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मोदी सरकार ने कसी नक्सलियों पर लगाम, नक्सली हिंसा में आई भारी कमी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नक्सली समस्या से निजात दिलाने के लिए केंद्र सरकार पुख्ता रणनीति बनाकर काम कर रही है। यही कारण है कि देश में नक्सलियों पर शिकंजा कसता जा रहा है। गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा में बताया कि साल 2009-2013 की तुलना में साल 2014-18 के दौरान नक्सली हिंसा में 43 प्रतिशत की कमी आई है। रेड्डी ने बताया कि साल 2018 में नक्सली हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या घट कर सिर्फ 60 रह गई, जबकि 2010 में ऐसे जिलों की संख्या 95 थी। उन्होंने बताया कि नक्सली हिंसा की घटनाएं साल 2009 में 2258 थीं जो 2018 में घट कर 833 रह गईं। साल 2010 में नक्सली हिंसा में 1005 लोगों की जान गई थी जबकि 2018 में यह आंकड़ा घट कर 240 रह गया। रेड्डी ने बताया कि इस साल 30 जून तक नक्सली हिंसा में 117 लोगों की जान गई जबकि 2018 में इसी अवधि में नक्सली हिंसा में 139 लोग मारे गए थे। मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने और नक्सलियों के खात्मे का बीड़ा उठाया है। मोदी सरकार की इसी पॉलिसी का असर है कि देश में नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दायरा सिमटता जा रहा है और बड़ी संख्या में नक्सलियों को ढेर किया जा रहा है।

नक्सली हिंसा में आई 43 प्रतिशत की कमी
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 वर्षों के दौरान नक्सल हिंसा की घटनाओं में 43.4 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं नक्सली हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या में 60.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2009-13 के दौरान नक्सल हिंसा के कुल 8,782 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2014-18 के दौरान यह आंकड़ा 4,969 मामले ही दर्ज किए गए। इसी प्रकार वर्ष 2009-13 के दौरान नक्सली वारदातों में 3,326 सुरक्षाकर्मियों और आम नागरिकों ने जान गंवाई थी, वहीं वर्ष 2014-18 के दौरान यह आंकड़ा 60 प्रतिशत कम होकर 1,321 पहुंच गया।

नक्सलियों पर वार के साथ विकास की बयार का ‘मोदी फॉर्मूला’
मोदी सरकार नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवादियों की कमर तोड़ने के अलावा प्रभावित क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास पर काम कर रही है। जाहिर है नक्सलवादी बौखलाए हुए हैं और अपने बचे खुचे इलाकों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से नक्सलवादियों की मोर्चाबंदी की गई है, उससे उनके दिन गिनती के बचे हैं।

बस्तरिया बटालियन लगाएगी नक्सलियों को ठिकाने
नक्सलवादियों की सुरक्षित पनाहगाह माने जाने वाले बस्तर को पहले ‘लाल किला’ कहा जाता था, लेकिन अब नक्सलवादियों को चुनौती देने के लिए स्थानीय युवाओं ने मोर्चा संभाल रखा है। मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित बस्तर के युवाओं की भर्ती कर सीआरपीएफ में बस्तरिया बटालियन बनाई है, जो नक्सलवादियों की तरह बस्तर के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं और स्थानीय बोली, रीति-रिवाज की जानकार है।  इस बटालियन के लिए बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और सुकमा जिले से आदिवासी युवाओं की भर्ती हुई है। इसमें 33 फीसदी युवतियां है। इनका वेतन सीआरपीएफ के जवानों के बराबर यानी 30 से 35 हजार रुपए मासिक है। इस बटालियन की पहली कड़ी में फिलहाल स्ट्रैंग्थ 743 है। बस्तरिया बटालियन में 189 महिला उम्मीदवारों सहित कुल 534 उम्मीदवारों ने एटीसी बिलासपुर और एटीसी अंबिकापुर में 44 सप्ताह से अधिक विशेष प्रशिक्षण लिया। यह बटालियन पहली बार अप्रैल 2017 में अस्तित्व में आई।

