रूस की खुफिया एजेंसी KGB के दस्तावेजों को संभालने वाले वैसिली मित्रोखिन ने 1992 में ब्रिटेन में शरण ली थी। वह अपने साथ KGB की फाइलों का जखीरा भी ले गए। इन्हीं दस्तावेजों के आधार कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू ने दो किताबें लिखीं। 2005 में आई किताब ‘द मित्रोखिन आर्काइव II’ ने भारत के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे किए। किताब के अनुसार, भारत में नेता से लेकर नौकरशाह तक, सब के सब पैसे के लिए देश के हितों से समझौता करने को तैयार थे। इंदिरा गांधी को सूटकेसों में भरकर पैसे दिए जाते थे वहीं केजीबी के मार्फत इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेसी नेताओं एवं मंत्रियों को भी पैसा दिया जाता था। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस के 40 फीसदी सांसदों को सोवियत संघ से पैसा मिला करता था। मित्रोखिन आर्काइव के दस्तावेजों की माने तो 1947-84 की अवधि में भारत में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे पैसे के बल पर खरीदा न जा सकता हो। कितनी दुखद बात है कि केजीबी ने भारत के केंद्रीय मंत्रियों को मुंहमांगी कीमत देकर खुफिया जानकारियां खरीदीं। उस वक्त के केजीबी जनरल ओलेग कलुगिन ने मित्रोखिन से कहा था, ‘ऐसा लगता है कि मानो पूरा भारत बिकने को तैयार है।’ कांग्रेस के चरित्र को गहराई से समझें तो यह बात सच ही लगती है क्योंकि कांग्रेस पार्टी आज के समय में भी भारत के दुश्मन देश चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से समझौते करती है।
Neither Nehru nor the IB, however, realized how thoroughly the Indian embassy in Moscow was being penetrated by the KGB, using its usual varieties of Honey Trap
1950s, with the help of a female swallow, codenamed NEVEROVA, who presumably seduced Indian diplomat codenamed PROKHOR pic.twitter.com/Qv8ha8saFo
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मॉस्को में भारतीय दूतावास में चल रहा था हनी ट्रैप
KGB ने नेहरू के दौर से ही भारत पर अपनी पकड़ बना ली थी। हालांकि, न तो नेहरू और न ही आईबी को यह एहसास हुआ कि मॉस्को में भारतीय दूतावास में हनी ट्रैप की कहानी को अंजाम दिया जा रहा है और KGB की घुसपैठ बढ़ रही है। 1950 के दशक में नेवरोवा कोडनेम वाली एक महिला ने प्रोखोर कोडनेम वाले भारतीय राजनयिक को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।
In May 1962 the Soviet Presidium authorized the KGB residency in New Delhi to conduct active-measures operations to strengthen Menon's position & enhance his personal popularity
During Menon's tenure India's main source of arms imports switched from the West to the Soviet Union. pic.twitter.com/n3AxSGCUDU— ???? ????????? (@TheRudra1008) January 16, 2023
वीके कृष्ण मेनन के दौर में रूस से हथियारों का आयात बढ़ा
मई 1962 में सोवियत संघ ने वीके कृष्ण मेनन की स्थिति को मजबूत करने और उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में केजीबी को अधिकृत किया। मेनन के कार्यकाल के दौरान भारत के हथियारों के आयात का मुख्य स्रोत पश्चिम से सोवियत संघ में बदल गया।
Later on KGB was in Not in contact with either Nanda or Shastri.
Moscow's main reason for supporting them was, almost certainly, negative rather than positive – to prevent the right-wing Hindu traditionalist Morarji Desai
Then it was Indira Gandhi (codenamed VANO by the KGB) pic.twitter.com/6SX9w784Nk
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केजीबी ने इंदिरा गांधी को कोडनेम VANO दिया
बाद के समय में केजीबी नंदा या शास्त्री के संपर्क में नहीं था। मॉस्को ने उस समय इनका समर्थन इसलिए किया कि जिससे दक्षिणपंथी हिंदू परंपरावादी मोरारजी देसाई को रोका जा सके। उसके बाद केजीबी ने इंदिरा गांधी को साधना शुरू कर दिया। केजीबी ने इंदिरा गांधी को कोडनेम VANO दिया था।
Later on KGB was in Not in contact with either Nanda or Shastri.
