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बिहार के 12 करोड़ लोगों से नीतीश का विश्वासघात, जब कानून मंत्री फरार और मंत्रिमंडल में अपराधियों की भरमार हो, तब बिहार में उद्योग लगाने कौन आएगा ?

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बिहार में जेडीयू और आरजेडी के महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जंगलराज आने की बात कही जा रही है। वो अब सही साबित होती नजर आ रही है। जिस तरह राज्य में मंत्रिमंडल का गठन किया गया है, उसको लेकर नीतीश कुमार पर चौतरफा हमला हो रहा है। नीतीश मंत्रिमंडल में अपराधियों की भरमार है। यहां तक कि राज्य का कानून मंत्री कानून की नजर में फरार है। जिस दिन कानून मंत्री को कोर्ट में सरेंडर करना था, वो उस दिन मंत्री पद की शपथ ले रहे थे। इससे राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होने और उद्यमियों को बिहार से दूर जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह को लेकर नीतीश सरकार पर हमला बोला। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर कार्तिकेय सिंह और उन पर लगे आरोपों का जिक्र किया। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा,” तब बिहार में उद्योग लगाने कौन आएगा? कि नीतीश कुमार को कानून-व्यवस्था और विकास के जिन दो मुद्दों पर जनता का समर्थन मिला था,उन दोनों मुद्दों पर उन्होंने 12 करोड़ लोगों से विश्वासघात किया। वे अब एक कमजोर, जनाधारहीन और प्रतीकात्मक मुख्यमंत्री हैं।”

इससे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया था कि महागठबंधन मंत्रिमंडल में बाहुबलियों की भरमार कर नीतीश कुमार ने बिहार में डरावने दिनों की वापसी सुनिश्चित कर दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि सुरेन्द्र यादव, ललित यादव, रामानंद यादव और कार्तिकेय सिंह जैसे विधायक मंत्री बनाये गए जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

नीतीश मंत्रिमंडल में अपराधियों और बाहुबलियों की भरमार से राज्य में जंगलराज की पूरानी यादें ताजा हो रही हैं। जब 1990 से 2005 तक लालू-राबड़ी का शासन था। इनके 15 साल के कार्यकाल में हत्या और अपहरण एक ‘उद्योग’ बन चुका था। यहीं पैसे कमाने का एक जरिया था। राजनेताओं, अधिकारियों और माफियाओं का ऐसा गठजोड़ इसके पहले कहीं देखा ही नहीं गया। बिहार में बढ़ते अपराध और अराजकता की वजह से 5 अगस्त, 1997 को पटना हाईकोर्ट ने तब एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था, “बिहार में सरकार नहीं है। बिहार में जंगलराज कायम हो गया है।”

लालू यादव के जंगलराज में कई हत्याओं का मामला कोर्ट तो दूर, पुलिस स्टेशन भी नहीं पहुंच पाता था, क्योंकि लोगों को सीधा गायब ही करा दिया जाता था। उन्हें कहां ठिकाने लगाया जाता था, इसका पता पुलिस तक को नहीं चल पाता था। जब अपराधी नेता और मंत्री बनेगा, तो अपने समर्थकों में राबड़ी जरूर बांटेगा। यही लालू प्रसाद यादव के राज में हुआ। गुंडे और बदमाश ठेकेदार बन गए। उनका पूरा का पूरा सिस्टम था। विकास कार्यों का माफिया टेंडर लेते थे। नेता ही अपहरण-हत्या उद्योग के संरक्षक हुआ करते थे। एक अपराधी जब नेता बन जाता था तो वो सौ नए अपराधियों को पालता था।

लालू-राबड़ी राज में जिनके पास रुपए और संपत्ति थी, वो भी अच्छी लाइफस्टाइल में नहीं जी सकते थे। अगर किसी ने कार तक खरीद लिया तो वो अपहरण उद्योग के रडार पर आ जाता था। डॉक्टरों के क्लिनिक चल गए, इंजीनियरों को बड़ा प्रोजेक्ट मिल गया, वकीलों की वकालत चल पड़ी या फिर किसी कारोबारी की दुकान पर भीड़ जुटने लगी – उसे तुरंत अपराधियों का समन आता था और उसे जेब ढीले करने पड़ते थे।

लालू-राबड़ी राज में ‘अपहरण उद्योग’ का खूब विकास हुआ। जो भी कारोबारी पैसा वाला होता था, उसका अपहरण कर फिरौती मांगी जाती थी। पैसा नहीं देने पर हत्या कर दी जाती थी। हत्या और अपहरण की वजह से व्यापारियों में दहशत था। अगर कोई उद्योग लगाना चाहता था तो उससे रंगदारी मांगी जाती थी। सुभाष यादव और साधु यादव का दबदबा ऐसा था कि लालू यादव की बेटियों की शादी होती थी तो गाड़ियों के शोरूम ही खाली कर लिए जाते थे और इस तरह बिहार में कोई कारोबार करना ही नहीं चाहता था। 

कानून-व्यवस्था के साथ ही बिजली और सड़क की स्थिति काफी खराब थी। इससे परेशान होकर राज्य से कारोबारी और उद्योगपति पलायन करने लगे। बिहार में कोई उद्योग लगाने के लिए तैयार नहीं था। जो उद्योग था, वो भी बंद हो गया। बिहार के गरीब, अशिक्षित और अर्द्ध कुशल कामगारों को काम मिलना बंद हो गया। वे रोजी-रोटी के लिए राज्य से पलायन के लिए मजबूर हुए। लालू-राबड़ी राज्य में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में बिहारी मजदूरों का खूब पलायन शुरू हुआ। इस तरह जब राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति होगी तो सवाल उठता है कि बिहार में उद्योग लगाने कौन आएगा ?  

 

 

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