कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी शुक्रवार को राजस्थान के संचोर और गुजरात के बनासकांठा पहुंचे। मौका था बाढ़ पीड़ितों से मिलने का।… आप हैरान हो रहे होंगे कि राहुल गांधी की बाढ़ पीड़ितों से मुलाकात को ‘मौका’ क्यों कहा जा रहा है? दरअसल बीते कुछ वर्षों में राहुल गांधी के राजनीतिक आचरण को देखें तो यह साफ है कि उन्हें संवेदनशील दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है। कांग्रेस का थिंक टैंक ‘मौके’ की तलाश में रहता है कि उन्हें संवेदनशील दिखाया जा सके। गरीबों के प्रति राहुल गांधी सहानुभूति रखते हैं, उनके दुख दर्द को भलि भांति समझते हैं, यह लोगों को समझाया जा सके। चाहे वह कलावती से मिलने की कहानी हो या किसानों के आंदोलन से जुड़ने का अवसर, या फिर बाढ़ पीड़ितों के दर्द को जानने की नौटकी क्यों न हो? राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने अपनी संवेदनहीन सियासत का कई मौकों पर प्रदर्शन किया है।
बाढ़ पीड़ितों की याद आ ही गई…
गुजरात में बनासकांठा सहित दस जिले बाढ़ से बेहाल है। 200 से अधिक लोग काल के गाल में समा गए हैं। गुजरात के सीएम विजय रुपानी दिन रात एक कर लोगों की सेवा में तत्पर हैं। भाजपा के मंत्री, विधायक और सरकारी अमला स्थिति को सामान्य बनाने को तत्पर है। पीएम मोदी ने भी बीते 26 जुलाई को गुजरात का दौरा किया और 500 करोड़ के पैकेज की घोषणा भी कर दी। लेकिन राहुल गांधी की नींद शुक्रवार यानि 4 अगस्त को खुली है। बाढ़ पीड़ितों के प्रति राहुल गांधी कितने संवेदनशील हैं यह इस बात से जाहिर होता है। साफ है कि राहुल गांधी के लिए यह एक मौका है अपनी संवेदनशीलता दिखाने का।
Apka hak banta hai, apko compensation milna chahiye, aapki ladai hum ladenge: Congress Vice President Rahul Gandhi in Assam’s Lakhimpur pic.twitter.com/d9Lusm7lPB
— ANI (@ANI_news) August 3, 2017
हक की बात इतनी देर से याद आई…
”असम में बाढ़ आई है और मैंने सोचा कि मुझे आपसे मिलने, आपका दर्द सुनने और स्थिति समझने के लिए जरुर आना चाहिए। मैं मुआवजे के लिए लड़ूंगा, यह आपका अधिकार है।” राहुल गांधी ने ये बातें असम के लखीमपुर के बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरे के वक्त कही। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मुद्दे को संसद में भी उठाएंगे। राहुल गांधी की संवेदनहीनता की झलक इस बात से साफ दिखती है कि पीएम मोदी ने एक अगस्त को ही पूर्वोत्तर को 2350 करोड़ के पैकेज का एलान कर दिया है। एक दिन पहले ही बाढ़ पीड़ितों के लिए मुआवजे का भी एलान कर दिया था। फिर राहुल गांधी कौन सा मुद्दा संसद में उठाएंगे? जाहिर है राहुल ने इसे एक ‘मौका’ समझा है और उनकी नींद अभी-अभी खुली है!
