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पीएम मोदी ने देश का किया कायाकल्प, आत्मनिर्भर नया भारत अब आयातक नहीं, निर्यातक बना, रक्षा से लेकर खिलौना तक में निर्यात में लंबी छलांग

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता संभालने से पहले भारत रक्षा सहित कई क्षेत्रों में आयात पर निर्भर था लेकिन पिछले आठ साल में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान की बदौलत देश हर क्षेत्र में अपनी जरूरत पूरी करने के साथ ही निर्यात में लंबी छलांग लगा रहा है। बीते 75 वर्ष में भारत दुनिया में रक्षा उत्पादों के सबसे बड़े आयातकों में से एक रहा है और मोदी सरकार ने इस स्थिति को बदल दिया है। आज भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के साथ ही दूसरे देशों को भी निर्यात कर रहा है। रक्षा उत्पादों का बाजार बहुत बड़ा है और इससे काफी लाभ होने वाला है। आत्मनिर्भर होते भारत की कहानी देखिए कि आज से कुछ साल पहले तक समुद्री पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी लोडिंग ट्राली एक बहुतायत से इस्तेमाल होने वाला उपकरण है। इसे मैसर्स नेवल ग्रुप फ्रांस से आयात किया जाता था, जिसे अब हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी एसईसी इंडस्ट्रीज द्वारा तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाले वातानुकूलन संयंत्र का आयात मैसर्स सनोरी फ्रांस से हो रहा था, जिसे कारद स्थित श्री रेफ्रीजरेशन ने तैयार कर लिया है। इसी प्रकार वेंटीलेसन वालव्स का आयात ब्रिटेन से किया जा रहा था, जिसका निर्माण अहमदाबाद की कंपनी मैसर्स चामुंडा वालव्स द्वारा किया जा रहा है। रिमोट कंट्रोल वालव्स का आयात ब्रिटेन की कंपनी थामपसन से किया जा रहा था, जिसका निर्माण पुणे की कंपनी मैसर्स डेलवाल ने शुरू कर दिया है। पीएम मोदी की संकल्पशक्ति और विजन से आज दुनिया भर में भारत दबदबा बढ़ा है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश भी भारत की तकनीकी सफलता का लोहा मानने लगे हैं और अपनी नौसेना के जंगी जहाज को मरम्मत के लिए भारत भेज रहे हैं।

रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से इनके आयात में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है। दूसरे, इससे हर साल भारी मात्रा में विदेश मुद्रा की बचत होगी। साथ ही रोजगार सृजित होंगे। रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन रहा है। भारत अपने रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर होने के साथ ही बड़े निर्यातक के रूप में उभर रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाले शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत ने मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए कई देशों से समझौता किया है। रक्षा क्षेत्र के साथ ही आज देश हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ ही निर्यात बढ़ा रहा है। चाहे वह खाद्य उत्पाद हो, मसाला हो, फार्मा हो, संगीत उपरकरण हो, इलेक्ट्रॉनिक्स हो या फिर खिलौने, भारत सफलता के झंडे गाड़ रहा है। खिलौना एक ऐसा सेक्टर था जिसमें भारत काफी पिछड़ा हुआ था और हमारे बाजारों में चीन के खिलौने भरे रहते थे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ आह्वान और भारतीय खिलौना की रीब्रांडिंग की एक अपील ने भारत के खिलौना क्षेत्र को बदल कर रख दिया। अगस्त 2020 में ‘मन की बात’ के अपने संबोधन में पीएम मोदी ने ‘भारतीय खिलौना स्टोरी की रीब्रांडिंग’ की अपील की थी और घरेलू डिजाइनिंग को सुदृढ़ बनाने तथा भारत को खिलौनों के लिए एक वैश्विक विनिर्माण हब बनाने की अपील की थी। उनकी प्रेरणा से आज देश में खिलौना उद्योग तेजी से फल-फूल रहा है। यही नहीं जिस संगीत वाद्य उपकरणों की कभी चर्चा तक नहीं होती थी, उसके निर्यात में भी आज भारत महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज कर रहा है।

वर्ष 2015 में सिंगापुर में भारतीय समुदाय को संबोध‍ित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, ”भारत आज न आंख झुकाकर बात करता है, न ही आंख उठाकर बात करता है, भारत अब आंख में आंख मिलाकर बात करता है।” आज नया भारत इसी संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। आज का मजबूत भारत किसी भी देश को उसी भाषा में जवाब देता है जिस भाषा में वह बात करता है। आज से चार साल पहले अमेरिका ने स्टील और एल्युमिनियम पर आयात शुल्क लगाने की घोषणा की थी। भारत ने इसमें छूट मांगी थी, जिसे उसने खारिज कर दिया था। इसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका से चना, सेब, अखरोट, बादाम और स्टील प्रोडक्ट समेत 29 वस्तुओं के आयात पर शुल्क बढ़ाने की घोषणा कर दी थी। दालों पर सबसे ज्यादा शुल्क बढ़ाया गया था। यह 30% से बढ़कर 70% हो गया था। मोदी सरकार के इस कदम से इंपोर्टेड की तुलना में देश में बने उत्पाद सस्ते में मिले और इनकी डिमांड भी बढ़ी।

भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात 8 गुना बढ़ा : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर 2022 को डिफेंस एक्सपो-2022 का उद्घाटन करने के बाद कहा कि भारतीय रक्षा बलों का देश में बने अधिकतर उपकरणों को खरीदने का निर्णय ‘आत्मनिर्भर भारत’ की क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर रक्षा क्षेत्र में कुछ निर्माण कंपनियों के एकाधिकार के बावजूद भारत ने अपना स्थान बनाया है। उन्होंने कहा कि यह भारत में निर्मित रक्षा सामग्री पर बढ़ते विश्वास का भी प्रतीक है, जिसका उद्देश्य देश की रक्षा निर्माण क्षमताओं का प्रदर्शन करना है। उन्होंने कहा कि भारत से रक्षा निर्यात 2021-22 में लगभग 13,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और आने वाले समय में हमने इसे 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में आठ गुना बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘देश बहुत आगे निकल गया है, क्योंकि पहले हम कबूतर छोड़ते थे और अब हम चीतों को छोड़ते हैं।’ प्रधानमंत्री ने समुद्री सुरक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी जोर दिया। मोदी ने कहा कि पहली बार डिफेंस एक्सपो में केवल भारतीय कंपनियां भाग ले रही हैं। इसमें 1,300 से अधिक प्रदर्शकों ने शिरकत की है, जिनमें भारतीय रक्षा उद्योग, इससे जुड़े कुछ संयुक्त उद्यम, 100 से अधिक स्टार्ट-अप हैं।

भारत 2025 तक रक्षा क्षेत्र में बन जाएगा आत्मनिर्भर, एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये के रक्षा उत्‍पादन का लक्ष्‍य

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत 2025 तक एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये के रक्षा उत्‍पादन के लक्ष्‍य को पूरा करके रक्षा क्षेत्र में आत्‍मनिर्भरता हासिल कर लेगा। इस लक्ष्‍य में 35 हजार करोड़ रुपये का निर्यात शामिल है। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि आत्‍मनिर्भरता का मतलब अलग-थलग रहने से नहीं है, बल्कि भारत का संकल्‍प विश्‍व को आशा और राहत प्रदान करने से है। नई दिल्‍ली में आयोजित एक समारोह में सिंह ने कहा कि देश का रक्षा निर्यात पूर्व के एक हजार नौ सौ करोड़ रुपये की तुलना में 13 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी का आत्‍मनिर्भर भारत का दृष्टिकोण भारत को विश्‍व में सबसे मजबूत और सबसे सम्‍मानित देशों में से एक बना रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार आत्‍मनिर्भर नये भारत की जरूरतों, विशेष रूप से सुरक्षा से संबंधित आवश्‍यकताओं को पूरा करने के सपनों को साकार करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। उन्‍होंने प्रधानमंत्री के फैसलों की भी प्रशंसा की। इन फैसलों से भारत के रक्षा क्षेत्र में एक दावेदार और प्रदाता के मूक पर्यवेक्षक से विश्‍व में इसकी छवि को बदलने में मदद मिली है। सिंह ने घरेलू उद्योग में विश्‍वास जताया। उन्‍होंने कहा कि भारत में नवीनतम रक्षा मंच का विनिर्माण करने की क्षमता और योग्‍यता है। सरकार इसे हासिल करने में सुविधा प्रदान कर रही है।

