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मोदी काल में भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ा, 173 देशों में भारतीय धुन को पसंद कर रहे लोग

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के साथ ही निर्य़ात में अव्वल साबित हो रहा है। यही वजह है कि इस साल नरेंद्र मोदी सरकार ने निर्यात के मोर्चे पर एक अहम कामयाबी हासिल की है। महामारी संकट और रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे हालात के बीच भारत ने पहली बार 400 अरब डॉलर के माल निर्यात का लक्ष्य हासिल किया है। इस निर्यात लक्ष्य को हासिल करने में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि पीएम मोदी की प्रेरणा से अब भारत से वैसे उत्पादों का भी निर्यात बढ़ा है जो पहले एक सपना समझा जाता था। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर राज्यों से कृषि उत्पादों के निर्यात पर पहले उतना जोर नहीं रहता था लेकिन अब इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसी तरह भारत जो खिलौने का आयातक देश था आज पीएम मोदी की प्रेरणा से खिलौना निर्यातक देश बन गया है। आज से कुछ साल पहले तक भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों के निर्यात पर चर्चा भी नहीं होती थी क्योंकि हमारा निर्यात नगण्य था। आज पीएम मोदी के आठ साल के कार्यकाल में भारतीय वाद्ययंत्रों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ गया है। अप्रैल मई 2013 में भारतीय वाद्ययंत्रों का निर्यात 11 करोड़ रुपये का हुआ था जबकि अप्रैल मई 2022 में 65 करोड़ रुपये मूल्य के वाद्ययंत्रों का निर्यात किया गया। इस तरह पिछले आठ सालों में इसमें 494 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

173 देशों में भेजे जाते हैं भारतीय वाद्ययंत्र

आज भारतीय संगीत वाद्ययंत्र 173 से अधिक देशों में निर्यात किए जाते हैं। वर्ष 2020-2021 (अप्रैल-नवंबर) में 2020-2021 (अप्रैल-नवंबर) में कुल निर्यात किए गए वाद्ययंत्रों की संख्या लगभग 10407888 थी। वर्ष 2018 में दुनिया भर में वाद्ययंत्र निर्यात की कुल मात्रा 8509628 थी। ये आंकड़े भारतीय वाद्ययंत्र के वैश्विक व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाने और उनकी संख्या में सुधार करने की बड़ी क्षमता दिखाते हैं। वर्ष 2018 में भारत ने 2017 की तुलना में 38.25% की वृद्धि दिखाते हुए 8509628 मिलियन मीट्रिक टन संगीत वाद्ययंत्र का निर्यात किया था।

भारत से संगीत वाद्ययंत्र आयात करने वाले शीर्ष पांच देश

भारत से सबसे ज्यादा वाद्ययंत्र का निर्यात अमेरिका (यूएसए) को किया जाता है। भारत के शीर्ष 5 व्यापारिक साझेदार यूएसए (6.57 यूएसडी मिलियन), जर्मनी (2.87 यूएसडी मिलियन), चीन (1.36 यूएसडी मिलियन), नीदरलैंड्स (1.12 यूएसडी मिलियन), इंडोनेशिया (0.9 यूएसडी मिलियन) हैं। इन देशों में वाद्ययंत्रों का कुल निर्यात मूल्य 12.82 USD मिलियन है। इन शीर्ष 5 देशों में भारत से कुल संगीत वाद्ययंत्र निर्यात का 66.12% हिस्सा है।

गुयाना में तेजी से बढ़ी भारतीय वाद्ययंत्र की मांग

भारत से संगीत वाद्ययंत्र आयात करने वाले शीर्ष व्यापारिक भागीदारों को ध्यान में रखते हुए गुयाना ने भारत से अपने आयात शिपमेंट में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की। पिछले वर्षों के बढ़ते आंकड़ों की तुलना में, पेरू जैसे देशों ने भारत से संगीत वाद्ययंत्र आयात में महत्वपूर्ण वृद्धि दिखाई है, इसके बाद उरुग्वे का नंबर आता है।

