प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से योग को पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। प्रधानमंत्री मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के यूएन के निर्णय से यह साफ है कि योग वो जरिया बन गया है जिससे प्राचीन काल से समृद्ध रही भारतीय सभ्यता-संस्कृति का वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार हो रहा है। लेकिन 21 जून 2017 को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर जहां पूरी दुनिया के लोग योग में लीन नजर आए, वहीं कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने योग की अन्य क्रियाओं की तुलना में सिर्फ एक क्रिया शवासन लगाकर भारतीय संस्कृति का अपमान किया।
योग दिवस का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता शहजाद पूनावाल ने अपने ट्वीट में लिखा, “क्या किसानों की कर्ज माफी और एमएसपी 50% बढ़ाने के लिए कोई आसन हैं? मोदी के Ashwa-Asan का कोई मतलब नहीं।” इसी ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर “शवासन” लिखा।
Wonder if there is any Asan to help farmers get rid of debts & increase MSP by 50%? Clearly Modi’s Ashwa-Asan means little #YogaDay2017
— Shehzad Poonawalla (@Shehzad_Ind) June 20, 2017
Yes SHAVASAN https://t.co/i7LknYE4bJ
— digvijaya singh (@digvijaya_28) June 21, 2017
दोनों नेताओं के इन ट्वीट्स को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने कई तरह के सवाल उठाए। यूजर्स ने कहा कि पार्टी योग दिवस के मौके पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है।
These expressions since 2014 can be part of a book titled ” frustration ” ?
— Dr Narain Rupani (@DrRupani) June 21, 2017
Yeah Shavaasna..which congress has been doing for past 60 years.
— Aunty Bharwi ❎ (@auntybharvi) June 21, 2017
Only you @INCIndia ns can mock this, but there is support from 120 countries for #internationalyogaday initiative of @narendramodi
— विश्वास दांडेकर (@VishwasDandekar) June 21, 2017
Future of @INCIndia after 2019 general elections. pic.twitter.com/w39LU0qEKN
— Zubina W Ahmad ?? (@zubina_ahmad) June 21, 2017
Sonia Gandhi, Priyanka, Rahul always leave country before #InternationalYogaDay. They doing this run & hide stuff for 3 years now. Why so?
— Anshul Saxena (@AskAnshul) June 21, 2017
बीजेपी ने योग दिवस समारोह का मजाक उड़ाने को कांग्रेस का वैचारिक दिवालियापन बताया है। बीजेपी ने कहा है कि यह भारतीय संस्कृति का अपमान है और कांग्रेस हर उस चीज का विरोध करती है जो भारतीय है। कांग्रेस के योग दिवस विरोध पर इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में बीजेपी प्रवक्ता अनिल बलूनी ने कहा कि यह कांग्रेस के वैचारिक दिवालिएपन को दर्शाता है। वे बीजेपी के विरोध के नाम पर किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि योग देश की एक प्राचीन सांस्कृतिक विरासत है और देश के नागरिक कांग्रेस के इस व्यवहार को भूल नहीं सकते। उन्होंने कहा कि योग हजारों साल पुराना हो सकता है, लेकिन इसकी महत्ता और प्रासंगिकता इतनी ज्यादा पहले कभी नहीं रही। जैसा कि हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं, योग शून्य प्रीमियम पर जीवन बीमा सुनिश्चित करता है। दुनिया भर के लोग इसके महत्व को महसूस कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण दुनियाभर में योग की चर्चा हो रही है, कांग्रेस भारतीय विरासत का विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि सवाल उठता है कि जब सारी दुनिया भारत की इस समृद्ध संस्कृति पर उत्सव मना रही है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी योग दिवस की अनदेखी कर अवकाशासन क्यों कर रहे हैं? ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस हर उस उत्सव का विरोध करना चाहती है जो भारतीय है।
