानित 2,000 रुपये प्रति दिन नुकसान हो रहा है। इस योजना के लागू होते ही 2019-20 में डीटीसी को लगभग 5,280 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। मार्च 2019 तक डीटीसी को 38,753 करोड़ रुपये का घाटा था।

DTC बसों की खरीद में गड़बड़ी के आरोप

दिल्ली की केजरीवाल सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। अभी आबकारी नीति को लेकर सीबीआई जांच का सामना कर रही ही थी कि एक और जांच सिर पर आ पड़ा। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने डीटीसी की ओर से 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद में कथित भ्रष्टाचार की शिकायत पर प्रस्ताव भेजने को मंजूरी दे दी है। शिकायत में कहा गया है कि 1000 लो फ्लोर बीएस-4 और बीएस-6 बसों के लिए जुलाई 2019 में खरीद बोली और मार्च 2020 में बीएस-6 बसों के लिए सालाना रखरखाव के अनुबंध के लिए लगाई गई दूसरी बोली में अनियिमताताएं हुई हैं।

डीटीसी बस खरीद में पांच हजार करोड़ रुपए का घोटाला

भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया था कि जुलाई 2019 में दिल्ली सरकार ने 1,000 लो-फ्लोर बसों की खरीद और उनके रखरखाव में पांच हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया है। मेंटेनेंस का ठेका भी बस सप्लाई करने वाली कंपनी को ही दे दिया गया है जो गलत है। बसों के सड़कों पर उतरते ही मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट भी लागू हो जाएगा जबकि बसों की तीन साल की वारंटी होनी चाहिए। इस दौरान गड़बड़ियां आने पर मेंटेनेंस के लिए एक भी पैसे नहीं देने होते हैं।

डीटीसी बस घोटाले को लेकर जांच सीबीआई को सौंपी

आम आदमी पार्टी सरकार पर डीटीसी की 1000 बसों की खरीद और मेंटेनेंस में अनियमितताओं के आरोप को देखते हुए मुख्य सचिव के प्रस्ताव पर दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने जांच सीबीआई को सौंप दी है।

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