प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से भारत की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत हो रही है। इसका ताजा उदाहरण है कि भारत का तेल उत्पादन नहीं के बराबर है लेकिन उसके बावजूद यूरोप को प्रतिदिन औसतन 3.60 लाख बैरल तेल की सप्लाई की। रूस से तेल खरीदकर यूरोप को बेचने के इस कारोबार से बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सफलता मिली। पीएम मोदी ने आपदा में अवसर तलाशने का विजन दिया था। भारत उसी नक्शेकदम पर चलते हुए रूस से तेल खरीदकर और उसे अपने यहां रिफाइन कर यूरोप को बेच रहा है। रूस-यूक्रेन संघर्ष के समय अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए और सभी देशों से रूस से तेल नहीं खरीदने का दबाव बनाया। यूरोप ने तेल खरीदना बंद कर दिया लेकिन भारत ने इस दबाव को ठेंगा दिखा दिया। पीएम मोदी के नेतृत्व में आज भारत का दबदबा दुनिया पर हर रोज बढ़ता जा रहा है। हाल ही में आए एनालिटिक्स फर्म केपलर (Kpler) के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं। केपलर के आंकड़ों के मुताबिक भारत अप्रैल 2023 में रिफाइंड ईंधन का यूरोप का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है, और इसके अलावा रूसी कच्चे तेल की भी रिकॉर्ड मात्रा खरीद रहा है। भारत से यूरोप का रिफाइंड ईंधन आयात प्रति दिन 3,60,000 बैरल से ऊपर जाने वाला है।
#India takes over as #Europe's top supplier of refined fuel, surpassing Saudi Arabia with 360,000 barrels/day exports!
India's strategy of buying crude from #Russia, refining it & exporting to Europe proves successful amidst ongoing Russia-Ukraine conflict & changing geopolitics pic.twitter.com/qcIwfkP0xa— Nabila Jamal (@nabilajamal_) May 2, 2023
यूरोप में रिफाइंड पेट्रोल उत्पादों का सबसे बड़ा सप्लायर बना भारत
भारत, यूरोप में रिफाइंड पेट्रोल उत्पादों का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है। रूसी तेल पर प्रतिबंध के बाद से भारतीय कच्चे तेल उत्पादों पर यूरोप की निर्भरता बढ़ती जा रही है। केपलर के डेटा से पता चलता है कि भारत से यूरोप का रिफाइंड ईंधन आयात प्रति दिन 3,60,000 बैरल से ऊपर जाने वाला है, जो कि सऊदी अरब से भी ज्यादा है।
भारत उठा रहा आपदा में अवसर का सुनहरा लाभ
भारत अभी तेज आर्थिक वृद्धि के दौर से गुजर रहा है। इस कारण भारत की ऊर्जा जरूरतें भी तेजी से बढ़ी हैं। अभी चीन और अमेरिका के बाद भारत कच्चा तेल का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। हर साल भारत कच्चा तेल खरीदने पर अपने विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा खर्च करता है। अभी युद्ध के चलते जब अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के ऊपर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो रूस ने डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचना शुरू कर दिया। भारत जैसे देशों ने इस अवसर को विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम करने और आयात का बिल घटाने के लिए हाथों-हाथ लिया। अभी कई भारतीय कंपनियां रूस से सस्ते में कच्चा तेल खरीद रही हैं। भारत आपदा में सुनहरा अवसर का लाभ उठाते हुए रूस से तेल खरीदकर उसे रिफाइन कर यूरोप को बेच रहा है।
भारत रूस के साथ ही सऊदी अरब और इराक से भी कच्चा तेल खरीद रहा
भारत फिलहाल रूस से 3,60,000 बैरल तेल की रोजाना खरीद कर रहा है। रूस के अलावा भारत सऊदी अरब और इराक से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीद रहा है। पूर्वी यूरोप में साल भर से भी ज्यादा समय से जारी जंग ने पूरी दुनिया पर असर डाला है। खासकर अर्थव्यवस्था और व्यापार के मामले में नए समीकरण उभर कर सामने आए हैं। यह संकट एक तरफ कई देशों के लिए खाने-पीने की चीजों की कमी का कारण बना है, दूसरी ओर कुछ देशों को फायदा भी हुआ है। भारत की ही बात करें तो जारी संकट के बीच अपना देश यूरोप के लिए ईंधन का सबसे बड़ा सप्लायर बनकर इसका लाभ उठाया है।
India became Europe’s largest supplier of refined fuel this month.
