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पाकिस्तान के बदले सुर का कारण है मोदी का डर

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करीब एक महीने पुरानी ही बात है जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विषवमन किया था। पुलवामा हमले पर मचे बवाल के बीच इमरान ने कहा था कि भारत के साथ बातचीत के लिए वे लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार की प्रतीक्षा करेंगे। लेकिन अचानक क्या हो गया कि इमरान अब न केवल मोदी की तारीफ करने लगे हैं, बल्कि यह भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में मोदी जीते तो भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत की रफ्तार तेज होगी।

सच्चाई तो यह है कि इमरान के ह्रृदय परिवर्तन का कारण उनका मोदी या भारत प्रेम नहीं है, बल्कि इसका कारण पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार की कड़ी नीतियां हैं। एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान हर समय भारत की ओर से ऐसे ही किसी और हमले की खौफ में जी रहा है। इसका ताजा सबूत पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का तीन दिन पहले आया बयान है जिसमें उन्होंने इसी महीने भारत की ओर से एक और हमले की आशंका जताई थी।

14 फरवरी को पुलवामा हमले के बाद से पाकिस्तान की हालत लगातार बद से बदतर हुई है। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन सहित अमेरिका जैसे देश आतंक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं। चीन के अड़ंगे ने फिलहाल भले ही मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित करने से बचा लिया हो, लेकिन इतना तय है कि मसूद ज्यादा समय तक चैन से नहीं रह सकता। मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी ने भारत को लेकर पाक को जिस तरह ठेंगा दिखाया, उससे यह भी स्पष्ट हो गया कि कूटनीतिक मामलों में मोदी इमरान पर भारी पड़ रहे हैं. पाक की माली हालत ऐसी है कि इमरान खान घोड़ों-गदहों की नीलामी के बावजूद सरकारी कर्मचारियों को ढंग से वेतन तक नहीं दे पा रहे। भारत द्वारा मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने के बाद से उसे टमाटर जैसी रोजाना इस्तेमाल वाली चीजें हासिल करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।

मोदी सरकार की नीतियों के चलते पाकिस्तान देश के अंदर और बाहर लगातार मुश्किलों का सामना कर रहा है। उसे यह अंदाजा भी है कि लोकसभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना है। मोदी के प्रति पाक के बदले रवेये का कारण भी यही है। इमरान खान समझ चुके हैं कि मोदी से वैर करके वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की हैसियत मजबूत नहीं कर सकते। कोई विकल्प नहीं देख इसीलिए अब वे भी मोदी का गुणगान करने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तान को दुनिया भर में अलग-थलग करने की कूटनीति अब पूरी तरह सफल साबित हो रही है। कोई भी देश पाकिस्तान की किसी बात पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। बालाकोट में ‘जैश ए मुहम्मद’ के आतंकी ठिकानों पर हमले के बाद उसने कई देशों के सामने गुहार लगाई, लेकिन उसे कहीं से किसी मदद का कोई आश्वासन नहीं मिला। हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान का ऑल वेदर फ्रेंड चीन भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है। साफ है पाकिस्तान को अपनी आतंकवाद को संरक्षण की नीति का परिणाम भुगतना पड़ रहा है।

अमेरिका ने भी नहीं सुनी बात
बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो से बात कर अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तानी योगदान का वास्ता दिलाया, लेकिन पोंपियो ने बात अनसुनी कर दी। इसके पहले पुलवामा हमले के बाद भारतीय एनएसए अजीत डोभाल के साथ बातचीत में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोलटन ने कहा था कि प्रत्येक देश को आतंकवाद के मसले पर अपने देश की सुरक्षा का अधिकार है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पुलवामा हमले के बाद कहा था कि भारत कुछ बड़ा करने जा रहा है।