योग आधुनिक विश्व को बड़ा उपहार
भारत ने विश्व को आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। शून्य की तरह विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन योग को माना जा रहा है। दरअसल योग एक विचार नहीं बल्कि भारतीय जीवन पद्धति है जिसमें भारतीय जीवन मूल्य यानि संस्कृति समाहित हैं। शून्य के आधार पर आधुनिक विज्ञान स्थापित हुआ उसी तरह आधुनिक जीवन का आधार बनता जा रहा है योग।
पश्चिम के देशों में योग का विस्तार
योग तो भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा शताब्दियों से रहा है… लेकिन 1990 के दशक में पश्चिम के देशों में हुए वैज्ञानिक शोधों से यह निकलकर आया कि लाइफस्टाइल के कारण उत्पन्न बीमारियों के कारगर इलाज के लिए योग अचूक है। इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों में योग के प्रति आकर्षण बढ़ा और इसका प्रसार होने लगा।
अमेरिका में योग की धूम
Yog Alliance की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में, अमेरिका में 3 करोड़ 60 लाख लोग योग से स्वस्थ रहने के तरीकों को अपना रहे हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत अमेरिकी योग के बारे में जानते हैं, जबकि 2012 में 70 प्रतिशत को ही इसके बारे में जानकारी थी।
रूस ने भी मानी योग की महत्ता
21 जून को हर वर्ष ‘विश्व योग दिवस’ के तौर पर मनाने का अपना प्रस्ताव भारत ने 2014 में जब संयुक्त राष्ट्र महासभा के समक्ष रखा, तब रूस उसके सबसे उत्साही सह प्रायोजकों में से एक था। पहले ‘विश्व योग दिवस’ पर रूस के 80 शहरों में 33 हजार लोगों ने मिल कर योग किया। रूसी प्रधानमंत्री मेद्वेदेव और पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन का परिवार भी योगाभ्यास का शौकीन है।
जर्मन स्कूलों में भी योग
जर्मनी के सामान्य स्कूलों और किंडरगार्टनों के बच्चों को भी स्वैच्छिक आधार पर हठयोग सिखाया जा रहा है। योग का प्रचार-प्रसार कमाई का भी बड़ा जरिया बन गया है। दरअससल स्वामी विष्णु-देवानंद के शिष्य सुखदेव ब्रेत्स द्वारा 1992 से ‘योग विद्या’ केंद्र चलाया जा रहा है। आज अकेले इस संस्था के पास योग सिखाने के 102 केंद्र हैं। चार सुरम्य स्थानों पर ‘सेमिनार सेंटर’ कहलाने वाले ऐसे योगाश्रम भी हैं, जहां किसी अच्छे होटल जैसी सारी सुवधाएं हैं। इतना ही नहीं इस संस्था ने अब तक 13 हजार योग-शिक्षक तैयार किये हैं। अब यह यूरोप की सबसे बड़ी जनहितकारी बहुमुखी गैर लाभकारी योग-संस्था बन गई है।
ब्रिटेन में भी योग का धमाल
ब्रिटेन में पहला योग स्कूल भारत में ब्रिटिश राज के एक अधिकारी रह चुके सर पॉस ड्यूक्स ने 1949 में एपिंग में खोला था। 1965 में ‘ब्रिटिश व्हील ऑफ योगा’ (बीडब्ल्यूवाई) की स्थापना हुई। 1995 से यह अब ‘यूरोपीय खेल परिषद’ और इंग्लैंड की खेल परिषद के भी अधीन है। प्रौढ़ शिक्षा के तहत 1970 के बाद से पूरे देश में सैकड़ों योग-कक्षाएं भी लगने लगीं और अनेक प्रइवेट स्कूल भी खुलने लगे थे। इस समय पांच लाख से अधिक ब्रिटिश नागरिक योगाभ्यास करते हैं। योगाभ्यास और उससे जुड़ी वस्तुओं-सेवाओं का ब्रिटिश बाजार एक अरब डॉलर से अधिक आंका जाता है।
फ्रांसीसियों को भी रास आया योग
फ्रांसीसी वैसे तो कसरत या शारीरिक व्यायाम के लिए जाने नहीं जाते, तब भी योग करना उन्हें भी धीरे-धीरे रास आने लगा है। पेरिस सहित कई शहरों में भी अनेक योग-स्टूडियो खुल गए हैं या फिटनेस सेंटरों में योग सीखने-करने की सुविधाएं मिलने लगी हैं। योग-महोत्सवों और कार्यशालाओं का आयोजन होता है, जिनमें सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं। पेरिस के आइफल टॉवर या ‘ले ग्रां पाले’ जैसी जगहों पर होने वाले इन आयोजनों का उद्देश्य योगसाधना का प्रचार करना अधिक, लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित करना कम ही होता है।