रक्षा क्षेत्र में बड़ी छलांगः अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों को 35 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट करेगा भारत

मोदी सरकार में भारत रक्षा अनुसंधान, विकास और निर्यात के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। इसकी झलक डिफेंस एक्‍सपो-2022 में देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार (19 अक्टूबर, 2022) को गुजरात के गांधीनगर में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा आयोजित 12वें डिफेंस एक्‍सपो में इंडिया पैवेलियन का उद्घाटन किया। इस एक्सपो में दुनिया के 100 देश रक्षा क्षेत्र में भारत की प्रगति का गवाह बन रहे हैं, वहीं भारत रक्षा निर्यात में भी लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार है। अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों को 35,000 करोड़ रुपये तक के हथियार और ड्रोन्स आदि बेचने जा रहा है।

रक्षा क्षेत्र में 2014 के बाद से 30,000 करोड़ रुपये का निर्यात किया

भारत जहां डिफेंस एक्‍सपो में स्वदेशी हथियारों, उभरती तकनीकों पर अपनी रिसर्च और स्वार्म ड्रोन्स जैसे उपकरणों की ताकत दुनिया को दिखाएगा, वहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में भी भारत ने बड़ी सफलता हासिल की है। अब भारत की कोशिश है कि इन हथियारों और तकनीकों को हिंद महासागर के देशों और अफ्रीकी मुल्कों को निर्यात किया जाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत ने चालू वित्त वर्ष के छह महीनों में 8,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात दर्ज किया है। हमारा लक्ष्य है कि 2025 तक इस बड़े आंकड़े को हासिल किया जाए। बीते साल भी भारत ने 13,000 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया था। रक्षा मंत्री ने कहा कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद भारत के रक्षा क्षेत्र ने 2014 के बाद से 30,000 करोड़ रुपये का निर्यात किया है। राजनाथ सिंह ने कहा कि 2014 से पहले हम 900 करोड़ रुपये से 1,300 करोड़ रुपये तक रक्षा निर्यात कर पाते थे। लेकिन मोदी सरकार में रक्षा निर्यात में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने कहा कि निजी और सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे तो आने वाले समय में हमारा निर्यात और तेजी से बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि हम तेजी से डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग में लीडर के तौर पर आगे बढ़ रहे हैं। हम अब आयातक होने की बजाय निर्यातक बनने की दिशा में हैं।

पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात में 334 प्रतिशत की उछाल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों में से एक ‘मेक इन इंडिया’ ने 25 सितंबर, 2022 को विनिर्माण के क्षेत्र में गौरवशाली उपलब्धियों के साथ अपने आठ वर्ष का सफर पूरा कर लिया। इस दौरान इस कार्यक्रम ने विनिर्माण अवसंरचना, निवेश, नवोन्मेषण और कौशल विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रधानमंत्री मोदी के कुशल और गतिशील नेतृत्व में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम ने देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण और निवेश गंतव्य के रूप में पहचान दिलाई है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘लोकल गोज ग्लोबल-मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ के नारे का कामल है कि पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात में 334 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। भारत रक्षा उत्पादन के मामले में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

रक्षा निर्यात में सालाना 54 फीसदी की वृद्धि

मोदी सरकार के प्रोत्साहन की वजह से आज भारत में निर्मित हथियार 75 देशों को निर्यात किया जा रहा है। डिफेंस मिनिस्ट्री ने जुलाई 2022 में बताया था कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 13 हजार करोड़ रुपये था। सालाना आधार पर इसमें 54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के एडिशनल सेक्रेटरी संजय जाजू ने कहा था कि पांच सालों में भारत का निर्यात करीब आठ गुना बढ़ा है। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तब 2015-16 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट महज 2059 करोड़ रुपये था।

भारत के पास अब विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता

मेक इन इंडिया के तहत कई ऐसे विनिर्माण किए हैं, जिससे भारत को अपनी तकनीकी क्षमता पर गर्व हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2 सितंबर, 2022 को कोचीन शिपयार्ड में एक भव्य समारोह के दौरान देश का पहला स्‍वेदशी एयरक्राफ्ट कैरियर ‘आईएनएस विक्रांत’ भारतीय नौसेना को सौंप दिया। 45 हजार टन वजन वाले इस युद्धपोत को 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। स्‍वदेशी होने के बावजूद यह एयरक्राफ्ट कैरियर तकनीक के मामले में विदेशी युद्धपोतों के समकक्ष खड़ा होता है। नौसेना में इसके शामिल होने से भारत उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में भी शामिल हो गया, जिनके पास खुद विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता है।

एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर निर्माण में भी भारत आत्मनिर्भर

स्वदेशी निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर MK3 स्क्वॉड्रन को इंडियन कोस्ट गार्ड ने अपनी सेवा में शामिल किया है। इस स्वदेशी एएलएच एमके III हेलीकॉप्टर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने बनाया है। इनमें उन्नत रडार सहित इलेक्ट्रो ऑप्टिकल सेंसर, शक्ति इंजन, पूरा ग्लास कॉकपिट, उच्च-तीव्रता वाली सर्चलाइट, उन्नत संचार प्रणाली, स्वचालित पहचान प्रणाली के साथ-साथ SAR होमर जैसे अत्याधुनिक उपकरण हैं। लेजर गाइडेड ATGM का भी सफल परीक्षण किया गया। न्यूक्लियर कैपेबल बैलिस्टिक मिसाइल Agni-P का भी सफल परीक्षण किया गया।

रक्षा उत्पादन में टॉप पांच देशों में शामिल होना लक्ष्य

रक्षा सचिव अजय कुमार ने 22 सितंबर, 2022 को एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल की ताकत का इस्तेमाल रक्षा क्षेत्र में करने के प्रयास किए जा रहे हैं और अमृत काल की कल्पना देश को रक्षा उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर शीर्ष पांच देशों के बीच देखने की है। उन्होंने कहा था कि बीते 75 वर्ष में भारत दुनिया में रक्षा उत्पादों के सबसे बड़े आयातकों में से एक रहा है और सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है। इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारतीय सेना देश पर बुरी नजर डालने वाली किसी भी ताकत को मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता रखती है। अपने पास एटमी प्रतिरोध की ताकत होने के कारण भारतीय सेना को आत्मरक्षा का पूरा भरोसा है।

अमेरिकी नौसेना के जंगी जहाज का भारत में मरम्मत

दुनिया भर में भारत दबदबा बढ़ा है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश भी भारत की तकनीकी सफलता का लोहा मानने लगे हैं और अपनी नौसेना के जंगी जहाज को मरम्मत के लिए भारत भेज रहे हैं। अमेरिकी नौसैनिक पोत ‘चार्ल्स ड्रयू’ मरम्मत एवं संबद्ध सेवाओं के लिए रविवार (6 अगस्त, 2022) को चेन्नई के कट्टूपल्ली में कंपनी ‘लार्सन एंड टुब्रो’ (एलएंडटी) के शिपयार्ड में पहुंचा। यह पहली बार है, जब कोई अमेरिकी पोत मरम्मत कार्य के लिए भारत पहुंचा। रक्षा मंत्रालय ने इसे ‘मेक इन इंडिया’ के लिए ‘‘उत्साहजनक’’ करार दिया। रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया कि यह पहली बार है, जब अमेरिकी नौसेना का जहाज मरम्मत के लिए भारत पहुंचा है। अमेरिकी नौसेना ने जहाज के रखरखाव के लिए कट्टुपल्ली में एलएंडटी के शिपयार्ड को ठेका दिया था। यह कदम वैश्विक जहाज मरम्मत बाजार में भारतीय शिपयार्ड की क्षमताओं को दर्शाता है। भारतीय शिपयार्ड जहाज मरम्मत और रखरखाव के लिए उन्नत समुद्री प्रौद्योगिकी का उपयोग करके व्यापक और किफायती सेवाएं प्रदान करते हैं।

भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के पास दो अरब डालर के कारोबार

भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के पास आज लगभग दो अरब डालर के कारोबार के साथ छह प्रमुख शिपयार्ड हैं। रक्षा सचिव ने कहा कि हमारा अपना डिजाइन हाउस है और यह सभी प्रकार के अत्याधुनिक जहाज बनाने में सक्षम है। वहीं एलएंडटी के सीईओ के सलाहकार जेडी पाटिल ने कहा कि अमेरिकी नौसेना ने काफी जांच-परख के बाद अपने जहाज के मरम्मत के लिए एलएंडटी का चयन किया है। वैश्विक मानकों के अनुसार निर्मित इस शिपयार्ड में सभी आधुनिक तकनीक मौजूद है। यह पोत अमेरिकी नौसेना को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जंगी बेड़े के संचालन में अहम सहयोग देता है।

हथियार बनाने के लिए 494 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश, 358 निजी कंपनियों को 584 रक्षा लाइसेंस जारी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है। वहीं भारत को लेकर दुनिया का दृष्टिकोण भी काफी आशावादी है। इसी का परिणाम है कि रक्षा क्षेत्र में तेजी से विदेशी निवेश हो रहा है। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने सोमवार (25 जुलाई, 2022) को लोकसभा में बताया कि 2020 में संशोधित एफडीआई नीति पर अधिसूचना जारी होने के बाद से रक्षा क्षेत्र में लगभग 494 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ है। भट्ट ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए निजी कंपनियों को लाइसेंस जारी कर रही है। रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 358 निजी कंपनियों को विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने की खातिर 584 रक्षा लाइसेंस जारी किए हैं। इनमें हथियार निर्माण के लिए 107 लाइसेंस शामिल हैं। रक्षा राज्य मंत्री ने कहा कि सरकार आयात पर निर्भरता कम करना चाहती है और उसने घरेलू रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने का फैसला किया है। अगले पांच वर्षो में भारत करीब 130 अरब डालर (दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा) के हथियार और रक्षा उपकरण खरीद सकता है। सरकार की कोशिश है कि भारतीय कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाले हथियार बनाने की क्षमता प्राप्त करें और सरकार उनसे ही हथियार खरीदे।

2014 के बाद रक्षा क्षेत्र में 3,343 करोड़ रुपये का FDI

इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 28 मार्च, 2022 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2014 से रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में कुल 3,343 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। उन्होंने कहा था कि वर्ष 2001-2014 की अवधि के दौरान, लगभग 1,382 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई प्रवाह दर्ज किया गया था और वर्ष 2014 से अब तक लगभग 3,343 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई हासिल किया गया है।

दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण जारी

गौरतलब है कि बजट 2018-19 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र की मजबूती के लिए दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का ऐलान किया था। पहला डिफेंस कॉरिडोर उत्तर प्रदेश में और दूसरा कॉरिडोर तमिलनाडु में बनाया जा रहा है। इस कॉरिडोर की मदद से सरकार डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहती है। सरकार की योजना इस कॉरिडोर की मदद से वित्त वर्ष 2024-25 तक दोनों राज्यों में 10-10 हजार करोड़ के निवेश को आकर्षित करने को है।

आत्मनिर्भरता में सहायक बनीं स्टार्टअप कंपनियां

आज भारत की स्टार्टअप कंपनियां रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता में अहम भूमिका निभा रही है। विदेशों से आयात की जाने वाली रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियां अब तेजी से तैयार करने लगी हैं। रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल के दौरान 14 ऐसी महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों को भारत में तैयार करने में सफलता मिली है, जिन्हें अभी तक विदेशों से आयात किया जा रहा था। इनके देश में ही निर्माण का रास्ता साफ होने से इन्हें आयात करने की बाध्यता खत्म हो गई है।

सैन्य हथियार बनाने वाली 3 भारतीय कंपनियां दुनिया की टॉप 100 में शामिल

सैन्य हथियार बनाने में भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन रहा है। आज दुनिया भर में मेक इन इंडिया का दबदबा बढ़ा है। सैन्य उपकरण बनाने वाली दुनिया की टॉप 100 कंपनियों में 3 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। स्वीडिश थिंक-टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के दौरान जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (42वें स्थान पर) और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (66वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में क्रमश: 1.5 प्रतिशत और 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज (60वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियों की कुल हथियारों की बिक्री 6.5 बिलियन डॉलर (लगभग 48,750 करोड़ रुपये) रही, जो 2019 की तुलना में 2020 में 1.7 प्रतिशत अधिक थी।

स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार का अर्मेनिया को निर्यात

प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का असर है कि अब तक हथियारों का आयात करने वाला भारत अब हथियारों का निर्यात कर रहा है। भारत ने रूस और पौलेंड की पछाड़ते हुए अर्मेनिया के साथ रक्षा सौदा किया। इस करार में भारत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित 40 मिलियन डॉलर (करीब 280 करोड़ रुपये) का हथियार अर्मेनिया को बेच रहा है। इसमें ‘स्वाती वेपन लोकेटिंग रडार’ सिस्टम शामिल है। इन हथियारों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया गया है। स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार 50 किमी के रेंज में दुश्मन के हथ‍ियारों जैसे मोर्टार, शेल और रॉकेट तेज, स्वचालित और सटीक तरीके से पता लगा लेता है।

भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट 100 से ज्यादा देशों को निर्यात

रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि आज दुनिया भर में भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की मांग है। भारत ने 100 से ज्यादा देशों को राष्ट्रीय मानक की बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्यात शुरू कर रहा है। भारत की मानक संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के मुताबिक, बुलेटप्रूफ जैकेट खरीददारों में कई यूरोपीय देश भी शामिल हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के बाद भारत चौथा देश है, जो राष्ट्रीय मानकों पर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की बुलेटप्रूफ जैकेट बनाता है। भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की खूबी है कि ये 360 डिग्री सुरक्षा के लिए जानी जाती है।

लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो म्यांमार को किया गया निर्यात

भारत ने स्वदेश निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन शायना टॉरपीडो को म्यांमार को निर्यात किया। एडवांस्ड लाइट टॉरपीडो (TAL) शायना भारत की पहली घरेलू रूप से निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो है। इसे DRDO के नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है और इस टॉरपीडो का निर्माण भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने किया है। भारतीय हथियार उद्योग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। टीएएल शायना टॉरपीडो के पहले बैच को 37.9 मिलियन डॉलर के निर्यात सौदे के हिस्से के रूप में म्यांमार भेजा गया, जिस पर 2017 में हस्ताक्षर किए गए थे।

इसके अलावा भी कई ऐसी रक्षा परियोजनाएं हैं जिनमें पीएम मोदी की पहल पर मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। डालते हैं एक नजर-

अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर बनाने के प्रोजेक्ट पर काम जारी

मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत भारत में अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर के विनिर्माण का रास्ता खुला है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने भारतीय सेना के लिए युद्धक हेलिकॉप्टर बनाने के मेगा प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। एचएएल के मुताबिक 10 से 12 टन के ये हेलिकॉप्टर दुनिया के बेहतरीन हेलिकॉप्टर्स की तरह आधुनिक और शक्तिशाली होंगे। एचएएल के प्रमुख आर माधवन ने कहा कि जमीनी स्तर पर काम शुरू किया जा चुका है और 2027 तक इन्हें तैयार किया जाएगा। इस मेगा प्रोजेक्ट का लक्ष्य आने वाले समय में सेना के तीनों अंगों के लिए 4 लाख करोड़ रुपये के सैन्य हेलिकॉप्टर्स के आयात को रोकना है।

मेक इन इंडिया पनडुब्बी बढ़ाएगी नौसेना की ताकत

मेक इन इंडिया के तहत नौसेना के लिए भारत में ही करीब 40 हजार करोड़ रुपये की लागत से छह पी-75 (आई) पनडुब्बियां बनाई जा रही है। पनडुब्बियों के निर्माण की दिशा में स्वदेशी डिजाइन और निर्माण की क्षमता विकसित करने के लिए नौसेना ने 20 जुलाई, 2021 को संभावित रणनीतिक भागीदारों को छांटने के लिए कॉन्ट्रैक्ट जारी कर दिया। रणनीतिक भागीदारों को मूल उपकरण विनिर्माताओं के साथ मिलकर देश में इन पनडुब्बियों के निर्माण का संयंत्र लगाने को कहा गया है। इस कदम का मकसद देश को पनडुब्बियों के डिजाइन और उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है।

