मोदी सरकार में नक्सलियों की शामत आ गई है। मोदी सरकार की नीतियों से जहां एक तरफ नक्सलियों का सफाया हो रहा है, वहीं विकास की योजनाओं से नक्सल प्रभावित इलाकों का दायरा भी सिमटता जा रहा है। गुरुवार सुबह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने सात नक्सलियों को मार गिराया है। बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले की सीमा पर हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने भारी मात्रा में हथियार भी बरामद किए हैं। मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में तीन महिला नक्सली भी शामिल हैं। नक्सलियों के पास से INSAS राइफल, दो थ्री नॉट थ्री राइफल, एक 12 बोर राइफल और कुछ अन्य हथियार बरामद हुए हैं।
Chhattisgarh: 7 bodies of naxals, including 3 females, recovered this morning from Timenar forest area, near Dantewada-Bijapur border, following encounter with team of District Reserve Guard&STF. 2 INSAS rifles, two .303 rifles&one 12 bore rifle also recovered. Encounter underway
— ANI (@ANI) 19 July 2018
छत्तीसगढ़ में दस दिनों में मारे गए 10 नक्सली
नक्सलियों के सफाए के लिए सुरक्षाबलों का अभियान लगातार जारी है। इसी के तहत बुधवार को राजनांदगांव के औंधी क्षेत्र में आईटीबीपी और पुलिस की संयुक्त टीम ने एक महिला नक्सली को मार गिराया था। मारी गई हार्डकोर महिला नक्सली जरीना पोटाई पर पांच लाख रुपये का इनाम था। इससे पहले मिनपा के जंगल में 10 जुलाई को मुठभेड़ में दो नक्सली मारे गए थे। बताया जा रहा है कि बारिश के दिनों में आमतौर पर नक्सली अपने संगठन के विस्तार और ट्रेनिंग के काम में लगे होते हैं, लेकिन इस मौसम में पुलिस के अभियान चलाने की रणनीति ने नक्सलियों को बैकफुट पर ला दिया है।
नक्सली नेताओं की 50 करोड़ की संपत्ति जब्त
मोदी सरकार नक्सलियों पर शिकंजे के लिए कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। नक्सलियों को मुठभेड़ में मारने के साथ ही नक्सली नेताओं की आर्थिक नाकेबंदी भी की जा रही है। अब तक नक्सली नेताओं की 50 करोड़ की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। प्रवर्तन निदेशालय ने बिहार और झारखंड में करीब दर्जनभर बड़े नक्सली नेताओं की 50 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की है। ईडी के सूत्रों के मुताबिक नक्सली नेताओं की जब्त संपत्ति में 1.47 करोड़ की नगदी और 20 एकड़ से अधिक जमीन, कई इमारतें, लग्जरी वाहन, जेसीबी मशीन, बस, ट्रक और ट्रैक्टर शामिल हैं। नक्सली नेताओं ने दिल्ली-कोलकाता जैसे शहरों में भी आलीशान मकान बना रखे हैं।
मोदी राज में कम हो रहा है लाल आतंक का दायरा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश नक्सलवाद के खात्मे की ओर बढ़ रहा है। 2014 में जब पीएम मोदी ने देश की सत्ता संभाली थी तब देश में नक्सलवाद चरम पर था, लेकिन मोदी सरकार की नीतियों की वजह से धीरे-धीरे नक्सलियों पर काबू पाया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि देश में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में कमी आई है।
अप्रैल में गढ़चिरौली में मार गिराए थे 33 नक्सली
इसी वर्ष अप्रैल के आखिरी हफ्ते में लगातार दो दिन हुई मुठभेड़ में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने 33 नक्सलियों को मार गिराया था। सी-60 कमांडो के साथ हुई मुठभेड़ में ये नक्सली मारे गए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि इन मुठभेड़ों को इतनी प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया कि हमारे सुरक्षाबलों को कोई हानि नहीं पहुंची है। इन मुठभेड़ों में नक्सली नेता साईनाथ और सिनू भी मारे गए। आपको बता दें कि गढ़चिरौली जिले के इटापल्ली के बोरीया वन क्षेत्र में नक्सली एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं और पुलिस बल इन पर काबू पाने में लगी है।
4 वर्षों में 44 जिले नक्सल मुक्त हुए
मोदी सरकार ने जब देश की बागडोर संभाली थी तब महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा जैसे राज्यों के 126 जिलों में नक्सली का आतंक था। केंद्र सरकार ने नक्सली हिंसा को खत्म करने के लिए रणनीति बनाई और प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों को साधन उपलब्ध कराए। इसी रणनीति का असर है कि अब देश में नक्सल प्रभावित इलाकों का दायरा सिमटता जा रहा है। हाल ही में गृहमंत्रालय ने नक्सल प्रभावित 44 जिलों को पूरी तरह से नक्सल मुक्त घोषित किया है। सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 35 से घटकर 30 पहुंच गई है। बिहार और झारखंड के पांच जिले अति नक्सल प्रभावित टैग से मुक्त हो गए हैं। इन जिलों में झारखंड का दुमका, पूर्वी सिंहभूम तथा रामगढ़ और बिहार का नवादा और मुज्जफरपुर शामिल है।
