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भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा हैं रोहिंग्या, सख्त कार्रवाई का समय

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भारत की संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की रही है और इसीलिए वैश्विक स्तर पर आए संकट के समय भी हर तरह से पूरी दुनिया को मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाता रहा है। भारत की सह्दयता और सहनशीलता सबको साथ लेकर चलने की रही है लेकिन कोई भारत को धर्मशाला समझ बैठे और अपने कुकृत्यों को छिपाकर भारत में शरणार्थी बनकर भारतवासियों के संसाधनो पर कब्जा करने की सोचे तो ये भी भारतवर्ष को कतई स्वीकार नहीं है। कुछ ऐसे ही देश के लिए नासूर बन गए हैं रोहिंग्या शरणार्थी जिनका मसला देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए भी बेहद संवेदनशील हो गया है। रोहिंग्या शरणार्थी को शरण देने में कुछ राज्य सरकारों का भी दोष है। खासकर पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारों ने वोट पालिटिक्स एवं सत्ता की लालच में करीब दशक भर पहले से इन्हें शरण देता आया है। अब उनकी यही नीति देश के लिए नासूर बन रही है और रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं। ये शरणार्थी अवैध गतिविधियों में शामिल होते हैं, इसके सबूत भी मिले हैं। यहां यह ध्यान रखने की बात है कि ये वही रोहिंग्या हैं जिन्होंने अपनी नृशंसता से म्यांमार के रखाइन प्रांत को हिंदू-विहीन कर दिया है। अब बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिमों के देश में शरण लेने से इस बात की आशंका काफी बढ़ रही है कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा, अल-कायदा और यहां तक कि इस्लामिक स्टेट (IS) जैसे आतंकी संगठन भी उनका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए कर सकते हैं। इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि काफी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। बांग्लादेश पहले ही आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है।

भारत में आधिकारिक रूप से 40 हजार रोहिंग्या

भारत में पनाह लेकर रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से निकालने की मांग हमेशा से होती रही है। हालांकि, 2017 में तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजूजू ने आधिकारिक रुप से रोहिंग्याओं की संख्या 40,000 बताई थी। उन्होंने यह भी बताया कि इनमें लगभग 16,000 औपचारिक रूप से यूएनएचसीआर से शरणार्थी के रूप में पंजीकृत थे। हालांकि वर्तमान में रोहिंग्या प्रवासियों की सटीक संख्या का पता लगाना मुश्किल है। वैसे तो अब तक यह आंकड़ा काफी बढ़ गया होगा। अब भारत सरकार के सामने रोंहिग्या मुस्लिमों की रोजी-रोटी से कहीं बड़ा सवाल देश की सुरक्षा का है। दरअसल सरकार को ऐसे खुफिया इनपुट मिले हैं कि पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे टेरर ग्रुप इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लग गए हैं। रोहिंग्या मुसलमान आईएसआई और आईएसआईएस के भी संपर्क में हैं। ऐसे में इनका भारत में रहना देश के लिए खतरा है।

रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा

अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया गया है। यह भी बताया गया है कि ये अवैध गतिविधियों में शामिल हैं। सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या समेत तमाम अवैध प्रवासी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। उनके अवैध गतिविधियों में शामिल होने की रिपोर्ट भी मिली है। कांग्रेस, टीएमसी, लेफ्ट, एआईएआईएम, समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसे राजनीतिक दल रोहिंग्या मुसलमानों को वोट बैंक की नजर से देख रहे हैं। जबकि भारत सरकार का मानना है कि रोहिंग्या घुसपैठिये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। कट्टरपंथी इस्लाम से भी इनका निकट संबंध माना जाता है।

सोची समझी साजिश है रोहिंग्या को बसाना !

