कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की देश विरोधी मानसिकता फिर से उजागर हो गई हैं। ये लोग सीरियल बॉम्ब ब्लास्ट के दोषी आतंकवादी की फांसी रुकवाने के लिए रात के तीसरे पहर अदालत लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बना सकते हैं। लेकिन देश की सवा सौ करोड़ जनता की भलाई के लिए लागू होने वाले जीएसटी की आधी रात में लॉन्चिंग का बहिष्कार कर देते हैं। शायद यही कारण है कि अब इनके कई सहयोगियों ने भी एक बार फिर से उनसे पीछा छुड़ाना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस-लेफ्ट को बड़ा तमाचा
जीएसटी की लॉन्चिंग के लिए संसद भवन के सेंट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में विपक्षी एकता की एक बार फिर से हवा निकल गई। कांग्रेस, उसकी कुछ पिछलग्गु पार्टियों और वामपंथी दलों ने राष्ट्र के इतिहास में कर सुधार के सबसे बड़े कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन पार्टियों की बड़ी सहयोगी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और जेडीएस बायकॉट का बायकॉट कर राष्ट्र के इस गौरवपूर्ण क्षण के गवाह बन गए। जबकि पिछले ही हफ्ते 17 पार्टियों के गठबंधन ने विपक्ष की ओर से साझा राष्ट्रपति उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था।
कांग्रेस ने बहिष्कार का तर्क क्या दिया ?
ये बात दुनिया जानती है कि जीएसटी विधेयक पहले संसद के दोनों सदनों से पास हुआ। फिर आधे राज्यों के विधानसभाओं ने उसपर मुहर लगाई। इस तरह से इस संविधान संशोधन की लंबी-चौड़ी प्रक्रिया पूरी हुई। जाहिर है कि सभी राजनीति दलों का सहयोग मिला तभी जीएसटी कानून बन सका। लेकिन फिर इसे लागू करने का विरोध क्यों ? सिर्फ राजनीति के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए। इसके लिए कांग्रेस की ओर से दलील दी गई कि, “आधी रात को आयोजित किया जाने वाला कार्यक्रम गरिमा के खिलाफ है।” वहीं पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ननिहाल से ट्वीट कर कहा कि, “GST पर अमल एक तमाशा है।”
जीएसटी की लॉन्चिंग के बहिष्कार में कौन-कौन शामिल ?
जीएसटी की लॉन्चिंग का विरोध करने वाली पार्टियों में कांग्रेस के अलावा उसकी सहयोगी पार्टियों में आरजेडी, डीएमके के अलावा लेफ्ट और टीएमसी जैसी पार्टियां शामिल हैं। बहिष्कार के लिए इन सभी पार्टियों का एक ही आधार रहा मोदी विरोध। जबकि इनमें से अधिकतर दल जीएसटी को कानून बनाने में सहयोगी रहे हैं। लेकिन फिर भी इन्होंने मोदी विरोध के लिए जीएसटी की लॉन्चिंग के विरोध का कदम उठा लिया।
आतंकवादी को बचाने के समय क्या था स्टैंड ?
जब सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की दया याचिका खारिज की थी तो भी देश के सेक्युलर गैंग की हिंदुस्तान विरोधी भावना भड़की थी। भारी दबाव के चलते तब कई-कई बार दया याचिका खारिज होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने रात के तीसरे पहर में पुनर्विचार याचिका पर घंटों सुनवाई की। एक आतंकवादी को फांसी से बचाने के इस मिशन में कांग्रेस और लेफ्ट के नेता बढ़चढ़ कर शामिल थे। लेकिन जब देश के सभी बाजारों को एक सूत्र में पिरोने के लिए जीएसटी लागू होना था तो इन्होंने आधी रात में होने के चलते कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। हद तो तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी आतंकवादी की याचिका खारिज कर दी तो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने उसपर भी सवाल उठा दिए। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ” मुझे उम्मीद है कि सरकार और न्यायपालिका आतंक के अन्य मामलों में भी जाति, मत और धर्म के आधार को नजरअंदाज कर इसी तरह का कमिटमेंट दिखाएंगी। जिस तरीके से आतंकवाद फैलाने के अन्य आरोपियों के मामले चल रहे हैं, मुझे उसपर शक है। सरकार और न्यायपालिका की विश्वसनीयता खतरे में है।”
I have my doubts the way the cases of other Terror accused are being conducted. Let’s see. Credibility of the Govt and Judiciary is at stake
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 30, 2015
उपराष्ट्रपति चुनाव में भी बिगड़ा विपक्ष का खेल!
कांग्रेस-लेफ्ट की इसी मानसिकता का परिणाम है कि उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उनकी सोच में पलीता लगने लगा है। जीएसटी लॉन्च के अवसर पर एनसीपी के सारे बड़े नेता पहुंचे थे। इसी तरह समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने भी अपने प्रतिनिधियों को भेजकर विपक्षी एकता की पोल खोल दी है। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में पहले ही दौड़ से बाहर हो चुके विपक्ष का खेल उपराष्ट्रपति चुनाव शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया लगता है।
जेडीयू पहले से ही अलग
कांग्रेस-लेफ्ट की दोहरी चालबाजियों से जेडीयू ने पहले ही किनारा कर लिया था। इस पार्टी ने देशहित के अधिकतर अवसरों पर बिना कारण के सरकार का विरोध करने से परहेज किया है। शुरू से पार्टी जीएसटी को लागू करवाने के लिए सक्रिय रही है और उसके लॉन्चिंग पर भी शामिल होने की घोषणा उसने बहुत पहले कर दी थी। इसी तरह उसने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का नाम सामने आते ही उनका समर्थन कर दिया। जबकि बाकी विपक्षी दल सिर्फ कांग्रेस और लेफ्ट की विरोध की राजनीतिक के चक्कर में उलझ गए।
अब कांग्रेस और लेफ्ट दलों की मानसिकता की पोल पूरी तरह खुल चुकी है। उन्हें देश और देश की जनता के हितों की कोई परवाह नहीं है। उन्हें तो सिर्फ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सत्ता चाहिए। चाहे इसके लिए देश का बंटाधार ही क्यों नहीं करना पड़ जाए।