कांग्रेस और उसके नेताओं का इतिहास रहा है कि वो स्वदेशी कंपियों को बदनाम कर विदेशी कंपनियों के लिए लॉबिंग करते हैं। इसके लिए वे एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम करते हैं। वे पहले स्वदेशी कंपनियों को बदनाम करते हैं। इसके बाद लोगों को स्वदेशी कंपनियों के खिलाफ भड़काते हैं। पीआर एजेंसी की तरह देश में ही विदेश कंपनियों के लिए माहौल तैयार करते हैं। जनता को झांसा देकर कंपनी के पक्ष में दलीलें देते हैं और सरकार पर विदेशी कंपनियों को मंजूरी देने का दबाव बनाते हैं। राफेल डील हो या अंबानी, अडानी और अदार को बदनाम करना हो, इन सब के पीछे विदेशी कंपनियों की लॉबिंग की रणनीति ही काम करती रही है।
आप इस बात से समझ सकते हैं कि देश में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तो, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और पंजाब की कांग्रेस सरकार ने कोवैक्सीन और कोवशील्ड के परीक्षण चरण और प्रभाव को लेकर सवाल किया और उन्हें बदनाम कर उनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इसके बाद टीकाकरण पर जोर नहीं दिया गया। यहां तक कि कांग्रेस के नेताओं के मुख से वैक्सीन विकसित करने वाली देसी कंपनियों और वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर प्रोत्साहन के एक शब्द भी नहीं निकले। टीकाकरण को लेकर भी उदासीनता बरती गई।
कांग्रेस शासित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब में कोरोना के बढ़ते मामलों पर ध्यान नहीं दिया गया। इन राज्यों में मामला बढ़ता गया। कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं, तो हैरान करने वाली तस्वीर उभरकर सामने आती है। देश के कोरोना के कुल सक्रिय मामलों में 68.94 प्रतिशत उन 5 राज्यों में हैं, जहां कांग्रेस की सरकारें हैं या पार्टी सरकार में साझीदार है। जब हालात नियंत्रण से बाहर होने लगे, तो इन सरकारों ने एक रणनीति के तहत अचानक टीकाकरण में तेजी लाकर वैक्सीन की कमी की बात करने लगे। जहां पहले वैक्सीन की बर्बादी हो रही थी, वहीं बाद में वैक्सीन की कमी होने लगी। ये सोचने वाली बात है। वैक्सीन की आपूर्ति में कमी को लेकर मोदी सरकार पर हमला किया जाने लगा। यहां तक कि बढ़ते मामलों का डर दिखाकर 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को टीका लगाने की मांग उठने लगी।
टीकाकरण को लेकर उदासीन रहने वाले राहुल गांधी बड़े पैमाने पर और तेजी से टीकाकरण करने पर जोर देने लगे। कम समय में ज्यादा लोगों को टीका लगाने की जरूरत बातकर राहुल गांधी ने सरकार से आग्रह किया था कि विदेश में निर्मित टीकों के भारत में उपयोग को अनुमति दी जाए। जब सरकार विदेश में निर्मित कोविड रोधी टीकों के भारत में उपयोग को मंजूरी देने को तैयार हो गई, तो राहुल गांधी ने महात्मा गांधी के एक कथन का हवाला देते हुए सरकार पर कटाक्ष किया। उन्होंने महात्मा गांधी के एक चर्चित कथन को उद्धृत करते हुए ट्वीट किया, ‘‘पहले वे तुम्हारी उपेक्षा करेंगे, फिर तुम पर हंसेंगे, फिर वो तुमसे लड़ेंगे, फिर तुम जीत जाओगे।’’
राहुल गांधी अक्सर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने के लिए भारतीय उद्योगपतियों अंबानी और अडानी को आधार बनाते हैं। वे इसके जरिए एक तीर से दो निशाना साधते हैं, पहला वो पीएम मोदी को उद्योगपतियों का करीबी बताकर बदनाम करते हैं और वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियो के खिलाफ जनमत तैयार करते हैं, जैसा कि तीन कृषि कानूनों पर अंबानी के जीओ और बाबा रामदेव की पतंजलि के उत्पादों का बहिष्कार, हंगामा और तोड़-फोड़ को देखा जा सकता है।
