भारत के राष्ट्रपति न केवल देश के प्रथम नागरिक हैं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं के सर्वश्रेष्ठ रक्षक भी हैं। वे देश के सवा सौ करोड़ लोगों की आशा और आकांक्षा के प्रतीक भी हैं, परन्तु कुछ धर्मांध तत्वों ने इस पवित्र पद की गरिमा को भी गिराने की कुत्सित कोशिश की है।
गौरतलब है कि 07 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में होने वाले दीक्षांत समारोह में शामिल होने वाले हैं। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति के आमंत्रण पर उन्होंने अपनी गरिमायी उपस्थिति के लिए सहमति दी है, लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के उपाध्यक्ष सजाद सुभान ने इसे एक मुद्दा बना दिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति महोदय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य रहे हैं इसलिए वो विश्वविद्यालय में होने वाले दीक्षांत समारोह में शिरकत न करें। सजाद सुभान राष्ट्रपति से 2010 में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर दिए गए उनके एक वक्तव्य पर माफी मांगने को भी कह रहे हैं।
दरअसल यह राष्ट्रपति के वक्तव्य का विरोध नहीं, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता का मामला है। यह उस इस्लामिक कट्टरता का मामला है जो पूरी दुृनिया के साथ ही भारत में भी लगातार बढ़ता चला जा रहा है। विशेष यह कि ऐसी धर्मांधता या कट्टरता हमारे देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के साथ अन्य संस्थाओं को भी अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। ये इतनी हद तक बढ़ चुकी है कि राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक रूप से सर्वश्रेष्ठ पद को भी अपनी जद में लेने की कोशिश कर रहा है।
क्यों चुप है तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ?
बड़ा सवाल ये है कि आज देश के राष्ट्रपति का अपमान किया जा रहा है, उन्हें सवालों के कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी जमात चुप है। यही वो जमात है जो अखलाक और जुनैद की हत्या पर देश को असहिष्णु बताता रहा है, आज खामोश क्यों है? इनका दोगलापन तो देखिये, ये जमात कलबुर्गी और गौरी शंकर की हत्या पर शोर तो मचाता है, असहिष्णुता का हौव्वा खड़ा करता है, लेकिन वहीं आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या पर चूं तक नहीं बोलता। यही वही जमात है जो पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हुए अपनी पूजा भी छोड़ने को कहने में गुरेज नहीं करता। ये वही हैं जो देश विरोधी नारे लगाने वालों पर कार्रवाई पर बवाल मचाते हैं, लोकतंत्र के खत्म होने की दलीलें देते हैं, लेकिन राष्ट्रपति की गरिमा को ठेस पहुंचाने वालों पर बोलने में इन्हें सांप सूंघ जाता है। राष्ट्रपति के साथ असहिष्णुता हो रही है लेकिन इन्हें नहीं दिख रहा है, आखिर क्यों?
बहरहाल पिछले दिनों देश में कई ऐसे मामले हुए हैं जो हमारे शिक्षण संस्थाओं पर इन कट्टरपंथी जमात के हावी होते जाने की तस्दीक करते हैं। आइये ऐसे ही कुछ मामलों पर नजर डालते हैं-
जामिया विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री मोदी का विरोध
9 जनवरी, 2016 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया का वार्षिक दीक्षांत समारोह होना था। इसमें शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रण भेजा गया था, लेकिन कई पूर्व छात्रों ने प्रधानमंत्री मोदी के इस कार्यक्रम में शामिल होने का विरोध किया। इस विरोध में यह भी नहीं देखने की जहमत उठाई गई कि वे देश के निर्वाचित प्रतिनिधि ही नहीं देश के प्रधान भी हैं। धार्मिक रूप से कुछ कट्टर छात्र जो भारत को गजवा ए हिंद के तौर पर देखना चाहते हैं, उन सैकड़ों सहिष्णु छात्रों पर भारी पड़ गए जो प्रधानमंत्री के शामिल होने के हिमायती थे।
JNU में ‘भारत विरोध’ को ‘इस्लामिक कट्टरपंथ’ का समर्थन
9 फरवरी, 2016 के उस वाकये को देश अभी भी नहीं भूला है जब देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारे लगे थे- भारत तेरे टुकड़े होंगे… इंशाअल्ला, इंशाअल्ला…। हम क्या चाहें… आजादी। अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं। उमर खालिद, अनिर्बान और कन्हैया कुमार की अगुआई में ये नारे उसी तारीख को लगे थे, जिस दिन भारतीय संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। जाहिर है ऐसे वाकये देश में एक नये तरह की धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता की पैरोकारी करते हैं।
दरअसल समय-समय पर जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोही होने के आरोप लगते रहे हैं। यहां कई ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं जो न केवल देश के टुकड़े करने की बात करते हैं, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता भी फैलाते हैं। मां दुर्गा की अश्लील तस्वीरों की प्रदर्शनी हो या फिर महिषासुर की पूजा-अराधना करने जैसे प्रकरण, ये सभी इस्लामिक कट्टरवादिता की वकालत के साथ असहिष्णुता के उदाहरण हैं।