आसमान में उड़ान भरने को तैयार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के युवा
देश के नक्सलवाद-माओवाद क्षेत्र के युवा अब भारतीय वायुसेना में नौकरी पाकर ऊंची उड़ान भरने को तैयार हैं। सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 35 जिलों में एयरफोर्स द्वारा चलाए गए अभियान के बाद ऐसे नतीजे सामने आए हैं। जानकारी के अनुसार इन जिलों में 1,245 नौजवान वायुसेना की परीक्षा पास कर चुके है, और प्रक्रिया पूरी करने के बाद बतौर एयरमैन वायुसेना का हिस्सा बन रहे हैं। नक्सली हिंसा से ग्रस्त इलाकों में सरकार कई स्तरों पर प्रयास कर रही है, इनमें सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए युवाओं की भर्ती करना भी शामिल है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए इंडियन एयरफोर्स ने साल 2015 में ये भर्ती अभियान शुरू किया था। पिछले तीन वर्षों में आठ बड़े भर्ती कार्यक्रम- तेलंगाना के मेढक, ओडिशा के कालाहांडी तथा बोलंगीर, झारखंड के रांची एवं देवघर, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव, रायपुर और अम्बिकापुर में आयोजित किए गए। इसीके परिणामस्वरुप ये जांबाज युवा जरूरी ट्रेनिंग हासिल कर वायुसैनिक बन पाए। इस अभियान की अगुवाई कर रहे एयर वाइस मार्शल ओपी तिवारी के मुताबिक इन भर्ती अभियानों में कुल 16,505 युवाओं ने भाग लिया जिनमें 1,245 ने परीक्षा पास की।

मुख्यधारा में आ रहे हैं नक्सली
छत्तीसगढ़ के नक्सल हिंसाग्रस्त जिले नारायणपुर में 6 नवंबर, 2018 को एक साथ 62 नक्सलियों ने पुलिस और भारत तिब्बत सीमा पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें से 55 नक्सलियों ने अपने हथियार भी जमा करा दिए। सरेंडर करने वाले 5 नक्सलियों के खिलाफ अदालत ने स्थायी वारंट जारी कर रखा था। सरेंडर करने वाले नक्सली करीब दस साल से प्रतिबंधित माओवादी संगठन के कुतुल एरिया कमेटी की तुमेरादि जनताना सरकार में सक्रिय थे। दरअसल पिछले सालों मे पुलिस के बढ़ते दबाव और सक्रिय नक्सली सदस्यों की लगातार गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण से नक्सली बेहद कमजोर हो चुके हैं। कई खूंखार नक्सली अपने संगठन छोडकर गांव लौट गए हैं और सरेंडर करने का रास्ता खोज रहे हैं।

नक्सलियों की चौतरफा घेराबंदी और ऑपरेशन विध्वंस
मोदी सरकार नक्सलियों पर एक तरफ तो दबाव बढ़ा रही है दूसरी तरफ उनके बच निकलने के सारे रास्ते भी बंद कर रही है। अब तक ये होता था कि एक इलाके में दबाव बढ़ने पर नक्सली दूसरे इलाके या राज्य में पनाह ले लेते थे लेकिन अब गृह मंत्रालय ने ‘ऑपरेशन विध्वंस’ के तहत अलग-अलग राज्यों में कोबरा कमांडो की छोटी-छोटी टीम तैनात कर दी है। इन टीम के पास बेल्जियन मेलिनोइस प्रजाति के खोजी कुत्ते हैं जो नक्सलियों के ठिकाने और उनके IED का पता लगा सकते हैं। टीम दिन रात जंगल में ऑपरेशन चलाती है, और मौके के मुताबिक रणनीति बनाकर नक्सलियों का सफाया कर देती है। कोबरा टीम को तैयार करने के लिए खासतौर पर कोबरा स्‍कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड टेक्टिस भी बनाया गया है। ये टीम इंसास राइफल, एके राइफल्‍स, X-95 असॉल्‍ट राइफल्‍स, हाईपावर ब्रॉनिंग, ग्‍लॉक पिस्‍टल, हैकलर और कोच एमपी 5 सब‍मशीन गन, कार्ल गुस्‍ताव राइफल्‍स जैसे हथियार के अलावा इलेक्‍ट्रॉनिक सर्विलॉन्‍स सिस्‍टम से लैस होती है। साथ ही स्‍नाइपर टीम के पास ड्रेगुनॉव एसवीडी, माउजर SP66, हैकलर एंड कोच MSG-90 स्‍नापर राइफल्‍स भी मौजूद रहते हैं।