Our refined fuel exports to Europe are expected to increase to an estimated 360,000 barrels/day. pic.twitter.com/o6DSfZPdTV
— Indian Business Gurus (@IndBizGuru) May 2, 2023
यूरोप पहले रूस से तेल खरीदता था, अब भारत पर बढ़ी निर्भरता
फरवरी 2022 में रूस ने अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला किया था। उसके बाद से अब तक पूर्वी यूरोप में जंग जारी है। इस हमले के कारण अमेरिका और यूरोप की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने रूस के ऊपर आर्थिक पाबंदियां लगाई हैं, साथ ही रूस के साथ व्यापारिक ताल्लुकात कम किए हैं। यूरोप ईंधन के मामले में रूस पर निर्भर रहता आया है। बदले हालात में यूरोप ने रूस से रिफाइंड ईंधनों की खरीद बंद की है तो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर उसकी निर्भरता बढ़ी है।
यूरोप ने सऊदी अरब से भी ज्यादा भारत से खरीदे तेल
केपलर के आंकड़ों के अनुसार, यूरोप ने अप्रैल 2023 महीने के दौरान भारत से हर दिन औसतन 3.60 लाख बैरल से ज्यादा रिफाइंड फ्यूल की खरीद की। यह आंकड़ा सऊदी अरब से की गई औसत खरीद से ज्यादा है। रिफाइंड फ्यूल उन पेट्रोलियम उत्पादों को कहा जाता है, जिन्हें कच्चे तेल के परिशोधन के बाद तैयार किया जाता है। डीजल व पेट्रोल जैसे पारंपरिक ईंधन इसके उदाहरण हैं।
भारत को व्यापार के असंतुलन की खाई को पाटने में मदद मिली
व्यापार का यह आंकड़ा भारत के लिए अच्छा है, क्योंकि इससे निर्यात को तेज करने में और व्यापार के असंतुलन की खाई को पाटने में मदद मिल रही है। दूसरी ओर यूरोप के लिए यह विरोधाभास पैदा करता है, क्योंकि कहीं न कहीं रूस का भी कच्चा तेल रिफाइन होकर डीजल के रूप में भारत से उसके पास पहुंच रहा है। साफ शब्दों में कहें तो यूरोप ने भले ही रूस से सीधे तौर पर डीजल की खरीदारी रोक दी हो या बहुत कम कर दी हो, लेकिन अभी भी उसकी डीजल की खपत रूस के खजाने में मोटा पैसा पहुंचा रही है।
रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा भारत
यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोपीय देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। जिसकी वजह से वह रूस का कच्चा तेल नहीं खरीद रहे हैं। वहीं यूरोप की मार्केट के बंद होने के बाद रूस उसके कच्चे तेल की खरीद पर भारी छूट दे रहा है। यही वजह है कि भारत रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चे तेल की खरीद कर रहा है। फरवरी 2023 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बन गया था। फरवरी में भारत ने रूस से 3.35 बिलियन यूएस डॉलर का कच्चा तेल खरीदा और सऊदी अरब से 2.30 बिलियन यूएस डॉलर का। फिलहाल भारत अपनी जरूरत का 44 प्रतिशत तेल रूस से खरीद रहा है।
#India is becoming #Europe's largest supplier of fuel by buying record amounts of crude oil from #Russia at good prices and selling it back to Europe at much higher prices.
