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सेक्यूलर भारत में धर्म के आधार पर हिंदुओं को सांप्रदायिक ठहराने की ये कैसी साजिश!

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उत्तर प्रदेश के मगहर में संत कबीर की मजार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाना था। इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 27 जून को वहां निरीक्षण करने पहुंचे थे। यहां उन्हें मजार के सेवक खादिम हुसैन ने Skull (खोपड़ी) टोपी पहनाने की कोशिश की तो योगी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। विपक्ष इस सामान्य सी घटना को भी सांप्रदायिक कोण देने पर तुल गया है। साधारण से वाकये को धार्मिक विवाद में बदल दिया गया है। आइये देखिये पहले ये वीडियो…

स्पष्ट है कि मजार की देखभाल करने वाले खदिम हुसैन ने सीएम योगी आदित्यनाथ को खोपड़ी टोपी की पेशकश की, मुख्यमंत्री ने बहुत विनम्रता से देखभाल करने वाले को जवाब दिया कि वह टोपी नहीं पहनते हैं।  

योगी आदित्यनाथ ने मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर दिया यह कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि भारत एक पंथ निरपेक्ष देश है। यहां सबको धार्मिक आजादी है।

हालांकि योगी आदित्यनाथ द्वारा विनम्रतापूर्वक टोपी पहनने से इनकार करना भी विपक्ष को नागवार गुजर गया। वह अब योगी आदित्यनाथ पर समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित करने की कोशिश का आरोप लगा रहा है। 

दरअसल अक्सर इस देश में हिंदुओं को बहुत ही जल्द सांप्रदायिक और आतंकी घोषित कर दिया जाता है। लेकिन पहला सवाल तो यह है कि योगी आदित्यनाथ अगर किसी मजार पर गए तो वहां के ‘कट्टरपंथी’ जबरन उन्हें स्कल (खोपड़ी) टोपी क्यों पहनाना चाहते थे?

बहरहाल यह एक तथ्य है कि देश के कट्टरपंथी सेक्यूलरों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाया है,  लेकिन सवाल यह है कि यही सेक्यूलयरवादी लोग तब क्यों चुप रह जाते हैं जब –

  • बिग बॉस नामक एक कार्यक्रम में हिना खान नामक कट्टरपंथी मुसलमान ने पूजा की थाली पकड़ने से इनकार कर दिया था। तब किसी सेक्यूलर ने इस कट्टरपंथी मुसलमान को कम्यूनल नहीं बताया, क्यों?
  • देश में कोई मुस्लिम दीपावली मना ले तो उसके खिलाफ कई मौलवी मौलाना फतवे दे देते हैं, तब उनको कम्यूनल नहीं बताया जाता, क्यों?

  • देश के उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी तो दशहरे पर पूजा की थाली पकड़ने से इनकार कर देते हैं, तब क्यों नहीं उठते सवाल?
  • देश के संवैधानिक सत्ता के शीर्ष पर रहे हामिद अंसारी ने जब अपने मजहब के लिए वन्दे मातरम कहने से इनकार कर दिया तो भी उन्हें सांप्रदायिक नहीं बताया गया, क्यों?

  • सवाल यह है कि जब एक मस्जिद का इमाम माता की चुनरी नहीं बांध सकता, वो तिलक नहीं लगा सकता, तो हिंदुओं के एक बड़े पीठ गोरखनाथ के महंत को मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश क्यों?
  • हमारे सामने हजारों उदाहरण हैं जहां पर एक विशेष समुदाय द्वारा मजहबी कट्टरपंथ की सीमा पार की जाती है, लेकिन उनपर कोई सवाल नहीं उठाया जाता, क्यों? देखिये ये वीडियो…

सवाल उठता है कि क्या सारा सेकुलरिज्म हिंदुओं को ही दिखाना है? जब सबको अपनी धार्मिक आजादी का अधिकार है तो हिंदुओं को भी है। मुसलमान मंदिर का प्रसाद नहीं लेते, वन्दे मातरम और भारत माता की जय में भी समस्या बताते हैं। तिलक भी नहीं लगाते, तो फिर हिंदुओं को ही क्यों मुस्लिम टोपी पहननी चाहिए?

बहरहाल इन सेक्यूलरवादियों को खादिम हुसैन ने तमाचा जड़ा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने कोई अपमान नहीं दिखाया है, वास्तव में उन्होंने इसे बहुत विनम्रता से मना कर दिया। खादिम ने सवाल उठाया है कि इस घटना को राजनीतिक क्यों बनाया जा रहा है?
जाहिर है योगी आदित्यनाथ या वे खादिम हुसैैन नहीं बल्कि दोषी ये वे नेता हैं जो समाज को धार्मिक रेखाओं में विभाजित करते हैं। ये वे हैं जो अपने स्वार्थ के लिए घटनाओं का राजनीतिकरण करते हैं और देश में घृणा का बीज बोकर फायदा उठाते हैं। 

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