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दुनिया मानने लगी आतंकवादी देश है पाकिस्तान
प्रधानमंत्री मोदी ने जब से देश की कमान संभाली है आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक अभियान चला रखा है। पीएम मोदी के प्रयास से ही पश्चिमी दुनिया अच्छे और बुरे आतंकवाद में फर्क करना भूल गई है। वर्तमान दौर में दुनिया में सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है। भारत आतंकवाद से सबसे अधिक त्रस्त है जिसकी एक मात्र वजह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद है। दुनिया के अधिकतर देश भी यह मानने लगे हैं कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और इसपर लगाम कसना आवश्यक है।

UN ने की पुलवामा हमले की निंदा
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने पुलवामा हमले की निंदा की है। सुरक्षा परिषद ने गुरुवार को जारी बयान में इस जघन्य और कायराना आतंकी हमले की सख्त निंदा की थी। बयान में कहा गया कि सुरक्षा परिषद के सदस्य देश जम्मू कश्मीर में हुए जघन्य और कायराना आत्मघाती हमले की सख्त निंदा करते हैं। 14 फरवरी को हुए इस हमले में भारतीय अर्द्ध सैनिक बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हो गए, जिसकी जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस आतंकवादी हमले की साजिश रचने वालों, उसके लिए धन देने वालों और उसे समर्थन देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जरूरत पर रेखांकित किया है। चीन नहीं चाहता था कि बयान में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का जिक्र हो। सुरक्षा परिषद के बयान को जहां पाक के लिए झटका माना गया, वहीं भारत की कूटनीतिक जीत भी माना जा रहा है।

चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने के लिए मजबूर किया
पाकिस्तान को All Weather Friend कहने वाला चीन आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान के साथ खुलकर, भारत के खिलाफ खड़े होने का हिम्मत नहीं रखता है। चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मजबूर कर दिया। हाल के दिनों में चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत का परिणाम यह हुआ कि चीन के साथ आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में रिश्ते गहरे हो रहे हैं, जो अमेरिका से आर्थिक युद्ध झेल रहे चीन के स्थायित्व के लिए बहुत जरूरी हैं। चीन के साथ बढ़ती घनिष्ठता, पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की काट के लिए सबसे कारगर उपाय साबित हो रही है। अब चीन, भारत की पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ की जा रही सैनिक कार्रवाइयों पर उसका साथ नहीं देता है और न ही विश्व मंच पर पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता है। इससे पाकिस्तान और भी अकेला पड़ता जा रहा है।

ईरान ने दी पाक को धमकी
ईरान और अफगानिस्तान ने हाल ही में पाकिस्तान से आतंकवादी घटनाओं को काबू में करने की चेतावनी दी है। ईरान ने साफ कहा कि वो पाकिस्तान के अंदर घुसकर सुन्नी आतंकवादी ठिकानों और लांचपैठ को तबाह कर देगा। हाल ही में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने ईरान के दस सीमा सुरक्षा सैनिकों को मार गिराया है।

ईरान, अफगानिस्तान, यूएई और सऊदी अरब से करीबी रिश्ते बनाकर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया
पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्रों से अपने सबंधों के बल पर भारत को आंख दिखाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत के सामरिक रिश्तों को मजबूत किया। आज इस कूटनीति का ही परिणाम है कि यूएई और ईरान भारत को बेचे जाने वाले कच्चे तेल की कीमत डॉलर में न लेकर रुपयों में लेते हैं। यह इस बात को रेखांकित करता है कि इन देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रिश्तों को एक नया आयाम दिया। हाल ही में यूएई ने भारत के अपराधियों को प्रत्यर्पण करने में पूरी मुस्तैदी दिखाई। आज कोई भी इस्लामिक राष्ट्र, जम्मू कश्मीर में मारे जा रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों को लेकर भारत का विरोध नहीं करता और न ही पाकिस्तान का साथ देता है। इस तरह भारत ने इस समूह में पाकिस्तान को अलग कर दिया है। अफगानिस्तान के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रिश्ते बनाए हैं और अफगानिस्तान को सामानों की आपूर्ति करने के लिए ईरान से चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने का समझौता करके पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से तोड़ दिया है। पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों के साथ दोस्ती करके प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के नैतिक बल को ही खत्म कर दिया है।

