प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज शनिवार 31 अगस्त को नई दिल्ली के भारत मंडपम में जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आयोजित इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट के 75 वर्ष, ये केवल एक संस्था की यात्रा नहीं है। ये यात्रा है- भारत के संविधान और संवैधानिक मूल्यों की। ये यात्रा है- एक लोकतंत्र के रूप में भारत के और परिपक्व होने की। सुप्रीम कोर्ट के ये 75 वर्ष, मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में भारत के गौरव को और अधिक बढ़ाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘हमारे लोकतंत्र में न्यायपालिका संविधान की संरक्षक मानी गई है। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हमारी न्यायपालिका ने इस जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन करने का प्रयास किया है। आजादी के बाद न्यायपालिका ने न्याय की भावना की रक्षा की, आपातकाल जैसा काला दौर भी आया। तब न्यायपालिका ने संविधान की रक्षा में अहम भूमिका निभाई। मौलिक अधिकारों पर हुए प्रहार, तो सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रक्षा भी की थी। और यही नहीं, जब-जब देश की सुरक्षा का प्रश्न आया, तब न्यायपालिका ने राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर भारत की एकता की भी रक्षा की है।’
उन्होंने कहा कि ‘बीते 10 वर्षों में न्याय को सुगम बनाने के लिए देश ने कई प्रयास किए हैं। कोर्ट्स के मॉर्डनाइजेशन के लिए मिशन लेवेल पर काम हो रहा है। इसमें सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के सहयोग की बड़ी भूमिका रही है। आज, जिला न्यायपालिका का ये कार्यक्रम भी इसी का एक और उदाहरण है। इस तरह के आयोजन, Ease of Justice के लिए बहुत ही जरूरी हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘आजादी के 7 दशक बाद देश ने पहली बार हमारे कानूनी ढांचे में इतने बड़े और अहम बदलाव किए हैं। भारतीय न्याय संहिता के रूप में हमें नया भारतीय न्याय विधान मिला है। इन कानूनों की भावना है- ‘Citizen First, Dignity First and Justice First’. हमारे क्रिमिनल लॉ शासक और गुलाम वाली सोच से आजाद हुए हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सबूत के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को भी मान्यता मिली है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत इलेक्ट्रॉनिक मोड में समन भेजने की व्यवस्था बनाई गई है। इससे न्यायपालिका पर पेंडिंग केसेस का बोझ भी कम होगा।’
उन्होंने कहा कि ‘आज महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, बच्चों की सुरक्षा समाज की एक गंभीर चिंता है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कठोर कानून बने हैं, लेकिन हमें इसे और सक्रिय करने की जरूरत है। महिला अत्याचार से जुड़े मामलों में जितनी तेजी से फैसले आएंगे, आधी आबादी को सुरक्षा का उतना ही बड़ा भरोसा मिलेगा। मुझे विश्वास है कि यहां जो विमर्श होगा, उससे देश के लिए बहुमूल्य समाधान निकलेंगे, ‘Justice to all’ का रास्ता मजबूत होगा।’