चेक गणराज्य में भी योग का जोश
पूर्वी यूरोप के अन्य भूतपूर्व कम्युनिस्ट देशों की तरह भूतपूर्व चेकोस्लोवाकिया में भी योग-ध्यान वर्जित था। 1989 में कम्युनिस्ट तानाशाही के अंत और 1993 में स्लोवाकिया के अलग हो जाने के ढाई दशकों के भीतर चेक गणराज्य में योग की जड़ें गहराई तक जम गयी हैं। वास्तव में पूर्वी या पश्चिमी यूरोप में अब शायद ही ऐसा कोई देश बचा है, जहां योग अभी तक नहीं पहुंचा हो।
विश्वगुरू रहा है भारत
भारत अपनी तमाम विद्याओं एवं पद्धतियों की वजह से विश्वगुरु के रूप में हमेशा से जाना जाता रहा है। योग विद्या उन्हीं में से एक है। भारत में वैदिक काल से ही योग विद्या को स्वस्थ जीवन शैली के लिए जरूरी माना जाता रहा है। वैदिक पुस्तकों में योग प्रणाली के जिक्र के साथ विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में योग क्रियाओं का प्रमाणित दर्शन मिलता है।
योग में भारत का नेतृत्व
योग के जरिये किस प्रकार भारत की सभ्यता का प्रसार दुनिया के हर कोने में हो रहा है ये इस आंकड़े को देखकर पता लगता है। भारत ने जब योग का प्रस्ताव दिया तो योग को स्वीकार करने वाले देशों में उत्तरी अमेरिका के 23, दक्षिणी अमेरिका के 11, यूरोप के 42, एशिया के 40, अफ्रीका के 46 एवं अन्य 12 देश शामिल हैं। गौर करने वाली बात ये है कि ईरान, पाकिस्तान और अरब समेत कुल 47 इस्लामिक देशों ने भी योग के महात्म्य को समझा और इसे स्वीकार किया।
मोदी विरोध या ‘देशविरोध’ की राह पर कांग्रेस की राजनीति!
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश का सिरमौर बन जाना कांग्रेस को पच नहीं रहा है। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने कई जीत हासिल की है। जाहिर तौर पर कांग्रेस इससे बौखलाई हुई है। उसे सत्ता दूर की कौड़ी नजर आने लगी है। ऐसे में सत्ता से दूर खड़ी कांग्रेस सत्ता पाने की जल्दी में है… इस चक्कर में कांग्रेस देशविरोध की राजनीति की राह पर चल पड़ी है।
आर्मी चीफ पर कांग्रेस का हमला
कांग्रेस के बड़े नेता हों या छोटे नेता सब के सब जाने किस बौखलाहट में हैं। कभी देशद्रोही ताकतों के साथ हो लेते हैं तो कभी देश का नक्शे से खिलवाड़ करते हैं तो कभी अपनी ही आर्मी, जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ होती है उसके प्रमुख को ही ‘सड़क का गुंडा’ कह देती है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने तो आर्मी चीफ को ‘सड़क का गुंडा’ तक कह डाला।
Senior Congress leader calls Army chief “sadak ka gunda”. These are times I wonder if there’s anything Indian or National about @INCIndia pic.twitter.com/y6Sx5UcecS
— কাঞ্চন গুপ্ত (@KanchanGupta) June 11, 2017
सर्जिकल स्ट्राइक पर भी उठाए थे सवाल
28 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना ने सीमा पार जाकर पीओके में आतंकियों के आठ कैंपों को नष्ट कर दिया… 38 से ज्यादा आतंकियों को ढेर कर दिया। देश वाहवाही कर रहा था, जीत के जश्न मना रहा था। लेकिन कांग्रेस सवाल खड़े कर रही थी। दिल्ली के विवादित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सुर में सुर मिलाकर सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रही थी।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का बयान आया कि ”सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय ले लिया, लेकिन अब सबूतों की मांग के जवाब का इंतजार है।”
कांग्रेस के एक और नेता संजय निरुपम ने एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े किए और भारत सरकार से इसका सबूत मांगे।
