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राष्ट्रवादियों को मिला नया हौंसला, जम्मू-कश्मीर में पहली बार संघ कर रहा है मंथन

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जम्मू-कश्मीर की धरती पर नया इतिहास रचा जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 91 साल के गौरवपूर्ण इतिहास में पहली बार राज्य में संघ के बड़े पदाधिकारियों की बैठक हो रही है। इतने बड़े मंथन के आयोजन से साफ हो गया है कि पिछले तीन साल में वहां राष्ट्रवाद की भावना को विस्तार मिला है। समाचार पोर्टल जागरण के अनुसार मंगलवार से शुरू हुई तीन दिवसीय बैठक की अगुवाई खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत कर रहे हैं।

संघ के बड़े पदाधिकारी शामिल
डॉक्टर केशवराव बलिराम राव हेडगेवार ने 1925 में दशहरे के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की थी। तब से ये पहला अवसर है कि जम्मू-कश्मीर में संघ का इतना बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया है। जम्मू के अंबफला में 20 जुलाई तक चलने वाली इस गहन बैठक में सभी राज्यों के प्रांत प्रचारक, सह प्रांत प्रचारक, क्षेत्रीय प्रचारक एवं अखिल भारतीय कार्यकारिणी के लगभग 195 पदाधिकारी हिस्सा ले रहे हैं।

संघ के कौन-कौन बड़े नेता शामिल ?
इस राष्ट्रीय बैठक में सर संघ चालक मोहन जी भागवत के अलावा सह-कार्यवाह भैया जी जोशी, दत्तात्रेय होसबोले, सोनी जी, डॉक्टर कृष्ण गोपाल, भगैया जी शामिल हो रहे हैं। इन के साथ ही इंद्रेश जी, मदन दास देवी समेत संघ के सभी वरिष्‍ठ पदाधिकारी, बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री राम लाल, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह और वी सतीश जैसे नेता भी हिस्सा ले रहे हैं।

राज्य और देश की हालात पर भी मंथन
जानकारी के अनुसार इस बैठक में घाटी में आतंकवाद का प्रभाव, पत्थरबाजी, सुरक्षा बलों की स्थिति, चीन और पाकिस्तान से जुड़े मसलों पर भी चर्चा होने की संभावना है। जानकारी के अनुसार मंगलवार को औपचारिक रूप से बैठक शुरू होने से पहले ही कई ग्रुप्स में बैठकें हो चुकी हैं। इसके लिए सर संघचालक 14 जुलाई से ही जम्मू में डेरा डाले हुए हैं और 22 जुलाई तक वो जम्मू में ही डटे रहेंगे।

1940 में जम्मू में लगी थी पहली शाखा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य में संघ की पहली शाखा 1940 में जम्मू में लगाई थी। तब उसकी स्थापना संघ के नेता और बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक बलराज मधोक ने की थी। तब से वहां नियमित तौर पर शाखाएं लगती आई हैं और अब उसका बहुत विस्तार भी हुआ है।

राजा हरि सिंह को भारत में विलय के लिए तैयार किया था
मीडिया रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि बलराज मधोक के ही पहल से कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह भारत में विलय के प्रस्ताव पर तैयार हो गये थे। तब सरदार पटेल पूरे देश को एकजुट करने के प्रयास में जुटे थे। जबकि कश्मीर को भारत में शामिल कराने की जिम्मेदारी पंडित नेहरु ने ली थी। लेकिन उनकी रणनीति खामियों से भरी थी जिसका खामियाजा आज भी देश को भुगतना पड़ रहा है।

आरएसएस का गठन अखंड भारत के संकल्प के साथ हुआ था। तब से लेकर लाख उतार-चढ़ाव के बावजूद संघ अपने लक्ष्य से नहीं डिगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पराक्रम से पिछले तीन सालों में जम्मू-कश्मीर को लेकर वहां के लोगों के साथ-साथ पूरे देश की सोच बदली है। वहां की आम जनता भारत विरोधियों की सोच को समझ चुकी है। यही कारण है कि बचे-खुचे पाकिस्तान परस्त आतंकवाद और अलगाववादी बुझते दीये की तरह टिमटिमा रहे हैं। लेकिन उनका खेल लगभग समाप्त होने वाला है। ऐसे में अगर संघ जैसी नि:स्वार्थ और विश्व की सबसे बड़ी गैर-सरकारी संस्था जम्मू-कश्मीर की जनता और वहां डटे जवानों का हौंसला बढ़ाने का काम करती है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।

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