Home नरेंद्र मोदी विशेष  घोटाले, भ्रष्टाचार में घिरी रही कांग्रेस को विरोध का अधिकार नहीं

 घोटाले, भ्रष्टाचार में घिरी रही कांग्रेस को विरोध का अधिकार नहीं

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राष्ट्रपति चुनाव में तय हार के बावजूद उम्मीदवार उतारने वाली कांग्रेस को लगा कि जीएसटी लॉन्च के विशेष कार्यक्रम में उसके शामिल होने से मोदी सरकार के विरोध की उसकी कोशिश कमजोर पड़ेगी। इसलिए उसने भी ममता बनर्जी और लेफ्ट पार्टियों की राह पर जाकर एक जुलाई से जीएसटी लॉन्च का विरोध करते हुए खुद को विशेष सत्र से दूर रखा। लेकिन सवाल है, क्या कांग्रेस को इस तरह के विरोध का अधिकार है जिसने अपने साठ साल के शासन के दौरान देश की आर्थिक आजादी को लेकर कभी कोई चिंता नहीं रही। आज जब मोदी सरकार एक पर एक बड़े फैसले और योजनाओं को लागू कर रही है तो कांग्रेस हमेशा अपने बेअसर रहने वाले विरोध से एक अड़ंगा लगाने की कोशिश करती है।  

 नोटबंदी पर जनता ने किया समर्थन, कांग्रेस ने किया विरोध

ये कोई पहला मौका नहीं जब कांग्रेस ने मोदी सरकार की बड़ी योजना या फैसले के विरोध में उतरकर अड़ंगा डालने की कोशिश की हो। इससे पहले भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद पर शिकंजे के लिए पिछले साल नवंबर में मोदी सरकार ने जब नोटबंदी का कदम उठाया तो कांग्रेस ने उसका भी पुरजोर विरोध किया था। मोदी सरकार ने राजनीति की परवाह किये बगैर देशहित में ये कदम उठाया था, लेकिन कांग्रेस ने इसमें राजनीतिक रंग भरने में कोई कसर बाकी नही रखी। कांग्रेस ने अपने कुछ साथी दलों के साथ गोलबंदी कर नोटबंदी के खिलाफ मोर्चा खोलने की कोशिश की, संसद को बाधित करती रही, लेकिन जिस कदम को देशवासियों का समर्थन हो उसे हाशिये पर आ चुकी कांग्रेस के विरोध से आखिर क्या फर्क पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने जब ये कहा था कि नोटबंदी के फैसले का वही विरोध कर रहे हैं जिन्हें अपने कालेधन को ठिकाने लगाने का समय नहीं मिला, तो कांग्रेस को तेज मिर्ची लगी थी। सच ये है कि कांग्रेस मुंह ताकती रह गई और देश नोटबंदी के सफल फैसले के बाद डिजिटल लेनदेन की ओर बढ़ता जा रहा है।

जनता विकास के कदम के साथ, कांग्रेस करती है नकारात्मक राजनीति

मोदी सरकार की लगातार ये कोशिश है कि ऐसी योजनाएं जमीन पर कारगर ढंग से उतरती रहे जिनसे देश के विकास की गति में रफ्तार बनी रहे। लेकिन कांग्रेस को हर योजना से ही तकलीफ हो रही है। उसकी चले तो हर स्थिति को उसी की सरकार जैसी या तो यथावत रखी जाए या फिर घोटाले और भ्रष्टाचार के जरिए और कमजोर कर दिया जाए। मोदी सरकार विदेश से निवेश लाने वाली मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को सफल बनाने के लिए अथक मेहनत कर रही है लेकिन कांग्रेस को तो बस राजनीति करनी है, इसलिए वो हर योजना को पहले ही नाकाम बताने पर उतारु दिखती है। गौर करने वाली बात तो ये भी है कि जन-धन हो या सुरक्षा बीमा योजना, मोदी सरकार इन योजनाओं से जनता के दिलों पर राज करने लगी तो कांग्रेस ने ये सुर छेड़ने की कोशिश की कि ये सब तो उसी की योजनाएं है। यानी कांग्रेस ये खुद साबित कर जाती है कि उसने वोटबैंक के नजरिये से ऊपर कभी सोचा ही नहीं।  

  भ्रष्टाचार में डूबी रही कांग्रेस को क्या शोभा देता है ये विरोध?