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना था, ”कांग्रेस पार्टी का आधिकारिक रूख यही है कि हम भारतीय सेना के साथ हैं और सर्जिकल स्ट्राइक्स का समर्थन करते हैं लेकिन पाकिस्तान इसे लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार कर रहा है उसका जवाब देने की जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार की है।”
आतंकी एनकाउंटर पर संसद में बवाल
इसी साल 8 मार्च को लखनऊ के बाहरी इलाके ठाकुरगंज में एक घर में लगभग 13 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद पुलिस ने आतंकवादी सैफुल्ला को मार गिराया। सैफल्ला के पिता ने भी उसे आतंकी माना और लाश लेने से इनकार कर दिया। लेकिन कांग्रेस कहां मानने वाली थी। उसने संसद में सवाल उठा दिया। बजट सत्र के दूसरे सेशन में संसद शुरू होने पर कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने मामला उठाते हुए कहा कि जब संदिग्ध सैफुल्लाह के आतंकी संगठन आईएस से जुड़े होने के सबूत नहीं थे तो उसे मारा क्यों गया? जाहिर है खुद जिसके पिता ने आतंकी माना, कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण उसे आतंकी मानने को तैयार नहीं थी।
कश्मीर की ‘आजादी’ के साथ राहुल गांधी !
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में ‘भारत तेरे टुकड़ें होंगे…’ और देश विरोध के कई नारे लगे थे। पुलिस जांच कर रही थी। इसी क्रम में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी की गई थी। गिरफ्तारी के एक दिन के बाद 14 फरवरी 2016 को प्रदर्शन कर रहे छात्रों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय माकन और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा के साथ जेएनयू पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने परोक्ष रूप से हिटलर के शासन से इसकी तुलना कर दी। आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस ने किस तरह ‘देशविरोधी’ नीति को अपनी राजनीति का हिस्सा बना लिया है।
प्रधानमंत्री पर हमले के पीछे मकसद
सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को मौत का सौदागर कहा तो राहुल गांधी ने उन्हें खून की दलाली करने वाला कहा। जिस ‘मौन’ मनमोहन सिंह के कार्यकाल का ढिंढोरा पीटती है कांग्रेस उन्होंने अपनी सरकार के अंतिम प्रेस कांफ्रेंस में साफ कहा था कि – नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री देश के लिए विनाशकारी होगा। इन सब बयानों से जाहिर है कि कांग्रेस के नेताओं की सोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में क्या है। हमने सिर्फ कांग्रेस के ट्रैक-वन के नेताओं की बात की है। ट्रैक-टू के नेताओं की बात ही मत पूछिये… चाय बेचने वाला, बोट-बोटी काट दूंगा जैसी बातें पीएम मोदी के लिए कही गई हैं। उस घटना को भी शायद आप नहीं भूले होंगे जब कांग्रेस और वामपंथियों ने मिलकर पीएम मोदी के खिलाफ असहिष्णुता का अभियान चला दिया था। जाहिर है ‘असहिष्णुता’ के नाम पर सम्मान लौटाने का आंदोलन भी कांग्रेस की उसी दिवालिया सोच की धरातल खड़ा किया गया था।
सड़क पर सरेआम गोहत्या
कांग्रेस की सोच तब जाहिर हुई जब केरल के कन्नूर में कांग्रेसियों ने सरेआम गोहत्या की। 28 मई को कांग्रेस कार्यालय परिसर में यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रिजिल मुकुलटी की अगुआई में गोहत्या की… बीफ बनाई… पकाई और सरेआम वितरण भी किया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इस कुत्सित कृत्य को केंद्र के पशु बिक्री अधिनियम के विरोध में किया। जाहिर है लोकतंत्र में विरोध करने का जायज हक है… लेकिन क्या सरेआम हिंसा का प्रदर्शन कर विरोध करना कांग्रेस की मानसिकता को नहीं बताता है?