आतंक को संरक्षण देने वाला देश घोषित हुआ पाकिस्तान
कभी अमेरिकी प्रशासन के लिए पसंदीदा रहे पाकिस्तान की हालत ऐसी हो चुकी है कि वह आतंकवादी देश घोषित होने के कगार पर पहुंच चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति का परिणाम यह हुआ कि अमेरिका ने भारत के मोस्ट वाटेंड पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन पर प्रतिबंध लगा। 2018 में आई अमेरिकी रिपोर्ट में लिखा गया, ”ये आतंकवादी संगठन पाकिस्तान से चल रहे हैं। पाकिस्तान में इनको ट्रेनिंग मिल रही हैं और पाकिस्तान से ही इन आतंकवादी संगठनों की फंडिंग हो रही है।” रिपोर्ट में इस बात का साफ-साफ जिक्र था कि भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस तरह से पाकिस्तान को अमेरिका से दूर करके भारत ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के जहर को ही सोखने का उपाय खोज निकाला।

जी-20 में आतंकवाद पर पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन प्राप्त किया
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व के 20 सबसे बड़े देशों के समूह जी 20 के साथ आतंकवाद और पर्यावरण संतुलन को प्रमुख मुद्दा बनाया। आतंकवाद को गरीब के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा बताया और सभी राष्ट्रों को इसके खिलाफ एकजुट होकर जवाबी कार्रवाई करने के लिए कहा। सभी राष्ट्रों ने भारत का खुलकर समर्थन किया और गैरकानूनी ढंग से धन की आवाजाही को रोकने के लिए व्यवस्था स्थापित करने के लिए बाध्य किया। जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड, अमेरिका, रुस, चीन आदि जैसे देशों के साथ जी-20 में मिलकर भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के नाम पर अलग-थलग कर दिया।

सार्क समूह में पाकिस्तान को अकेला कर दिया
वर्ष 2016 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में जब भारत ने शामिल नहीं होने की घोषणा की तो संगठन के अन्य कई देशों, जैसे – श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और अफगानिस्तान ने भी हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पाकिस्तान ने अन्य देशों को बुलाने की कोशिश की, लेकिन वो विफल रहा और अंत में सार्क सम्मेलन रद्द करने को मजबूर होना पड़ा। आज तक पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद भी सार्क सम्मेलन नहीं हो सका है।

सार्क सैटेलाइट से पाक पर चोट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरुरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

बिम्सटेक को भी पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ खड़ा किया
नेपाल में 30-31 अगस्त, 2018 को संपन्न हुए हुए बिम्सटेक के चौथे शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने काठमांडू घोषणा पत्र को स्वीकार किया। इसके मुताबिक बिम्सटेक को एक शांतिप्रिय, समृद्ध और सतत् विकास के स्वरूप वाले क्षेत्र में विकसित करने के लिए सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की। घोषणा पत्र में बिम्सटेक चार्टर को जल्द से जल्द बनाने और गरीबी उन्मूलन, ऊर्जा, कृषि सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्‍यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड ने आतंकवाद को दरकिनार कर शांति के साथ प्रगति करने की अपनी मंशा जाहिर करते हुए पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की जड़ें हिला कर रख दीं।

पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) की संदिग्धों की सूची यानि ग्रे लिस्ट में डलवाया
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान को फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाल दिया है। ग्रे लिस्ट का मतलब  है पाकिस्तान अब एक संदिग्ध देश है और उसके  क्रियाकलापों पर विश्व की एजेंसियों की नजर है। इस सूची में आने के बाद से पाकिस्तान को विश्व से मिलने वाली तमाम आर्थिक सहायता और ऋण पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए जायेगें, जिससे पाकिस्तान अपनी आतंकवादी नीति के चलते आर्थिक रुप से कमजोर होता जाएगा। उसे इस स्थिति से बचने के लिए हर हाल में अपनी आतंकवादी नीति छोड़नी ही पड़ेगी।

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