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महाराष्ट्र में सियासी ड्रामा, उद्धव सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे कांग्रेस के 11 विधायक

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महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की गांठ खुलने के संकेत मिलने लगे हैं। कांग्रेस के 11 विधायक अपनी ही महाविकास अघाड़ी सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ गए हैं। उनका कहना है कि विकास निधि का एकसमान वितरण नहीं हो रहा है। इसमें उद्धव सरकार कांग्रेस की उपेक्षा के साथ ही भेदभाव कर रही है। विधायकों की माने तो राज्य सरकार में कांग्रेस अकेली पड़ गई है। इन विधायकों ने दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से शिकायत करने की भी बात कही है।

हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता इस बारे में खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं, जबकि बालासाहेब थोरात, अशोक चव्हाण और नितिन राऊत जैसे नेता सरकार में हैं और सरकार 5 साल चलाने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि इन विधायकों को अनशन पर बैठने की नौबत क्यों आई? कांग्रेस के बड़े नेताओं की चुप्पी से अटकलें लगाई जा रही हैं कि उनके इशारे पर ही ये विधायक धरने पर बैठे हो सकते हैं, ताकि उद्धव सरकार पर दबाव बनाया जा सके और अपनी बातें मनवाई जा सके। 

उधर शिवसेना के मुखपत्र सामना में कांग्रेस के 11 विधायकों के अनशन पर बैठने की खबरों पर निशाना साधा गया है। सामना में लिखा गया है कि सत्ताधारियों से सवाल पूछने की बजाय कांग्रेस के विधायक खुद जिस सरकार में शामिल हैं, उसी के विरोध में अनशन पर बैठ रहे हैं। ये लोकतंत्रिक है, यह स्वीकार है, लेकिन जिसने ये सरकार बनाने की अनुमति दी, उन सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी यह एक प्रकार का अविश्वास व्यक्त करने जैसा होगा।

सामना में लिखा है कि मामला विकास निधि के समान वितरण का हो या कोई अन्य मामला हो, राजनीतिक शिष्टाचार यह है कि विधायकों को अपनी बात अपने नेता के समक्ष रखनी चाहिए। बालासाहेब थोरात, अशोक चव्हाण और नितिन राऊत जैसे पार्टी के और सरकार के अनुभवी और समझदार नेता हैं। दूसरी तरफ अजीत पवार और जयंत पाटील जैसे एनसीपी के मंझे हुए नेता हैं। 

सामना में यह भी लिखा गया है कि महाराष्ट्र के विरोधी दल को इन घटनाओं के कारण आनंद की लहर आ रही होगी लेकिन ये उनका भ्रम है। लेकिन महाविकास अघाड़ी में मचे इस घमासान ने ये साबित कर दिया है कि महाराष्ट्र की उद्धव सरकार भी अब कर्नाटक की राह पर चल पड़ी है। कर्नाटक में भी एचडी कुमारस्वामी की सरकार और कांग्रेस के बीच ऐसे ही कलह शुरू हुआ और एक दिन सरकार गिर गई। कहीं महाराष्ट्र में भी बगावत की ये बिगुल तो नहीं है।

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