सहारनपुर में ‘सड़कछाप’ साजिश
दरअसल ये अपनी कुर्सी वापस पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर में जातीय हिंसा भड़काने की साजिश के पीछे भी तो कांग्रेस की सोच ही तो है!… दरअसल सामाजिक एकता की राह पर चल पड़ा उत्तर प्रदेश कांग्रेसियों को अच्छा नहीं लगने लगा। जातीव विद्वेष फैलाने की साजिश रची और बहुसंख्यक समुदाय की दो जातियों को आमने-सामने कर दिया। जांच हुई तो सामने आया कि हिंसा फैलाने वाली ‘भीम आर्मी’ कांग्रेस के नेताओं के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन है।
मंदसौर में कांग्रेसियों ने की हिंसा
शांत राज्य माने जाने वाले मध्य प्रदेश की शांति भी कांग्रेस नेताओं को अच्छी नहीं लगी। किसान आंदोलन के नाम पर हिंसा फैलाने की साजिश रची गई और उसे अमलीजामा भी पहनाया गया। कांग्रेस नेताओं की अगुआई में छह जिलों को हिंसा की आग में धकेल दिया गया। छह लोगों की जान चली गई लेकिन कांग्रेस अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करती रही। सूबे के सीएम शिवराज सिंह चौहान पर लोगों का भरोसा ही है जो लोगों ने उनका साथ दिया और कांग्रेसियों की साजिश का भंडाफोड़ कर दिया।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन को लेकर सतना के जिला कांग्रेस अध्यक्ष दिलीप मिश्रा ने विवादित बयान दिया है। 11 जून को दिलीप मिश्रा ने राज्य में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह उर्फ राहुल भैय्या की मौजूदगी में कहा, ”इस बात की कसम खाके यहां से जा रहे हैं कि मध्य प्रदेश के प्रतिपक्ष के नेता राहुल भैया के नेतृत्व में आने वाले समय में सतना जिले का किसान इस सरकार के ऊपर गोली चलाएगा।”मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेता से इससे अधिक खुला सबूत और क्या हो सकता है।
कांग्रेस के नेता और रतलाम जिला पंचायत के उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ का 3 जून का वीडियो सामने आया था। उन्होंने रतलाम में भाषण दिया था। इसमें वह कहते दिख रहे हैं कि मेरी बात सुनो। ये दम रखना है कि एक भी गाड़ी आ जाए तो जला दो।
इसी तरह का दूसरा वीडियो शिवपुरी की विधायक शकुंतला खटीक का सामने आया है. ग्वालियर के पास शिवपुरी में वह जिस तरह वह कह रही हैं कि थाने में आग लगा दो… थाने में आग लगा दो … .वह अपने आसपास खड़ी भीड़ को उकसा रही हैं।
कांग्रेसी करते हैं आतंकियों का महिमामंडन
क्या कांग्रेस की संस्कृति और संस्कार आतंकियों को महिमा-मंडित करने की है? कांग्रेस कभी ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहती है, कभी हाफिज सईद को हाफिज जी और अफजल गुरु को अफजल गुरु जी कहती है, तो क्या यही कांग्रेस की संस्कृति और संस्कार है। दिग्विजय सिंह ने ओसामा बिन लादेन और हाफिज सईद को जी कहा तो रणदीप सुरजेवाला ने अफजल गुरु को जी कहा। सबसे खास यह कि कांग्रेस ऐसे बयान देती है और पीछे हट जाती है। यानी जहां संदेश पहुंचाना है पहुंचा दिया और जिन्हें बरगलाना है उन्हें बरगला भी दिया।
आखिर सत्ता खोने के बाद कांग्रेस ये क्यों भूल बैठी है कि देश तो सबका है… देश की संस्थाएं सबकी हैं… यह कोई एक व्यक्ति विशेष की पैबंद नहीं होती … कांग्रेस यह क्यों नहीं समझ रही कि स्वस्थ लोकतंत्र में जो भी संस्था और प्रणाली के साथ खिलवाड़ करता है वह पूरे देश और समाज के साथ खिलवाड़ करता है।