अब राहुल गांधी की घृणा के नए शिकार भारतीय वैक्सीन निर्माता अदार पूनावाला बने हैं।। भारत बायोटेक की स्वदेशी ‘कोवैक्सीन’ पर भ्रम फैलाने के बाद अब राहुल गांधी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के सीईओ अदार पूनावाला के पीछे पड़ गए हैं। एसआईआई भारत में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और AstraZeneca की वैक्सीन कोविशील्ड का निर्माण कर रहे हैं। हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपनी वैक्सीन की कीमतों का निर्धारण किया। इस पर राहुल गांधी ने ट्वीट करके अदार पूनावाला को ‘मोदी का दोस्त’ बताया और यह कहा कि केंद्र सरकार कुछ उद्योगपतियों को लाभ कमाने में सहायता कर रही है।
आपदा देश की
अवसर मोदी मित्रों का
अन्याय केंद्र सरकार का!#VaccineDiscrimination pic.twitter.com/oOTC77AmkB— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 21, 2021
केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन कार्यक्रम को और तेज करने के लिए Covid-19 वैक्सीन की बिक्री से संबंधित नियमों में कुछ ढील प्रदान की है जिसके बाद राहुल गांधी ने यह आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने यह निर्णय वैक्सीन निर्माताओं को लाभ प्रदान करने के लिए लिया है।
केंद्र सरकार की वैक्सीन रणनीति नोटबंदी से कम नहीं-
* आम जन लाइनों में लगेंगे
* धन, स्वास्थ्य व जान का नुक़सान झेलेंगे
* और अंत में सिर्फ़ कुछ उद्योगपतियों का फ़ायदा होगा।— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 21, 2021
हैरानी तब होती है, जब राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता स्पूतनिक, फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन & जॉनसन द्वारा बनाई गई महंगी वैक्सीनों की वकालत करते हैं। साथी ही कहते हैं कि जो इन वैक्सीनों के लिए पैसे दे सकते हैं उन्हें देना चाहिए। लेकिन जब एक भारतीय कंपनी ने अपनी वैक्सीन की लागत के बराबर मूल्य निर्धारित किया है जो अन्य वैक्सीनों की तुलना में फिर भी कम है तब यह आरोप लगाया जा रहा है कि ‘मोदी के उद्योगपति मित्र’ लाभ कमा रहे हैं। जब मोदी सरकार ने रूस की वैक्सीन स्पूतनिक-V को मंजूरी दी तब भी राहुल गांधी ने इसका क्रेडिट खुद को ही दिया था।
“First they ignore you
then they laugh at you
then they fight you,
then you win.”#vaccine pic.twitter.com/FvfmTjJ7bl— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 14, 2021
गौरतलब है कि CNBC-TV18 को दिए गए एक इंटरव्यू में अदार पूनावाला ने कहा था कि कंपनी महामारी का कोई लाभ नहीं लेना चाहती है और प्रति डोज में कंपनी 150 रुपए का नुकसान ही सहन कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि एसआईआई को AstraZeneca को 50 प्रतिशत रॉयल्टी के रूप में देना होता है।
#CNBCTV18Exclusive | @adarpoonawalla, @SerumInstIndia says, Rs 400/dose is the price for centre & states now pic.twitter.com/Yj6GBL2uif
— CNBC-TV18 (@CNBCTV18Live) April 21, 2021
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने राहुल गांधी और उनकी टीम को आइना देखाते हुए ट्वीट किया है कि हम विदेशी टीकों के लिए 3000 से लेकर 5000 रुपये तक (स्पूतनिक के लिए 1000 रुपये) का भुगतान करेंगे। लेकिन हमें भारतीय कंपनियों SII / BB को 400 से 600 रुपये का भुगतान करने में समस्या है? सच कहूं तो, इस तर्क का कोई मतलब नहीं है।
We will be paying over Rs 3000-Rs 5000 for foreign vaccines ( Rs 1000 for Sputnik). But we have a problem paying Rs 400- 600 to Indian companies SII/BB ?
Frankly, this argument makes no sense.
— Sanjay Jha (@JhaSanjay) April 21, 2021
गौरतलब है कि राहुल गांधी अंबानी समेत जिन उद्योगपतियों को दिन भर कोसते रहते हैं, आज देश की आपदा के समय वही उद्योगपति मुफ्त में लाखों टन ऑक्सीजन देने में लगे हैं। रिलायंस रोज 700 टन ऑक्सीजन तो टाटा स्टील रोड 200-300 टन ऑक्सीजन दे रहा है। विदेशी कंपनी सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए देश में आते हैं, उनका देशहित और जनहित से कोई सरोकार नहीं होता है। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर राहुल गांधी देशी कंपनियों से इतनी नफरत और विदेशी कंपनियों की इतनी पैरवी क्यों करते हैं?