WHO IS THE FOOL? Bloomberg pic.twitter.com/NHAjGDMLUN— Mesmerizing ETHIOPIA (@MesmerizingETH1) April 29, 2023
यूरोप को हो रहा नुकसान, मोदी नीति से भारत को मोटा मुनाफा
पीएम मोदी की विदेश नीति से भारत को मोटा मुनाफा हो रहा है। भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार कर दिया और रूस से तेल खरीदना जारी रखा। प्रतिबंधों के चलते यूरोपीय यूनियन के देश रूस से सस्ता कच्चा तेल नहीं खरीद पा रहे हैं। एक तरफ तो वह महंगाई से जूझ रहे हैं, दूसरा उन्हें रिफाइंड पेट्रोल उत्पाद आयात करने पड़ रहे हैं। यूरोप में कई रिफाइनरी हैं लेकिन फिलहाल कच्चे तेल की कमी के चलते उन्हें अपना उत्पादन बंद करना पड़ा है। वहीं भारत में कई सरकारी और निजी रिफाइनरी कंपनियां हैं, जो कच्चे तेल को रिफाइंड करके अपने रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों को यूरोप के बाजार में सप्लाई कर रही हैं।
मोदी सरकार ने दोस्त को फायदा भी पहुंचाया और लाभ भी कमाया
रूस और यूक्रेन जंग के बाद से ही यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे में रूस से यूरोपीय देश कारोबार नहीं कर रहे हैं। इसका आर्थिक नुकसान रूस को उठाना पड़ रहा है। खासकर रूस से यूरोपीय देशों को जो कच्चा तेल निर्यात किया जाता था, वह भी जंग के बीच प्रतिबंध के कारण यूरोपीय देश नहीं खरीद रहे हैं। ऐसे में अपने दोस्त रूस को फायदा पहुंचाने और खुद भी लाभ कमाने के लिए भारत ने नई तरकीब निकाली है। वह रूसी तेल का कई गुना आयात बढ़ा चुका है। अब इसी रूसी कच्चे तेल को भारत की तेलशोधक कंपनियों ने प्रोसेस करके यूरोप को बेच दिया। जानिए भारत ने क्या कूटनीति बनाई। कौन था पहले सबसे बड़ा तेल आयातक देश। रूस से तेल आयात में पाकिस्तान भारत के मुकाबले कहां ठहरता है। भारतीय कंपनियों को तेल से मुनाफा होने के बाद भी पेट्रोल डीजल के दाम स्थिर क्यों रहे, जानिए सबकुछ।
अमेरिकी दबाव को ठेंगा दिखाकर भारत ने रूस से तेल खरीदा
यूक्रेन और रूस की जंग जो फरवरी 2022 में शुरू हुई थी। इसके बाद से ही भारत में रूसी कच्चे तेल का आयात काफी बढ़ गया है। भारत पहले इराक से सबसे ज्यादा तेल खरीदता था, लेकिन अब इराक को पछाड़कर रूस भारत को कच्चा तेल बेचने वाला सबसे बड़ा देश बन गया। भारत को अरब देश और इराक से भी सस्ते दामों में यह तेल रूस से मिल रहा है। लेकिन अमेरिका ने जंग के बीच भरसक कोशिश की। भारत पर दबाव भी डाला कि वह रूस से तेल न खरीदे, रूस पर जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, उसका भारत भी पालन करे। लेकिन अमेरिकी दबाव को ठेंगा दिखाकर भारत ने अपनी जरूरतों का हवाला देकर जंग की आपदा में कच्चे तेल के आयात को अवसर के रूप में देखा और रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात कर रहा है।
भारतीय रिफानरियों का उत्पादन और मुनाफा बढ़ा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जहाजों के ट्रैकिंग डेटा के आधार पर दावा किया जा रहा है कि भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी कच्चे तेल को प्रोसेस कर उसे यूरोप में निर्यात किया है। इसमें डीजल और जेट फ्यूल सबसे अधिक था। रूस अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों के कारण सीधे तौर पर यूरोपीय देशों को तेल का निर्यात नहीं कर पा रहा है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सस्ते रूसी कच्चे तेल तक भारतीय रिफानरियों की पहुंच ने उत्पादन और मुनाफे को बढ़ाया है। इससे भारतीय रिफाइनरियां रिफाइंड उत्पादों को यूरोप में निर्यात करने और बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा करने में सक्षम हुई हैं।
इराक को पछाड़कर रूस बना भारत के लिए नंबर वन तेल निर्यातक देश
कैपलर और वॉर्टेक्स के डेटा बताते हैं कि यूक्रेन से जंग से पहले भारत की तेलशोधक कंपनियां ट्रांसपोर्ट की लागत ज्यादा होने की वजह से रूस की बजाय इराक और अरब देश से तेल आयात को तवज्जो देती थी। इसलिए रूस से नहीं के बराबर ही कच्चा तेल खरीदती थी। लेकिन साल 2022 से 2023 के बीच रूस से रिकॉर्ड 9 लाख 70 हजार से 9 लाख 81 हजार बीपीडी कच्चे तेल का आयात किया गया। इस तरह भारत ने अपने कुल कच्चे तेल के आयात का पांचवा हिस्सा रूस से ही खरीदा। इस तरह इराक को पछाड़कर रूस भारत का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन गया। जंग में पूरी दुनिया ने भारत पर तेल न खरीदने का दबाव डाला, लेकिन भारत ने अपनी जरूरतों का हवाला दिया और बिना डरे, डंके की चोट पर रूस से कच्चे तेल का आयात कर रहा है।
