यह रिसर्च का विषय हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की जो लड़की है और लड़ सकती है, वह उनके गणित से पंजाब या राजस्थान में आकर फुस्स क्यों हो जाती है ? कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता नेताओं को क्या पंजाब और राजस्थान की महिलाओं पर विश्वास नहीं है ? या इन प्रदेशों की लड़कियां अपने हक के लिए लड़ नहीं सकती ? या फिर कांग्रेसियों ने ही इन प्रदेशों में कांग्रेस नेत्रियों, महिलाओं, लड़कियों को हाशिए पर डाल दिया है। पंजाब में तो कांग्रेस पार्टी में आलाकमान से लेकर निचले स्तर के नेताओं द्वारा महिलाओं को संगठन से लेकर टिकटों में चालीस प्रतिशत आरक्षण देने के वादों की पोल पंजाब में खुल गई है।
तीन महिलाओं को मौका, वह भी मुख्य भूमिका के बजाए कार्यकारी प्रधान
पार्टी द्वारा जारी 82 जिला प्रधानों और कार्यकारी प्रधानों की फौज में केवल 3 महिलाओं को लिया गया है। इन तीनों को भी मुख्य भूमिका में नहीं रखा गया। कांग्रेस की लिस्ट में जिन तीन महिलाओं को जगह दी भी गई है। उन्हें मुख्य भूमिका के बजाए कार्यकारी प्रधान का पद दिया गया है। मतलब सीधा-सपाट है कि जब तक प्रधान मौजूद है तो उनकी संगठन में कोई वैल्यू नहीं है। वह अपने स्तर पर न तो कोई फैसला ले सकती हैं और न ही कार्यकर्ताओं को कोई दिशा-निर्देश दे सकती हैं।
प्रियंका के 40 प्रतिशत आरक्षण देने के वादे की हवा निकाल दी
पंजाब में विधानसभा चुनाव नजदीक ही हैं। इससे पहले कांग्रेस ने राज्य में पार्टी प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के फार्मूले को लागू कर दिया है. जिसकी खिलाफत उनकी पार्टी के विधायक और विरोधी नेता करते रहे हैं। आलाकमान और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने जिला प्रधानों और कार्यकारी प्रधानों की जिस सूची पर की मुहर लगाई है, उसमें सारे वादे-दावे हवा हवाई नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने अपनी ही वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी के महिलाओं को पार्टी में 40 प्रतिशत आरक्षण देने के वादे की हवा निकाल दी है। स्पष्ट संकेत मिल गया है कि पंजाब चुनाव में कांग्रेस से जुड़ी महिला नेताओं की टिकट की राह आसान नहीं होने वाली है।
सिद्धू की सूची ने प्रियंका के दावों की पूरी तरह से खिल्ली उड़ाई
कांग्रेस पार्टी के युवराज राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि था कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो महिलाओं का सम्मान करती है। कांग्रेस ने ही पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण दिया और अपनी आवाज बुलंद करने की आजादी दी। लेकिन शायद जब संगठन की बारी आती है को आलाकमान आरक्षण रोस्टर और महिलाओं की आजादी को भूल जाती है। यही वजह है कि एक तरफ पार्टी उत्तर प्रदेश चालीस प्रतिशत टिकटें महिला शक्ति को देने के दावे करती हैं, लेकिन जब पंजाब में कांग्रेस के जिला प्रधानों और कार्यकारी प्रधानों की सूची जो कि उन्हीं के आफिस से जारी होती है, उसमें दावों की पूरी तरह से खिल्ली उड़ा दी जाती है।लड़की हूं, लड़ सकती हूं….पर पंजाब में क्यों नहीं
पंजाब में भी उत्तर प्रदेश की तरह चुनावी माहौल गर्मा रहा है। प्रियंका गांधी हर रोज यूपी में योगी सरकार पर हमलावर रहती हैं और महिला अधिकारों को लेकर बड़ी-बड़ी बयानबाजियां भी करती हैं। इसी दौरान उन्होंने महिलाओं को अपने पक्ष में करने कि लिए नारा दिया था लड़की हूं लड़ सकती हूं। लाख टके का सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश की लड़की ही लड़ सकती है ? कांग्रेस पार्टी क्या पंजाब की मर्दानियों में शक्ति का अभाव मानती है या फिर सिद्धू की मनमर्जी के आगे एक बार फिर हाईकमान की इच्छा नहीं चल पाई ?10 प्रतिशत को भी आगे बढ़ने का मौका नहीं
प्रियंका गांधी की महिला शक्ति को संगठित करने की योजना सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है। पंजाब में शायद इसका कोई वजूद नहीं है। यही वजह है कि यहां पर जिला स्तर के संगठन में साढ़े आठ प्रतिशत से भी कम महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया गया है। कांग्रेस आलाकमान ने जिस सूची को हरी झंडी दो है उसमें लुधियाना शहरी से निक्की रियात, बठिंडा रूरल से किरणदीप कौर और होशियारपुर से यामिनी गोमर। महिला आरक्षण के दावे करने वालों ने इन्हें भी जिला प्रधान के पद पर नियुक्ति देकर मुख्य भूमिका में नहीं रखा है बल्कि कार्यकारी प्रधान के पद पर रखा है जो कि पूरी तरह से डमी पद है।
