प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत की दमदार मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है। रविवार को ईरान में चाबहार बंदरगाह के ट्रांजिट रूट के पहले फेज का उद्घाटन वहां के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने किया। रणनीतिक तौर पर अहम चाबहार बंदरगाह शुरू होना भारत के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है। इसके जरिए भारत की मध्य एशिया में सीधी पहुंच हो गई है और यूरोप के लिए एक नया रास्ता मिला है। अब भारत अफगानिस्तान, ईरान के जरिए सीधे मध्य एशियाई देशों तक पहुंच सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चाबहार पोर्ट के निर्माण में आने वाली अड़चनों को दूर किया और उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज मध्य एशिया में भारत का दबदबा काफी बढ़ गया है। इतना ही नहीं पीएम मोदी ने अपने रणनीतिक कौशल से पाकिस्तान और चीन को करारा जवाब भी दिया है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बरक्स चाबहार पोर्ट भारत के लिए बेहद अहम है।
भारत को चाबहार पोर्ट से क्या फायदा होगा ?
चाबहार पोर्ट बनने के बाद सी रूट से होते हुए भारत के जहाज ईरान में दाखिल हो पाएंगे और इसके जरिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक के बाजार भारतीय कंपनियों और कारोबारियों के लिए खुल जाएंगे। यही वजह है कि चाबहार पोर्ट व्यापार और सामरिक लिहाज से भारत के लिए काफी अहम है। भारत एक महीने पहले चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेहूं की पहली खेप भेज चुका है।
पीएम मोदी की पहल पर पिछले साल हुआ था समझौता
भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच परिवहन और पारगमन गलियारे के रूप में इस बंदरगाह को विकसित करने लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के बीच पिछले साल मई में त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। हालांकि इस बंदरगाह के विकास के लिए 2003 में ही भारत और ईरान के बीच समझौता हुआ था, लेकिन परमाणु कार्यक्रमों के चलते ईरान पर पश्चिमी देशों की ओर से पाबंदी लगा दिए जाने के बाद इस प्रोजेक्ट का काम धीमा हो गया। जनवरी 2016 में ये पाबंदियां हटाए जाने के बाद भारत ने इस प्रोजेक्ट पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया। मोदी सरकार ने फरवरी 2016 में चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए 150 मिलियन डॉलर के क्रेडिट लाइन को हरी झंडी दी थी। भारत इस प्रोजेक्ट पर कुल 500 मिलियन डॉलर निवेश करेगा।
पाकिस्तान और चीन को करारा जवाब
चाबहार दक्षिण पूर्व ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित एक बंदरगाह है, इसके जरिए भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान को बाइपास करके अफगानिस्तान के लिए रास्ता बनाया है। आपको बता दें कि अफगानिस्तान की कोई भी सीमा समुद्र से नहीं मिलती और भारत के साथ इस मुल्क के सुरक्षा संबंध और आर्थिक हित हैं। फारस की खाड़ी के बाहर बसे इस बंदरगाह तक भारत के पश्चिमी समुद्री तट से पहुंचना आसान है। इस बंदरगाह के जरिये भारतीय सामानों के ट्रांसपोर्ट का खर्च और समय एक तिहाई कम हो जाएगा। अरब सागर में पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट के विकास के जरिए चीन को भारत के खिलाफ बड़ा सामरिक ठिकाना मुहैया कराया है। चाबहार पोर्ट के जरिए भारत को अफगानिस्तान और ईरान के लिए समुद्री रास्ते से व्यापार-कारोबार बढ़ाने का मौका मिलेगा। इसके जरिए सामरिक नजरिये से भी पाकिस्तान और चीन को करारा जवाब मिल सकेगा क्योंकि चाबहार से ग्वादर की दूरी महज 60 मील है।
चाबहार बंदरगाह के अलावा भी कई ऐसे वाकये हैं जिनकी वजह से प्रधानमंत्री मोदी और भारत का कद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा हुआ है।
अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बाद फ्रांस भी भारत के साथ
