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हारने के लिए मीरा कुमार और गोपाल गांधी पर दांव! विपक्ष की दोगली राजनीति

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राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर भारी फजीहत के बाद कांग्रेस ने उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर एक नया दांव खेलने की कोशिश की है। उसने महात्मा गांधी के सबसे छोटे पोते गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाया है। एक तरह से देखें तो महात्मा गांधी से जुड़े रिश्ते के नाम पर कांग्रेस समेत विपक्ष ने झांसा देने की कोशिश की है। यह सबको पता है कि संख्या बल के आधार पर भाजपा की जीत निश्चित है, ऐसे में हार निश्चित होने पर भी महात्मा गांधी के पोते को उम्मीदवार बनाना कांग्रेस की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। इसके अलावा भी कई ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब गोपाल गांधी पर भारी पड़ने वाला है।

विदेश नीति की आलोचना करने वाले को उम्मीदवार बनाना कितना सही?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल का ऐतिहासिक दौरा किया था। पूरे विश्व की इस यात्रा पर नजर थी। लेकिन इस सफल यात्रा पर गोपाल गांधी ने लेख लिखकर न सिर्फ सवाल उठाए। बल्कि मोदी सरकार की विदेश नीति को ही कठघरे में खड़ा किया। गोपाल गांधी ने एक वेबसाइट के लिए लिखे लेख में लिखा – “मेरे लिए आश्चर्यजनक ही नहीं बल्कि हिला देने वाली बात ये है कि यह यात्रा कुछ इस तरह से हुई जैसे अरब कहीं है ही नहीं और फिलिस्तीनी देश बस एक मिथक है और उस पवित्र जमीन की एकमात्र हकीकत इज़रायल, इज़रायल और सिर्फ इज़रायल है। भारत ने बेहद बेशर्म तरीके से ‘समरथ को नहिं दोष गोसाईं’ के विचार को स्वीकार कर लिया है।”
जरा सोचिए जिस शख्स ने हाल ही में भारत की विदेश नीति की इस तरीके से आलोचना की हो, उसे उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाना कहां तक सही है?

जिस पर मुख्यमंत्री का विश्वास नहीं, उस पर देश कैसे विश्वास करे?
कांग्रेस के जिस उम्मीदवार पर लेफ्ट ने भी हामी भरी है। उससे यह पूछा जाना चाहिए जिस पार्टी के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ही गोपाल गांधी पर भरोसा नहीं किया। उस पर देश कैसे विश्वास कर ले? दस वर्ष पहले लेफ्ट के साथ राज्यपाल रहते गोपाल गांधी की कैसी तनातनी हुई थी, ये भी राजनीतिक हलकों में चर्चा का बड़ा विषय रहा था। गोपाल गांधी ने 2007 में पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की बुद्धदेब भट्टाचार्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। नंदीग्राम हिंसा के विरोध में वो राजभवन की लाइटें, हर रोज शाम को दो घंटे के लिए बुझा देते थे। वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने 10 वर्ष बाद भी अपनी किताब `Phire Dekha II’ में गोपाल गांधी को लेकर हमलावर रहे हैं.. वो लिखते हैं कि “आखिर वो (गोपाल कृष्ण गांधी) किसे संतुष्ट करना चाहते थे?” किताब में ये भी लिखा है कि “जब-जब राज्य में उद्योगों के लिए खून बहेगा, गोपाल कृष्ण गांधी यहां लोगों को याद आएंगे।”
लेकिन बेशर्मी देखिए सिर्फ मोदी विरोध की वजह से आज उसी शख्स के साथ लेफ्ट गलबहियां कर रहा है।

राष्ट्रपति से लेकर उपराष्ट्रपति की उम्मीदवारी तक
कांग्रेस समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां शुरू में गोपाल गांधी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही थी। लेकिन अचानक क्या हुआ कि गोपाल गांधी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया। दरअसल इसके पीछे भी कांग्रेस और कुछ विपक्षी पार्टियों की घृणित राजनीति है। दरअसल इन पार्टियों की अपनी कोई सोच या दिशा नहीं रही। सिर्फ भाजपा के प्रतिरोध में अपनी कार्रवाई तय करती है। जब भाजपा ने रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान किया तो हमेशा दलित और दूसरी वजहों से राजनीति चमकाने वाली कांग्रेस ने मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बना दिया। इसके पीछे कोई विजन नहीं था।

गोपाल कृष्ण गांधी ने 2014 में लोकतंत्र का भी अपमान किया
कांग्रेस और लेफ्ट को ये भी रास आया कि गोपाल कृष्ण गांधी, एंटी मोदी प्रोपेगेंडा मशीनरी के शीर्ष के एजेंट हैं। खास बात यह है कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी को जनता ने सिर आंखों पर बिठाया और पूर्ण बहुमत सौंपा तो गोपाल गांधी को यह नहीं भाया। एक अखबार के जरिये खत लिखकर गोपाल गांधी ने ये बताया कि उन्हें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने से दर्द हुआ है। जरा सोचिए कि जिसे लोकतंत्र पर ही भरोसा न हो, वो उपराष्ट्रपति पद की गरिमा को कितना नुकसान पहुंचाएगा?

‘देशद्रोह’ के आरोपी के प्रशंसक हैं गोपाल गांधी
ये वही गोपाल गांधी हैं जिन्होंने देशद्रोह के आरोप में घिरे कन्हैया कुमार को देश की भावी पीढ़ी का नेता बताया था। सवाल यह है कि देश के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे में शामिल रहने के आरोपी को सिर-आंखों पर बिठाने वाले नेता की सोच क्या है? ऐसे में क्या इन्हें उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना सही है?

टीएमसी, लेफ्ट, कांग्रेस सब एक क्यों हो गए?
भारतीय राजनीति की ये तस्वीर बेहद शर्मनाक है। बंगाल में जहां ममता बनर्जी के खिलाफ ही कांग्रेस और लेफ्ट ताल ठोकते हैं, आज ये तीनों उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गोपाल गांधी के लिए साथ हो गए हैं। इसके पीछे कोई भव्य सपना या देश के विकास को प्रशस्त करने की कोई नीति नहीं बल्कि जहरबुझी राजनीति है, जिसमें हर हाल में मोदी को नीचा दिखाना है।

जहां हार वहां गोपाल गांधी और मीरा कुमार!
आंकड़े बताते हैं कि उप राष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष के उम्मीदवार की हार तय है। दरअसल, विपक्ष ने एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव के अपने उम्मीदवार मीरा कुमार की ही तरह उप राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए गोपाल कृष्ण गांधी को भी हारने वाला उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में एक बार फिर यही बात चरितार्थ हुई है कि हारने के लिए मीरा कुमार और गोपाल कृष्ण गांधी और जीतने के लिए सिर्फ सोनिया गांधी की मनमर्जी चलेगी!

कुल मिलाकर देखें तो गोपाल गांधी कांग्रेस और विपक्ष की विसंगत राजनीति की उपज बन गए हैं। इसमें देश को कोई नई दिशा देने की पहल नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ नफरत भरी हुई है। जिस लेफ्ट ने हमेशा महात्मा गांधी के विचारों का विरोध किया, आज वो किस बिना पर गोपाल गांधी का समर्थन कर रहे हैं। स्वार्थ की राजनीति में ये इतने गिर चुके हैं कि अब ये पार्टियां मोदी विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

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