बाइक एंबुलैंस से नक्सलियों को गच्चा
नक्सली इतने खूंखार है कि पहले वो घात लगाकर हमला करते हैं और जब सुरक्षाबल के जवानों की मदद के लिए रेसक्यू टीम पहुंचती है तो उसे भी निशाना बनाते हैं। इसकी काट के लिए सीआरपीएफ नक्सल इलाकों में मोटरसाइकिल एंबुलेंस का इस्तेमाल कर रही है जो कमांडो के घायल होने पर उसको लाने ले जाने में मदद करती है। ये एंबुलेंस इसलिए फायदेमंद है क्योंकि नक्सली हर जगह IED बिछा कर रखते हैं। बाइक में IED का खतरा कम रहता है और जहां पर चार पहिया वाहन नहीं पहुंच सकते, वहां ये मोटरसाइकिल एंबुलेंस आसानी से जा सकते हैं।

इससे पहले भी सुरक्षा बलों ने कई नक्सलियों को मार गिराने में सफलता पाई है। डालते हैं एक नजर

सुकमा में सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में 15 नक्सली ढेर
सुरक्षाबलों ने पिछले साल 6 अगस्त,2018 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में 15 नक्सलियों को मार गिराया था। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक पांच लाख रुपये के इनामी नक्सली देवा और एक महिला नक्सली को पकड़ा गया था। सुरक्षा बलों को सुकमा के कोंटा और गोलापल्ली इलाके में 100 से ज्यादा नक्सलियों के मौजूद होने की सूचना मिली थी। इसके बाद सीआरपीएफ, स्पेशल टास्क फोर्स और डिस्ट्रिक्ट रिजर्व फोर्स के जवानों ने अभियान शुरू किया और मुठभेड़ में 15 नक्सलियों को ढेर कर दिया। पुलिस ने नक्सलियों के कब्जे से हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किया।

दंतेवाड़ा में 3 महिला नक्सलियों समेत 7 नक्सली ढेर
इससे पहले 19 जुलाई.2018 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने सात नक्सलियों को मार गिराया था। बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले की सीमा पर हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने भारी मात्रा में हथियार भी बरामद किए थे। मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में तीन महिला नक्सली भी शामिल थीं। नक्सलियों के पास से INSAS राइफल, दो थ्री नॉट थ्री राइफल, एक 12 बोर राइफल और कुछ अन्य हथियार बरामद हुए थे।

आपको बता दें कि टेक्निकल काउंटर अफेंसिव कैम्पेन के तहत नक्सली हर वर्ष प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते हैं और नए नक्सलियों की भर्ती करते हैं। सुरक्षा बलों ने इस बार नक्सलियों के ऐसे ही ठिकानों पर धावा बोला है और बड़ी कामयाबी हासिल की है। जाहिर है कि तीन अगस्त को सुकमा के दोरनापाल में नक्सलियों ने बैनर लगाकर स्वीकार किया था कि एक साल में 206 नक्सली मारे गए, इनमें 72 महिलाएं थीं। सबसे ज्यादा 150 नक्सली दंडकारण्य क्षेत्र में मारे गए। बताया जा रहा है कि इस मौसम में पुलिस के अभियान चलाने की रणनीति ने नक्सलियों को बैकफुट पर ला दिया है।

