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कांग्रेस नेता नवजोत सिद्धू की बढ़ेंगी मुश्किल! 34 साल पुराने रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

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पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी खत्म नहीं हो रहीं लगती हैं। पहले वो बुरी तरह चुनाव हारे। फिर कांग्रेस की स्वयंभू अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनसे इस्तीफा मांग लिया और अब 34 साल पुराने केस ने फिर से सिर उठा लिया है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सिद्धू को दोषी ठहराया था और तीन साल जेल व एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ सिद्धू सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे जहां उन्हें बरी कर दिया गया था। पीड़ित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। इस पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।

गैर इरादतन हत्या के 34 साल पहले के केस में पुनर्विचार याचिका पर हुई सुनवाई
नवजोत सिंह सिद्धू का 1988 में पटियाला में पार्किंग को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें एक बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी। आरोप है कि सिद्धू और गुरनाम सिंह के बीच हाथापाई भी हुई थी। पुलिस ने इस घटना में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह सिद्धू के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एक रुपये का जुर्माना लगाकर उन्हें बरी कर दिया था। पीड़ित पक्ष ने इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी।

सभी पक्षों को अपनी दलीलें दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ रोड रेज के मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद अभी अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस याचिका में मामले में नोटिस के दायरे को बढ़ाने की मांग की गई है। नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “यह नकारात्मक अर्थों में एक असाधारण मामला है, जिसे इस अदालत द्वारा नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह प्रक्रिया का दुरुपयोग है।” वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले सभी पक्षों को अपनी दलीलें दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है।

नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी
शीर्ष अदालत को सिंघवी ने कहा कि यह 1988 को हुई 34 साल पुरानी घटना है। अदालतें सजा के निलंबन के लिए कई मामलों को देखती हैं, लेकिन यह एक ऐसा मामला है जहां सुप्रीम कोर्ट का एक विस्तृत तर्कपूर्ण निर्णय है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषसिद्ध को निलंबित करने का विस्तृत तर्कपूर्ण आदेश दुर्लभ है।” मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस एसके कौल ने कहा, ‘लेकिन यह कैसे प्रासंगिक है? हमारे सामने एकमात्र सीमित मुद्दा यह है कि क्या हमें उस प्रावधान पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है जिसके तहत सजा दी गई थी।

गैर इरादतन हत्या के केस में पांच जज पहले दे चुके हैं अपनी राय
इस पर सिंघवी ने कहा, ‘इस गैर इरादतन हत्या के इस मामले में अब तक पांच जजों ने अपनी राय दी है। इस मामले में न्यायाधीशों द्वारा पहले पाई गई कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए। कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी, कोई मकसद नहीं था और जमानत के उल्लंघन का कोई मामला नहीं था। यह अत्यधिक संदिग्ध है कि चोट के कारण मौत हो सकती है। किसी भी स्तर पर सहयोग की कोई कमी नहीं थी। सिंघवी ने तर्क दिया कि “यह एक समीक्षा की समीक्षा है। समीक्षा याचिका नहीं। नोटिस बहुत सीमित पहलू पर जारी किया गया था। अब यदि शीर्ष कोर्ट इससे पहले दिए हाई कोर्ट के फैसले की ओर जाती है तो सिद्धू की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

 

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