भारतीय तेल कंपनियों को मुनाफा, पेट्रोल-डीजल के भाव स्थिर रहे
भारतीय तेल कंपनियों को जब से रूस से कच्चे तेल का आयात किया जा रहा है, तब से तगड़ा मुनाफा हुआ है। लेकिन पेट्रोल और डीजल के दाम सस्ते न करते हुए स्थिर बने हुए हैं। इसका कारण यह है कि कोरोनाकाल में और जंग से पहले भारतीय तेल कंपनियों को जो घाटा सहना पड़ा था। उसकी भरपाई हुई है और जहां पूरी दुनिया में महंगाई से हाहाकर मचा हुआ है, कई अच्छे अच्छे देशों की इकोनॉमी डावांडोल हो रही है, ऐसे में भारत ने दूसरे देशों की तुलना में महंगाई पर कुछ हद तक नियंत्रण किया और इकोनॉमी को भी अन्य देशों से अच्छी तरह संभाला है। यही कारण है कि पेट्रोल डीजल के भाव स्थिर रहे।
रूस से तेल लेने पर पश्चिम उठाता रहा सवाल
केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत में रूसी कच्चे तेल का इंपोर्ट अप्रैल 2023 में एक दिन में 2 मिलियन बैरल से अधिक होने की उम्मीद है, जो देश के कुल तेल आयात का लगभग 44 प्रतिशत है। रूस के सस्ती दरों पर तेल देना शुरू करने के बाद रूस 2022-23 (FY23) में पहली बार भारत के लिए एक प्रमुख सप्लायर के रूप में उभरा है। हालांकि यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस से भारत के आयात पर पश्चिम देशों ने कई बार सवाल उठाए। पश्चिम के सवालों पर भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि वह ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है।
रूस से कच्चे तेल का आयात 3.35 अरब डॉलर के पार
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, रूस 60 डॉलर प्रति बैरल की पश्चिमी कीमत कैप के बावजूद फरवरी 2023 में भारत में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक था। फरवरी में रूस से कच्चे तेल का आयात 3.35 अरब अमेरिकी डॉलर का था, इसके बाद सऊदी अरब 2.30 अरब अमेरिकी डॉलर और इराक 2.03 अरब अमेरिकी डॉलर था। पश्चिमी देशों द्वारा रखा गया रेट कैप रूसी तेल की कमाई को सीमित करने के लिए निर्धारित किया गया था, जबकि वैश्विक कीमत के झटके से बचने के लिए तेल की सप्लाई भी बनाए रखनी थी।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश दिन-प्रतिदिन नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर लगातार तरक्की की राह पर है। आंकड़ों पर एक नजर-
Great news for the Indian economy! Rising tax collection despite lower tax rates shows the success of how GST has increased integration and compliance. https://t.co/xf1nfN9hrG
— Narendra Modi (@narendramodi) May 1, 2023
जीएसटी कलेक्शन: लागू होने के बाद से अब तक का रिकॉर्ड संग्रह
वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी कलेक्शन अप्रैल, 2023 में 1.87 लाख करोड़ रुपये रहा जो अब तक का रिकॉर्ड है। यह पिछले साल अप्रैल 2022 के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक है। जीएसटी देश में पहली बार 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया था। तब से पिछले 6 साल में पहली बार रिकॉर्ड जीएसटी का कलेक्शन हुआ है। लागू होने के बाद से पहली बार सकल जीएसटी संग्रह 1.75 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। वित्त मंत्रालय के अनुसार अप्रैल, 2023 के महीने में कुल जीएसटी कलेक्शन 1,87,035 करोड़ रुपये रहा, जिसमें सीजीएसटी 38,440 करोड़ रुपये, एसजीएसटी 47,412 करोड़ रुपये, आईजीएसटी 89,158 करोड़ रुपये और उपकर 12,025 करोड़ रुपये है।
प्रत्यक्ष कर संग्रह 17.63 प्रतिशत बढ़कर 16.61 लाख करोड़ रुपये पर
मोदी सरकार की नीतियों के कारण नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन वित्त वर्ष 2022-23 में 16.61 लाख करोड़ रुपये का रहा है। यह पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में हुए 14.12 लाख करोड़ रुपये के संग्रह से 17.63 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2022-23 में प्रत्यक्ष करों का ग्रोस कलेक्शन (अनंतिम) रिफंड का समायोजन करने से पहले 19.68 लाख करोड़ रुपये का रहा है, जो कि वित्त वर्ष 2021-22 में हुए 16.36 लाख करोड़ रुपये के सकल संग्रह से 20.33 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2022-23 में कॉरपोरेट कर का सकल संग्रह (अनंतिम) 10,04,118 करोड़ रुपये का रहा जो कि पिछले वर्ष हुए 8,58,849 करोड़ रुपये के सकल कॉरपोरेट कर संग्रह से 16.91 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2022-23 में व्यक्तिगत आयकर का सकल संग्रह (अनंतिम) 9,60,764 करोड़ रुपये का रहा जो कि पिछले वर्ष हुए 7,73,389 करोड़ रुपये के सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रह (एसटीटी सहित) से 24.23 प्रतिशत अधिक है। इसके साथ ही वित्त वर्ष 2022-23 में 3,07,352 करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए गए हैं, जो कि वित्त वर्ष 2021-22 में जारी किए गए 2,23,658 करोड़ रुपये के रिफंड से 37.42 प्रतिशत अधिक है।
मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई मार्च में तीन महीने के उच्चतम स्तर पर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर में सुधार दिखाई दे रहा है। कारोबार में बढ़त के चलते हर क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी आई है। मांग बढ़ने से विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी आई है। नए ऑर्डर और उत्पादन में तेजी से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियां मार्च महीने के दौरान तीन महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। एसएंडपी ग्लोबल इंडिया विनिर्माण पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) मार्च 2023 में बढ़कर 56.4 हो गया, जो फरवरी 2023 में 55.3 था। पिछले दो साल में कारोबारी गतिविधियों में आई तेजी के कारण ऐसा हुआ है। पीएमआई का 50 से ऊपर होना उत्पादन में विस्तार का सूचक है यानी एक्टिविटीज बढ़ रही है। एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस की एसोसिएट निदेशक पोलियाना डी लीमा के अनुसार मांग मजबूत रहने से उत्पादन में लगातार विस्तार हो रहा है और कंपनियों ने अपना भंडार बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
जनवरी में औद्योगिक उत्पादन में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि
मोदी सरकार की नीतियों के कारण जनवरी के महीने में औद्योगिक उत्पादन ने शानदार प्रर्दशन किया। औद्योगिक उत्पादन (IIP) में 5.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 10 मार्च को जारी सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2023 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 3.7 प्रतिशत, खनन क्षेत्र में 8.8 और बिजली उत्पादन में 12.7 प्रतिशत की शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसी तरह कैपिटल गुड्स के उत्पादन में 9.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कोर सेक्टरों में भी देखने को मिली तेजी
जनवरी में भारत के कोर सेक्टरों में भी तेजी देखने को मिली है। 28 फरवरी को जारी आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2023 में आठ कोर सेक्टर का उत्पादन 7.8 प्रतिशत बढ़ा है। आठ कोर सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली शामिल है। इनकी वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के दौरान 7.9 प्रतिशत रही। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में आठों कोर सेक्टर की हिस्सेदारी 40.27 प्रतिशत है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इस साल जनवरी में पिछले साल की तुलना में कोयला का उत्पादन में 13.4 प्रतिशत, बिजली उत्पादन में 12.0 प्रतिशत, सीमेंट उत्पादन में 4.6 प्रतिशत, इस्पात में 6.2 प्रतिशत, रिफाइनरी उत्पाद में 4.5 प्रतिशत,फर्टिलाइजर उत्पादन में 17.9 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस उत्पादन में 5.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जनवरी में सबसे बड़ी छलांग 17.9 प्रतिशत के साथ फर्टिलाइजर सेक्टर में देखने को मिली है।
आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन 18.53 प्रतिशत बढ़कर 84.8 करोड़ पर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। मोदी सरकार की नीतियों के कारण आधार समर्थित ई-केवाईसी अपनाने में लगातार प्रगति देखी जा रही है। आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन अक्टूबर से दिसंबर 2022 के बीच तीसरी तिमाही में 18.53 प्रतिशत बढ़कर 84.8 करोड़ हो गया। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार दिसंबर 2022 में 32.49 करोड़ ई-केवाईसी के आधार पर लेनदेन किए गए थे, जो नवम्बर 2022 की 28.75 करोड़ तुलना में 13 प्रतिशत अधिक थे। अक्टूबर में आधार ई-केवाईसी लेनदेन की संख्या 23.56 करोड़ थी। दिसंबर में वृद्धि अर्थव्यवस्था में इसके बढ़ते इस्तेमाल और उपयोगिता को दर्शाता है।
