‘एक समय भारत वैश्विक मुद्दों पर मूक दर्शक हुआ करता था। आज जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। भारत आज ग्लोबल एजेंडा तय करता है।’ संसद में मोदी सरकार की विदेश नीति पर कांग्रेस द्वारा सवाल उठाये जाने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ये करारा जवाब दिया। आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है? आइए इसकी पड़ताल करते हैं।
डोकलाम पर असहाय दिख रहा है चीन
चीन का आरोप है कि भारत पिछले डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय से उसकी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। जरा सोचिए आज से कुछ साल पहले तक इस बात की कल्पना भी की जा सकती थी कि चीन भारत पर उसकी जमीन कब्जाने का आरोप लगाए और भारत के खिलाफ कुछ भी न कर सके। दरअसल ये मोदी सरकार की रणनीति का नतीजा है चीन असहाय होता जा रहा है। आज डोकलाम के मुद्दे पर पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा है।
डोकलाम मामले में चीन ने भले ही विश्व के राजनयिकों को आगाह कर दिया है कि भारत को वह समझाए, लेकिन चीन का यह दांव उल्टा पड़ गया है। चीन के सीधे युद्ध की धमकी पर पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी है। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
भारत की ताकत को चीन ने किया महसूस
चीन के प्रति जिस तरह का आक्रामक रुख भारत ने इस बार अख्तियार कर रखा है वैसा पहले कभी नहीं दिखा। चीन ने भूटान की सीमा में पड़ने वाले डोकलाम के हिस्से में सड़क निर्माण शुरू किया था। इससे भारत की संप्रभुता भी खतरे में पड़ सकती थी…इसलिए भारत ने ना सिर्फ चीन की इस हिमाकत का कड़ा विरोध किया…बल्कि चीन के नापाक इरादों पर पानी फेरने के लिए भारतीय सैनिक भी मोर्चे पर जा डटे। अब चीन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है। शायद वो ये बात भूल गया कि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उभर रहा ताकतवर भारत है जो किसी भी तरह के दबाव में नहीं आने वाला है। भारत के रुख से चीन को अपने चकनाचूर होने की भयावह तस्वीरों का आभास होने लगा है। पहली बार चीन भारत के सामने खुद को पस्त पा रहा है।
चीन पाकिस्तान कॉरिडोर
चीन की अहम वन बेल्ट वन रोड की रणनीति के तहत बनने वाले चीन पाकिस्तान कॉरिडोर में भारत के साथ मामला उलझ गया है। भारत ने चीन से दो टूक शब्दों में कह दिया है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरने वाली इस परियोजना से भारत की संप्रभुता पर प्रश्न खड़ा करती है। भारत में चीन के राजदूत लीयूचेंग ने आधिकारिक रूप से कहा कि इस कॉरिडोर का नाम भारत पाकिस्तान चीन कॉरिडार किया जा सकता है, जिससे भारत की संप्रभुता वाली शंका का समाधान किया जा सकता है।
पाक पड़ा अलग- थलग
जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैठ को तबाह किया। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका।
शांति की पहल को दुनिया की सराहना
भारत विश्व शांति का सबसे बड़ा पैरोकार रहा है। यूनाइटेड नेशन ने भी माना है कि इस दिशा में भारत का प्रयास अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। लेकिन सब जानते हैं कि भारत की शांति की पहल को पाकिस्तान हमेशा नकारता रहा है। बावजूद इसके पीएम मोदी ने अपनी तरफ से हर कोशिश की कि पाकिस्तान भारत के साथ सहयोग की मुख्यधारा में रहे। 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री जब लाहौर पहुंच गए तो दुनिया ने देखा कि पीएम मोदी ने शांति की पहल की। 26 मई 2014 को जब पीएम मोदी ने सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रण भेजा था तो ये पड़ोसी देशों के साथ शांति और सहयोग की पहल ही थी। हालांकि पाकिस्तान अब भी शांति की राह में रोड़ा बना हुआ है।
सार्क सैटेलाइट से पाक पर चोट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरुरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।
अरब कूटनीति
भारत की सशक्त विदेश नीति ने चीन और पाकिस्तान की खतरनाक जुगलबंदी को तोड़ने के लिए वियतनाम, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और अन्य देशों को अपने पक्ष में लामबंद कर चक्रव्यूह तैयार कर लिया है। इस साल 2017 के गणतंत्र दिवस समारोह के लिए अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान को मुख्य अतिथि बनाकर एक अहम कूटनीतिक चाल चली जिससे पाकिस्तान के होश उड़ गये। यूएई, सऊदी अरब और पाकिस्तान ही ऐसे तीन देश थे जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को मान्यता दी थी। अब इन सभी से भारत के अच्छे रिश्ते बन गए हैं।
आतंक पर पूरी दुनिया का समर्थन
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है।