मेक इन इंडिया के तहत क्लाश्निकोव राइफल

मेक इन इंडिया के तहत अब दुनिया के सबसे घातक हथियारों में से एक क्लाश्निकोव राइफल एके 103 भारत में बनाए जाएंगे। असास्ट राइफॉल्स एके 47 दुनिया की सबसे कामयाब राइफल है। भारत और रूसी हथियार निर्माता कंपनी क्लाश्निकोव मिलकर एके 47 का उन्नत संस्करण एके 103 राइफल बनाएंगे। सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे भारत में बनाया जाएगा। इसे भारत से निर्यात भी किया जा सकता है।

भारत में फाइटर जेट एफ-16 के उपकरण का निर्माण

पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ परवान चढ़ रहा है। इसी योजना के तहत भारत में फाइटर जेट एफ-16 के विनिर्माण का रास्ता खुला। सुरक्षा और एयरो स्पेस काम करने वाली अमेरिकी कंपनी लॉकहिड मार्टिन ने इसके लिए भारतीय कंपनी टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड (TASL) के साथ समझौता किया। इसके तहत भारत में फाइटर जेट F-16 के विंग का निर्माण का समझौता किया गया। पीएम मोदी का सपना भारत को आने वाले कुछ सालों में दुनिया के बड़े सैन्य उपकरण बनाने वाले देशों में शामिल करना है। पीएम मोदी के मेक इन इंडिया की पहल से देश इस दिशा में कदम मजबूती से बढ़ा रहा है।

रोबोटिक ड्रोन ‘आईरोवटुना’ का उत्पादन

केरल के कोच्चि स्थित फर्म ने रिमोट कंट्रोल की मदद से नियंत्रित किया जाने वाला एक ड्रोन विकसित किया, जिसे ‘आईरोवटुना’ नाम दिया गया। इसका व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उत्पादन किया जा रहा है। कंपनी ने अपना पहला रोबोट डीआरडीओ के नेवल फिजिकल ओसियनोग्राफी लेबोरेटरी (एनपीओएल) को सौंपा। पानी के भीतर काम करने में सक्षम यह रोबोटिक ड्रोन पानी के भीतर जहाजों और अन्य संरचनाओं का समय पर वीडियो भेजने सक्षम है।

आइए देखते हैं मेक इन इंडिया के तहत निर्मित रक्षा उपकरण किस तरह सेना की ताकत बढ़ा रहे हैं…

डॉर्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट से बढ़ी नौसेना की ताकत

भारतीय नौसेना में नया डॉर्नियर -228 स्क्वाड्रन INAS 313 शामिल किया गया। नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने जुलाई 2019 में मीनाम्बक्कम में पांचवें डॉर्नियर एयरक्राफ्ट स्वैड्रॉन को भारतीय नौसेना को सौंपा। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से बनाए गए इन विमानों को आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। मल्टीरोल सर्विलांस डॉर्नियर एयरक्राफ्ट में आधुनिक सेंसर्स और उपकरण लगाए गए हैं, जिससे दुश्मन पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी। यह बचाव और खोजी अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे नौसेना की निगरानी क्षमता काफी बढ़ गई है। डॉर्नियर विमान का इस्तेमाल पूर्वी समुद्री सीमा पर निगरानी के लिए किया जाएगा।

‘मेक इन इंडिया’ के तहत तैयार आईएनएस ‘करंज’

मेक इन इंडिया के तहत निर्मित स्कॉर्पीन श्रेणी की तीसरी पनडुब्बी आईएनएस ‘करंज’ को 31 जनवरी, 2018 को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया था। ‘करंज’ एक स्वदेशी पनडुब्बी है। करंज पनडुब्बी कई आधुनिक फीचर्स से लैस है और दुश्मनों को चकमा देकर सटीक निशाना लगा सकती है। इसके साथ ही ‘करंज’ टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती है। करंज पनडुब्बी में कई और खूबियां भी हैं। यह पनडुब्बी रडार की पकड़ में नहीं आ सकती। यह जमीन पर हमला करने में सक्षम है, इसमें ऑक्सीजन बनाने की भी क्षमता है, यही वजह है कि करंज पनडुब्बी लंबे समय तक पानी में रह सकती है। युद्ध की स्थिति में करंज पनडुब्बी हर तरह के हालात से सुरक्षित और बड़ी आसानी से दुश्मनों को चकमा देकर बाहर निकल सकती है।

पीएम मोदी ने लांच की आईएनएस ‘कलवरी’

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में बनी स्कॉर्पीन श्रेणी की पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी को 14 दिसंबर, 2017 को लांच किया था। वेस्टर्न नेवी कमांड में आयोजित एक कार्यक्रम में पीएम मोदी की मौजूदगी में इस पनडुब्बी को नौसेना में कमीशंड किया गया था। इस पनडुब्बी ने केवल नौसेना की ताकत को अलग तरीके से परिभाषित किया, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए भी इसे एक मील का पत्थर माना गया। कलवरी पनडुब्बी को फ्रांस की एक कंपनी ने डिजाइन किया था, तो वहीं मेक इन इंडिया के तहत इसे मुंबई के मझगांव डॉकयॉर्ड में तैयार किया गया। आईएनएस कलवरी के बाद 12 जनवरी, 2019 को स्कॉर्पीन श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस खांदेरी को लांच किया गया था। कलवरी और खंडेरी पनडुब्बियां भी आधुनिक फीचर्स से लैस हैं। यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं, साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती हैं।

पूरी तरह देश में निर्मित धनुष तोप सेना में शामिल

अक्टूबर 2019 में भारतीय सेना ने संभावित खतरों को देखते हुए बोफोर्स से भी खतरनाक तोप धनुष को अपने आर्टिलरी विंग में शामिल कर लिया। स्वदेश में निर्मित इस तोप की मारक क्षमता इतनी खतरनाक है कि 50 किलोमीटर की दूरी पर बैठा दुश्मन पलक झपकते ही खत्म हो जाएगा। यह 155 एमएम और 45 कैलिबर की आर्टिलरी गन है। धनुष में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम को जोड़ा गया है। इसमें आटो लेइंग सुविधा है। ऑनबोर्ड बैलिस्टिक गणना और दिन और रात में सीधी फायरिंग की आधुनिकतम क्षमता से लैस है। इसमें लगी सेल्फ प्रोपल्शन यूनिट पहाड़ी क्षेत्रों में धनुष को आसानी से पहुंचाने में सक्षम है। धनुष के ऊपर मौसम का कोई असर नहीं होता। यह -50 डिग्री सेल्सियस से लेकर 52 डिग्री की भीषण गर्मी में भी 24 घंटे काम कर सकती है। सेल्फ प्रोपेल्ड मोड में भी ये गन रेगिस्तान और हजारों मीटर ऊंचे खड़े पहाड़ों पर चढ़ सकती है।

K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपें सेना में शामिल

K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपों को 9 नवंबर 2018 को सेना में शामिल किया गया। इससे सेना की ताकत और बढ़ गई है। के9 वज्र तोप की रेंज 28-38 किमी है और तीन मिनट में 15 गोले दाग सकती है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है। इसके साथ एम 777 होवित्जर तोप 30 किमी तक वार कर सकती है। इसे हेलिकॉप्टर या प्लेन से आवश्यकतानुसार एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। 9 नवंबर को देवलाली में आयोजित समारोह में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत समेत कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए।

वायु सेना में देसी ‘तेजस’ का पहला स्क्वैड्रन शामिल

प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा लॉन्च किये गए मेक इन इंडिया अभियान के तहत देश में बने हल्के लडाकू विमान, तेजस के पहले स्क्वैड्रन को जुलाई 2016 में वायुसेना में शामिल कर लिया गया। पहली खेप में दो विमान वायुसेना में शामिल किए गए। एचएएल ने यहां एयरक्राफ्ट सिस्टम टेस्टिंग इस्टैबलिशमेंट में एक कार्यक्रम के दौरान वायुसेना के दो तेजस विमान सौंपे। पहली स्क्वाड्रन फ्लाइंग डैगर्स नाम दिया गया। तेजस ने गणतंत्र दिवस, एयरो इंडिया और वायु सेना दिवस में भाग लिया। एसयू-30 एमकेआई विमानों का निर्माण एचएएल में किया जा रहा है।

