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उत्तराखंड में जोशीमठ के अस्तित्व पर संकट: अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाने में धार्मिक मान्यताओं का टूटना और आस्था का अपमान

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जोशीमठ में दरकती जमीन…लोगों के घरों में दरारें..सड़कों पर भी दहशत के निशान! देवभूमि उत्तराखंड की पवित्र धरती पर आखिर ये आफत कहां से आई। लोगों की हंसती-खेलती जिंदगी में मातम कैसे पसरा। भोलेनाथ की भूमि पर अपशकुन की आहट ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल देवभूमि पर उन धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के टूटने का भी है। जिनकी अनदेखी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाने के लिए की गई।    

इस विवाद की जड़ में है ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की विवादित ताजपोशी। कहा जा रहा है कि जोशीमठ में जमीन दरकने का संबंध कहीं अविमुक्तेश्वरानंद को परंपरा तोड़ कर शंकराचार्य बनाए जाने से तो नहीं है। उत्तराखंड की धरती पर हो रहा विनाश, कहीं देवभूमि पर देवी-देवाताओं की नाराजगी की वजह से तो नहीं हो रहा है।

सनातन धर्म के सबसे बड़े पद यानी शंकराचार्य को लेकर जिस तरह से विवाद खड़ा किया गया, उसपर देश के कई बड़े संतों और महात्माओं ने भी आपत्ति जताई थी। संतों का मानना है कि ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के निधन के बाद, धार्मिक परंपराओं की अनदेखी कर उनके शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित किया गया है। सभी सात दशनामी संन्यासी अखाड़ों ने भी इसका खुलकर विरोध करते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया।

निरंजनी अखाड़े के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी ने तो अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित किए जाने को नियमों के खिलाफ बताया है और सभी संन्यासी अखाड़ों की इस मुद्दे पर बैठक बुलाकर, नए शंकराचार्य के बारे में रणनीति तय करने का ऐलान भी किया है।

देश के प्रमुख संतों का कहना है कि शंकराचार्य की नियुक्ति की एक प्रक्रिया है और संन्यासी अखाड़ों की सहमति के बाद काशी विद्वत परिषद शंकराचार्य की नियुक्ति करती है। लेकिन विमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित किए जाने की प्रक्रिया में इसकी अनदेखी की गई।

11 सितंबर को गुजरात की द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य का निधन हो गया था। दावा है कि स्वामी स्वरूपानंद की वसीयत के आधार पर उनके शिष्य सुबोद्धानंद महाराज ने अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया था।

अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था, देश की सबसे बड़ी आदालत में अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य का पदनाम और संबोधन का प्रयोग करने से रोकने के लिए याचिका दायर की गई थी।

कोर्ट में पेश की गई याचिका में दस्तावेजों के आधार पर कहा गया था कि शंकराचार्य के तौर पर अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति सही नहीं है और इसके लिए स्वीकृति प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी थी।

जोशीमठ एक पौराणिक धार्मिक नगरी है, इसका उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड समेत विष्णु पुराण और शिव पुराण में भी मिलता है। यह शहर उन चार धार्मिक मठों में से एक है जिनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी।

जोशीमठ में जहां एक ओर प्राचीन मंदिर हैं, तो दूसरी ओर यह शहर केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है।

ऐसे में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को विवादित तरीके से शंकराचार्य बनाए जाने से, कई तरह की आशंकाओं और अपशकुनों को बल मिल रहा है। संतों का कहना है कि देवभूमि में इस विवाद से धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुंची हैं। यही वजह है कि इसे जोशीमठ में आई आपदा से जोड़ा जा रहा है। आरोप लग रहे हैं कि नियमों और मान्यताओं को तोड़ कर शंकराचार्य की नियुक्ति से आस्था का अपमान हुआ है और इसका खामियाजा जोशीमठ के लोगों को उठाना पड़ रहा है।

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