दिसंबर 2022 के अंत तक, आधार के जरिए ई-केवाईसी लेनदेन की कुल संख्या 1,382 करोड़ से अधिक पहुंच गई है। इसके साथ ही लोगों के बीच आधार प्रमाणीकरण लेनदेन भी लोकप्रिय होता जा रहा है और ज्यादा से ज्यादा लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। अकेले दिसंबर महीने में 208.47 करोड़ आधार प्रमाणीकरण लेनदेन किए गए, जो पिछले महीने की तुलना में लगभग 6.7 प्रतिशत अधिक है। आधार के जरिए ई-केवाईसी सेवा तेजी से बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 105 बैंकों सहित 169 संस्थाएं ई-केवाईसी के जरिए लाइव जुड़ी हुई हैं।
पसंदीदा इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा भारत
रूस-यूक्रेन संकट और कोरोना महामारी के कारण जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल हाल में है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था तमाम चुनौतियों के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों ने अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है, जिससे विदेशी निवेशकों की भारत के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है। रूस-यूक्रेन संकट और कोरोना काल में दुनिया भर के अरबपतियों के लिए भारत एक प्रमुख इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है। इस महीने आई यूबीएस बिलियनेर एंबिशंस रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत जल्द ही निवेश का एक गढ़ बन सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के अरबपति लोग अपना ज्यादा से ज्यादा पैसा भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में लगाना चाहते हैं क्योंकि यहां की अर्थव्यवास्था मजबूत होने के साथ उनके अनुकूल है। स्विस बैंक की यह रिपोर्ट 75 बाजारों में 2,500 से अधिक अरबपतियों के सर्वेक्षण पर आधारित है। इसमें 58 प्रतिशत अरबपतियों ने निवेश के लिए अपने चुने हुए बाजारों के रूप में भारत और दक्षिण पूर्व एशिया को चुना। भारत में अरबपतियों की संख्या पिछले साल 140 से बढ़कर 166 हो गई है।
विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना
ब्रिटेन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। मार्च तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 854.7 अरब डॉलर, जबकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 816 अरब डॉलर की थी। एक दशक पहले भारत सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 11वें स्थान पर था, जबकि ब्रिटेन 5वें स्थान पर था। लेकिन सितंबर 2022 में भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया। मौजूदा आर्थिक विकास दर के हिसाब से भारत 2027 में जर्मनी को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं 2029 में जापान को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर सबसे तेज
सांख्यियकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, आईएमएफ और विश्वबैंक जैसे आर्थिक संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था ने सबसे तेज दर से तरक्की की। विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पूर्वानुमान को 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया। अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 11 अक्तूबर को जारी आउटलुक रिपोर्ट में कहा कि दुनियाभर में मंदी के बीच सिर्फ भारत से उम्मीद है। 2022-23 में भारत सात प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरेगा। मूडीज ने 2022 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमान का 7.0 प्रतिशत जताया। रेटिंग एजेंसी इक्रा और भारतीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर कायम रखा। भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर आधार और महामारी का असर कम होने के बाद उपभोग में सुधार से मदद मिली। इसके अलावा महंगाई पर मोदी सरकार के नियंत्रण ने भी राहत दी।
दुनिया पर मंडरा रही मंदी की आशंका, लेकिन भारत को खतरा नहीं- ब्लूमबर्ग
ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्रियों के बीच किए गए ताजा सर्वे के अनुसार अगले एक साल में दुनिया के कई देशों के सामने मंदी का संकट मंडरा रहा है। सर्वे की माने तो एशियाई देशों के साथ दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों में मंदी का खतरा कहीं ज्यादा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत को मंदी के खतरे से पूरी तरह बाहर बताया गया है। ब्लूमबर्ग सर्वे के अनुसार भारत ही ऐसा देश है जहां, मंदी की संभावना शून्य यानी नहीं के बराबर है। ब्लूमबर्ग सर्वे में एशिया के मंदी में जाने की संभावना 20-25 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका के लिए यह 40 और यूरोप के लिए 50-55 प्रतिशत तक है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका के अगले वर्ष मंदी की चपेट में जाने की 85 प्रतिशत संभावना है।
