हिंदुओं को बदनाम करने वाली कांग्रेसी सोच को एक और तगड़ा झटका लगा है। मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने स्वामी असीमानंद सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। एनआईए ने इस मामले में दस लोगों को आरोपी बनाया था। 18 मई 2007 को हैदराबाद के ऐतिहासिक मस्जिद में हुए बम विस्फोट में 9 लोगों की मौत हो गई थी। मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में एनआईए ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के निर्देश पर निर्दोष हिंदुओं को हिंदू आतंक के नाम पर फंसाने की कोशिश की। पूर्व आरएसएस कार्यकर्ता स्वामी असीमानंद को अजमेर ब्लास्ट केस में भी बरी किया जा चुका है। साथ ही मालेगांव और समझौता धमाके में भी उन्हें पहले ही जमानत दी जा चुकी है।
मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में सभी आरोपी को बरी करने पर गृह मंत्रालय के पूर्व अपर सचिव आरवीएस मणि ने कहा कि मुझे इसी फैसले की उम्मीद थी, सारे सबूत फर्जी थे। हिंदू आतंकवाद का कोई ऐंगल नहीं था।
उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों ने हमला किया उन्हें एजेंसियों का दुरूपयोग कर बचाया गया। यह अपने आप में चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को बदनाम किया गया, जिन्हें पीड़ा से गुजरना पड़ा, उसकी आप कैसे भरपाई करेंगे। क्या कांग्रेस या अन्य जिन्होंने हिंदू आतंकवाद को फैलाया था वो मुआवजा देंगे?
I had expected it. All the pieces of evidence were engineered, otherwise, there was no Hindu terror angle: RVS Mani, former Under Secretary, Ministry of Home Affairs on all accused in Mecca Masjid blast case acquitted pic.twitter.com/d8lDnqE5cG
— ANI (@ANI) April 16, 2018
People who perpetrated attack(Mecca Masjid) were protected through misuse of agency(NIA), this is what is alarming. How do you compensate those who suffered&were maligned?Will Congress or anyone else who propagated this theory compensate them?:RVS Mani, former MHA Under Secretary pic.twitter.com/jD7bmKeDKh
— ANI (@ANI) April 16, 2018
कांग्रेस की हिंदू आतंकवाद की थ्योरी ने ले लिए असीमानंद के 10 साल
मक्का मस्जिद विस्फोट मामले से पहले समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में हाल में ही खुलासा हुआ है कि किस तरह एक पाकिस्तानी मुसलमान को बचाया गया और हिंदू को फंसाया गया। दरअसल समझौता ब्लास्ट केस के बहाने ‘हिन्दू आतंकवाद’ नाम का शब्द गढ़ा गया। हालांकि इस केस में पाकिस्तानी आतंकवादी पकड़ा गया था, उसने अपना गुनाह भी कबूल किया था, लेकिन महज 14 दिनों में उसे चुपचाप छोड़ दिया। इसके बाद इस केस में स्वामी असीमानंद को फंसाया गया ताकि भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद को अमली जामा पहनाया जा सके। बड़ा सवाल ये है कि पाकिस्तानी आतंकवादी को छोड़ने का आदेश देने वाला कौन था? किसने पाकिस्तानी आतंकवादी को छोड़ने के लिए कहा? वो कौन है जिसके दिमाग में भगवा आतंकवाद का खतरनाक आइडिया आया?
इंद्रेश कुमार और असीमानंद को कांग्रेस ने साजिश के तहत फंसाया
11 अक्टूबर 2007 अजमेर में हुए बम धमाके में तीन लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 17 से अधिक लोग घायल हो गए थे। 2011 में इस केस को एनआईए को सौंप दिया गया था। उसके बाद एनआईए ने आरोप पत्र दाखिल किया था, जिसमें असीमानंद को मास्टरमाइंड बताया गया था और आरएसएस के इंद्रेश कुमार सहित आठ लोगों को आरोपी बनाया था। लेकिन 08 मार्च, 2017 को एनआईए के स्पेशल कोर्ट ने अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में RSS नेता इंद्रेश कुमार और स्वामी असीमानंद को भी बरी कर दिया। जाहिर तौर पर ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर ये कांग्रेस की साजिश का ही हिस्सा है।
ऐसे और भी कई प्रकरण हैं जिससे ये साबित होता है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेसी शासन के दौरान हिंदू संतों, नेताओं और कार्यकर्ताओं के विरुद्ध साजिशें रची गईं।
हिंदुओं के विरूद्ध सोनिया गांधी ने रची साजिशें !