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सहयोग बढ़ाने के लिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बाद फ्रांस भी भारत के साथ आना चाहता है। भारत के सबसे पुराने रणनीतिक भागीदारों में एक फ्रांस का कहना है कि हम भी भारत के साथ बहुपक्षीय गठबंधन से जुड़ने के लिए तैयार हैं। भारत में फ्रांस के राजदूत एलेक्जेन्डर जिगलर ने कहा है कि यह मुद्दा दोनों पक्षों के बीच होने वाली उच्च स्तरीय वार्ता में प्रमुखता से उठेगा। जिगलर की यह टिप्पणी भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अधिकारियों के बीच मनीला में चार पक्षीय बैठक की पृष्ठभूमि में आई है। इन चार देशों के अधिकारियों की यह बैठक मनीला में भारत-आसियान सम्मेलन के इतर हुई थी। चारों देशों ने हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपना साझा हित माना है।
चीन को जवाब देने के लिए चार देशों ने बनाया नया ‘फ्रंट’
भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और उसके भविष्य की स्थिति पर भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका एकसाथ आए हैं। चारों देशों ने 12 नवंबर को मनीला में पहली बार चतुष्कोणीय वार्ता की। दरअसल चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत के बीच इन देशों ने माना है कि स्वतंत्र, खुला, खुशहाल और समावेशी इंडो-पसिफिक क्षेत्र से दीर्घकालिक वैश्विक हित जुड़े हैं। दरअसल चीन अपने महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट वन वेल्ट वन रोड (OBOR) के जरिए पूरी दुनिया में दबदबा बढ़ाना चाहता है। दक्षिण चीन सागर के इलाके में उसका कई पड़ोसी देशों से विवाद है। हिंद महासागर के क्षेत्र में भी वह अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगा है। ऐसे में यह नया ‘मोर्चा’ काफी महत्व रखता है।
प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक नीतियों से उड़ी है चीन की नींद
भारत-चीन के रिश्तों में ऐसा क्या हुआ है कि छह महीने पहले जो चीन, भारत के वन बेल्ट वन रोड परियोजना के उद्घाटन समारोह में भाग न लेने को कोई महत्त्व नहीं दे रहा था, वही अचानक भारत से इस परियोजना के लिए बातचीत करने की पेशकश कर रहा है। भारत में चीन के राजदूत लू झाओहुई ने बयान दिया है कि चीन भारत के लिए वन बेल्ट वन रोड परियोजना का नाम बदलने को तैयार है। चीनी राजदूत के इस बयान से चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी अपनी सहमति दिखाकर, सबको चौंका दिया है। बीजिंग में 14-15 मई को हुए वन बेल्ट वन रोड परियोजना के विश्वव्यापी समारोह में हिस्सा लेने से भारत ने साफ मना कर दिया था।
भारत का मत था कि इस परियोजना के तहत बनने वाला चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है और कश्मीर का यह हिस्सा भारत का है, इसलिए भारत इस परियोजना में तब तक शामिल नहीं हो सकता है, जब तक कश्मीर का यह हिस्सा योजना के दायरे में रहेगा। भारत को दूसरी बड़ी खामी यह नजर आ रही थी कि, ओबीओआर परियोजना में पारदर्शिता की कमी है, क्योंकि इसकी योजना बनाने से लेकर इसके क्रियान्यवन के लिए तंत्र स्थापित करने का सारा काम चीनी सरकार के पास है, इसमें अन्य देशों का कोई सहयोग नहीं लिया जा रहा है।
चीन ने भारत के इस रुख को क्षेत्र के विकास की बाधा बताते हुए, यह प्रोपगंडा किया कि यदि भारत, चीन का इस परियोजना में साथ नहीं देता है तो वह एशिया में अलग-थलग पड़ जायेगा और उसे आर्थिक विकास करने में दिक्कतें पैदा होगी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चीन के इस दबाव को खारिज करते हुए, अपने सिद्धातों पर डटे रहे।
डोकलाम पर भी मिला चीन को सटीक जवाब
चीन ने भूटान-सिक्किम-चीन सीमा पर स्थित डोकलाम के पठार पर सड़क बनाने के लिए उसने अपने सैनिकों को साजो सामान के साथ उतारने की कोशिश की, लेकिन चीन ऐसा कर पाता कि उससे पहले ही भारतीय सेना डोकलाम के पठार पर पहुंच गई और चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया। डोकलाम का पठार, भूटान का हिस्सा है, लेकिन इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सैनिकों के पास है, क्योंकि सामरिक दृष्टि से उत्तरी पूर्वी राज्यों की सुरक्षा के लिए यह अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र है। 16 जून 2017 को शुरू हुआ यह विवाद 28 अगस्त 2017 को तब खत्म हुआ जब चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के भाग लेने को सुनिश्चित करने के लिए, अपनी सेना को डोकलाम के पठार से दूर उस स्थिति में ला दिया जो 16 जून 2017 के पहले थी। 73 दिनों के आसपास तक चले इस प्रकरण में जिस तरह के मौखिक आक्रामकता और गीदड़भभकी का प्रदर्शन चीन ने किया और उसके जवाब में जिस राजनीतिक परिपक्वता और टेंपरामेंट का परिचय भारत ने दिया उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ा दिया।
