वायुसेना चीफ बीएस धनोआ ने राफेल डील को बोल्ड बताते हुए इसका समर्थन किया है। उन्होंने कहा ”हम कठिन स्थिति में थे। हमारे पास तीन विकल्प थे, पहला या तो कुछ घटने का इंतजार करें, RPF को वापस ले लें, या फिर आपात खरीदारी करें। हमने इमर्जेंसी खरीदारी की। राफेल डील हमारे लिए बूस्टर के समान है।”
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार धनोआ ने कहा, ”सरकार ने बोल्ड कदम उठाते हुए 36 राफेल फाइटर विमान खरीदा। एक उच्च प्रदर्शन वाला और उच्च तकनीक से सुसज्जित लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना को दिया गया है ताकि हम अपनी क्षमता को बढ़ा सकें।”
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले वाइस चीफ एयर मार्शल देव ने कहा था, ”यह बेहद खूबसूरत एयरक्राफ्ट है… यह बहुत क्षमतावान है और हम इसे उड़ाने का इंतजार कर रहे हैं।”
जाहिर है वायुसेना इस राफेल डील को लेकर बेहद उत्साहित है। देश की सुरक्षा के लिहाज से भी यह काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इस डील को लेकर जिस तरह से इस पर सवाल उठा रही है, वह जिस प्रकार राफेल डील को खत्म करने पर अड़ गई है, इससे एक गहरी साजिश की ‘बू’ आ रही है।
एबीपी न्यूज के पत्रकार विकास भदौरिया के 28 सितंबर को गिए गए एक ट्वीट से यह बात साबित भी हो रही है कि डील रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश रची गई है।
Sales Director of a big company of fighter aircraft’s met five senior leaders of two diffrent parties to raise the Rafale issue to malign the image of govt & @narendramodi so that both company/weapon dealer & political party is benefited if the deal gets cancelled.plz find out pic.twitter.com/i5X2hkD9KT
— Vikas Bhadauria ABP (@vikasbha) September 28, 2018
इसमें उन्होंने लिखा है कि अंतरराष्ट्रीय हथियार कंपनियों, आर्म्स डीलर तथा दो राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने लाभ के लिए राफेल डील को खत्म करने में लगे हुए है। ये लोग एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत मोदी सरकार को बदनाम करने में जुटे हैं ताकि यह सरकार राफेल डील को निरस्त कर दे।
विकास भदौरिया ने 29 सितंबर को जो ट्वीट किया उससे भी ये बात पुख्ता होती है कि कांग्रेस पार्टी लगातार यह कोशिश कर रही है कि राफेल डील खत्म हो जाए। इसके मुताबिक इन दो राजनीतिक दलों के पांच नेताओं के साथ हथियार निर्माता तथा आर्म्स डीलर की बैठक अगस्त के अंतिम सप्ताह के दौरान जर्मनी के हमबर्ग में हुई थी। ध्यान रहे कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का जर्मनी दौरान उसी समय में हुआ था और 21 और 22 अगस्त को वे जर्मनी के हैम्बर्ग में थे। इस बात की जानकारी राहुल गांधी ने खुद ट्वीट कर दी थी।
I began my 2 day visit to Germany with a speech at the Bucerius Summer School in Hamburg, yesterday. Today, I am in Berlin to meet members of the German Bundestag, NGO’s & Business Leaders. I will also be addressing a public meeting organised by the Indian Overseas Congress. pic.twitter.com/11omr91GI3
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 23, 2018
विकास भदौरिया के ट्वीट के बाद पड़ताल से जो जानकारी बाहर आई है इसके अनुसार हैम्बर्ग में ही लोगों की घंटों चली बैठक में राफेल डील को निरस्त कराने के लिए मोदी सरकार को बदनाम करने की रणनीति बनी।
Four leaders of different political parties including two ex-central minister,one is main strategist of a party,an expelled leader & sales director of aircraft company met again on 2nd week of September in Delhi to accelerate the Rafale issue as scam. https://t.co/v7slHc7VM5
— Vikas Bhadauria ABP (@vikasbha) September 30, 2018
आपको बता दें कि राहुल गांधी द्वारा की गई इस भविष्यपरक घोषणा पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए सवाल भी उठाया था। आपको यह भी याद होगा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के उस बयान से पहले ही 30 अगस्त को राहुल गांधी ने ट्वीट किया था कि राफेल सौदे पर फ्रांस में धमाका होने वाला है। अब सवाल उठता है कि दो दिन बाद फ्रांस्वा ओलांद क्या बयान देने वाले हैं यह बात राहुल गांधी को पहले से कैसे पता थी?
#WATCH 30 August ko tweet karte hain ki France ke andar kuch bomb chalne vale hain.Yeh unko(Rahul Gandhi) kaise malum ki bayan aisa ane vala hai? Yeh jo jugalbandi hai is tarah ki, mere paas kuch sabot nahi hai. Lekin mann mein prashan khada hota hai:FM Jaitley #FMtoANI #Hollande pic.twitter.com/BNpPFanm42
— ANI (@ANI) September 23, 2018
गौरतलब है कि ओलांद ने कहा था कि राफेल लड़ाकू जेट निर्माता कंपनी डास्सो ने ऑफसेट भागीदार के रूप में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसलिए चुना क्योंकि भारत सरकार ऐसा चाहती थी। जाहिर है एक ओलांद एक बयान देते हैं उसके बाद में उसका खंडन भी आता है, लेकिन राहुल गांधी 20 दिन पहले ही यह कह दिया था।
कांग्रेस पार्टी के ही निष्कासित नेता शहजाद पूनावाला ने भी कहा था कि यह सच है कि राफेल डील को निरस्त कराने की कोशिश में कई अमेरिकी तथा यूरोपियन एयरक्राफ्ट बनाने वाली कंपनी भी शामिल हैं। उनका कहना है कि भारत से यह समझौता पाने के लिए उन्होंने वकीलों, पत्रकारों तथा नेताओं के महागठबंधन पर काफी पैसे खर्च किए हैं, ताकि राफेल डील को निरस्त कराया जा सके। उन्होंने कहा है कि इस सच्चाई का तथ्य है कि उन लोगों ने लंदन से लेकर अमेरिका और जर्मनी तक में बैठकें की हैं। ये लोग किसी प्रकार राफेल डील को खत्म कर किसी अन्य कंपनी से डील कराना चाहते हैं ताकि सभी को अपना-अपना हिस्सा मिल सके, भले ही देश की सुरक्षा जाए भाड़ में।
Truth on Rafale to be out soon:
Truth1: US & other European companies who wanted MMRCA contract paid huge sums to MahaGathBandhan of lawyers/journos/ netas to sabotage deal
Fact 2:Meetings in US,London,Germany,etc
Fact 3:Foreign spin doctors hired for managing intl press & netas pic.twitter.com/a46R5qCDcV— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) September 30, 2018
जाहिर है इतने तथ्यों के बाद यह साबित होता है कि राहुल गांधी ने मोदी सरकार के विरुद्ध एक साजिश रची और जर्मनी दौरा से यह साफ हो गया कि राहुल गांधी हथियार निर्माता तथा आर्म्स डीलर से मिले थे तभी इस बारे में उन्हें इतनी पुख्ता जानकारी थी।