कोलकाता बंदरगाह से सबसे अधिक निर्यात

भारत में लगभग 38 शीर्ष निर्यात बंदरगाह हैं जो भारत से वाद्ययंत्रों का व्यापार करते हैं, कोलकाता एयर कार्गो भारत से अधिकांश संगीत वाद्ययंत्र शिपमेंट का निर्यात 41.0% की हिस्सेदारी के साथ करता है, इसके बाद न्हावा शेवा सागर का नंबर आता है जहां से 14.0% निर्यात किया गया। भारत से निर्यात किए जाने वाले तीन प्रमुख वाद्ययंत्रों में तबला, हारमोनियम और मिनी ढोकल शामिल हैं।

भरत मुनि के वाद्य यंत्र समूह को यूरोप ने 12वीं सदी में अपनाया

भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वाद्य यंत्रों को चार समूहों में एकत्रित किया गया है। अवनद्ध वाद्य ( ताल वाद्य), घन वाद्य (ठोस वाद्य) , सुषिर वाद्य (वायु वाद्य) और तत वाद्य (तार वाले वाद्य)। भारत के वाद्य यंत्रों का भरत मुनि द्वारा दिया गया यह प्राचीन वर्गीकरण 12वीं सदी में यूरोप में अपनाया गया और यूरोप के वाद्य यंत्रों के वर्गीकरण में उपयोग किया गया। बाद में चार वर्गों को यूनानी नाम दिए गए – तत वाद्य के लिए कोरडोफ़ोन्स, अवनद्ध वाद्य के लिए मेमब्रानोफ़ोन्स, सुषिर वाद्य के लिए एरोफ़ोन्स और घन वाद्यों के लिए ऑटोफ़ोन्स। इस प्रकार पाश्चात्य वर्गीकरण प्रणाली प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र पर आधारित है।

भारत के वाद्य यंत्रों की समृद्ध विरासत रही है

प्राचीन भारतीय मूर्तियों और चित्रों में उन वाद्य यंत्रों का उपयोग दर्शाया गया है जिन्हें हम आज देखते हैं। चमड़ा, लकड़ी, धातु और मिट्टी के बर्तन जैसी चीज़ों सहित कई विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग के कारण वाद्य यंत्रों को बनाने में महान कौशल की आवश्यकता होती है और संगीत और ध्वनिक सिद्धांतों की भी। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख परंपराएं हैं – हिंदुस्तानी और कर्णाटक। साथ ही, लोक, जनजातीय, इत्यादि जैसी और कई अन्य परंपराएं भी हैं। प्राचीन काल से, इन परंपराओं के भारतीय संगीतकारों ने, अपनी शैली के अनुरूप, पारंपरिक और देशज वाद्य यंत्रों का विकास किया और उन्हें बजाया। इसलिए, भारत के वाद्य यंत्रों की एक समृद्ध विरासत है और ये इस देश की सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न अंग हैं।

अवनद्ध वाद्य

ये तालवाद्य यंत्र हैं। ध्वनि का उत्पादन एक फैली हुई खाल, जैसे कि ड्रम, से होता है। मेम्ब्रेनोफ़ोनिक यंत्र चर्म कम्पित्र के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि खिंची हुई खाल या झिल्ली पर जब आघात किया जाता है, खींचा जाता है, या हाथ फेरा जाता है तब वे कंपन द्वारा ध्वनि-तरंगों का उत्पादन करती हैं। एक खोखला पात्र झिल्ली से ढका होता है जिसपर आघात करते ही ध्वनि उत्पन्न होती है। तालवाद्य यंत्रों को बजाने के तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे मृदंगम की तरह हाथ से बजाया जाता है।

तत वाद्य

ये तार वाद्य यंत्र हैं। ध्वनि दो बिंदुओं के बीच फैले हुए तार या तारों के कंपन द्वारा उत्पन्न की जाती है। इन यंत्रों को ऐंठन, धनुर, नक्काशीदार गैर-नक्काशीदार वाले उपकरणों में वर्गीकृत किया गया है। इसी तरह के कुछ उपकरण वीणा, लायर, ज़िथर और ल्यूट हैं। ध्वनि की उत्पत्ति तनावयुक्त तार या तांत को खींचकर या झुकाकर कंपन उत्पन्न करने से होती है। तार की लंबाई और उसमें तनाव, ध्वनि की गतिविधि और अवधि को निर्धारित करती है। तार वाद्य यंत्रों को बजाने के तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कि सरस्वती वीणा, रुद्र वीणा।