जाधवपुर यूनिवर्सिटी में ‘इस्लामिक कट्टरवाद’ के नारे
16 फरवरी, 2016 को जेएनयू की तर्ज पर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित प्रसिद्ध जादवपुर यूनिवर्सिटी में ‘आजादी’ के नारे लगाए गए। आतंकी अफजल गुरु और इमरानी का नाम लेकर छात्रों ने देश को तोड़ने के नारे लगाए। इस वीडियो में आप साफ देख सकते हैं कि किस तरह से ये कश्मीर की आजादी की मांग कर रहे हैं। इस्लामिक धर्मांधता में जकड़े छात्र अपने ही देश के एक हिस्से को धर्म के आदार पर तोड़ना चाहते हैं।
02 अप्रैल, 2017 को जाधवपुर यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट्स विभाग के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने यहां कश्मीर, मणिपुर और नगालैंड के लिए ‘आजादी’ के नारे लगाए।
इस्लामिक कट्टरपंथी छात्र कहते रहे, ”हमें चाहिए आजादी…जोर से बोलो आजादी। आगे से बोलो आजादी, पीछे से बोलो आजादी। कश्मीर मांगे आजादी, नगालैंड मांगे आजादी… तेज बोलो आजादी, जोर से बोलो आजादी।” दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्ध औ ईसाईयों पर होने वाले अत्याचार के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार बुलाई थी। इसी के विरोध में छात्र विभाग के बाहर एकत्र होकर छद्म नामों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे।
चेन्नई आईआईटी में बीफ पार्टी का आयोजन
30 मई, 2017 को चेन्नई में कुछ छात्रों ने बीफ पार्टी का आयोजन किया। ये केंद्र सरकार के पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में उस संशोधन का विरोध कर रहे थे जिससे देश में मवेशियों को कत्लखाने के लिए खरीदा जाना बैन हो जाता। हालांकि यह देश के कानून के तहत जायज भी था, लेकिन कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी जमात ने इसका विरोध किया। इसके लिए एक रास्ता यह निकाला कि विरोध का चेहरा एक हिंदू युवक को बना दिया, लेकिन इसके विरोध के पीछे वास्तव में इस्लामिक कट्टरपंथी जमात थी जो हिंदुओं की भावनाओं का खयाल नहीं करती है।
मध्यान्ह भोजन में ‘इस्लामिक कट्टरवाद’ का ‘जहर’
अगस्त, 2016 को उज्जैन में 56 मदरसों ने मिड-डे मील के तहत आने वाले खाने को खाने से इंकार कर दिया। मदरसा संचालकों ने कहा, ”चूंकि, अन्य संप्रदाय के लोग भोजन पकाते समय ‘भोग’ निकालते हैं, इसलिए मुसलमानों के लिए यह भोजन हराम है।’‘ दिलचस्प बात यह कि मदरसा संचालकों की हरकत का मुस्लिम समाज की ओर से कोई विरोध नहीं किया गया। लेकिन सवाल उठता है कि अगर हिंदू समुदाय मुसलमानों से असहयोग का रास्ता अपना ले तो क्या वह इस देश में सरवाइव कर पाएगा।
‘इस्लामिक कट्टरवाद’ को ‘सिंदूर’ में भी दिखती है सांप्रदायिकता
अगस्त, 2016 में ही टीवी एक्ट्रेस सना अमीन शेख को भी इस्लामिक कट्टरवादियों का निशाना बनना पड़ा जब उन्होंने उनके एक्टिंग के दौरान भी सिंदूर लगाने पर एतराज किया गया। इस्लामिक कट्टरता या असहिष्णुता का इससे खराब उदाहरण और क्या होगा पर्दे पर अपने किरदार को निभाने के लिए सना द्वारा सिंदूर भरने और मंगलसूत्र पहनने भर से ही इस्लाम खतरे में आ गया। कट्टरवादी मुसलमान उन्हें सलाह देते हुए कहने लगे – तुम एक मुस्लिम लड़की हो, मंगलसूत्र क्यों पहनती हो? किसी भी मुस्लिम महिला को चाहे वह अभिनेत्री हो, सबसे पहले अपने धर्म का सम्मान करना चाहिए। कुछ ने तो उन्हें धमकी भी दी।
भजन गाने पर इस्लाम खतरे में !
कर्नाटक के शिमोगा की रहने वाली एक मुस्लिम लड़की पर मुस्लिम कट्टरपंथी भद्दे कमेंट भी कर रहे थे। सुहाना सईद का बस इतना कसूर था कि उसने एक कन्नड़ रियलिटी शो में भजन गाया था। लेकिन मुस्लिम लड़की के भजन गाने पर बवाल मच गया था। लेकिन तब भी न तो कोई विपक्षी दल, न ही कोई पत्रकार और न ही कोई बुद्धिजीवी विरोध करने सामने आए थे। ये सिर्फ इसलिए कि ये एक खास तबके से जुड़ा हुआ मामला था। जाहिर है इसके मूल में भी मोदी विरोध की राजनीति ही थी क्योंकि बीजेपी ने सुहाना सईद का समर्थन किया था।
संगीत से भी इस्लाम को है खतरा !
फरवरी, 2017 में असम की 16 साल के नाहिदा आफरीन पर 46 मौलवियों के फतवे का सामना करना पड़ा। वह भी सिर्फ संगीत को इस्लाम विरोधी बताकर। लेकिन इस 16 साल की बच्ची पर जारी फतवे और इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ न तो मीडिया में शोर हुआ और न ही किसी संगठन में असहिष्णुता की बात ही उठाई। जाहिर है विपक्ष और मीडिया का एक वर्ग किस मानसिकता से गुजर रहा है ये लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
दरअसल कई धर्मों और संस्कृतियों से भरा लोकतंत्र व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अवधारणाओं की गारंटी देता है और भारतीय समाज का सबसे सकारात्मक पहलू सहनशीलता और आशावाद है। लेकिन सवाल ये है कि इस्लामिक कट्टरवाद अगर यूं ही बढ़ता रहा तो आने वाले समय में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा ही खतरे नहीं पड़ जाएगी?