आम आदमी पार्टी से पिछले 15 अगस्त को खुद को आजाद करने वाले आशुतोष ने अपने उस दर्द को बांटा है, जिससे ये पता चलता है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी पर जातिवाद किस कदर हावी है। पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आने वाले आशुतोष ने ट्वीट कर ये आरोप लगाया है कि पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी नेताओं ने उनसे उनकी जाति का इस्तेमाल करने को कहा था। वे लिखते हैं, ‘’ 23 साल के पत्रकारिता करियर में मुझे कभी अपनी जाति का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा, लेकिन जब मैं आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा, तब मुझे जाति का इस्तेमाल करने को कहा गया।‘’
In 23 years of my journalism, no one asked my caste, surname. Was known by my name. But as I was introduced to party workers as LOKSABHA candidate in 2014 my surname was promptly mentioned despite my protest. Later I was told – सर आप जीतोगे कैसे, आपकी जाति के यहाँ काफी वोट हैं ।
— ashutosh (@ashutosh83B) August 29, 2018
चार वर्ष क्यों लगा दिए उजागर करने में?
साफ है कि राजनीति में कदम रखते ही आशुतोष को पता चल गया था कि आम आदमी पार्टी जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देती है। फिर भी वो चार साल तक पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे। क्या ये उनका ओवर एंबिशन नहीं था जो इस बात को समझते हुए भी उन्होंने पार्टी को छोड़ने का फैसला नहीं लिया? फैसला तब जाकर किया जब राज्यसभा सांसद बनने के उनके अरमानों पर अरविंद केजरीवाल ने पानी फेर दिया। इस पद की महत्वाकांक्षा में ही आशुतोष केजरीवाल द्वारा यूज होते रहे लेकिन तब इसलिए विरोध करने से बचते रहे क्योंकि इससे उनकी राजनीति के तुरंत अंत हो जाने का खतरा था।
किसी पर सरनेम बताने का, किसी पर हटाने का दबाव
आम आदमी पार्टी के भीतर जिस प्रकार की गतिविधियां चल रही हैं, उनसे यह साफ हो गया है कि यहां नेता की जाति को किस प्रकार से तराजू पर रखकर तौला जाता है। जहां आशुतोष ने ये कहा है कि उनसे जाति के इस्तेमाल को कहा गया, वहीं ये बात भी सामने आई है कि आप की नेता आतिशी मार्लेना को अपने नाम से ‘मार्लेना’ हटाने को कहा गया और उन्होंने हटा भी लिया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जब आतिशी मार्लेना से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चुनाव के लिए वह सिर्फ आतिशी नाम का ही इस्तेमाल करेंगी। वे कहती हैं उनका सरनेम ‘मार्लेना’ नहीं बल्कि ‘सिंह’ है, लेकिन उन्होंने सरनेम को हटा लेना ही उचित समझा। लेकिन माना यही जा रहा है कि ‘मार्लेना’ सरनेम से कहीं उन्हें ईसाई ना समझ लिया जाए, इसलिए अब उन्होंने इस सरनेम से ही तौबा कर लिया है। बताया जा रहा है कि आप की ओर से पूर्वी दिल्ली से उनकी संभावित उम्मीदवारी को देखते हुए ये कदम उठाया गया है।
केजरीवाल की तानाशाही से तबाह होकर AAP से तौबा
आम आदमी पार्टी अपनी राजनीति को जिन दो बातों के सहारे आगे बढ़ाने के प्रयासों में लगी है उनमें से एक है जातिवाद और दूसरी है केजरीवाल की मनमानी। जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देने के बड़े उदाहरण सामने आ चुके हैं, तो केजरीवाल की मनमानी और तानाशाही रवैये के उदाहरण शुरू से ही कदम-कदम पर देखने को मिलते रहे हैं। केजरीवाल की सबसे बड़ी मनमानी ये है कि वे अपनी पार्टी के नेताओं को अपनी मनमर्जी से यूज करना चाहते हैं। अपना राजनीतिक आधार बनाने के लिए केजरीवाल ने समाजसेवी अन्ना हजारे का यूज किया था। अपनी राजनीति को चमकाने के लिए वे पत्रकारिता और साहित्य जगत के चेहरे को यूज करते आए। जब केजरीवाल द्वारा यूज होते-होते ये थक गए और इच्छा के अनुकूल कोई रिटर्न भी नहीं मिला तो इन्होंने केजरीवाल से तौबा कर लेना ही उचित समझा। पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आने वाले आशुतोष और आशीष खेतान इसके सबसे ताजा उदाहरण हैं।