भारत में घुस आए रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजना इसलिये भी जरूरी है कि ये लोग म्यांमार में हिंसा के दौरान वहां से भाग कर नहीं बल्कि साजिश के तहत पिछले एक दशक के दौरान आए हैं। शंका इसलिए भी उठ रही है कि असम और बंगाल के शरणार्थी कैंपों को छोड़कर इतनी दूर ये जम्मू कश्मीर कैसे आ गए? जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों के बसाने के पीछे क्या मकसद है? कौन सी संस्थाएं हैं जो वहां सेटल करा रही हैं? जाहिर है इसमें किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है। जम्मू और सांबा में बड़ी संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये बसे हुए हैं। ये लोग राजीव नगर, कासिम नगर, नरवाल, भंठिड़ी, बोहड़ी, छन्नी हिम्मत, नगरोटा और अन्य क्षेत्रों में बड़ी तादाद में हैं। दरअसल इन क्षेत्रों के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए ही इन्हें बसाने की साजिश रची गई है। गौरतलब है कि 2010 से लेकर अब तक रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या में करीब चार गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दरअसल यह हिंदू बहुल ‘जम्मू संभाग की जनसांख्यिकी को बदलने’ की साजिश का परिणाम है। इस साजिश के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों और घाटी के मुसलमानों को भी जम्मू में बसाया गया। उन्हें रोशनी एक्ट की आड़ में भूमि आवंटित की गई और मतदाता बनाया गया, ताकि चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया जा सके। रोहिंग्या घुसपैठियों को राजनीतिक प्रश्रय देकर बंगाल में भी बड़ी संख्या में बसाया गया। पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों आदि सभी अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) से एकजुट होकर तृणमूल को मत देने की अपील की थी।

म्यांमार में हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार में शामिल रहे रोहिंग्या 

एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच के अनुसार, रोहिंग्या मुसलमान आतंकवादियों ने 2017 के अगस्त में म्यांमार के सैकड़ों हिंदू नागरिकों की सामूहिक हत्या की थी। इस नरसंहार को ‘आरसा’ नाम के संगठन ने अंजाम दिया था, जिसने 99 निर्दोष लोगों को क्रूर तरीके से मौत के घाट उतार दिया था। रिपोर्ट के अनुसार 26 अगस्त, 2017 को ‘आरसा’ के आतंकवादियों ने म्यामांर में रखाइन प्रांत के ‘अह नौक खा मौंग सेक’ गांव के सभी पुरुषों को सामूहिक तौर पर मार दिया और महिलाओं को बंदी बना लिया था। बच्चों के सामने ही उनके परिजनों की सामूहिक हत्या की गई और बाद में उन्हें सामूहिक कब्र में दफना दिया गया।

रोहिंग्या पर सख्त कार्रवाई का समय

जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में अब इन अवैध घुसपैठियों की बायोमीटिक, फिंगरप्रिंट, पासपोर्ट, शरणार्थी कार्ड आदि की जानकारी जुटाना शुरू किया है। यह कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रलय के आठ अगस्त 2017 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे पत्र का संज्ञान लेकर की गई है। इस पत्र में गृह मंत्रलय ने भारत में अवैध घुसपैठियों की बढ़ती संख्या और उससे पैदा होने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। कड़ी निगरानी के बीच इनकी जांच पड़ताल का काम शुरू किया गया है।

रोहिंग्या को जम्मू-कश्मीर में मिला सबसे ज्यादा प्रश्रय

रोहिंग्या म्यांमार के बांग्लाभाषी मुसलमान हैं। राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में इनकी संलिप्तता के सबूत मिलते रहे हैं। ये लोग बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसकर देश के विभिन्न भागों असम, बंगाल, जम्मू, दिल्ली और हैदराबाद आदि में फैल गए हैं। जम्मू उनका सबसे पसंदीदा स्थान है, क्योंकि यहां की फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस, मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी और गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकारों के समय उनके बसने से राजनीतिक लाभ मिलता रहा है। इसलिए इन सरकारों ने रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की आगे बढ़कर अगवानी की है और उन्हें वोट के बदले में तमाम तरह के लाभ दिए हैं। ये घुसपैठिये न सिर्फ स्थानीय संसाधनों पर बोझ हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा हैं। जिन साधनों और संसाधनों पर भारतवासियों का प्राथमिक अधिकार है, उनका उपयोग ये लोग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनीतिक आकाओं से समर्थन मिला हुआ है।