मोदी सरकार की एक पर एक कामयाबियों के बीच लगातार नकारात्मक राजनीति पर उतरी कांग्रेस ने अपने दौर में क्या किया था-हमेशा घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी रही थी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार। कोयला हो या स्पेक्ट्रम की नीलामी, हर फैसले से दामन पर भ्रष्टाचार के दाग लगते गए। लाखों करोड़ के घोटाले के आरोपों में जब कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार आकंठ डूबी नजर आई, तो जनता ने भी उसका दामन छोड़ने में ही अपनी और अपने देश की भलाई समझी। लेकिन गौर करने वाली बात है कि पहले जहां घोटाले की बात सुनाई पड़ती थी, अब मोदी सरकार इससे देश के लिए लाखों करोड़ की आमदनी कर रही है। सिर्फ कोल ब्लॉक की नीलामी से सरकार को 3.94 लाख करोड़ की आमदनी हुई।

भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं चाहती कांग्रेस?

Goods & Service Tax यानी GST जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुड एंड सिंपल टैक्स भी बताया उसके साथ भारत अब एक देश एक टैक्स का कदम उठा चुका है। जीएसटी से टैक्स चोरी खत्म होने में मदद मिलेगी, साथ ही कारोबार में भी पारदर्शिता आएगी। तो फिर लागू करने से ऐन पहले आखिर क्यों कांग्रेस इसे टालने पर जोर दे रही थी। उसका कदम यही जाहिर कर रहा है कि वो चाहती है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश ना लगे। 17 टैक्स और 23 सेस के बोझ को खत्म कर उसकी जगह एक GST को लाकर मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाया है। जीएसटी हर तरह से गरीबों और किसानों के हक में है। खुले अनाज, दूध, दही, नमक, अंडे और ताजा सब्जियों जैसे रोजमर्रा के जरूरी सामान को जीएसटी से मुक्त रखा गया है साथ ही उर्वरकों और ट्रैक्टर के कल-पुर्जों पर जीएसटी दरों को काफी कम रखा गया है। शायद कांग्रेस नहीं चाहती कि गरीब और किसानों को जीएसटी के साथ इस तरह के फायदे मिलें।

विरोध में भी अलग-थलग पड़ गई कांग्रेस!

वैसे कांग्रेस ने जिस राजनीति के तहत जीएसटी लॉन्च के विरोध के साथ विपक्ष के महागठबंधन को एक मंच पर रखने की कोशिश की, वो उसमें भी फेल हो गई। जीएसटी के मौके पर उसके सहयोग दलों के कई चेहरे शामिल रहे। एनसीपी, जेडीएस और समाजवादी पार्टी के नेता तो शामिल रहे ही, सीपीएम के असीम दासगुप्ता भी कार्यक्रम का हिस्सा बने जो जीएसटी पर गठित राज्यों के वित्त मंत्रियों के पैनल के प्रमुख रहे थे। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दासगुप्ता की काफी तारीफ करते हुए उन्हें अपना गुरु भी बताया। साफ है, मोदी सरकार ने जीएसटी लॉन्च के इस विशेष सत्र को पूरे देश के लिए एक मौके में ढाला लेकिन कांग्रेस ने ऐसे ऐतिहासिक मौके से खुद को अलग कर लिया। लेकिन इस तरह से अलग होकर वो अकेली भी तो पड़ गई।

अपने गिरेबां में झांकने से कांग्रेस को लगता है डर

मोदी सरकार की बड़ी योजनाओं का विरोध कर कांग्रेस आखिर क्या साबित करना चाहती है? क्या उसके गहरे दाग धुल जाएंगे? आखिर वो खुद भी तो जानती होगी कि उसके राज में तो सौ रुपये में से महज 15 रुपये सरकारी स्कीम के तहत लाभार्थियों के पास पहुंच पाते थे। ये मोदी सरकार का बड़प्पन है कि सबको साथ लेकर चलने की अपनी कोशिश में उसने उस कांग्रेस को भी पूरा स्पेस दिया जिसने अपने पिछले दो शासन में घोटालों के अलावा कुछ किया ही नहीं।

मोदी सरकार की उपलब्धियों से जलना छोड़ दे कांग्रेस

मोदी सरकार में आम लोगों के हक में लगातार ना सिर्फ एक पर एक योजनाएं सामने आ रही हैं बल्कि उसके क्रियान्वयन में भी तेजी है। ये देखकर कांग्रेस को अपने नाममात्र के बचे वोट बैंक के भी खिसकने का डर सता रहा है। उसकी मति काम नहीं कर रही है और वो अपने पैरों पर लगातार कुल्हाड़ी मारती जा रही है। कांग्रेस, रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई, इस मुहावरे को चरितार्थ करने में लगी है।  

   

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