प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 14 सितंबर, 2021 को जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश को तीन बड़ी सौगात देंगे। इस दिन अलीगढ़ में जहां जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय के अलावा डिफेंस कारिडोर की आधारशिला रखेंगे, वहीं धनीपुर हवाई पट्टी का लोकार्पण करेंगे। यह हवाई अड्डा बनकर तैयार हो गया है। यहां से जल्द लखनऊ के लिए उड़ाने शुरू हो जाएंगी। जाहिर है इन तीन बड़े प्रोजेक्ट से जिले को काफी लाभ मिलेगा। खासकर युवाओं को रोजगार के साधन मिलेंगे। प्रत्यक्ष राेजगार से जहां सैकड़ों लोग जुड़ सकेंगे, वहीं अप्रत्यक्ष रुप से भी तमाम लोगों का जुड़ाव होगा।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का संबंध जाट समुदाय से है। उनके नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना करने के फैसले का जाट नेता और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने स्वागत किया है। 2019 में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाट राजा के सम्मान में उनके नाम पर स्टेट यूनिवर्सिटी खोलने का भरोसा अलीगढ़ के लोगों को दिया था। राष्ट्रवादी सोच के कारण कांग्रेस में रहने के बावजूद कुछ कांग्रेसी नेता जाट राजा पर आरएसएस का एजेंट होने का आरोप लगाते रहते थे। इसी कारण उनको वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे।
कहते हैं कि जाटों के दिलों में आज भी राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज करते है। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1909 में वृंदावन (मथुरा) में प्रेम महाविद्यालय (पीएमवी) की स्थापना की थी, तब उन्होंने पांच गांव दान में भी दिए। गुरुकुल वृंदावन, डीएस कॉलेज, एसवी कॉलेज, कायस्थ पाठशाला और बीएचयू के लिए भी उन्होंने अपनी जमीन दी थी। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ही अलीगढ़ में विश्वविद्यालय खोलने के लिए अपनी जमीन दान की थी, लेकिन बाद में उनका नाम ही यहां से हटा दिया गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सिर्फ जिन्ना का नाम ही लिखा गया, जबकि राजा का नाम हटा दिया गया। इसी कारण यहां पर एएमयू का नाम बदलने के लिए काफी मांग उठती रहती है।
गौरतलब है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजा महेंद्र प्रताप का योगदान अहम रहा है। अफगानिस्तान में रहते हुए उन्होंने 1915 में भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। जाट राजा को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का सबसे बड़ा विरोधी माना जाता है। उन्होंने 1939 में महात्मा गांधी को पत्र लिखकर जिन्ना से सचेत रहने को कहा था। पत्र में जिन्ना को सांप कहा था और गांधी जी से जिन्ना पर भरोसा नहीं करने को कहा था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका और ब्रिटिश क्रूरताओं को उजागर करने के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1940 में उन्होंने जापान में भारत कार्यकारी बोर्ड की स्थापना की थी।