घन वाद्य

ये ठोस वाद्य होते हैं। ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपन करते हैं जैसे कि घंटी, गोंग या खड़खड़ जिन पर आघात किया जाता है, हिलाया जाता है या इन पर खुर्चा जाता है। इडियोफ़ोनिक वाद्य या स्वयं-कम्पित्र, अर्थात ठोस पदार्थ के वाद्य, जिनकी अपनी लोचदार प्रकृति के कारण उनकी स्वयं की एक गूंज होती है, जो इन पर आघात किए जाने, खींचे जाने, या घर्षण या वायु से उत्तेजित किए जाने पर तरंगों में उत्सर्जित होती है। इस समूह के वाद्य आमतौर पर प्रहारक या हथौड़े से बजाए जाते हैं। ये वाद्य स्पष्ट स्वरमान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हैं जो एक राग बनाने के लिए आवश्यक होता है। यही कारण है कि इनका उपयोग शास्त्रीय संगीत में सीमित है।

सुषिर वाद्य

ये वायु से बजने वाले वाद्य होते हैं। इनमें ध्वनि उत्पन्न करने के लिए, बिना तारों या झिल्ली के इस्तेमाल के और यंत्र के बिना कम्पित हुए, वायु के टुकड़े को कम्पित किया जाता है, जिससे ध्वनि में बढोत्तरी होती है। इन उपकरणों की तान संबंधी गुणवत्ता उपयोग किए गए ट्यूब के आकार और आकृति पर निर्भर करती है। वे गहरे बास से लेकर कर्णभेदी तेज़ सुरों तक, जोर की और भारी ध्वनि उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। ये खोखले वाद्य हैं जिनमें हवा से ध्वनि उत्पन्न की जाती है। वाद्य में छिद्र खोलने और बंद करने के लिए उंगलियों का उपयोग करके ध्वनि के स्वरमान को नियंत्रित किया जाता है। शहनाई भारत का एक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है।

निर्यात के मोर्चे पर मोदी सरकार की उपलब्धियां- 

भारत का निर्यात पहली बार 400 अरब डॉलर के पार

पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस साल 23 मार्च को 400 अरब डॉलर के गुड्स के निर्यात का लक्ष्य हासिल कर लिया है, जो भारत के लिए एक रिकॉर्ड है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत ने पहली बार 400 अरब डॉलर के गुड्स के निर्यात का लक्ष्य हासिल किया है। मैं इस उपलब्धि के लिए अपने किसानों, बुनकरों, एमएसएमई, विनिर्माताओं, निर्यातकों को बधाई देता हूं। यह हमारी आत्मनिर्भर भारत की यात्रा में एक अहम मील का पत्थर है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने हर दिन औसतन एक अरब डॉलर का माल निर्यात किया, यानी हर दिन करीब 4.6 करोड़ डॉलर का माल दूसरे देशों को भेजा गया। अगर महीने की बात करें तो यह औसतन 33 अरब डॉलर प्रति माह बैठता है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के कृषि उत्‍पादों के निर्यात में 85 प्रतिशत की बढ़ोतरी

पूर्वोत्‍तर क्षेत्र ने पिछले छह वर्ष के दौरान कृषि उत्‍पादों के निर्यात में 85 प्रतिशत की बढोत्‍तरी दर्ज की है। वाणिज्‍य और उद्योग मंत्रालय ने बताया कि यह निर्यात वर्ष 2016-17 में 25 लाख 20 हजार डॉलर था जो कि वर्ष 2021-22 में बढ़कर एक करोड़ 70 लाख डॉलर पहुंच गया। यहां से बंगलादेश, भूटान, मध्‍य-पूर्व देशों, ब्रिटेन और यूरोप में कृषि उत्‍पादों का सर्वाधिक निर्यात किया गया। असम, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम और मेघालय जैसे पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में कृषि उत्‍पादों के निर्यात में उल्‍लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है।

भारत का खिलौना उद्योग तेजी से फल-फूल रहा

तीन-चार वर्षों पहले तक भारत खिलौने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। खासतौर पर देश के खिलौना क्षेत्र पर चीन का बड़ा कब्जा था। भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आया करते थे। परंतु अब इसमें बहुत ही बड़ा बदलाव देखने को मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान भारत के खिलौना क्षेत्र को बदल रहा है। देश में खिलौना उद्योग तेजी से फलने-फूलने लगा है। महज तीन सालों के अंदर भारत में खिलौने के आयात में 70 फीसदी की कमी आई है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक तीन सालों में खिलौना आयात में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। केवल इतना ही नहीं भारत अब दूसरे देशों को भी अपने बनाए गए खिलौने निर्यात कर रहा है। तीन सालों में खिलौने के निर्यात में 61 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है।