Moscow's main reason for supporting them was, almost certainly, negative rather than positive – to prevent the right-wing Hindu traditionalist Morarji Desai
Then it was Indira Gandhi (codenamed VANO by the KGB) pic.twitter.com/6SX9w784Nk
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1967 के चुनाव में केजीबी का प्रभाव
फरवरी 1967 के चुनावों के बाद, केजीबी ने दावा किया कि वह नई संसद के 30 से 40 प्रतिशत को प्रभावित करने में सक्षम था। इससे पता चलता है कि इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेस के 40 फीसदी सांसदों को सोवियत संघ से पैसा मिला था।
leading figure in the Congress Forum for Socialist Action was recruited in 1971 as Agent RERO and paid about 100,000 rupees a year for what the KGB considered important political intelligence as well as acting as an agent recruiter. pic.twitter.com/K7TTcD0PX8
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1971 में कांग्रेस फोरम के प्रमुख चेहरों को खुफिया जानकारी के लिए 1 लाख रुपये दिए गए
सोशलिस्ट एक्शन के लिए कांग्रेस फोरम के प्रमुख चेहरों को 1971 में एजेंट RERO के रूप में भर्ती किया गया था और केजीबी ने एजेंट भर्तीकर्ता के रूप में कार्य करने के साथ-साथ केजीबी को महत्वपूर्ण राजनीतिक खुफिया जानकारी के लिए प्रति वर्ष लगभग 100,000 रुपये का भुगतान किया था।
In the early 1970s, the KGB presence in India became one of the largest in the world outside the Soviet bloc
Indira Gandhi placed no limit on the number of Soviet diplomats and trade officials, thus allowing the KGB and GRU as many cover positions as they wished. pic.twitter.com/YUo4tQ9YJG
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इंदिरा गांधी ने सोवियत राजनयिकों की संख्या पर कोई लगाम नहीं रखी
1970 के दशक की शुरुआत में भारत में केजीबी की उपस्थिति सोवियत ब्लॉक के बाहर दुनिया में सबसे बड़ी उपस्थिति बन गई थी। इंदिरा गांधी ने सोवियत राजनयिकों और व्यापार अधिकारियों की संख्या पर कोई सीमा नहीं रखी। इस प्रकार केजीबी को खुली छूट मिल गई और उन्हें अपनी इच्छानुसार कई कवर पदों की अनुमति दी गई।
Suitcases full of bank notes were said to be routinely taken to the Prime Minister Indira Gandhi's house. Former Syndicate member S. K. Patil is reported to have said that Mrs Gandhi did not even return the suitcases. pic.twitter.com/pFz8PcXxMT
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इंदिरा गांधी को मिलते थे नोटों से भरे सूटकेस
कहा जाता है कि नोटों से भरे सूटकेस नियमित रूप से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घर ले जाया जाता था। बताया जाता है कि पूर्व सिंडीकेट सदस्य एस.के. पाटिल ने कहा था कि इंदिरा गांधी ने सूटकेस कभी वापस नहीं किए।
'The KGB residency in India has the opportunity to organize a protest demonstration of up to 20,000 Muslims in front of the US embassy in India.
The cost of the demonstration would be 5,000 rupees and would be covered in the… budget for special tasks in India. pic.twitter.com/f1vXZlUzT0
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अमेरिकी दूतावास के सामने 20,000 मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन की योजना
भारत में केजीबी रेजिडेंसी के पास भारत में अमेरिकी दूतावास के सामने 20,000 मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने का अवसर है। प्रदर्शन की लागत 5,000 रुपये होगी और इसे बजट में भारत में विशेष कार्यों के लिए शामिल किया जाएगा।
In April 1971, two months after Mrs Gandhi's landslide election victory, the Politburo approved the establishment of a secret fund of 2.5 million convertible rubles (codenamed DEPO) to fund active-measures operations in India over the next four years. pic.twitter.com/qf8LxrjjAL
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भारत के लिए रूस में 2.5 मिलियन रूबल का गुप्त कोष
अप्रैल 1971 में, इंदिरा गांधी की भारी चुनावी जीत के दो महीने बाद, पोलित ब्यूरो ने अगले चार वर्षों में भारत में सक्रिय उपायों के संचालन के लिए 2.5 मिलियन परिवर्तनीय रूबल (कोड नाम DEPO) के एक गुप्त कोष की स्थापना को मंजूरी दी।
Reports from the New Delhi main residency, headed from 1975 to 1977 by Leonid Shebarshin, claimed (probably greatly exaggerated) credit for using its agents of influence to persuade Mrs Gandhi to declare the emergency. pic.twitter.com/3cDEgzSTbx
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क्या आपातकाल लागू करवाने में थी रूस की भूमिका
1975 से 1977 तक लियोनिद शेबर्शिन की अध्यक्षता वाली नई दिल्ली मुख्य रेजीडेंसी की रिपोर्टों ने इंदिरा गांधी को आपातकाल घोषित करने के लिए राजी करने के लिए अपने प्रभाव के एजेंटों का उपयोग करने का श्रेय (शायद अतिशयोक्तिपूर्ण) होने का दावा किया।
To ensure success it mounted a major operation, codenamed KASKAD, involving over 120 meetings with agents during the 1977 election campaign. Nine of the Congress (R) candidates at the 1977 elections were KGB agents. pic.twitter.com/F7BBQ3g8VI
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1977 के चुनावों में कांग्रेस (आर) के नौ उम्मीदवार केजीबी एजेंट थे
सफलता सुनिश्चित करने के लिए इसने 1977 के चुनाव अभियान के दौरान एजेंटों के साथ 120 से अधिक बैठक किए और एक अभियान चलाया, जिसका नाम KASKAD रखा गया था। 1977 के चुनावों में कांग्रेस (आर) के नौ उम्मीदवार केजीबी एजेंट थे।
During 1975, a total of 10.6 million roubles was spent on active measures in India designed to strengthen the support for Mrs Gandhi & undermine her political opponents.