भारत में बने जेट विमानों का अब होगा निर्यात, तेजस में रुचि दिखा रहे और कई देश

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के तहत अब विमानन से लेकर रक्षा क्षेत्र में भी मेक इन इंडिया धूम मचाने को तैयार है। भारत के स्‍वदेशी जेट विमान तेजस (Tejas) की डिमांड पूरी दुनिया में हो रही है। दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपीन समेत छह देशों ने भारत के तेजस विमान में रुचि दिखाई है, वहीं मलेशिया पहले ही इस विमान को खरीदने की तैयारी में है। भारत ने मलेशिया को 18 तेजस बेचने की पेशकश की है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है जिसकी क्षमता अत्यधिक खतरे वाले माहौल में परिचालन की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार विदेशी रक्षा उपकरणों पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है। इसके अलावा सरकार भारत में बने जेट विमानों के निर्यात के लिए राजनयिक प्रयास भी कर रही है।

मलेशिया को 18 विमान बेचने की पेशकश

रक्षा मंत्रालय ने संसद को बताया कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को पिछले साल अक्टूबर में रॉयल मलेशियाई वायु सेना से एक प्रस्ताव मिला था। इसका जवाब देते हुए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने 18 जेट विमानों को बेचने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें तेजस के दो सीटों वाले संस्करण को बेचने की पेशकश की गई थी।

अर्जेंटीना और मिस्र की भी तेजस विमान में दिलचस्पी

रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में लोकसभा में कहा कि तेजस विमान में दिलचस्पी दिखाने वाले अन्य दो देश अर्जेंटीना और मिस्र हैं। मलेशिया अपने पुराने रूसी मिग-29 लड़ाकू विमानों को बदलने के लिए तेजस विमान खरीद रहा है। भट्ट ने कहा कि एलसीए विमान में रुचि दिखाने वाले अन्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, अमेरिका, इंडोनेशिया और फिलीपीन हैं।

फिलीपीन्स भी खरीदना चाहता है तेजस

ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की तीन बैटरी की खरीद के लिए 30.75 करोड़ डॉलर के सौदे पर मुहर लगाने के कुछ महीने बाद फिलीपीन्स अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत से उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर खरीदने पर विचार कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ दशकों से चल रहे क्षेत्रीय विवादों के साथ-साथ अन्य समुद्री सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए फिलीपीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। रक्षा प्रतिष्ठान के अधिकारियों ने बताया कि फिलीपीन ने अपने पुराने हेलीकॉप्टर बेड़े को बदलने के लिए कई उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) की खरीद में दिलचस्पी दिखाई है।

तेजस विमानों की डिलीवरी 2023 से शुरू होगी

पीएम मोदी के विजन पर चलते हुए भारत ने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का निर्माण शुरू किया है। अपनी हवाई क्षमता में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि के लिए भारत उन्नत सुविधाओं के साथ पांचवीं पीढ़ी के मध्यम वजन वाले लड़ाकू जेट विकसित करने की परियोजना पर काम कर रहा है। परियोजना पर प्रारंभिक अनुमानित खर्च 1500 करोड़ रुपये है। भारत सरकार ने पिछले साल सरकार के स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट दिया था। रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना के लिए 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) खरीदने के वास्ते पिछले साल फरवरी में एचएएल के साथ 48,000 करोड़ रुपये का करार किया था। एचएएल को इन विमानों की 2023 से डिलीवरी शुरू करना है।

पीएम मोदी के विजन से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ ही भारत अन्य क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देकर देश की खपत पूरा करने के साथ ही दूसरे देशों को निर्यात कर रिकार्ड बना रहा है…

भारत ने चीनी का 109.8 लाख मीट्रिक टन का रिकॉर्ड निर्यात किया, 40 हजार करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा की कमाई

देश में चीनी सत्र (अक्टूबर-सितंबर) 2021-22 के दौरान 5000 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से अधिक गन्ने का उत्पादन हुआ है, जिसमें से लगभग 3574 एलएमटी गन्ने को चीनी मिलों ने संवर्धित कर करीब 394 लाख मीट्रिक टन चीनी (सुक्रोज) का उत्पादन किया है। इसमें से एथनॉल तैयार करने के लिए 35 लाख मीट्रिक टन चीनी का इस्तेमाल किया गया और चीनी मिलों द्वारा 359 लाख मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन किया गया। साथ ही, भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक तथा उपभोक्ता और दुनिया के दूसरे सबसे बड़े चीनी निर्यातक के रूप में उभर कर सामने आया है। वर्तमान सीजन में आकर्षण का एक और केंद्र लगभग 109.8 लाख मीट्रिक टन का रिकॉर्ड उच्चतम चीनी का निर्यात है, वह भी बिना किसी वित्तीय सहायता के जिसे 2020-21 तक बढ़ाया जा रहा था। भारत सरकार की नीतियों और सहायक अंतरराष्ट्रीय कीमतों ने भारतीय चीनी उद्योग की इस उपलब्धि को हासिल करने में मुख्य भूमिका निभाई है। इन निर्यातों से देश के लिए लगभग 40,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की गई है। चीनी क्षेत्र को 2018-19 में वित्तीय संकट से बाहर निकालने से लेकर 2021-22 में आत्मनिर्भरता तक पहुंचाने और उत्पादन में वृद्धि के लिए कदम से कदम मिलाते हुए पिछले 5 वर्षों से समय-समय पर किया गया सरकारी हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहा है। सरकार चीनी मिलों को चीनी को एथनॉल निर्माण के लिए इस्तेमाल करने और अधिशेष चीनी का निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि चीनी की मिलें समय पर किसानों को गन्ने का भुगतान जारी कर सकें और मिलों के लिए भी उनकी आर्थिक तथा विनिर्माण गतिवधियों को जारी रखने के उद्देश्य से बेहतर वित्तीय स्थिति बनी रहे।

वीगन श्रेणी के तहत वनस्पति आधारित मांस उत्पाद पहली बार गुजरात से अमेरिका निर्यात किया गया

अभिनव कृषि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार ने सर्वोच्च निर्यात संवर्धन संस्था कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात प्राधिकरण (एपीडा)– के जरिये वीगन (शाकाहारी और दुग्ध उत्पादों से रहित) खाद्य श्रेणी के अंतर्गत वनस्पति आधारित मांस उत्पादों की पहली खेप का निर्यात किया है। यह निर्यात गुजरात के खेड़ा जिले के नादियाड़ से अमेरिका के कैलीफोर्निया किया गया है। विकसित देशों में वीगन खाद्य उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता के मद्देनजर वनस्पति आधारित खाद्य उत्पादों में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों को निर्यात करने की अपार क्षमता है, क्योंकि इसमें उच्च गुणवत्ता वाले पोषक तत्‍व होते हैं। इसमें रेशे अधिक होते हैं और कोलोस्ट्रॉल की मात्रा बेहद कम होती है। इसलिये वीगन खाद्य उत्पाद पूरे विश्व में वैकल्पिक खाद्य उत्पाद बनते जा रहे हैं। नादियाड़ से जो पहली खेप अमेरिका निर्यात की गई है, उसमें वीगन उत्पाद हैं, जैसे मोमोज़, मिनी समोसे, पैटीज़, नगेट्स, स्प्रिंग रोल्स, बर्गर, आदि। एपीडा ने वीगन खाद्य उत्पादों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है, जिसमें पैनकेक, स्नैक्स, चीज़ आदि शामिल हैं, जिन्हें आने वाले समय में ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, न्यूजीलैंड और अन्य देशों को निर्यात किया जायेगा।

भारत का 2025-26 तक 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और निर्यात का लक्ष्य

भारत ने 2025-26 तक 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और निर्यात के लक्ष्य तय किया है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि हमारा लक्ष्य 2025-26 तक 300 अरब डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण और निर्यात के लक्ष्य को पार करना है। यह 25 लाख करोड़ रुपये के बराबर है, जो 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के सत्ता संभालने के समय की तुलना में 24 गुना ज्यादा है। उस समय यह आंकड़ा 1.10 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर था। उन्होंने कहा कि सरकार इस आंकड़े को हासिल करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स और निवेश के इच्छुक उद्यमियों को समर्थन देने के लिए सभी राज्यों के साथ भागीदारी में काम करने को प्रतिबद्ध है। चंद्रशेखर तिरुपति में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर स्थित मुनोथ इंडस्ट्रीज के भारत के पहले लिथियम सेल विनिर्माण संयंत्र के भ्रमण के दौरान संबोधन कर रहे थे। लिथियम-आयन फैक्ट्री का व्यावसायिक उत्पादन और औपचारिक उद्घाटन अगले महीने के लिए निर्धारित है। वर्तमान में संयंत्र की स्थापित क्षमता 270 मेगावॉट है और यह प्रतिदिन 10 एएच क्षमता के 20,000 सेल का उत्पादन कर सकती है। चंद्रशेखर ने भारत को इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाने के प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में एक कदम बनने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स तेजी से इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण, नवाचार और नौकरियों के केंद्र बन रहे हैं। वे भविष्य में एक बड़ी भूमिका निभाएंगे और नवाचार एवं इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण दोनों में भारत के टेकेड को आकार देंगे। ये हमारे युवाओं के दिलचस्पी वाले अहम क्षेत्र हैं।