भारत कर सकता है दुनिया का नेतृत्व
यह मोदी सरकार की विदेश नीति का ही कमाल है कि जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा चुका है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई ऐसे प्रयास किये हैं जिनके चलते अब ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े मुद्दे पर उसके लीड करने की उम्मीद काफी बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ जिसमें 121 देश शामिल हैं।
मोदी सरकार की विदेश नीति के कारण आपदा प्रबंधन से कई देशों के साथ संबंध और मजबूत हुए हैं।
मालदीव के लोगों की प्यास बुझाई
दिसंबर 2014 में मालदीव का वाटर प्लांट जल गया, जिससे पूरे देश में पीने के पानी की किल्लत हो गई। पूरे देश में त्राहिमाम मच गया और आपातकाल की घोषणा कर दी गई। तब भारत ने पड़ोसी का फर्ज अदा किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्वरित फैसला लिया। मालदीव को पानी भेजने का निर्णय कर लिया गया और इंडियन एयर फोर्स के 5 विमान और नेवी शिप के जरिये पानी पहुंचाया जाने लगा।
नेपाल भूकंप में राहत का अद्भुत उदाहरण
25 अप्रैल 2015 को नेपाल की धरती में हलचल हुई और आठ हजार से ज्यादा जानें एक साथ काल के गाल में समा गईं। जान के साथ अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ सो अलग। हलचल नेपाल में हुई लेकिन दर्द भारत को हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई और नेपाल के लिए भारत की मदद के द्वार खोल दिए। नेपाल में जिस तेजी से मदद पहुंचाई गई वो अद्भुत था। भारतीय आपदा प्रबंधन की टीम ने हजारों जानें बचाईं। सबसे खास रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय का नेपाल सरकार से बेहतरीन समन्वय रहा। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल की पूरे विश्व ने सराहना की।
यमन और खाड़ी देशों में राहत कार्य
जुलाई 2015 में यमन गृहयुद्ध की चपेट में था और सुलगते यमन में पांच हजार से ज्यादा भारतीय फंसे हुए थे। बम गोलों और गोलियों के बीच हिंसाग्रस्त देश से भारतीयों को सुरक्षित निकालना मुश्किल लग रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुशल नेतृत्व और विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह के सम्यक प्रबंधन और अगुवाई ने कमाल कर दिया। भारतीय नौसेना, वायुसेना और विदेश मंत्रालय के बेहतर समन्वय से भारत के करीब पांच हजार नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया वहीं 25 देशों के 232 नागरिकों की भी जान बचाने में भारत को कामयाबी मिली। इस सफलता से भारत ने विश्वमंच पर अपना लोहा मनवाया ।
अफगानिस्तान में भूकंप में राहत
अक्टूबर 2015 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान में 7.5 तीव्रता के भूकंप से करीब 300 लोगों की मौत हो गई। पीएम मोदी ने तत्काल दोनों देशों को मदद की पेशकश की। अफगानिस्तान में भारतीय राहत टीम को बिना देर किए रवाना किया गया और मलबे में फंसे सैकड़ों लोगों को निकालने में सफलता पायी।
सऊदी अरब में फंसे हजारों भारतीयों को निकाला
सऊदी अरब में गलत हाथों में जाकर फंसे करीब 20 हजार भारतीय तीन महीने के भीतर अपने वतन वापस लौट पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयास से सऊदी अरब सरकार ने भारतीयों को 90 दिन के लिए ‘राजमाफी’ दी।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
21 जून, 2015- ये वो तारीख है जो स्वयं ही एक यादगार तिथि बनकर इतिहास का हिस्सा बन गई है। इसी दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आगाज हुआ और पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने लगा। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को जब 193 ने अपना समर्थन दिया ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसके साथ ही 177 देशों ने इसका सह-प्रायोजक बनना स्वीकार किया। सबसे खास ये रहा कि इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 75 दिन में ही पूर्ण बहुमत से पारित कर दिया गया। ये संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी प्रस्ताव के पारित होने का सबसे कम समय है।
हिंदी बोल रहे हैं विदेशी नेता
भारतीय विदेश नीति का यह असर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी जाते हैं विदेशी नेता उनकी अगवानी में ना सिर्फ पलक-पांवड़े बिछा देते हैं बल्कि हिंदी बोलने और लिखने लगते हैं। जॉन रूट से लेकर बेंजामिन नेतन्याहू तक सब हिंदी में पीएम मोदी से मुलाकात की शुरुआत कर रहे हैं।
नीदरलैंड्स में पधारने के लिए धन्यवाद @narendramodi हम आने वाले वर्षों में हमारे सतत सहयोग के लिए तत्पर हैं। pic.twitter.com/bi9EzwQQTt
— Minister-president (@MinPres) June 27, 2017