2 वर्ष में तीन हजार घुसपैठिए गिरफ्तार

गृह मंत्रलय ने राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2018 से 2020 के बीच भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास करने वाले तीन हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें सर्वाधिक संख्या बांग्लादेशी, पाकिस्तानी व म्यांमारी रोहिंग्या घुसपैठियों की है। गौरतलब है कि मात्र दो वर्षो में तीन हजार लोग तो गिरफ्तार हुए हैं। न जाने कितने अपने प्रयास में सफल भी हो गए होंगे। पिछले दो दशकों में ही न जाने कितने घुसपैठिये भारत में घुसकर कहां-कहां बस गए होंगे! इन घुसपैठियों की पहचान और प्रत्यर्पण की बात करते ही सेक्युलर जमात सक्रिय हो जाती है।

भारत में घुसपैठियों को मुस्लिम देशों से की जाती है हवाला फंडिंग

जांच में यह बात भी सामने आई है कि इन घुसपैठियों को भारत में बसाने के लिए पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब आदि मुस्लिम देशों से हवाला फंडिंग की जा रही है। हवाला फंडिंग से खाए-अघाए कुछ एनजीओ, मदरसे, वेलफेयर सेंटर आदि बनाने/ चलाने की आड़ में इनकी सुगम बसावट सुनिश्चित कर रहे थे और जरूरी दस्तावेज जुटाने/ बनवाने में भी इनकी मदद कर रहे थे। भारत की खुफिया एजेंसियां अब इनको उघाड़ने में जुटी हुई हैं। जैसे-जैसे इस मामले की परतें खुलेंगी, जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्ला-मुफ्ती ‘राजवंशों’ की मिलीभगत का भी पर्दाफाश होगा।

रोहिंग्या के सत्यापन की चुनौती

रोहिंग्या शरणार्थियों के सत्यापन की प्रक्रिया में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। बहुत से रोहिंग्या घुसपैठियों ने लेन-देन करके या सत्ताधीशों के साथ मिलीभगत कर राशन कार्ड, आधार कार्ड तथा वोटर कार्ड आदि बनवा लिए हैं। एक और चिंता की बात यह है कि इनके बच्चे बहुत ज्यादा हैं। उनकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है। यह काम भी कई राज्यों में राजनीतिक शह पर ही हो रहा है, ताकि वहां की जनसांख्यिकी को बदला जा सके और निर्णायक वोट बैंक तैयार किया जा सके। सत्यापन-प्रक्रिया शुरू होते ही बहुत से रोहिंग्या जम्मू छोड़कर इधर-उधर के इलाकों तथा अन्य राज्यों में भी खिसक गए हैं। मगर इन दिक्कतों के बावजूद सत्यापन-प्रक्रिया पूरी प्रामाणिकता के साथ पूर्ण की जानी चाहिए और अवैध घुसपैठियों को हर हाल में प्रत्यर्पित किया जाना चाहिए।

भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण को खत्म करना होगा

अविभाजित भारत के विस्थापित शरणार्थियों को नागरिकता देने संबंधी नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएए) के विरोध में जो लोग दिल्ली में खूनी खेल खेल रहे थे और शाहीन बाग में टेंट तानकर बैठे थे, वही लोग आज इन अवैध घुसपैठियों को सिर पर बैठाने और सारे अधिकार देने की वकालत कर रहे हैं। यह विडंबनापूर्ण व्यवहार है। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध भी इसी कारण किया जा रहा था, ताकि इस प्रकार के घुसपैठियों की पहचान और प्रत्यर्पण न किया जा सके। इन्होंने अपने वास्तविक मंसूबों को छिपाते हुए भारतीय मुसलमानों को नागरिकता छिनने का डर दिखाया और उन्हें भड़काया। यह सब हिंदुओं के बाद भारत के ‘दूसरे बहुसंख्यक’ समुदाय मुसलमानों की एकमुश्त वोट मुट्ठी में करने की जुगत थी। आजादी से लेकर आज तक कई राजनीतिक दल और अनेक स्वघोषित स्वयंसेवी संगठन इन तथाकथित ‘अल्पसंख्यकों’ के हिमायती दिखकर ही अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं।