दरअसल कांग्रेस की अगुआई में यूपीए की सरकार के दौरान सहिष्णु हिंदुओं को आतंकवादी और बलात्कारी ठहराने की कई साजिशें रची गईं। ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम कट्टरपंथियों को बढ़ावा देने के लिए हिंदुओं को बार-बार कठघरे में खड़ा किया जाता रहा। सबसे खास यह कि इन कुत्सित कोशिशों की नायिका रहीं हैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। इस बात का खुलासा पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब The Coalition Years में भी किया है कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते कांग्रेस की नीतियां हिंदू विरोधी रही हैं।
शंकराचार्य के विरुद्ध कांग्रेस की साजिश
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी किताब ‘द कोलिशन इयर्स’ में ये खुलासा किया है कि 2004 में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी के पीछे सोनिया गांधी हाथ था। जाहिर है इसके मूल में हिंदू विरोध ही था। दरअसल दक्षिण भारत में बेरोक-टोक ईसाई धर्म का प्रचार चल सके इसके लिए वेटिकन के इशारे पर शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को साजिश के तहत गिरफ्तार करवाया गया। हालांकि 2013 में वे बाइज्जत बरी किए गए, लेकिन उन्हें बेकसूर ही 10 वर्षों तक हिंदू होने की सजा भुगतनी पड़ी और जेल के सलाखों के पीछे रहना पड़ा।
भगवा आतंकवाद-हिंदू आतंकवाद सोनिया गांधी-अहमद पटेल के दिमाग की उपज
हिंदू के साथ आतंकवाद शब्द कभी इस्तेमाल नहीं होता था। मालेगांव और समझौता ट्रेन धमाकों के बाद कांग्रेस सरकारों ने बहुत गहरी साजिश के तहत हिंदू संगठनों को इस धमाके में लपेटा और यह जताया कि देश में हिंदू आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। जबकि ऐसा कुछ था ही नहीं। जिन बेगुनाहों हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया वो इतने सालों तक जेल में रहने के बाद बेकसूर साबित हो रहे हैं। दरअसल मुंबई हमले के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इसके पीछे हिंदू संगठनों की साजिश का दावा किया था, लेकिन इसके पीछे दिमाग सोनिया गांधी और अहमद पटेल का माना जा रहा है। दिग्विजय के इस बयान का पाकिस्तान ने खूब इस्तेमाल किया और आज भी जब इस हमले का जिक्र होता है तो पाकिस्तानी सरकार दिग्विजय के हवाले से यही साबित करती है कि हमले के पीछे आरएएस का हाथ है। दिग्विजय के इस बयान पर उनके खिलाफ कांग्रेस ने कभी कोई कार्रवाई या खंडन तक नहीं किया।
मालेगांव ब्लास्ट में योगी और मोहन भागवत को फंसाना चाहती थी कांग्रेस
यूपीए सरकार के दौरान मालेगांव ब्लास्ट मामले में उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने की साजिश रची गई थी। यह दावा 23 अक्टूबर, 2017 को बनारस में ब्लास्ट के आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी ने किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जांच अधिकारियों से मिलकर ये साजिश की थी। 9 साल बाद जमानत पर जेल से रिहा हुए सुधाकर चतुर्वेदी ने खुलासा किया कि कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह और तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार की सोची समझी साजिश के तहत जांच अधिकारी हेमंत करकरे के साथ मिलकर मालेगांव ब्लास्ट को भगवा आतंकवाद साबित करने में लगे थे।
कांग्रेस ने कर्नल पुरोहित, प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे कई हिंदुओं पर ढाये जुल्म
सुधाकर चतुर्वेदी अभिनव भारत संस्था से जुड़े हैं। मालेगांव ब्लास्ट के बाद 23 अक्टूबर 2008 को सुधाकर को नासिक से गिरफ्तार कर मुंबई ले जाया गया था। सुधाकर चतुर्वेदी ने कहा कि साध्वी प्रज्ञा को जांच अधिकारियों ने लैपटॉप पर पॉर्न मूवी और अश्लील फोटो दिखाकर टॉर्चर किया। अपने बारे में बताया कि तीन दिनों तक खाना नहीं दिया गया। बाथरूम में करंट लगाकर रखा और पूरा नंगा कर पैरों के तालू पर लाठी से मारते थे। मालेगांव ब्लास्ट मामले में कर्नल पुरोहित के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उनके साथ भी जुल्म ढाए गए और जबरिया कई सादे कागजों पर दस्तखत करवाए गए।
मुंबई हमले का दोष हिंदुओं के मत्थे मढ़ना चाहती थी कांग्रेस