कांग्रेस विधायकों को करवा रही मस्ती
कांग्रेस की संवेदनहीनता को इससे भी समझा जा सकता है कि गुजरात बाढ़ के कहर के कराह रहा है, लेकिन कांग्रेस अपने विधायकों को कर्नाटक में मौज-मस्ती करवा रही है। राज्यसभा की एक अदद सीट के लिए कांग्रेसी विधायकों को कर्नाटक के एक होटल में नजरबंद रखा गया है। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को जिताने के लिए कांग्रेस संवेदनहीन हो गई है। उसे यह फिक्र ही नहीं कि जिस गुजरात की जनता ने कांग्रेस को 58 विधायक दिये थे उसे कैसे बाढ़ में डूबने के लिए छोड़ा जा सकता है। द
कांग्रेस की संवेदनहीन सियासत
बेंगलुरु के आलीशान रिजॉर्ट में अय्याशी कर रहे 44 कांग्रेसी MLA गुजराती खाने को बहुत ज्यादा मिस कर रहे हैं। ईगल टॉन गोल्फ रिजॉर्ट में उन्हें साउथ इंडियन डिश परोसा जा रहा है, जिससे उनकी मस्ती का सारा मजा किरकिरा हो जा रहा है। अगर खाने को छोड़ दें तो शायद उन कांग्रेसियों को अपने गुजरात की याद बिल्कुल भी नहीं आ रही है। जबकि उनका राज्य गुजरात इस समय भयंकर बाढ़ की चपेट में है। जाहिर है गुजरात की जनता बाढ़ में डूब रही है और कांग्रेस के विधायक रिजॉर्ट के स्वीमिंग पुल में तैराकी का आनंद उठा रहे हैं। गुजरात की जनता त्राहिमाम कर कर रही है, लेकिन कांग्रेसी विधायक कर्नाटक में खूब छन कर फरमाइसी स्वादिष्ट भोजन का मजा ले रहे हैं।
मंदसौर में किसानों को छोड़ भाग गए थे राहुल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जून के पहले पखवाड़े में पुलिस फायरिंग में मारे गए किसानों के परिजनों से मिलने के लिए मंदसौर गए थे। दिल्ली वापिस लौटते हुए उन्होंने उदयपुर में किसानों से मुलाकात की थी और कहा था कि वे केंद्र की मोदी सरकार से उनके हक की लड़ाई लड़ेंगे। लेकिन सबकुछ बीच में छोड़कर राहुल अपनी नानी के घर छुट्टियां मनाने चले गए। देश में किसान आंदोलन भड़की हुई आग के बीच कांग्रेस के युवराज का यूं विदेश चले जाने से किसान आहत हुए। दरअसल उनके विदेश दौरे के दौरान ही 19 जून यानि राहुल का जन्मदिन था। बहरहाल किसानों को यूं मझधार में छोड़ जाना राहुल और कांग्रेस की फितरत बताता है।
Will be travelling to meet my grandmother & family for a few days. Looking forward to spending some time with them!
— Office of RG (@OfficeOfRG) June 13, 2017
जरूरत के वक्त ‘रणछोड़’ हैं राहुल !
एक नजर राहुल के उन दौरे पर जब भारत अहम मुद्दों से जूझ रहा था और कांग्रेस उपाध्यक्ष विदेश निकल गए
-16 दिसम्बर 2012 को हुए निर्भया रेप और हत्या मामले में दिल्ली और देशभर में छिड़े आंदोलन के बीच भी राहुल विदेश दौरे पर थे। तब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी।
-भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्संस्थापन (संशोधन) विधेयक 2015 के लोकसभा द्वारा 10 मार्च, 2015 को पारित होने के समय भी वह संसद में मौजूद न रहकर विदेश दौरे पर थे।
-दादरी में 28 सितंबर 2015 को अखलाक की हत्या मामले पर जब पूरे यूपी में सियासी बवाल मचा हुआ था तब भी राहुल भारत में मौजूद नहीं थे।
-साल 2016, नवंबर में नोटबंदी के समय भी वह बीच में ही विदेश दौरे पर निकल गए थे।
फजीहत के डर से आई बाढ़ पीड़ितों की याद
पूर्वोत्तर और गुजरात में बाढ़ से त्राहिमाम है दूसरी तरफ राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है। इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष के अचानक बाढ़ग्रस्त इलाकों में निकलने के साथ ही कई सवाल भी खड़े होने लगे हैं। विधायकों को जनता से दूर किया और अब सिर्फ मीडिया को अपना चेहरा दिखाने पूर्वोत्तर और गुजरात का दौरा किया। क्या राहुल को यह नहीं पता है कि पीएम मोदी पूर्वोत्तर और गुजरात के हालात का जायजा भी ले चुके हैं और क्रमश: 2350 और 500 करोड़ के राहत पैकेज का एलान भी कर दिया है। जाहिर है ज्ञानशून्य और संवेदनशून्य व्यक्ति को तो लोगों के दर्द में सियासत ही दिखेगी… सहानुभूति नहीं।