नक्सली नेताओं की 50 करोड़ की संपत्ति जब्त
मोदी सरकार नक्सलियों पर शिकंजे के लिए कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। नक्सलियों को मुठभेड़ में मारने के साथ ही नक्सली नेताओं की आर्थिक नाकेबंदी भी की जा रही है। अब तक नक्सली नेताओं की 50 करोड़ की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। प्रवर्तन निदेशालय ने बिहार और झारखंड में करीब दर्जनभर बड़े नक्सली नेताओं की 50 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की है। ईडी के सूत्रों के मुताबिक नक्सली नेताओं की जब्त संपत्ति में 1.47 करोड़ की नगदी और 20 एकड़ से अधिक जमीन, कई इमारतें, लग्जरी वाहन, जेसीबी मशीन, बस, ट्रक और ट्रैक्टर शामिल हैं। नक्सली नेताओं ने दिल्ली-कोलकाता जैसे शहरों में भी आलीशान मकान बना रखे हैं।

अप्रैल में गढ़चिरौली में मार गिराए थे 33 नक्सली
इसी वर्ष अप्रैल.2018 के आखिरी हफ्ते में लगातार दो दिन हुई मुठभेड़ में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने 33 नक्सलियों को मार गिराया था। सी-60 कमांडो के साथ हुई मुठभेड़ में ये नक्सली मारे गए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि इन मुठभेड़ों को इतनी प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया कि हमारे सुरक्षाबलों को कोई हानि नहीं पहुंची है। इन मुठभेड़ों में नक्‍सली नेता साईनाथ और सिनू भी मारे गए। आपको बता दें कि गढ़चिरौली जिले के इटापल्‍ली के बोरीया वन क्षेत्र में नक्‍सली एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं और पुलिस बल इन पर काबू पाने में लगी है।

नक्सल प्रभावित जिलों में विकास से बदले हालात
सबका साथ सबका विकास मंत्र के तहत मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की विशेष योजनाएं चलाई हैं। मोदी सरकार की नक्सल विरोधी नीति की मुख्य विशेषता है हिंसा को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करना और विकास संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना ताकि नई सड़कों, पुलों, टेलीफोन टावरों का लाभ गरीबों और प्रभावित इलाकों के लोगों तक पहुंच सके।

नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क परियोजनाओं को मंजूरी
मोदी सरकार ने नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए कई स्तर पर काम किया है। एक तरफ जहां सुरक्षाबलों को चाकचौबंद किया गया है, वहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण समेत दूसरी परियोजनाएं चलाई जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 44 नक्सल प्रभावित जिलों में 5,412 किलोमीटर सड़क निर्माण की परियोजना को मंजूरी दी गई है। नक्सली मोदी सरकार के इस कार्य से बौखलाए हुए हैं, उन्हें लगता है कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में अगर विकास का सिर्फ ये एक काम भी हो गया तो उनका सारा खेल ही खत्म हो जाएगा।

सड़क नहीं बनने देना चाहते नक्सली
नक्सली संगठन हमेशा अपने प्रभाव वाले इलाकों में सड़कों के निर्माण का विरोध तरते हैं। इसका सीधा सा हिसाब है, सड़कें बनेंगी, तो विकास के द्वार चौतरफा खुलेंगे। जनता-जनार्दन का दूर-दराज के लोगों से मेल-जोल बढ़ेगा। वो नक्सलियों और माओवादियों के डर से बाहर निकल सकेंगे, उनमें विश्वास का वातावरण पैदा होगा। गांव-गांव विकास की रौशनी में नहाने लगेंगे, ज्ञान की गंगा बहने लगेगी, जिन्हें अपने वैचारिक और तथाकथित बुद्धिजीवियों के कहने पर नक्सलियों ने वहां पहुंचने नहीं दिया है।

नक्सल प्रभावित इलाकों में रेल परियोजना को मंजूरी
मोदी सरकार ने ओडिशा में 130 किलोमीटर लंबी जैपोर-मलकानगिरी नई लाइन परियोजना को मंजूरी दी है। 2,676.11 करोड़ की लागत से बनने वाली इस रेल परियोजना के 2021-22 तक पूरा होने की संभावना है। यह परियोजना ओडिशा के कोरापुट और मलकानगिरि के जिलों को कवर करेगी। इस परियोजना से नक्सलवाद प्रभावित मलकानगिरि और कोरापुट जिलों में न सिर्फ बुनियादी ढांचे का विकास होगा, बल्कि नक्सलवाद पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी।

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