रोहिंग्या को वापस भेजने के नाम पर सेक्युलर जमात में छा जाती है मातम

रोहिंग्या और बांग्लादेशी आदि घुसपैठियों की विदाई की बात उठते ही सेक्युलर जमात मातम मनाने लगती हैं। मानवता और मानव अधिकारों की भी दुहाई देने लगती हैं। लेकिन भारत सरकार को इस मामले में मजबूत इरादों और इच्छाशक्ति से काम लेने की जरूरत है। देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक देशवासियों का है, न कि घुसपैठियों का है। इसके साथ ही, देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए संकट खड़ा करने वाले अवैध घुसपैठियों को बिना किसी हीला-हवाली के तत्काल बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय और केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार के दबाव में न आकर इस मामले में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। ऐसा करके ही राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता सुनिश्चित की जा सकती है।

रोहिंग्या मसला 2017 में चर्चा में आया

दरअसल रोहिग्याओं का मुद्दा उस वक्त चर्चा में आया था जब 25 अगस्त 2017 को रोहिंग्या चरमपंथियों ने म्यामांर के उत्तर रखाइन में पुलिस पोस्ट पर हमला कर 12 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था। इस हमले के बाद सेना ने अपना क्रूर अभियान चलाया और तब से ही म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है।

रोहिंग्या को नागरिक नहीं मानता म्यांमार

रोहिंग्याओं के लिए हालात इसलिए भी मुश्किल हैं क्योंकि जब म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने देश का नागरिक नहीं मानती है तो वह भारत के कहने पर उन्हें वापस कैसे लेगी। यदि भारत ने इनकी वापसी का दबाव म्यांमार पर बनाया तो दोनों देशों के संबंधों पर इसका विपरीत असर पड़ने की उम्मीद है। बात रोहिंग्या संकट के समाधान की हो तो ये बात बिल्कुल सच है कि विश्व में कही भी हो रहे अशांति और अत्याचार सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है और भारत जो इतना करीब है उसपर तो इसका प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है अतः जरुरत है कि एक तरफ म्यांमार भी अपने इस आतंरिक मामले से निपटने के लिए गंभीरता दिखाए वही भारत सहित सभी वैश्विक शक्तियों द्वारा भी संयुक्त राष्ट्र के एजेंसियों का सहारा लेकर इस मुद्दे को हल करने का प्रयास किया जाये।

रोहिंग्या का इतिहास

वर्ष 1400 के आसपास रोहिंग्या लोग ऐसे पहले मुस्लिम्स थे, जो कि बर्मा के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। यही नहीं ब्रिटिश शासन काल में भी वर्ष 1785 में बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्जा कर लिया। तब उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों को या तो इलाके से बाहर खदेड़ दिया या फिर उनकी हत्या कर दी। इस अवधि में अराकान के करीब 35 हजार लोग बंगाल भाग गए जो कि तब अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में था। वर्ष 1824 से लेकर 1826 तक चले एंग्लो-बर्मीज युद्ध के बाद 1826 में अराकान अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्त‍ि और 1962 में जनरल नेविन के नेतृत्व में तख्तापलट की कार्रवाई के दौर में रोहिंग्या मुस्लिमों ने अराकान में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग रखी, लेकिन तत्कालीन बर्मी सेना के शासन ने यांगून (पूर्व का रंगून) पर कब्जा करते ही अलगाववादी और गैर राजनीतिक दोनों ही प्रकार के रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया और इन्हें बिना देश वाला (स्टेट लैस) बंगाली घोषित कर दिया। तब से स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। रोहिंग्याओं को लेकर वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या ये है कि अब तक करीब 3,79,000 रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं और भारत के भी विभिन्न इलाकों में शरण ले चुके है।

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