26/11 मुंम्बई हमले के बाद भी कांग्रेस ने मुस्लिम आतंकियों के कुकृत्य को छिपाने और हिंदुओं को फंसाने का षडयंत्र किया था। कहा जा रहा है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस बात का खाका तैयार कर लिया था कि इस साजिश में कैसे हिंदुओं को फंसाया जाय। मुंबई हमले के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इसके पीछे हिंदू संगठनों की साजिश का दावा किया था। दिग्विजय के इस बयान का पाकिस्तान ने खूब इस्तेमाल किया और आज भी जब इस हमले का जिक्र होता है तो पाकिस्तानी सरकार दिग्विजय के हवाले से यही साबित करती है कि हमले के पीछे आरएएस का हाथ है। अगर अजमल कसाब को जिन्दा न पकड़ा गया होता, तो आज तक सैंकड़ों हिन्दू जेलों में बन्द किए जा चुके होते।
ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं सोनिया गांधी
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने खुलकर कहा है कि भारत में हिंदू आबादी घट रही है क्योंकि हिंदू कभी धर्म परिवर्तन नहीं कराते। दरअसल देश में धर्मांतरण का एक बड़ा नेटवर्क चलाया जा रहा है। इसमें कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की शह है। अरुणाचल प्रदेश में तो उनका इंट्रेस्ट जगजाहिर है। दरअसल सोनिया गांधी पर बीते 10 साल में ईसाई मिशनरियों के जरिये खुद वहां पर रहने वाली आदिवासी जातियों का धर्मांतरण करवाने के आरोप हैं। अरुणाचल प्रदेश में 1951 में एक भी ईसाई नहीं था। 2001 में इनकी आबादी 18 फीसदी हो गई। 2011 की जनगणना के मुताबिक अब अरुणाचल में 30 फीसदी से ज्यादा ईसाई हैं। अरुणाचल में धर्मांतरण का सिलसिला 1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही शुरू हो गया था। तब पहली बार सरकार ने वहां पर ईसाई मिशनरियों को अपने सेंटर खोलने की इजाज़त दी थी। माना जाता है कि राजीव गांधी पर दबाव डालकर खुद सोनिया ने वहां पर ईसाई मिशनरियों को घुसाया था।
हिंदुओं की धार्मिक-सांस्कृतिक आस्थाओं को कुचलने में लगी है कांग्रेस
16 मई, 2016 को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी। बहस सामान्य थी कि ट्रिपल तलाक और हलाला मुस्लिम महिलाओं के लिए कितना अमानवीय है, लेकिन सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता और AIMPLB के वकील कपिल सिब्बल ने तीन तलाक और हलाला की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली। कपिल सिब्बल ने दलील दी है जिस तरह से राम हिंदुओं के लिए आस्था का सवाल हैं उसी तरह तीन तलाक मुसलमानों की आस्था का मसला है। साफ है कि भगवान राम की तुलना, तीन तलाक और हलाला जैसी घटिया परंपराओं से करना कांग्रेस और उसके नेतृत्व की हिंदुओं की प्रति उनकी सोच को ही दर्शाता है। 2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि चूंकि राम, सीता, हनुमान और वाल्मिकी वगैरह काल्पनिक किरदार हैं इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है। राहुल गांधी ने एक बार कहा था कि जो लोग मंदिर जाते हैं वो लड़कियां छेड़ते हैं। यह बयान भी कांग्रेस और उसके शीर्ष नेतृत्व की हिंदू विरोधी सोच की निशानी थी।
कांग्रेस के हिंदू विरोध का एंटनी ने किया था खुलासा
2014 में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस के भीतर मंथन में यह बात निकलकर आई कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोध की है। वरिष्ठ नेता ए के एंटनी ने भी पहली बार स्वीकार किया था कि पार्टी को हिंदू विरोधी छवि के चलते नुकसान हुआ है। तब ये बात भी सामने आई थी कि हर मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से तुष्टिकरण की लाइन लेती है, वो बात अब आम जनता भी महसूस करने लगी है। बहुसंख्यक हिंदू समझ चुके हैं कि कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के लिए सोचती है। इसी के चलते बचे-खुचे हिंदू मतदाताओं ने भी कांग्रेस से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। सोनिया गांधी या राहुल गांधी ने फिर भी इस कड़वी सच्चाई से मुंह मोड़े रखा। परिणाम देश के सामने है, कांग्रेस का अस्तित्व मिटता जा रहा है।
विकीलीक्स के खुलासे में भी आई थी हिंदू विरोध की बात
