Home विपक्ष विशेष ‘बांटने’ की साजिश को अमित शाह ने किया नाकाम !

‘बांटने’ की साजिश को अमित शाह ने किया नाकाम !

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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 70 सालों का इतिहास बताता है कि देश में दो तरह की राजनीति खूब परवान चढ़ी है। एक ‘बांटने’ की राजनीति और दूसरी ‘वोट बैंक’ की राजनीति। हालांकि तथ्य ये है कि ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। ‘वोट बैंक’ न होगा तो ‘बांटने’ की राजनीति नहीं होगी। बांटने की राजनीति तभी होगी जब ‘वोट बैंक’ होगा। सात दशक की सियासत यह साबित करती है कि हमारे सियासतदानों की नीतियां इन्हीं दोनों के आधार पर बनती हैं।

हालांकि वर्ष 2014 में जब कांग्रेस पार्टी को जब देश की जनता ने सत्ता छीन ली तो देश ने एक नए बदलाव को देखना शुरू किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘सबका साथ-सबका विकास’ और ‘किसी का तुष्टिकरण नहीं, सबका सशक्तिकरण’ की नीति अपनाई गई तो लोगों में एक उम्मीद जगी। ‘वोट बैंक’ की राजनीति धीरे-धीरे खत्म होने लगी और कांग्रेस शासन के दौरान बुरी तरह विभाजित बहुसंख्यक समाज को अपनी शक्ति का अहसास होना शुरू हो गया।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति देश के विपक्षी दलों को रास नहीं आई और वे अंग्रेजों की ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति पर उतर आए। इसके बाद बहुसंख्यक समाज को बांटने की पॉलिटिक्स परवान चढ़ी और दलित-सवर्ण, अगड़ा-पिछड़ा, ओबीसी-दलित के साथ हिंदू-लिंगायत तक में ‘बांटने’ की साजिश रची गई है। लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के एक फैसले ने ‘वोट बैंक’ की राजनीति को आईना दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने साफ कह दिया है कि केंद्र सरकार लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा नहीं देगी।

लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा नहीं
अमित शाह ने साफ कर दिया है कि यह हिंदुओं को बांटने की साजिश है और वह राज्य सरकार के प्रस्ताव को नहीं मानेंगे। उन्होंने कहा, ”लिंगायत समुदाय के सभी महंतों का कहना है कि समुदाय को बंटने नहीं देना है। मैं ये भरोसा दिलाता हूं कि इसे बंटने नहीं दिया जाएगा। जब तक बीजेपी है कोई बंटवारा नहीं होगा। हम इसको लेकर प्रतिबद्ध हैं।”

जाहिर है यह निर्णय आसान नहीं है क्योंकि कर्नाटक में 12 मई को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में लिंगायत समाज की नाराजगी का भी खतरा है। लेकिन भाजपा ने इस ‘वोट बैंक’ की राजनीति को ठेंगा दिखाते हुए साफ कर दिया है कि कांग्रेस भले ही बांटने की राजनीति करेगी, लेकिन भाजपा बहुसंख्यक समाज को बंटने नहीं देगी।

दलित-ओबीसी-सवर्ण में नहीं बंटेगा समाज
एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब 02 अप्रेल को दलितों ने आंदोलन किया तो यह साफ हो गया कि यहां मुद्दे गौण हैं और वोट बैंक की राजनीति अहम है। जनसंख्या के लिहाज से इस अहम वोट बैंक पर कई सियासी पार्टियां अपने ‘हाथ’ मार रही हैं। यहीं वजह है कि जब देश जल रहा था कई नेताओं ने प्रदर्शन के हिंसक तरीकों पर सवाल नहीं उठाया, बल्कि अपने झूठे वक्तव्यों से इसे और हवा देने की कुत्सित कोशिश की।

 

 

दरअसल विपक्षी दलों ने दलितों के खिलाफ जेनरल कैटेगरी को, जेनरल कैटेगरी के खिलाफ ओबीसी को, और ओबीसी के खिलाफ अन्य समुदाय को भड़काने की रणनीति बनाई है। हालांकि भाजपा ने इस राजनीति को समझ लिया है और संयम बरतते हुए सही तथ्यों को सामने लाया है।

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