प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपदा को अवसर में बदलने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की थी। इसका नतीजा है कि जहां देश ने पीपीई किट जैसे कई चीजों के निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल की, वहीं मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाएं लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित हो रही हैं। आज वन धन विकास योजना के तहत वन धन विकास केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि वन उपज के लिए प्राथमिक प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके और आदिवासियों के लिए रोजगार उपलब्ध हो सके। प्रधानमंत्री वन धन योजना ने जहां महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कातकरी आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है, वहीं दूसरों को भी इसकी राह दिखाई है। ठाणे के शाहपुर में 6 वन धन केन्द्रों का एक क्लस्टर है, जिनमें औषधीय गुण वाले पौधे गिलोय के प्रसंस्करण का काम पूरे ज़ोर-शोर से चल रहा है।
Prime Minister Van Dhan Mission transforms lives of Katkari tribals in Maharashtra. Shahpur Van Dhan Cluster,Thane with support of #TRIFED, @TribalAffairsIn emerges as a tribal start up and a shining example of #AtmaNirbharBharat. @MundaArjun @PIBMumbai https://t.co/x84xD9lHgf
— PIB-MoTA (@PIB_MoTA) July 11, 2021
जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली संस्था ट्राइफेड ने क्षेत्र के सभी 6 वन धन केन्द्रों को 5 लाख रुपये की सहायता दी। जब बड़ी कंपनियों का ऑर्डर पूरा करने के लिए और अधिक पूंजी की जरूरत पड़ी तो ट्राइफेड ने 25 लाख रुपये की अतिरिक्त सहायता प्रदान की। अब वन धन केन्द्रों को डाबर, बैद्यनाथ और हिमालय जैसी औषधि निर्माता कंपनियों से गिलोय की आपूर्ति के बड़े-बड़े ऑर्डर मिल रहे हैं। अब इन केंद्रों में पाउडर बनना भी शुरू हो गया है, जिसे 500 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। यह पाउडर इसके कच्चे माल की कीमत की तुलना में 10 गुना महंगा है। इससे इन वन धन केन्द्रों की आय में बढ़ोतरी हुई है। ये वन धन केंद्र आजीविका और जीवन को बदलने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। कातकरी जनजातीय समूह के 1,800 लोग इस कोरोना महामारी के बीच भी इन केंद्रों के माध्यम से अपनी आजीविका कमा रहे हैं। साथ ही वे लोगों के टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य का सृजन कर रहे हैं।
घर पर मिला काम, रुका पलायन
कातकरी आदिवासी गरीब हैं और आजीविका की तलाश में गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र के रायगढ़ का रुख करते थे, जहां वे ईंटों से जुड़े काम करते थे। लेकिन गिलोय का काम शुरू होने से उनका पलायन रुक गया है।प्रधानमंत्री वन धन विकास योजना के तहत आदिवासी समुदाय के स्वयं सहायता समूहों को पौधरोपण के बेहतर तरीके बताने के साथ गिलोय को प्रसंस्कृत करने के उपाय भी बताये जा रहे हैं। इसके अलावा गिलोय सहित अन्य वन उत्पादों की मार्केटिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इनसे कतकारी समुदाय के जीवन में बदलाव आ रहा है।
बढ़ी आमदनी, बढ़ा उत्साह
आदिवासियों के वन उत्पादों को खरीदे जाने के समय ही भुगतान कर दिया जाता है, जो निरंतर आय के रूप में आदिवासी लोगों के लिए बड़ी सहायता है। इससे आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा है। अब भविष्य की ज़रूरत पूरी करने के लिए गिलोय के पौधों का अस्तित्व बनाये रखने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए 5000 नर्सरी तैयार की जा रही हैं। इसके तहत आने वाले दिनों में 2 लाख पौधे लगाने की योजना है।