कांग्रेस अपने ही नियम थोड़े से बचे कांग्रेस शासित राज्यों पर लागू नहीं कर पा रही है। ऐसे में देश के लिए उससे कोई उम्मीद पालना बेमानी ही होगा। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में बड़े जोर-शोर से यह ‘लोलीपॉप’ थमाया कि चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया जाएगा। राजस्थान में अभी हुए मंत्रिमंडल फेरबदल में 15 मंत्री बनाए हैं, इनमें मात्र तीन महिलाएं हैं। यानी महिलाओं को बमुश्किल 20 प्रतिशत की भागीदारी मिली है। मतलब साफ है, प्रियंका का ‘रूल’ उनकी पार्टी कि ‘बुक’ में ही नहीं है।मंत्रिमंडल के नाम दिल्ली दरबार ने तय किए, फिर महिलाएं कम क्यों
महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का मतलब तो यही है कि उन्हें मंत्रिमंडल में भी यथोचित सम्मान मिले। लेकिन राजस्थान के मंत्रिमंडल फेरबदल प्रियंका का रूल नदारद ही दिखा। यह इसलिए भी ज्यादा गौर करने की बात है, क्योंकि मंत्रिमंडल में नाम दिल्ली दरबार ने तय किए। प्रियंका भले ही उत्तर प्रदेश की प्रभारी हों, लेकिन पायलट के चलते वे राजस्थान की राजनीति में भी दिलचस्पी लेती हैं। लगता है उनकी पहुंच सिर्फ दिलचस्पी तक ही है, वे यहां अपने नियम लागू कराने में असमर्थ ही नजर आती हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका अपने फैसले अपनी पार्टी शासित राज्यों में ही लागू नहीं करवा पा रही हैं तो यूपी जनता को खोखले वादों का झुनझुना क्यों पकड़ा रही हैं ? राजस्थान में तो फिर भी कांग्रेस की 15 महिला विधायक हैं। जब पार्टी इनके साथ ही न्याय नहीं कर पा रही है तो यूपी में क्या करेगी. जहां कुल 15 विधायक जीतकर आना ही मुश्किल हो रहा है। यूपी में कांग्रेस का दो-दशक का इतिहास तो यही संकेत देता है।अपनी ही घोषणा के जाल में फंसेगी कांग्रेस पार्टी
उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं। चुनाव में 40% महिला प्रत्याशी उतारे जाने का मतलब यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी 160 से ज्यादा सीटों पर महिला प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। आपको बता दें कि 2017 में हुए चुनाव में यूपी में सिर्फ 38 महिलाएं ही विधायक बनी थीं। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि तीन दशक से भी ज्यादा समय से उत्तर प्रदेश में सत्ता से बाहर कांग्रेस की हालत वैसे ही यूपी में लुंज-पुंज ही है। दशकों से हार पर हार झेल रहे कार्यकर्ता ही नहीं नेता भी हताश-निराश हैं। ऐसे हालात में भी जो कांग्रेसी चुनाव लड़ने का साहस दिखा रहे थे, उन्हें भी अब टिकट कटने का डर सता रहा है।योगी के सुशासन और जनहितकारी फैसलों से विपक्षी पस्त
पिछले चुनाव में योगी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद कांग्रेस की हालत यूपी में वैसे ही लस्त-पस्त हो गई थी। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर 114 सीटों पर लड़ी कांग्रेस को केवल 7 सीटों पर जीत नसीब हुई थी। इसके बाद योगी ने सुशासन और जनहित के कार्यों की ऐसी आंधी चलाई कि कांग्रेसियों के रहे-सहे हौसले भी पस्त हो गए। योगी सरकार ने अपने फैसलों से इंस्पेक्टर राज और माफिया राज दोनों का खात्मा किया।पार्टी में प्रियंका वाड्रा बड़ी या सोनिया और राहुल गांधी ?
यूपी की कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी का विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40% आरक्षण देने का फैसला न सिर्फ फुस्स गुब्बारा साबित होगा, बल्कि इसने पार्टी के अंदर भी वर्चस्व की आग को हवा दी है। यह पहला ऐसा निर्णय है जो प्रियंका गांधी ने अकेले लिया है और राजीव की विरासत को चुनौती दी है। इस फैसले से यूपी में बरसों से चुनाव लड़ने का सपना देख रहे कई कांग्रेस नेताओं की भी आशा पर भी कुठाराघात हुआ है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि 40% महिलाओं को विधानसभा चुनाव में आरक्षण देने का फैसला कांग्रेस पार्टी का है या फिर अकेली प्रियंका गांधी का है ? यदि ये पार्टी का फैसला है तो यूपी के साथ ही पंजाब में हो रहे विधानसभा चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव में भी लागू होना चाहिए। और यदि ये अकेली प्रियंका का है तो क्या यह मान लिया जाए कि वो पार्टी, सोनिया और राहुल गांधी से भी ऊपर हो गई हैं ?