अदरक, केसर और हल्दी का निर्यात 192 प्रतिशत बढ़ा

प्रधानमंत्री का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुनी करना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार एक के बाद एक योजनाएं बनाकर उसे धरातल पर उतार रही है। इन योजनाओं का असर अब भारतीय मसाला कारोबार में भी दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुचारू और संगठित नीति के कारण भारतीय मसालों की मांग विश्व भर में बढ़ी है और निर्यात में जबरदस्त उछाल आया है। पीएम मोदी के आठ साल के कार्यकाल में हल्दी, अदरक और केसर के निर्यात में 192 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अप्रैल-मई 2013 में इन तीनों मसालों का निर्यात जहां 260 करोड़ रुपये का हुआ था वहीं अप्रैल-मई 2022 में यह बढ़कर 761 करोड़ रुपये हो गया।

चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन, 1200 प्रतिशत बढ़ा निर्यात

पीएम मोदी के आठ साल के कार्यकाल में चीनी एवं चीनी उत्पादों के निर्यात में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। अप्रैल-मई 2013 में चीनी एवं चीनी उत्पादों का निर्यात जहां 840 करोड़ रुपये का हुआ था वहीं अप्रैल-मई 2022 में यह बढ़कर 11,370 करोड़ रुपये का हो गया। यानी इन आठ सालों में 1253 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है। इससे जहां देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है वहीं किसानों को भी इसका लाभ मिला है और उनके जीवन स्तर में सुधार देखने को मिला है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के मुताबिक, भारत ने सितंबर में समाप्त मार्केट ईयर 2021-22 में मई तक 86 लाख टन चीनी के निर्यात के रिकॉर्ड को पार कर लिया है। भारत ने विपणन वर्ष 2020-21 में कुल 70 लाख टन चीनी का निर्यात किया था, जबकि इसी अवधि में घरेलू उत्पादन तीन करोड़ 11.9 लाख टन का था। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में चीनी के निर्यात में 65 प्रतिशत की उछाल दर्ज की गई। यह वृद्धि उच्च माल भाड़ा बढोतरी, कंटेनरों की कमी आदि के रूप में कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न लॉजिस्ट्क्सि संबंधी चुनौतियों के बावजूद अर्जित की गई। मोदी सरकार की नीतियां किसानों को वैश्विक बाजारों का दोहन करने के माध्यम से उनकी आय बढ़ाने में सहायता कर रही हैं।

केले का निर्यात 700 प्रतिशत बढ़ा

भारत दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है और यह अब दुनिया भर के बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोदी सरकार की किसान हितैषी नीतियों की वजह से भारतीय केला जल्द ही दुनिया के बाजारों में छा जाएगा। इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले अप्रैल-मई 2013 में 26 करोड़ रुपये मूल्य के केले का निर्यात हुआ था जबकि अप्रैल-मई 2022 में 213 करोड़ रुपये के केले का निर्यात किया गया, यानी केला निर्यात में 703 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आज भारत सलाना आधार पर 600 करोड़ रुपये से अधिक का केला निर्यात करता है और इसके साथ नए बाजारों की तलाश का काम भी जारी है। अभी हाल ही में कनाडा को केला निर्यात पर सहमति बनी है।

भारतीय शहद के निर्यात में 149 प्रतिशत वृद्धि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती के अलावा कई अन्य कृषि उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। शहद (Honey) उत्पादन भी उनमें से एक है, जिसका उत्पादन कर किसान न सिर्फ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि उनका शहद विदेशों में भी निर्यात किया जा रहा है। दरअसल, शहद और उससे बने उत्पादों की मांग अब विदेशों में काफी बढ़ गई है और देश से हर साल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है। देश में ‘मीठी क्रांति’ को बढ़ावा देने की कोशिशें का ही परिणाम है कि वर्ष 2013 में जहां शहद का निर्यात 124 करोड़ रुपए का हुआ था वहीं वर्ष 2022 में यह बढ़कर 309 करोड़ रुपए हो गया यानी इस दौरान शहद निर्यात में 149 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

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