लद्दाख से सिंगापुर, मॉरिशस, वियतनाम को 35 एमटी ताजा खुबानी का निर्यात किया गया

लद्दाख से कृषि और खाद्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय निर्यात को बढ़ावा देने वाली अपनी संस्था एपीडा के माध्यम से ‘लद्दाख एप्रिकोट’ यानी लद्दाख खुबानी ब्रांड के तहत लद्दाख से निर्यात बढ़ाने के लिए खुबानी मूल्य श्रृंखला के हितधारकों को सहायता देने की प्रक्रिया में है। खुबानी लद्दाख के महत्वपूर्ण फलों में से एक है और स्थानीय स्तर पर ‘चुली’ के नाम से जानी जाती है। एपीडा ने वर्ष 2021 के दौरान केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से ताजा खुबानी फलों के निर्यात की पहचान की थी और खुबानी सीजन 2021 के अंत में परीक्षण के तहत इसकी दुबई को आपूर्ति की गई थी। इसके अनूठे स्वाद और सुगंध के कारण उत्पाद की स्वीकार्यता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद की खासी मांग थी। एपीडा ने 14 जून, 2022 को लेह में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता बैठक का भी आयोजन किया था, जो खुबानी की खेती का सीजन शुरू होने से ठीक पहले हुई थी। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संवाद के लिए भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, ओमान, दुबई, मॉरिशस आदि देशों के 30 से ज्यादा खरीदार एकजुट हुए थे। इसके परिणामस्वरूप 2022 सीजन के दौरान पहली बार लद्दाख से 35 एमटी ताजी खुबानी का विभिन्न देशों को निर्यात किया गया। परीक्षण के तहत 2022 सीजन के दौरान सिंगापुर, मॉरिशस, वियतनाम जैसे देशों को भी शिपमेंट भेजी गई। 15,789 टन के कुल उत्पादन के साथ लद्दाख देश का सबसे बड़ा खुबानी उत्पादक है जो कुल उत्पादन का लगभग 62 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में लगभग 1,999 टन सूखी खुबानी का उत्पादन किया, जिससे यह देश में सूखी खुबानी का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। लद्दाख में खुबानी की खेती का कुल क्षेत्रफल 2,303 हेक्टेयर है।

बासमती चावल के निर्यात में 29.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज

वित्त वर्ष 2022-23 के प्रथम चार महीनों के दौरान बासमती चावल के निर्यात में 29.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जिसका निर्यात अप्रैल-जुलाई, 2021 के 1214 मिलियन डॉलर की तुलना में बढ़कर अप्रैल-जुलाई, 2022 के दौरान 1567 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। गैर बासमती चावल के निर्यात में चालू वित्त वर्ष के प्रथम चार महीनों के दौरान 9.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के प्रथम चार महीनों के दौरान बढ़कर 2086 मिलियन डॉलर पहुंच गया जबकि पिछले वित्त वर्ष के प्रथम चार महीनों के दौरान यह 1910 मिलियन डॉलर रहा था।

मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात 11.69 प्रतिशत बढ़ा

चालू वित्त वर्ष के प्रथम चार महीनों के दौरान, मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात 11.69 प्रतिशत बढ़ा और अन्य अनाजों के निर्यात ने 22.26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कराई। केवल डेयरी उत्पादों के निर्यात ने ही चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों के दौरान 61.91 प्रतिशत की बढोतरी दर्ज कराई जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 153 मिलियन डॉलर की तुलना में बढ़कर 247 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

कृषि उत्पादों के निर्यात में 19.92 प्रतिशत की बढोतरी

देश के कृषि उत्पादों के निर्यात में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 19.92 प्रतिशत की बढोतरी हुई थी जो 50.21 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। यह वृद्धि दर विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि यह वित्त वर्ष 2021-22 के अर्जित 41.87 बिलियन डॉलर की तुलना में 17.66 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है और इसे उच्च माल भाड़े तथा कंटेनर की कमी के रूप में लॉजिस्ट्क्सि की अभूतपूर्व चुनौती के बावजूद हासिल किया गया है।

गेहूं के निर्यात में 200 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज

रूस और यूक्रेन गेहूं के प्रमुख निर्यातक हैं, जिनकी कुल वैश्विक गेहूं व्यापार में लगभग एक-चौथाई हिस्सेदारी है। उनके बीच संघर्ष के कारण वैश्विक गेहूं आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है, जिससे भारतीय गेहूं की मांग में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप, घरेलू बाजार में भी गेहूं की कीमत में वृद्धि देखी गई। देश के 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया था। हालांकि, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध (जो घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने और देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लगाया था)) के कारण विदेशी बाजारों में गेहूं के आटे की मांग में वृद्धि हुई है और भारत से इसके निर्यात में अप्रैल-जुलाई 2022 के दौरान, 2021 की इसी अवधि की तुलना में, 200 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के आटे की बढ़ती मांग के कारण घरेलू बाजार में गेहूं के आटे की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इससे पहले की नीति यह थी कि गेहूं के आटे के निर्यात पर कोई रोक या प्रतिबंध नहीं लगाया जाये। इसलिए, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और देश में गेहूं के आटे की बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने के लिए गेहूं के आटे के निर्यात पर प्रतिबंध/रोक संबंधी छूट को वापस लेने की नीति में आंशिक संशोधन की आवश्यकता थी।

पूर्वोत्तर क्षेत्र से पिछले छह वर्षों में 85 प्रतिशत से अधिक निर्यात वृद्धि

पूर्वोत्तर क्षेत्र ( एनई )के राज्यों में उगाए जाने वाले बागवानी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने अब स्थानीय रूप से उत्पादित कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत रणनीति तैयार की है। पूर्वोत्तर क्षेत्र भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन तथा भूटान, म्यांमार, नेपाल और बांग्ला देश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाएं साझा करता है जो इसे पडोसी देशों एवं साथ में विदेशी गंतव्य स्थानों को कृषि ऊपज के निर्यात के लिए संभावित हब बनाता है। इसके परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों में असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम एवं मेघालय जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र से कृषि ऊपज के निर्यात में उल्लेखनीय बढोतरी हुई है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले छह वर्षों के दौरान कृषि उत्पादों के निर्यात में 85.34 प्रतिशत की बढोतरी देखी गई है और यह वित्त वर्ष 2016-17 के 2.52 मिलियन डॉलर से बढ़ कर वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 17.2 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। बांग्ला देश, भूटान, मध्य पूर्व, ब्रिटेन, यूरोप पूर्वोत्तर क्षेत्र के उत्पादों के प्रमुख गंतव्य देश हैं। संभावित मार्केट लिंकेज प्रदान करने के लिए, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण ( एपीडा ) ने किसानों द्वारा अनुपालन की जाने वाली गुणात्मक खेती पद्धतियों के बारे में प्राथमिक जानकारी प्रदान करने के लिए आयातकों के लिए प्रक्षेत्र दौरों का आयोजन किया। ये आयातक मुख्य रूप से मध्य पूर्व, सुदूर पूर्वी देशों तथा यूरोपीय राष्ट्रों और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के थे।

पिछले 8 साल में फार्मा निर्यात में 150% से अधिक की वृद्धि

अप्रैल-जून 2013-14 में देश से दवाओं एवं अन्य मेडिकल उत्पादों का निर्यात जहां 15,260 करोड़ रुपये का था वहीं अप्रैल-जून 2022-23 में यह बढ़कर 37,609 करोड़ रुपये हो गए। पिछले 3000 दिनों में निर्यात में 150 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। यह सब पीएम के देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने एवं देश को दुनिया के मंच पर आगे बढ़ाने की पहल से संभव हो पाया है। फार्मा सेक्टर का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ निर्यात प्रदर्शन है। देश और दुनिया को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के साथ ही भारतीय फार्मा सेक्टर ने आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति भी निर्बाध रूप से की है। वहीं इस दौरान लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्टेशन जैसी सुविधाओं के लिए केंद्र सरकार की तरफ से काफी सहायता की गई है। इन्हीं कारणों से आज देश का फार्मा सेक्टर इस मुकाम पर पहुंच गया है।

