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पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को मिलेगी नई जिंदगी, मोदी सरकार ने नागरिकता देने के लिए जारी की अधिसूचना

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केंद्र की मोदी सरकार ने पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देकर नई जिंदगी देने के लिए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पारित किया। तमाम विरोध के बावजूद मोदी सरकार ने इस कानून को वापस नहीं लिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी चुनावों के दौरान रैलियों में इस कानून को लागू करने की बात कही थी। अब वे अपने इस वादे को निभाने की शुरुआत कर दी है। गृह मंत्री ने शुक्रवार (29 मई, 2021) को भारत के 13 जिलों में रह रहे अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए अधिसूचना जारी कर दी। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि नागरिकता कानून 1955 की धारा 16 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने कानून की धारा 5 के तहत यह कदम उठाया है। इसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब समेत 13 जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने के लिए निर्देश दिया गया है।

अधिसूचना में दिए गए जिले हैं- गुजरात के मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा। छत्तीसगढ़ के दुर्ग और बलोदबाजार। राजस्थान के जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही। हरियाणा का फरीदाबाद और पंजाब का जालंधर। गौरतलब है कि साल 2019 में जब केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून बनाया था तो इस कानून में 31 दिसंबर, 2014 तक तीन पड़ोसी देशों से भारत आई अल्पसंख्यक आबादी (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को नागरिकता देने का प्रावधान था।

संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने और कानून बनने के बाद भारत में इसका भारी विरोध हुआ। कई बुद्धिजीवियों ने इस कानून को भारतीय मुस्लिमों के ख़िलाफ़ बताया और एनआरसी से जोड़ते हुए ये कहा कि भारत सरकार का ये कदम मुस्लिमों से उनकी नागरिकता छीन लेगा जबकि इस संशोधन का मूल उद्देश्य भारत के नागरिकों से उनकी नागरिकता छीनना नहीं, उन्हें नागरिकता देना है जिन्हें पड़ोसी मुल्कों में उनके अल्पसंख्यक होने के नाते सताया गया।

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