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कांग्रेस परस्त वकीलों के लिए अदालतें खुलतीं आधी रात, क्यों नहीं मिलता आम आदमी को इंसाफ?

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पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में 28 अगस्त को कई लोगों को गिरफ्तार किया। घटना से जुड़ी ‘डिजिटल बातचीत’ और ‘साइबर सबूत’ मिले हैं। इसमें से पांच आरोपी यीपीए-2 शासन के दौरान भी राडार पर थे, और जेल भी जा चुके थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को ही आरोपी वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजालवेज और गौतम नवलखा को पुलिस रिमांड पर भेजने से मना कर दिया। बहरहाल जिस तरह से इन ‘अर्बन माओवादियों’ को बचाने के लिए वकीलों की फौज खड़ी हो गई, और इनकी गिरफ्तारी भी रोक दी गई, वह अदालतों में कांग्रेस की ताकत को बयां कर गया।

आपको बता दें कि देश की अदालतों में 3.3 करोड़ केस पेंडिंग हैं, लेकिन जुलाई, 2015 में जब आतंकी याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खोला गया तो आम आदमी के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर गया। ऐसा माना जाता है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी, तुषार मेहता, कपिल सिब्बल,  इंदिरा जय सिंह जैसे वकीलों का दबदबा है और ये जो चाहते हैं वही फैसला होता है।

कांग्रेस परस्त और आम आदमी में फर्क समझिये

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