दुनिया के 206 देशों में भारत करता है दवाओं की सप्‍लाई

फार्मा निर्यातकों के मुताबिक भारत पहले से ही वैश्विक दवाखाना है क्योंकि दुनिया के 206 देशों में किसी न किसी रूप में भारतीय दवा की सप्लाई होती है। लेकिन अब उन देशों में भी भारत की सस्ती दवाएं सप्लाई होंगी जिन्हें भारत की सस्ती दवा पर बहुत भरोसा नहीं था। भारत हेपेटाइटिस बी से लेकर एचआईवी व कैंसर जैसी घातक बीमारियों के लिए दुनिया की दवा के मुकाबले काफी सस्ती दवा बनाता है। हाल ही में यूएई और आस्ट्रेलिया से भारत ने जो व्यापार समझौता किया है, उससे भी भारतीय फार्मा निर्यात को बड़ा लाभ मिलने जा रहा है। आस्ट्रेलिया में भारत अभी सिर्फ 34 करोड़ डॉलर का फार्मा निर्यात करता था जो अब एक अरब डॉलर के स्तर तक जा सकता है क्योंकि भारतीय दवा आस्ट्रेलिया में बिकने वाली दवा के मुकाबले काफी सस्ती है और यह बात आस्ट्रेलिया सरकार को समझ में आ गई है। यूएई के बाजार से भारतीय दवा अफ्रीका के देशों में जाएंगी। दक्षिण अमेरिका के देश भी भारत की सस्ती दवाओं के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं।

भारत ने 2021-22 में 4.1 बिलियन डॉलर के मसालों का निर्यात किया

भारत वैश्विक स्तर पर मसालों का सबसे बड़ा निर्यातक है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 4.1 बिलियन डॉलर के मसालों का निर्यात किया। इस हिस्से से, 1.8 बिलियन डॉलर ने मुख्य मसालों – सूखी मिर्च, जीरा और हल्दी का गठन किया, इसके बाद टकसाल उत्पादों, मसाला तेलों और ओलेरेसिन के 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निर्यात किया गया। मिर्च, जीरा और हल्दी के निर्यात में भारत का पहला स्थान है। वित्त वर्ष 2022 में, चीन और अमेरिका ने भारत सबसे ज्यादा मसालों का आयात किए। चीन मिर्च, जीरा और विभिन्न टकसाल उत्पादों का भारत का शीर्ष आयातक है, अमेरिका मुख्य रूप से करी पाउडर और पेस्ट, मसाला तेल और ओलेरोसिन का आयात करता है। इसके अलावा, भारत बांग्लादेश को हल्दी और अदरक का निर्यात करता है और कुछ मुख्य मसाले जैसे छोटी इलायची सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात करता है। इन क्षेत्रों में सामूहिक रूप से भारत के मसाला निर्यात बाजार का 50% से अधिक शामिल है।

मोदी काल में मसाला उत्पादन में 60 फीसदी वृद्धि

भारत ने मसाला उत्पादन में बड़ी छलांग लगाई है। देश में मसाला उत्पादन वर्ष 2014-15 के 67.64 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड 60 फीसदी वृद्धि के साथ करीब 107 लाख टन के स्तर तक पहुंच गया है। यही नहीं भारतीय मसालों की धाक पूरी दुनिया में बढ़ रही है। विदेशी रसोई में भारतीय मसालों की खुशबू का जलवा कायम है। इसकी वजह से एक्सपोर्ट लगभग दोगुना हो गया है। विशेष रूप से कोरोना महामारी काल में मसालों को स्वास्थ्य पूरक के रूप में मान्यता मिलने के कारण मसालों की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसे हल्दी, अदरक, जीरा, मिर्च आदि मसालों के बढ़ते निर्यात में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

भारतीय कपड़े की विदेशों में बढ़ी मांग, मोदी काल में निर्यात 99 प्रतिशत बढ़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के विजन को साकार करने के लिए हर सेक्टर में मेड इन इंडिया प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए हर किस्म का प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी प्रोत्साहन का नतीजा है कि आज हर क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर तो बन ही रहा है निर्यात में भी अपनी बादशाहत कायम कर रहा है। मोदी राज में कपड़ा क्षेत्र को मिले प्रोत्साहन की वजह से देश में उत्कृष्ट कपड़ा का उत्पादन किया जा रहा है विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ी है। अप्रैल-जून 2013-14 में जहां भारत से 8638 करोड़ रुपये के कपड़े का निर्यात किया गया था वहीं अप्रैल-जून 2022-23 में 17204 करोड़ रुपये का निर्यात किया गया। इस तरह मोदी काल में कपड़ों के निर्यात में 99 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। भारत का कपड़ा और परिधान निर्यात वित्त वर्ष 2021-22 में 44.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया था जो अब तक किसी भी वित्त वर्ष में सबसे अधिक है। सरकार ने बताया कि निर्यात की सूची में हस्तशिल्प भी शामिल है तथा वित्त वर्ष 2021-22 में किया गया निर्यात 2020-21 और 2019-20 की तुलना में क्रमशः 41 प्रतिशत और 26 प्रतिशत अधिक है। भारत ने वित्तवर्ष 2021-22 में अब तक का सबसे बड़ा टैक्सटाइल एक्सपोर्ट कर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का टैक्सटाइल एक्सपोर्ट में छठा स्थान है। यहां पर बाजी चीन ने मारी हुई थी, लेकिन भारत ने वैश्विक बाजार को देखते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया और उसका नतीजा हमारे सामने है। टैक्सटाइल निर्यात 44.4 अरब अमरीकी डॉलर का हुआ है, जिसमें हैंडीक्राफ्ट (हस्तशिल्प) उत्पादों की संख्या अच्छी-खासी है।

भारतीय कॉफी की विदेशों में मांग बढ़ी, मोदी काल में निर्यात 90 फीसदी बढ़ा

भारत कॉफी उत्पादन में दुनिया के टॉप 10 देशों में शुमार है। हाल के वर्षों में विदेशों में भारतीय कॉफी की मांग बढ़ गई है। अब दुनिया के कई हिस्से में लोग सुबह उठने के बाद भारतीय कॉफी का आनंद लेकर अपने दिन की शुरुआत करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए किए जा रहे उपायों के असर की वजह से आज भारत हर सेक्टर में दमदार प्रदर्शन कर रहा है। मोदी काल में कॉफी निर्यात में 90 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। अप्रैल-जून 2013-14 में भारत से 979 करोड़ रुपये का कॉफी निर्यात किया गया था जबकि अप्रैल-जून 2022-23 में 1,864 करोड़ रुपये का कॉफी निर्यात किया गया। यही नहीं भारतीय कॉफी उद्योग को बढ़ावा देने की वजह से देश के कॉफी निर्यात में पिछले साल (2021-22) 42 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। कॉफी बोर्ड के अनुसार, एशिया के तीसरे सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक भारत से कॉफी शिपमेंट चालू कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में 19 प्रतिशत बढ़कर 2,24,293 टन हो गया। एक साल पहले की अवधि में देश ने 1,88,736 टन निर्यात किया था। इस अवधि के दौरान इटली, जर्मनी और बेल्जियम भारतीय कॉफी के प्रमुख निर्यात गंतव्य थे।

मोदी काल में भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ा

पीएम मोदी के आठ साल के कार्यकाल में भारतीय वाद्ययंत्रों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ गया है। अप्रैल मई 2013 में भारतीय वाद्ययंत्रों का निर्यात 11 करोड़ रुपये का हुआ था जबकि अप्रैल मई 2022 में 65 करोड़ रुपये मूल्य के वाद्ययंत्रों का निर्यात किया गया। इस तरह पिछले आठ सालों में इसमें 494 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। आज भारतीय संगीत वाद्ययंत्र 173 से अधिक देशों में निर्यात किए जाते हैं। वर्ष 2020-2021 (अप्रैल-नवंबर) में 2020-2021 (अप्रैल-नवंबर) में कुल निर्यात किए गए वाद्ययंत्रों की संख्या लगभग 10407888 थी। वर्ष 2018 में दुनिया भर में वाद्ययंत्र निर्यात की कुल मात्रा 8509628 थी। ये आंकड़े भारतीय वाद्ययंत्र के वैश्विक व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाने और उनकी संख्या में सुधार करने की बड़ी क्षमता दिखाते हैं। वर्ष 2018 में भारत ने 2017 की तुलना में 38.25% की वृद्धि दिखाते हुए 8509628 मिलियन मीट्रिक टन संगीत वाद्ययंत्र का निर्यात किया था।