17 दिसंबर, 2010… विकीलीक्स ने राहुल गांधी की अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से 20 जुलाई, 2009 को हुई बातचीत का एक ब्योरा दिया। राहुल गांधी की जो बात सार्वजनिक हुई उसने देश के 100 करोड़ हिंदुओं के बारे में राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी की सोच को सबके सामने ला दिया। राहुल ने अमेरिकी राजदूत से कहा था, ”भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादियों और वामपंथी आतंकवादियों से बड़ा खतरा देश के हिन्दू हैं।” जाहिर तौर पर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी हिंदुओं को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं चूकती। अमेरिकी राजदूत के सामने दिया गया उनका ये बयान कांग्रेस की बुनियादी सोच को ही दर्शाता है।
कांग्रेस की परंपरा रही है हिंदू विरोध
कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें भी हिंदू परंपरा और धर्म का उपहास उड़ाती रही हैं। आरोप तो यहां तक हैं कि ऐसे लोगों को इतिहास लिखने को दिया गया, जिन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर हिंदुओं को बदनाम किया। हिंदू कोड बिल लेकर आने वाली कांग्रेस ने हमेशा कॉमन सिविल कोड का विरोध किया और ट्रिपल तलाक के मसले को साजिश ठहराने की कोशिश की। 2012 में मनमोहन सिंह की सरकार ने मुस्लिम आरक्षण विधेयक लाकर अपना असली चेहरा दिखा दिया था। यही नहीं जब पिछले साल मोदी सरकार ने असम में हिंदुओं और गैर-मुसलमानों को नागरिकता देने का फैसला किया, तो कांग्रेस ने उसका विरोध किया। इसके साथ ही जबरिया धर्म-परिवर्तन के हर मामले में कांग्रेस गैर-हिंदुओं के साथ खड़ी रही, लेकिन जब कोई हिंदू बना तो उसे गलत करार देने में पल भर का भी समय नहीं लिया।
राम सेतु को तोड़ने का बनया था प्लान
वर्ष 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बहस चल रही थी तो कांग्रेस पार्टी ने अपनी असल सोच को जगजाहिर किया था। पार्टी ने एक शपथ पत्र के आधार पर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था। इस शपथ पत्र में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, यह केवल कोरी कल्पना ही है। साफ है कि कांग्रेस ने व्यावसायिक हित के लिए देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर कुठराघात करने की तैयारी कर ली थी। जिस राम सेतु के अस्तित्व को NASA ने भी स्वीकार किया है, जिस राम सेतु को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी MAN MAID यानि मानव निर्मित माना है, उसे कांग्रेस पार्टी तोड़ने जा रही थी।
राम मंदिर के विरोध की कांग्रेस की नीति
अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मामले को कांग्रेस ने हमेशा से ही उलझाए रखा है। जबकि देश का हर नागरिक अब राम जन्म भूमि पर मंदिर बनने का सपना देख रहा है। अब यह कोई नहीं चाहता कि अयोध्या का हल नहीं निकले, लेकिन कांग्रेस की भूमिका को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेसी मानसिकता को उजागर करते हुए अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर अब जुलाई 2019 के बाद सुनवाई हो। सिब्बल के बयान से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस ने लम्बे समय से राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है।
सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और बीएचयू में हिंदू शब्द पर कांग्रेस को एतराज
हिंदुओं के सबसे अहम मंदिरों में से एक सोमनाथ मंदिर को दोबारा बनाने का जवाहरलाल नेहरू ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि सरकारी खजाने का पैसा मंदिरों पर खर्च नहीं होना चाहिए। ऐसे ही नेहरू को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदू शब्द पर आपत्ति थी। वे चाहते थे कि इसे हटा दिया जाए। इसके लिए उन्होंने महामना मदनमोहन मालवीय पर दबाव भी बनाया था। जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से दोनों को ही कोई एतराज नहीं था।
वंदेमातरम का भी विरोध करती रही है कांग्रेस
आजादी के बाद यह तय था कि वंदे मातरम राष्ट्रगान होगा, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया और कहा कि वंदे मातरम से मुसलमानों के दिल को ठेस पहुंचेगी। जबकि इससे पहले तक तमाम मुस्लिम नेता वंदे मातरम गाते थे। नेहरू ने ये रुख लेकर मुस्लिम कट्टरपंथियों को शह दे दी। जिसका नतीजा देश आज भी भुगत रहा है। आज तो स्थिति यह है कि वंदेमातरम को जगह-जगह अपमानित करने की कोशिश होती है। जहां भी इसका गायन होता है कट्टरपंथी मुसलमान बड़ी शान से बायकॉट करते हैं।