Picture : THE GREAT BEAR HUG: Mrs Indira Gandhi with Leonid Brezhnev in Delhi pic.twitter.com/kjsaugZCM2
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इंदिरा गांधी के समर्थन के लिए 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए गए
1975 के दौरान इंदिरा गांधी के समर्थन को मजबूत करने और उनके राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए भारत में सक्रिय उपायों पर कुल 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए गए थे। (चित्र: द ग्रेट बियर हग: इंदिरा गांधी दिल्ली में लियोनिद ब्रेझनेव के साथ)
By 1973, the KGB had 10 Indian newspapers on its payroll plus a press agency. During 1975 the KGB planted 5,510 articles in Indian newspapers.
Just Imagine How Our Country was during this Period of Congress Ruling
Source : The Mitrokhin Archive II written by Vasili Mitrokhin pic.twitter.com/eA3yU1zOMW
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केजीबी के पेरोल पर 10 भारतीय समाचार पत्र और एक प्रेस एजेंसी
1973 तक, केजीबी के पेरोल पर 10 भारतीय समाचार पत्र और एक प्रेस एजेंसी थी। 1975 के दौरान केजीबी ने भारतीय अखबारों में 5,510 लेख छपवाए। कल्पना कीजिए कि कांग्रेस शासन के इस दौर में हमारा देश कैसा था।
द मित्रोखिन आर्काइव II में भारत के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे
द मित्रोखिन आर्काइव II में भारत को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए गए। जिसमें कहा गया कि केजीबी के इंदिरा गांधी और कांग्रेस के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध थे। केजीबी इंदिरा गांधी को चुनाव जिताने के लिए हर संभव सहयोग किया करती थी। शीत युद्ध के जमाने में कम्युनिस्ट देश भारत में साम्यवाद के फैलाव के लिए पैसे खर्च कर रहे थे। इस किताब की माने तो केजीबी भारत की आतंरिक राजनीति में इनवाल्व थी। द मित्रोखिन आर्काइव II के अनुसार, ‘इंदिरा गांधी की पिछली सरकार में कांग्रेस के लगभग 40 पर्सेंट सांसदों को सोवियत संघ से राजनीतिक चंदा मिला था। केजीबी ने 1970 के दशक में पूर्व रक्षा मंत्री वी के मेनन के अलावा चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों के चुनाव प्रचार के लिए फंड दिया था। केजीबी ने भारत के केंद्रीय मंत्रियों को मुंहमांगी कीमत देकर खुफिया जानकारियां खरीदीं। उस वक्त के केजीबी जनरल ओलेग कलुगिन ने मित्रोखिन से कहा था, ‘ऐसा लगता है कि मानो पूरा भारत बिकने को तैयार है।’ उन्होंने भारत की मिसाल देकर बताया था कि किस तरह दूसरे मुल्क में घुसपैठ की जा सकती है। रिपोर्ट सामने आने के बाद उस वक्त बीजेपी ने काफी हल्ला मचाया था। विदेश से पैसा लेने के मामले की जांच भी कराई गई थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट दबा दी गई। जब कुछ विपक्षी सांसदों ने इसे सार्वजनिक करने की मांग की तो तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने संसद में कहा कि जिन दलों और नेताओं को विदेशों से धन मिले हैं, उनके नाम जाहिर नहीं किए जा सकते, क्योंकि इससे उनके हितों को नुकसान पहुंचेगा।
केजीबी के सीक्रेट ऑपरेशन की जानकारी कैसे दुनिया को पता चली?
रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के दस्तावेजों को संभालने वाले वैसिली मित्रोखिन ने करीब 40 सालों तक केजीबी में काम किया। इस दौरान केजीबी द्वारा दुनियाभर में किए जाने वाले कोबर्ट और ब्लैक ऑपरेशन से जुड़े सभी टॉप डॉक्यूमेंट मित्रोखिन के पास ही आते थे जिन्हें वो आरकाइव करने का काम करते थे। इतने सालों तक केजीबी के टॉप सीक्रेट डॉक्यूमेंट्स को पढ़ते-पढ़ते धीरे-धीरे उनका मन कम्युनिस्ट विचारधारा और सोवियत यूनियन से उठने लगा। वैसिली मित्रोखिन ने 1992 में ब्रिटेन में शरण ली। वह अपने साथ छह ट्रक भरके केजीबी की फाइलों का जखीरा भी लाए। इसमें 1954 से लेकर 1990 के दशक तक केजीबी द्वारा अलग-अलग देशों में किए गए ऑपरेशन की डिटेल थी। इन्हीं दस्तावेजों के आधार कैंब्रिज के इतिहासकार क्रिस्टोफर एंड्रयू ने दो किताबें लिखीं- किताब ‘द मित्रोखिन आर्काइव I’ और ‘द मित्रोखिन आर्काइव II’ लिखी। इन किताबों में छपे रिपोर्ट्स ने इतनी सनसनी बचाई कि भारत, इटली और ब्रिटेन में तो संसदीय जांच भी बिठा दी गई।