जिस तरह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सेना और कूटनीतिज्ञों ने डोकलाम प्रकरण पर चीन को पछाड़ लगाई इससे दुनिया की नजरों में यह संदेश गया है कि भारत केवल अपने हित के लिए नहीं बल्कि अपने पड़ोसी देशों के हितों की रक्षा के लिए भी तत्पर रहता है। इस विवाद के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जापान और इजरायल ने खुलकर भारत का पक्ष लिया और अमेरिका ने बार-बार मसले को शांति पूर्ण तरीके से निपटाने की अपील की इससे चीन को लगने लगा था कि उनकी चाल गलत पड़ गई है। स्पष्ट है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री ने विदेशी शासनाध्यक्षों से अच्छे संबंधों का ही नतीजा है कि आज चीन जैसे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत घेर सका।
प्रधानमंत्री मोदी की धारदार विदेश नीति
प्रधानमंत्री मोदी ने चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ का माकूल जवाब देने के लिए आतंकवाद विरोधी, सहअस्तित्व और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली व्यावहारिक नीति को अपनाया। उन्होंने अपनी इस नीति के तहत विश्व के सभी देशों के साथ भारतीय हितों को साधते हुए बराबरी का रिश्ता स्थापित किया। बिना आराम किये विश्व के कई देशों की कई यात्राएं कीं। इन सभी का परिणाम यह निकला कि भारत आज अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, रूस के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व के एशियाई देशों और अरब देशों के साथ जबरदस्त पारस्परिक और रणनीतिक सहयोग स्थापित कर चुका है।
मोदी नीति से पस्त हुआ पाकिस्तान
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वो सहयोग में भी और कटौती की बात कर रहा। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं। इतना ही नहीं, चीन को अपना खास दोस्त और बड़ा हितैषी समझने वाले पाकिस्तान को तब झटका लगा जब चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली। इससे पहले जम्मू कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जब 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैड को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन का बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने बहिष्कार कर दिया।
आतंकवाद पर अब दुनिया भारत के साथ
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है। दरअसल दुनिया ने लंबे समय तक भारत के आतंकवाद के तर्क पर विश्वास नहीं किया था। कई बार भारत के आतंकवाद को दुनिया के देश कानून और व्यवस्था की समस्या बताते थे, लेकिन दुनिया अब मान रही है कि भारत को आतंकवाद के कारण क्या नुकसान भुगतने पड़े हैं। अब दुनिया यह भी मानती है भारत ही नहीं विश्व में आतंकवाद की समस्या पाकिस्तान की देन है।
शांति की पहल को मिल रही सराहना
खाड़ी देशों के अतिरिक्त सभी बड़ी एयरलाइन कंपनियों की उड़ानें पाकिस्तान को नहीं जातीं। क्रिकेट खेलने वाले देशों की टीमें पाकिस्तान का दौरा नहीं करतीं और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक पाकिस्तान नहीं जाते। जाहिर है पाकिस्तान अपनी करनी के कारण विश्व समुदाय में अलग-थलग है, लेकिन भारत हमेशा से विश्व शांति का सबसे बड़ा पैरोकार रहा है। यूनाइटेड नेशन ने भी माना है कि इस दिशा में भारत का प्रयास अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। यह सब जानते हैं कि भारत की शांति की पहल को पाकिस्तान हमेशा नकारता रहा है। बावजूद इसके पीएम मोदी ने अपनी तरफ से हर कोशिश की कि पाकिस्तान भारत के साथ सहयोग की मुख्यधारा में रहे। 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री जब लाहौर पहुंच गए तो दुनिया ने देखा कि पीएम मोदी ने शांति की पहल की। 26 मई 2014 को जब पीएम मोदी ने सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रण भेजा था तो ये पड़ोसी देशों के साथ शांति और सहयोग की पहल ही थी। हालांकि पाकिस्तान अब भी शांति की राह में रोड़ा बना हुआ है।