चीन को पछाड़कर यूनिकार्न का बादशाह बना भारत
स्टार्ट-अप्स की दुनिया में झंडे गाड़ने के बाद भारत अब उभरते यूनिकॉर्न का ‘बादशाह’ बनने की ओर बढ़ रहा है। मोदी सरकार के लगातार प्रोत्साहन मिलने के कारण भारत के नए यूनिकॉर्न स्टार्टअप दुनिया में नया मुकाम हासिल करते जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही में देश ने यूनिकॉर्न के मामले में चीन को पछाड़ दिया। इस दौरान भारत में 14 यूनिकॉर्न बने, वहीं चीन में यह आंकड़ा 11 रहा। भारत में इन यूनिकॉर्न की संख्या शतक पार करके आगे बढ़ गई है। पिछले साल देश को 44 यूनिकॉर्न मिले थे और इस साल सितंबर तक 22 यूनिकॉर्न मिल चुके हैं। भारत में सितंबर 2022 तक यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या बढ़कर 107 हो गई। खास बात यह है कि इन 107 यूनिकॉर्न में से 60 से अधिक पिछले दो सालों में ही बने हैं। पीएम मोदी की प्रेरणा से भारत के उद्यमशील युवा अब तेजी से जॉब सीकर की बजाय जॉब क्रिएटर बन रहे हैं।
सस्ती मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन
वर्ष 2022 में सबसे कम मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट वाले देशों की लिस्ट में भारत दुनिया में नंबर वन हो गया। चीन और वियतनाम भारत से पीछे दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि भारत का पड़ोसी बांग्लादेश छठे स्थान पर है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के सबसे सस्ते और कम लागत से सामान बनाने वाले देशों में भारत को 100 में से 100 अंक मिला। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को जहां बुस्ट मिलेगा, वहीं विदेशी कंपनियां भी भारत का रूख कर सकती है। दरअसल यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी किया, जिसमें 85 देशों में से भारत समग्र सर्वश्रेष्ठ देशों की रैंकिंग में 31वें स्थान पर है। इसके अलावा, सूची ने भारत को ‘ओपन फॉर बिजनेस’ श्रेणी में 37 वें स्थान पर रखा गया है। हालांकि, ‘open for business’ की उप-श्रेणी के तहत भारत ने सबसे सस्ती मैन्युफैक्चरिंग लागत के मामले में 100 प्रतिशत स्कोर किया।
महंगाई पर लगाम लगाने में सफल रही मोदी सरकार
कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इस समय पूरा विश्व मंदी और महंगाई से जूझ रहा है। अमेरिका जैसे सबसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश भी महंगाई को रोक पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। ऐसे में भारत ने महंगाई पर लगाम लगाकर आर्थिक मोर्चे पर बड़ी सफलता हासिल की है। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों, अर्थव्यवस्था में आई तेजी और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से महंगाई दर में खासी गिरावट देखने को मिली है। इससे मोदी सरकार और देश की जनता को बड़ी राहत मिली है। सितंबर में महंगाई दर 7.11 प्रतिशत थी। वहीं, अक्टूबर में महंगाई दर गिरकर 6.11 प्रतिशत तक पहुंच गई। खाद्य उत्पादों के दाम कम होने से अक्टूबर महीने में खुदरा महंगाई घटकर 6.77 प्रतिशत पर आ गई। सितंबर महीने में खुदरा महंगाई 7.41 प्रतिशत थी। खुदरा महंगाई दर में गिरावट के साथ थोक महंगाई दर में भी गिरावट दर्ज की गई है। 14 नवंबर, 2022 को ही थोक महंगाई के आंकड़े भी जारी किए गए। 19 माह में थोक महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई।
मोबाइल फोन निर्यात में दोगुने से अधिक की वृद्धि
इस साल भारत ने मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात के मामले में बड़ी उपलब्धि हासिल की। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के बीच मोबाइल फोन का निर्यात दोगुना से अधिक होकर पांच अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया। पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 2 अरब 20 करोड़ डॉलर था। वित्त वर्ष 2022 में 5.8 अरब डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात किया गया। उद्योग निकाय इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक,भारत ने वित्त वर्ष 2022 में मोबाइल आयात पर निर्भरता को भी लगभग 5 प्रतिशत तक कम कर दिया है, जो 2014-15 में 78 प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। अब भारत का लक्ष्य 2025-26 तक 60 बिलियन डॉलर के सेल फोन का निर्यात करना है।
ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंचा भारत का कृषि निर्यात