मोदी राज में केले का निर्यात 700 प्रतिशत बढ़ा

मोदी सरकार की किसान हितैषी नीतियों की वजह से भारतीय केला जल्द ही दुनिया के बाजारों में छा जाएगा। इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले अप्रैल-मई 2013 में 26 करोड़ रुपये मूल्य के केले का निर्यात हुआ था जबकि अप्रैल-मई 2022 में 213 करोड़ रुपये के केले का निर्यात किया गया, यानी केला निर्यात में 703 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आज भारत सलाना आधार पर 600 करोड़ रुपये से अधिक का केला निर्यात करता है और इसके साथ नए बाजारों की तलाश का काम भी जारी है। अभी हाल ही में कनाडा को केला निर्यात पर सहमति बनी है। पीएम मोदी के किसानों की आय दोगुना करने और किसान हित की योजनाएं लागू करने की वजह से यह परिवर्तन आया है। यह परिवर्तन इसलिए भी आया है कि पीएम मोदी के न्यू इंडिया आह्वान से युवा, किसानों, कारोबारियों एवं सभी वर्ग में कुछ अलग हटकर और नया करने का जज्बा और जोश आया है। बीते कुछ सालों में वैश्विक स्तरीय कृषि प्रक्रियाओं को अपनाने के चलते भारत का केला निर्यात तेजी से बढ़ा है। ये वृद्धि मात्रा और मूल्य दोनों के संदर्भ में देखी गई है। वर्ष 2018-19 में देश का कुल केला निर्यात 1.34 लाख टन था और इसका मूल्य 413 करोड़ रुपये था। वर्ष 2019-20 में ये बढ़कर 1.95 लाख टन हो गया और इसका मूल्य 660 करोड़ रुपये रहा। वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी और उसके चलते लगे प्रतिबंधों के बावजूद देश का केला निर्यात अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच 1.91 लाख टन रहा और इसका मूल्य 619 करोड़ रुपये है।

भारतीय शहद का 100 देशों में फैला करोड़ों का कारोबार, मोदी सरकार में निर्यात में 149 प्रतिशत वृद्धि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती के अलावा कई अन्य कृषि उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। शहद (Honey) उत्पादन भी उनमें से एक है, जिसका उत्पादन कर किसान न सिर्फ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि उनका शहद विदेशों में भी निर्यात किया जा रहा है। दरअसल, शहद और उससे बने उत्पादों की मांग अब विदेशों में काफी बढ़ गई है और देश से हर साल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है। देश में ‘मीठी क्रांति’ को बढ़ावा देने की कोशिशें का ही परिणाम है कि वर्ष 2013 में जहां शहद का निर्यात 124 करोड़ रुपए का हुआ था वहीं वर्ष 2022 में यह बढ़कर 309 करोड़ रुपए हो गया यानी इस दौरान शहद निर्यात में 149 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। शहद इम्यूनिटी बढ़ाता है इसलिए दुनियाभर में शक्कर के बजाय इसका सेवन बढ़ गया है। भारत शहद का दुनिया में 9वां सबसे बड़ा निर्यातक देश है। पिछले साल देश ने 716 करोड़ रुपए का शहद निर्यात किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा अब इसका प्रॉडक्शन बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम हो रहा है। वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाला कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) अब ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में शहद का निर्यात बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों, किसानों और अन्य हितधारकों के साथ काम कर रहा है। भारत शहद निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न देशों के शुल्क ढांचे पर नए सिरे से बातचीत कर रहा है। भारत ने 2020-21 में 716 करोड़ रुपये मूल्य के 59,999 टन प्राकृतिक शहद का निर्यात किया था। इसमें 44,881 टन अमेरिका को निर्यात किया गया था।

खिलौना निर्यात में हुई 61 % वृद्धि, चीनी खिलौनों के ऊपर भारत के स्वदेशी खिलौने हावी!

आज से कुछ सालों पहले तक मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। परंतु कुछ ही सालों के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूरदर्शी सोच को धरातल पर उतारकर हर मोर्चे पर लोगों को सशक्त बनाने का काम किया है। आज के समय में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसका ताजा उदाहरण खिलौना उद्योग है जिसने कुछ ही वर्षों के भीतर विकास के नए आयाम गढ़े हैं। पिछले तीन साल में भारतीय खिलौना बाजार में जबरदस्त तेजी आई है। पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के प्रयासों से ही यह करिश्मा संभव हुआ है। दरअसल, इस दौरान केंद्र सरकार ने देश में खिलौना बाजार से जुड़े तमाम खिलौना निर्माताओं और कारोबारियों को प्रोत्साहित किया है। केवल इतना ही नहीं मोदी सरकार ने देश की जनता को घरेलू खिलौनों को खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित किया। इसके चलते एक ओर भारत में खिलौनों का निर्यात बढ़ा तो वहीं खिलौनों का आयात भी घट गया। इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली बल्कि खिलौना उद्योग के फलने-फूलने से लोगों को रोजगार भी मिला है। व्यापारिक उत्पादों को वर्गीकृत करने के लिए एक मानकीकृत नामकरण का उपयोग किया जाता है और इसे एक कोड नाम दिया जाता है। एचएस कोड 9503, 9504 एवं 9503 के लिए, खिलौना निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के 202 मिलियन (20.2 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 326 मिलियन (32.6 करोड़) डॉलर रहा जो 61.39 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है। एचएस कोड 9503 के लिए, खिलौना निर्यात बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 के 109 मिलियन (10.9 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर 177 मिलियन (17.7) डॉलर पर पहुंच गया।

भारत में खिलौना आयात में 70 फीसदी कमी आई

तीन-चार वर्षों पहले तक भारत खिलौने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। खासतौर पर देश के खिलौना क्षेत्र पर चीन का बड़ा कब्जा था। भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आया करते थे। परंतु अब इसमें बहुत ही बड़ा बदलाव देखने को मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान भारत के खिलौना क्षेत्र को बदल रहा है। देश में खिलौना उद्योग तेजी से फलने-फूलने लगा है। महज तीन सालों के अंदर भारत में खिलौने के आयात में 70 फीसदी की कमी आई है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक तीन सालों में खिलौना आयात में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। केवल इतना ही नहीं भारत अब दूसरे देशों को भी अपने बनाए गए खिलौने निर्यात कर रहा है। तीन सालों में खिलौने के निर्यात में 61 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है।

केमिकल्स एक्सपोर्ट 106 प्रतिशत बढ़कर 29.3 अरब डॉलर पर पहुंचा

भारतीय रसायनों के निर्यात ने वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में 106 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत का रसायन निर्यात रिकॉर्ड 29.29 अरब डॉलर रहा। वित्त वर्ष 2013-14 में रसायनों का भारतीय निर्यात 14.21 अरब डॉलर था। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि निर्यात में वृद्धि से प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा मिलेगा।

भारत ने 254 अरब डॉलर के साथ सेवा निर्यात में बनाया रिकॉर्ड

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में हर क्षेत्र में रोज नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। उनके नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही हुई है। अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर में सुधार दिखाई दे रहा है। मोदी राज में भारत के सेवा क्षेत्र निर्यात ने वित्त वर्ष 2021-22 में 254.4 अरब डॉलर का एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इसने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान अर्जित 213.2 अरब डॉलर के पिछले कीर्तिमान को ध्वस्त कर दिया है। सेवा क्षेत्र निर्यात ने मार्च 2022 के दौरान 26.9 अरब डॉलर की सर्वकालिक मासिक ऊंचाई को छुआ है। इसके साथ ही, भारत का समग्र निर्यात ( सेवा एवं वस्तु क्षेत्र ) वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 676.2 अरब डॉलर की ऊंचाई तक पहुंच गया है, क्योंकि सेवा एवं वस्तु क्षेत्र दोनों ने ही वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान उच्च निर्यात रिकॉर्ड दर्ज किया है। भारत का समग्र निर्यात वित्त वर्ष 2019-20 में 526.6 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 497.9 अरब डॉलर था।

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