प्रियंका के फैसले से यह होगा नुकसान
– कांग्रेस के पुरुष दावेदार इस निर्णय को नापसंद करेंगे।
– जिन पुरुष दावेदारों के टिकट कटेंगे, वे बागी हो जाएंगे।
– कांग्रेस के अंदर ही प्रियंका के फैसले का विरोध हो सकता है।
– धर्म-जाति के बीच में महिला-विमर्श खड़ा करना खतरनाक होगा।
– राज्य के पार्टी संगठन में महिलाओं में कोई बड़ा चेहरा दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।
– कांग्रेस बाहर की महिलाओं को लड़ाएगी तो पैराशूट उम्मीदवार का विरोध होगा।
– जीतना तो बड़ी बात है, लड़ने लायक 161 महिला प्रत्याशियों को खड़ा करना भी बड़ी चुनौती है।
उत्तर प्रदेश में खिसक चुकी सियासी जमीन को फिर से हासिल करने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने चुनावी वादों का पिटारा खोल दिया है। सत्ता में आने की बेसब्री और ललक की वजह से लोक लुभावन वादों की झड़ी लगा दी है। कभी 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का वादा करती है, तो कभी फ्री स्कूटर, स्मार्ट फोन देने और 10 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज का वादा करती है। लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में ये प्रतिज्ञाएं लागू हैं? क्या इन राज्यों में बेटियों को स्कूटी और स्मार्ट फोन दिए गए हैं ? क्या ये वादे भी राजस्थान के किसानों की कर्जमाफी की तरह है, जो अभी तक पूरा नहीं हो पायी है ?
क्या आपने बाक़ी राज्यों में जहां आपकी सरकारें हैं वहाँ बेटियों को स्मार्ट फ़ोन और स्कूटी दे दी है ?? या फिर ये सिर्फ़ चुनावी नौटंकी कर रही हैं आप ?
— Pushpendra Singh (@pushpendra777) October 23, 2021
इसी तरह कांग्रेस शासित राज्यों में चुनाव से पहले कई वादे किए गए, लेकिन वो आज तक पूरे नहीं हो पाये हैं। जनता अब खुद को छला हुआ महसूस कर रही है। 6 महीने पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिनमें कांग्रेस के टिकट बंटवारे और उसमें महिलाओं की हिस्सेदारी की पोल चुनाव के आंकड़े खोल रहे हैं। कम भागीदारी की वजह से कई राज्यों में कांग्रेस की महिला नेताओं ने विरोध दर्ज कराया था। केरल महिला कांग्रेस की प्रमुख रहीं लतिका सुभाष ने पद से इस्तीफा दे दिया था। टिकट नहीं मिलने के चलते उन्होंने राजधानी तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस कार्यालय के सामने अपना सिर मुंडवा लिया था। दरअसल कांग्रेस सत्ता में आने के लिए चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन सत्ता मिलते ही उन वादों को भूल जाती है।
जानिए कांग्रेस ने कैसे दिया जनता को धोखा
- राजस्थान में 10 दिन में कर्जमाफी का वादा किया, लेकिन 1,20,979 करोड़ रुपये में से सिर्फ 8,676 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया।
- राजस्थान में बैंकों ने कर्जमाफी के इंतजार में बैठे किसानों से वसूली में सख्ती दिखाना और जमीनें कुर्क करना शुरू कर दिया है।
- राजस्थान में 3,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया, लेकिन 2021 तक 15 लाख बेरोजगारों में से 2.5 लाख को ही भत्ता दिया।
- पंजाब में किसानों पर कुल 77,753.12 करोड़ रुपये कर्ज थे, लेकिन अब तक मात्र 4,624 करोड़ रुपये ही माफ किए गए हैं।
- छत्तीसगढ़ में बेटियों को स्मार्ट फोन देने के लिए बीजेपी ने स्काई योजना बनाई थी, जिसे कांग्रेस ने बंद कर लाखों स्मार्टफोन कबाड़ में फेंक दिए।
- 6 महीने पहले बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 10% से भी कम महिलाओं को टिकट दिया था।
- 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी बीपीएल परिवारों को स्वास्थ्य बीमा का वादा किया था, जो पूरा नहीं कर पायी।
- 2009 के लोकसभा चुनाव में तीन सालों के अंदर सभी बीपीएल परिवारों को स्वास्थ्य बीमा देने का वादा किया, लेकिन पूरा नहीं कर पायी।