नक्सल प्रभावित जिलों में विकास से बदले हालात
सबका साथ सबका विकास मंत्र के तहत मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की विशेष योजनाएं चलाई हैं। मोदी सरकार की नक्सल विरोधी नीति की मुख्य विशेषता है हिंसा को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करना और विकास संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना ताकि नई सड़कों, पुलों, टेलीफोन टावरों का लाभ गरीबों और प्रभावित इलाकों के लोगों तक पहुंच सके। गृह मंत्रालय ने 10 राज्यों में 106 जिलों को नक्सल प्रभावित की श्रेणी में रखा है। ये जिले सुरक्षा संबंधी खर्च ( एसआरई ) योजना के तहत आते हैं। इसका उद्देश्य सुरक्षा संबंधी खर्च जैसे ढुलाई, वाहनों को भाड़े पर लेना, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को वजीफा देना, बलों के लिए आधारभूत ढांचे का निर्माण आदि के लिए भुगतान करना है। श्रेणीबद्ध करने से सुरक्षा और विकास संबंधी संसाधनों की तैनाती पर ध्यान केंद्रित करने का आधार मिल जाता है। बीते कुछ वर्षों में कुछ जिलों को छोटे जिलों में विभाजित किया गया है। इसके परिणामस्वरूप 106 एसआरई जिलों का भौगोलिक इलाका 126 जिलों में फैला है।
नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क परियोजनाओं को मंजूरी
मोदी सरकार ने नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए कई स्तर पर काम किया है। एक तरफ जहां सुरक्षाबलों को चाकचौबंद किया गया है, वहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण समेत दूसरी परियोजनाएं चलाई जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 44 नक्सल प्रभावित जिलों में 5,412 किलोमीटर सड़क निर्माण की परियोजना को मंजूरी दी गई है। नक्सली मोदी सरकार के इस कार्य से बौखलाए हुए हैं, उन्हें लगता है कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में अगर विकास का सिर्फ ये एक काम भी हो गया तो उनका सारा खेल ही खत्म हो जाएगा।
सड़क नहीं बनने देना चाहते नक्सली
नक्सली संगठन हमेशा अपने प्रभाव वाले इलाकों में सड़कों के निर्माण का विरोध तरते हैं। इसका सीधा सा हिसाब है, सड़कें बनेंगी, तो विकास के द्वार चौतरफा खुलेंगे। जनता-जनार्दन का दूर-दराज के लोगों से मेल-जोल बढ़ेगा। वो नक्सलियों और माओवादियों के डर से बाहर निकल सकेंगे, उनमें विश्वास का वातावरण पैदा होगा। गांव-गांव विकास की रौशनी में नहाने लगेंगे, ज्ञान की गंगा बहने लगेगी, जिन्हें अपने वैचारिक और तथाकथित बुद्धिजीवियों के कहने पर नक्सलियों ने वहां पहुंचने नहीं दिया है।
नक्सल प्रभावित इलाकों में रेल परियोजना को मंजूरी
मोदी सरकार ने ओडिशा में 130 किलोमीटर लंबी जैपोर-मलकानगिरी नई लाइन परियोजना को मंजूरी दी है। 2,676.11 करोड़ की लागत से बनने वाली इस रेल परियोजना के 2021-22 तक पूरा होने की संभावना है। यह परियोजना ओडिशा के कोरापुट और मलकानगिरि के जिलों को कवर करेगी। इस परियोजना से नक्सलवाद प्रभावित मलकानगिरि और कोरापुट जिलों में न सिर्फ बुनियादी ढांचे का विकास होगा, बल्कि नक्सलवाद पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी।
मोदी सरकार बनने के बनने के बाद से नक्सलियों के हौसले पस्त
अब आपको ग्राफिक्स की मदद से दिखाते हैं कि 2014 से केंद्र में मोदी सरकार बनने के साथ ही देशभर में किस तरह से नक्सलियों की नकेल कसी गई है और उनके हौसले कुंद किए जा रहे हैं।
आंकड़े सबूत हैं। मोदी सरकार के दौरान जितने नक्सली मारे गए हैं वो एक रिकॉर्ड है। इसी तरह नक्सली हमले में बलिदान देने वाले वीर सुरक्षा बलों की संख्या में भी साल दर साल गिरावट आई है। यही नहीं जिस संख्या में सुरक्षा बलों के दबाव में नक्सलियों ने सरेंडर किया है या उन्हें गिरफ्तार किया गया है, उससे उनकी और उन्हें वैचारिक और आर्थिक समर्थन देने वालों की बेचैनी को भी समझा जा सकता है।
नोटबंदी से नक्सलवाद पर नकेल कसने में मिली सफलता
नवंबर 2016 में मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद नक्सलियों पर लगाम लगाने में बड़ी सफलता मिली है। नोटबंदी के बाद नक्सली संगठनों का पूरा आर्थिक ढांचा चरमरा गया। उनके पास बड़ी मात्रा में नकदी थी जो 500 और 1000 के नोट बंद होते ही मिट्टी में मिल गई।
1700 नक्सली पकडे गए, 600 ने किया सरेंडर
नक्सलियों पर एक ओर नोटबंदी की मार पड़ी तो दूसरी ओर सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन प्रहार चलाकर इनकी कमर तोड़ दी है। नक्सलियों पर इस दोहरी मार के कारण जहां 1700 नक्सली पकड़े गए, वहीं 600 ने सरेंडर कर दिया। इस दौरान सुरक्षा बलों से मुठभेड़ के दौरान बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया गया।