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जानिए यूपीए के दस साल के दौरान देश में बेरोजगारी किस तरह बढ़ी, जिसका आज तक है असर

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देश की 125 करोड़ आबादी के 65 प्रतिशत लोग 21 से 35 वर्ष की आयु के हैं। भारत में विश्व के सबसे अधिक युवा हैं। युवाओं में अच्छा जीवन जीने की आंकाक्षाएं होना स्वाभाविक है, क्योंकि जोश, उत्साह और सब कुछ पाने की लालसा रखना ही युवा होने का अहसास होता है। देश की इस युवा आबादी की आंकाक्षाओं को पूरा होने के लिए जिन परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, उस परिस्थिति को बनाने की जिम्मेदारी नीति निर्माताओं के हाथ में है। 21वीं सदी के शुरुआती दस सालों में जब देश में युवा आबादी बढ़ी, उन सालों में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार नीतियों के बनाने के केन्द्र में थी।

मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरमैन और इंफोसिस कंपनी में मानव संसाधन विभाग के प्रमुख रह चुके मोहन दास पई ने हाल ही में पीटीआई से बातचीत में कहा कि “Because of the failure of the UPA era (2004-2014), we will add another ten crore by 2025…total 20 crore in the 21-45 age group with low skills, low education.”  अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने ऐसा क्या किया, जिससे देश को आज भी बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है।

यूपीए ने रोजगार के अवसर नहीं पैदा किए-यूपीए सरकार दस सालों के दौरान देश में येन केन प्रकारेण आर्थिक विकास की वृद्धि दर बढ़ाने के काम में जुटी रही और उसका ध्यान अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसरों को पैदा करने पर नहीं रहा। इस पॉलिसी पैरालिसिस का परिणाम यह हुआ कि यूपीए सरकार के दस साल में देश के युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिले और देश के लिए 2004-2014 का दशक बेकार हो गया।

2014 में NSSO के सर्वेक्षण से भी यह तथ्य सामने आया कि यूपीए के दस सालों में मात्र 1.5 करोड़ नई नौकरियों का सृजन हो सका जबकि हर साल देश में 1 करोड़ 20 लाख काम करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ी। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसे अच्छी तरह समझते हुए भी आर्थिक नीति बनाने में चूक करते रहे। यूपीए सरकार के दस सालों से पहले के पांच सालों में 1999-2004 तक भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में 5.8 करोड़ नई नौकरियों का सृजन हुआ था।

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के केन्द्र में खैरात -मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री तो थे, लेकिन उनमें यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देशों से बाहर जाकर निर्णय लेने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि वह राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे और जनता ने उन्हें सीधे चुनकर कभी लोकसभा में भेजा भी नहीं था। सरकार में सत्ता के दो केन्द्र होने के कारण सरकार की नीतियों में समस्याओं के समग्रता से समाधान का टोटा बना रहा।

दूसरी तरह सोनिया गांधी, कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने के लिए, जनता को तात्कालिक तौर पर खुश रखने और चुनाव जीतने के लिए हर फैसले लेती रहीं। सोनिया गांधी ने अपनी एक राष्ट्रीय परामर्श समीति बनायी थी, जिसमें देश के दर्जन भर समाजसेवी संस्थाओं के मुखिया सदस्य थे। इसी परामर्श समीति की सिफारिशों को मनमोहन सिंह की सरकार के ऊपर लागू करने के लिए थोपा जाता था। इस समीति का पूरा जोर इस बात पर था कि संसाधनों के वितरण को गरीबों, किसानों और गांवों तक पहुंचाने के लिए सरकारी सहायता की धनराशि को बढ़ाया जाए। इस समीति का कभी यह सरोकार नहीं रहा कि कैसे किसानों, गरीबों और गांवों तक सुविधाओं और सरकारी सेवाओं की पहुंच बढ़ाकर उनका सशक्तिकरण किया जाए, ताकि वे स्वंय ही आर्थिक तरक्की कर सकें। यूपीए सरकार, खैरात बांटने के लिए सब्सिडी के आवंटन को बढाने में कभी पीछे नहीं रही।

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियां उद्योग धंधों के विकास से दूर रही– यूपीए सरकार में सत्ता के दो केन्द्र होने और आर्थिक समस्याओं के समाधान पर समग्रता से विचार करने के अभाव के कारण, देश में उद्योग धंधों, स्टार्टअप और लघु व मध्यम दर्जे के उद्यमों के विकास के लिए किसी भी प्रकार की प्रभावी नीति लागू नहीं हुई। इन नीतियों और सरकार की सोच में कमी के कारण दस सालों तक देश में उद्योग धंधों को विकसित होने का कोई इकोसिस्टम नहीं बना सका।

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों में कौशल विकास का अभाव रहा-दस सालों तक यूपीए सरकार, देश के युवाओं के हाथों को मजबूत करने के लिए कौशल विकास की नीति को वास्तविक रूप में लागू नहीं कर सकी। सरकार ने दस सालों के अंतिम कुछ वर्षों में बेरोजगार युवाओं के कौशल विकास की जरूरत समझ आने पर नीतियां बनाना शुरु तो किया, लेकिन उसमें भी समग्रता का अभाव तो था ही साथ ही साथ उसे लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति भी सरकार में नहीं थी।

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियां भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाली थीं-यूपीए ने दस सालों के दौरान आर्थिक तंत्र से भ्रष्टाचार खत्म करने और व्यापार को सुगम व सरल बनाने वाली कोई नीति लागू नहीं कर सकी, इसका परिणाम रहा कि लघु और छोटे व्यापार के विकास की रफ्तार थम गई। लघु और छोटे व्यापार का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं।

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियां, आधुनिक सूचना तकनीक से दूर -यूपीए सरकार ने 2004-2014 के दस सालों के शासन के दौरान आर्थिक तंत्र में तकनीक के इस्तेमाल से तौबा कर रखी थी। सूचना तकनीक का सही और उचित उपयोग न कर सकने के कारण, संसाधनों के वितरण और राजस्व की भ्रष्टाचार से मुक्ति हासिल नहीं हो सकी। सूचना तकनीक का उपयोग न करने से बैंकों से व्यापारी लाखों करोड़ का ऋण लेकर डकार जाते और सरकार को आभास भी नहीं होता कि उसकी नाक के नीचे क्या हो रहा है।

देश के युवाओं के लिए यूपीए ने 2004-2014 तक के दस सालों के समय को गंवा दिया, यदि कांग्रेस की यह सरकार युवाओं की आंकाक्षाओं को पूरा करने के लिए सजग रहती और एक समग्र आर्थिक नीति को लागू किया होता तो युवाओं के हाथ में कौशल और रोजगार के अवसर होते। कांग्रेस ने सत्ता की मदहोशी में देश के युवाओं की आंकाक्षाओं के साथ दस साल तक छल किया, जिसके लिए देश का इतिहास कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेगा।

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