जलवायु परिवर्तन पर साहसिक कदम
जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैश्विक नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरत का 40% हिस्सा 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य को नियत समय से 8 साल पहले प्राप्त किया जा सकता है। भारत नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में संभवत: अमेरिका से भी आगे है। भारत ने ऊर्जा के लिए कोयले से सौर की तरफ रूख करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश से बिजली की कीमतें भी कम हुई हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार यह साहस भी दिखाया है जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा दी है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई ऐसे प्रयास किये हैं जिनके चलते अब ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े मुद्दे पर उसके नेतृत्व करने की उम्मीद काफी बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ जिसमें 121 देश शामिल हैं।
भारत के योग को विश्व ने अपनाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 21 जून, 2015 को विश्व के 192 देश जब ‘योगपथ’ पर चल पड़े तो सारे संसार में योग का डंका बजने लगा। आधुनिकता के साथ अध्यात्म का मोदी मंत्र दुनिया के देशों को भी भाया और इसी कारण पीएम मोदी की पहल को 192 देशों का समर्थन मिला। 177 देश योग के सह प्रायोजक के तौर पर इस आयोजन से जुड़ भी गए। अब पूरी दुनिया योग शक्ति से आपस में जुड़ी हुई महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है। भारत ने विश्व को आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की तरह विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन योग को माना जा रहा है। दरअसल योग एक विचार नहीं बल्कि भारतीय जीवन पद्धति है जिसमें भारतीय जीवन मूल्य यानि संस्कृति समाहित हैं।
यमन संकट में विश्व ने माना भारत का लोहा
जुलाई 2015 में यमन गृहयुद्ध की चपेट में था और सुलगते यमन में पांच हजार से ज्यादा भारतीय फंसे हुए थे। बम गोलों और गोलियों के बीच हिंसाग्रस्त देश से भारतीयों को सुरक्षित निकालना मुश्किल लग रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुशल नेतृत्व और विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह के सम्यक प्रबंधन और अगुआई ने कमाल कर दिया। भारतीय नौसेना, वायुसेना और विदेश मंत्रालय के बेहतर समन्वय से भारत के करीब पांच हजार नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया वहीं 25 देशों के 232 नागरिकों की भी जान बचाने में भारत को कामयाबी मिली। इस सफलता ने विश्वमंच पर भारत का लोहा मानने के लिए सबको मजबूर कर दिया ।
नेपाल में भूंकप के बाद भारत ने की मदद
अप्रैल 2015 में जब हमारे पड़ोसी देश नेपाल में भूकंप आया तो भारत ने नेपाल में आई इस आपदा के दौरान मदद के लिए तत्काल हाथ बढ़ाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बगैर एक पल गंवाए भारतीय सेना और एनडीआरएफ के जवानों को नेपाल रवाना कर दिया। नेपाल में आए भूकंप में हजारों लोग मारे गए थे और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ था, लेकिन भारत के जवानों ने वहां युद्ध स्तर पर राहत कार्य किया और इसी की बदौलत हजारों लोगों की जान बचाई जा सकी। किसी पड़ोसी देश की आपदा को अपना मानकर इतनी त्वरित कार्रवाई करने की मिसाल कहीं और नहीं मिलती है। नेपाल में भारत की तरफ से की गई सहायता को पूरे विश्वभर में प्रशंसा मिली।
श्रीलंका को ईंधन संकट और बाढ़ से दिलाई राहत
पड़ोसी देश श्रीलंका की मदद के लिए मोदी सरकार हमेशा तत्पर दिखाई देती है। श्रीलंका में अजकल पेट्रोल और डीजल की जबरदस्त किल्लत है। श्रीलंका में ईंधन की कमी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत अपने पड़ोसी देश को ईंधन की अतिरिक्त आपूर्ति भेज रहा है। इसके पहले इसी साल मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकटग्रस्त श्रीलंका के लिए राहत भेजी थी। यहां दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ने भारी तबाही मचायी थी, जिसमें 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे और 90 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।