2022 में भारत का कृषि निर्यात 50 अरब डॉलर (वित्त वर्ष 2021-22) के ऐतिहासिक उच्च स्तर को छू गया। भारत ने चावल, गेहूं, चीनी सहित अन्य खाद्यान्न और मांस का अब तक का सबसे अधिक निर्यात हासिल किया। वाणिज्यिक इंटेलिजेंस और सांख्यिकी महानिदेशालय द्वारा जारी अस्थाई आंकड़ों के अनुसार 2021-22 के दौरान 19.92% की वृद्धि के साथ कृषि निर्यात में 50.21 अरब डॉलर की ऊंचाई छू ली गई। यह उल्लेखनीय उपलब्धि हाल के वर्षों में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा की गई कई प्रमुख पहलों के कारण संभव हुआ।
पीएम मोदी के विजन से फलों का निर्यात तीन गुना बढ़ा
भारत आज कृषि निर्यात में सफलता के नए झंडे गाड़ रहा है। पिछले आठ साल में भारतीय फल पपीता और खरबूजे के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2013-2014 के अप्रैल-सितंबर में इन दोनों फलों का निर्यात जहां 21 करोड़ रुपये का होता था वहीं अब अप्रैल-सितंबर वर्ष 2022-2023 में यह तीन गुना बढ़कर 63 करोड़ रुपये का हो गया। गौरतलब है कि कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक आकलन के अनुसार वर्ष 2021-22 में भारत ने 11,412.50 करोड़ रुपये के फलों और सब्जियों का निर्यात किया था। जिसमें फलों की हिस्सेदारी 5,593 करोड़ रुपये और सब्जियों की हिस्सेदारी 5,745.54 करोड़ रुपये की थी।
NBFC की एसेट ग्रोथ चार साल में सबसे ज्यादा
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की एसेट्स ग्रोथ इस वित्त वर्ष में चार साल के उच्चतम स्तर 11-12 प्रतिशत पर पहुंच सकती है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने 12 सितंबर, 2022 को जारी रिपोर्ट में बताया कि वित्त वर्ष 2022-23 में एनबीएफसी कंपनियों की एसेट्स ग्रोथ 11-12 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। इसमें सबसे बड़ा योगदान वाहन सेगमेंट का हो सकता है। वाहनों के फाइनेंस पर एनबीएफसी ने अपनी आधी पूंजी खर्च की है। वित्त वर्ष 2022-23 में वाहन सेगमेंट में 11-13 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल सकती है, यह वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2021-22 में 3 से 4 प्रतिशत थी।
10 करोड़ के पार पहुंची डीमैट खातों की संख्या
देश में डीमैट खातों की संख्या 10 करोड़ के पार पहुंच गई। डिपॉजिटरी फर्म एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त,2022 में 22 लाख नए डीमैट खाता खोले गए, जो पिछले चार महीनों का सबसे अधिक है। इसके साथ ही देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 10.05 करोड़ पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें खुदरा यानी छोटे निवेशकों का योगदान सबसे अधिक है। इसी का परिणाम है कि देश में खुदरा निवेशकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटेगी और तेज उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद करेगी।
सेंसेक्स 63 हजार के पार
मोदी राज में भारतीय शेयर बाजार ने भी इतिहास रच दिया। 30 नवंबर, 2022 को एक नया रिकॉर्ड बनाते हुए बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स पहली बार 63 हजार के पार पहुंच गया। सेंसेक्स 417.81 अंकों की बढ़त के साथ 63,099.65 के लेवल पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी 140 अंकों की बढ़त के साथ 18758 अंक पर बंद हुआ। यह इसका भी नया रिकॉर्ड है। भारतीय शेयर बाजार के इतिहास पर नजर डालें तो सेंसेक्स पहली बार 30 नवंबर, 2022 को 63000 के पार बंद हुआ। यह 24 नवंबर,2022 को 62000 के आंकड़े के पार जाकर बंद हुआ है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने 01 नवंबर, 2022 को नया रिकॉर्ड कायम करते हुए 61 हजार के ऊपर बंद हुआ। इसके पहले 24 सितंबर, 2021 को सेंसेक्स 60,000 के पार, 16 सितंबर, 2021 को सेंसेक्स 59,000 के पार, 03 सितंबर, 2021 को 58,000 और 31 अगस्त, 2021 को 57,000 के पार गया था।
विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर
मोदी सरकार की नीतियों के कारण विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना हुआ है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 सितंबर, 2021 में 642.45 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था। विदेशी मुद्रा भंडार ने 5 जून, 2020 को खत्म हुए हफ्ते में पहली बार 500 अरब डॉलर के स्तर को पार किया था। इसके पहले यह आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया था। जबकि यूपीए शासन काल के दौरान 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 311 अरब डॉलर के करीब था।