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रेवड़ी कल्चर से क्या होती है तबाही, वेनेजुएला में देखिए… वहां एक कॉफी की कीमत 25 लाख हो गई, तेल संपन्न देश बर्बादी के कगार पर पहुंचा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के समय कहा था कि हमें रेवड़ी कल्चर से सावधान रहना होगा। रेवड़ी कल्चर वाले कभी आपके लिए नए एक्सप्रेसवे नहीं बनाएंगे, नए एयरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बनाएंगे। ऐसे लोगों को लगता है कि मुफ्त की रेवड़ी के बदले उन्होंने जनता जनार्दन को खरीद लिया है। उन्होंने कहा, ‘हमें देश की रेवड़ी कल्चर को हटाना है। रेवड़ी बांटने वाले कभी विकास के कार्यों जैसे रोड नेटवर्क, रेल नेटवर्क का निर्माण नहीं करा सकते। ये अस्पताल, स्कूल और गरीबों को घर नहीं बनवा सकते।’ यानी रेवड़ी कल्चर से देश तरक्की नहीं कर सकता, उल्टा देश बर्बादी की ओर बढ़ेगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने तो चिंता जताते हुए यहां तक कहा कि रेवड़ी कल्चर देश को कहीं का नहीं छोड़ेगा। इससे पहले रिजर्व बैंक भी ‘फ्री’ अर्थव्यवस्था से खड़े नुकसानों को लेकर आगाह कर चुका है। लेकिन देश में मौजूद कुछ राजनीतिक पार्टियां रेवड़ी कल्चर को चुनाव में जीत की गारंटी समझने लगी हैं। इस अवसरवादी राजनीति और फ्री की रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा देने में आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सबसे पहले नंबर पर हैं। आश्चर्य की बात है अपने को पढ़़े-लिखे इंजीनियर कहने वाले केजरीवाल भी इस फ्री की रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा दे रहे हैं। अब आइए समझते हैं कि फ्री की रेवड़ी किसी देश या राज्य के लिए कितनी तबाही ला सकता है। दक्षिणी अमरीका महाद्वीप में एक देश है वेनेज़ुएला। यह देश एक समय काफी अमीर था, लेकिन आज लोग यहां पाई-पाई को मोहताज हैं। इस देश में कच्चे तेल (Crude Oil) का विशाल भंडार है। यहां पेट्रोल (गैसोलिन) की कीमत 2 रुपये लीटर से भी कम (1.88 रुपये/लीटर) है। यहां तेल तो प्रचुर मात्रा में है लेकिन फ्री की रेवड़ी बांटने की वजह से महंगाई चरम पर पहुंच गई है। महंगाई का आलम यह है कि यहां एक कॉफी 25 लाख में मिलती है। एक ब्रेड लेने के लिए चार घंटे लाइन में लगना पड़ता है। फ्री की चीजें मिलने से लोगों ने मेहनत करना छोड़ दिया। खेती यहां समाप्त हो गई। तेल संपन्न देश वेनेजुएला आज फ्री की रेवड़ी की वजह से बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है। अब हर चीज आयात होती है। अगर भारत के कुछ राज्य नहीं चेते तो कुछ इसी तरह के हालात उनके भी होने वाले हैं।

रेवड़ी संस्कृति लोकतंत्र और अर्थतंत्र का बेड़ा गर्क कर रही

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ दिनों में दो बार देश का ध्यान इस ओर आकर्षित कर चुके हैं कि रेवड़ी संस्कृति किस तरह लोकतंत्र और अर्थतंत्र का बेड़ा गर्क कर रही है। यह वही संस्कृति है, जिसे मुफ्तखोरी की राजनीति भी कहा जाता है। यह राजनीति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली भी है। यह किसी से छिपा नहीं कि रेवडिय़ां बांटने की राजनीतिक संस्कृति ने न जाने कितने देशों को तबाह किया है।

वेनेजुएला में एक कॉफी की कीमत 25 लाख हो गई

वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था 95 फीसदी तेल निर्यात पर निर्भर थी और जब तक तेल की कीमतें ऊंचाईयां छूती रहीं, वेनेजुएला की सत्ता पर काबिज समाजवादी सरकारों ने तेल की आमदनी से लबालब खजाने को पानी की तरह बहाया और लोगों को मुफ्त बिजली, पानी, अस्पताल और शिक्षा दी गई। दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार वाले देशों में शुमार वेनेजुएला वर्तमान में दिवालिया होने के कगार पर है, जिसके पीछे की वजह थीं, वहां की समाजवादी नीतियां और फ्री रेवड़ी कल्चर, जिसका असर वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था पर तब पड़ना शुरू हुआ, जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें गिरनी शुरू हो गईं। वेनेजुएला की समाजवादी सरकार ने जैसे ही जनता के लिए सबकुछ मुफ्त मुहैया करना शुरू किया, वहां के मेहनतकश किसानों और काश्तकारों को मेहनत करना भारी पड़ गया और उन्होंने किसानी से भी तौबा कर लिया। जब तक तेल की कीमतें ऊंची रहीं, तब तक फ्री की योजनाएं चली, लेकिन जैसे ही तेल की कीमतें गिरी सरकार की नीतियां फेल हो गईं, क्योंकि सरकार खजाने पर दवाब बढ़ गया और महंगाई चरम पर पहुंच गई। आज वेनेजुएला में 100 फीसदी से अधिक महंगाई है, गरीबी रेखा के नीचे 94 फीसदी आबादी, कुपोषण के शिकार 75 फीसदी लोग हैं और लाखों लोग देश छोड़कर भाग चुके हैं। ये फ्री की रेवड़ी बांटने के कारण हुई। वेनेजुएला में आज बाजार और वहां की करेंसी सब नष्ट हो चुकी है। एक लाख बोलेबियन करेंसी की कीमत 1000 गुना नीचे गिर गई है। आज वहां एक कॉफी की कीमत 25 लाख हो गई है।

वेनेजुएला में एक ब्रेड खरीदने के लिए लाइन में 4 घंटे करना पड़ता है इंतजार

वेनेजुएला ने बढ़ती महंगाई को देखते हुए 10 लाख बोलीवर (वहां की करेंसी) का नोट जारी किया। इस 1000000 वेनेजुएला की करेंसी की भारत में कीमत मात्र ₹36 है। वेनेजुएला में पेट्रोल दुनिया में सबसे सस्ता है इतना सस्ता कि उसके पड़ोसी देशों जैसे कोलंबिया, ब्राजील, पराग्वे इत्यादि को तेल की खूब स्मगलिंग होती है। भारतीय रुपए में लगभग डेढ़ रुपए लीटर पेट्रोल है। आज वेनेजुएला में एक ब्रेड खरीदने के लिए भी 4 घंटे की लाइन लगती है। वेनेज़ुएला जहां सऊदी अरब से भी ज्यादा क्रूड है जहां की जमीनें शानदार है जहां काफी अच्छी खेती होती है जिसने दुनिया को सबसे ज्यादा विश्व सुंदरी दिया है, उसकी यह हालत सिर्फ केजरीवाल के मॉडल पर हो गयी। यानी एक वामपंथी नेता ने लोकप्रिय बनने के चक्कर में जनता को सब कुछ फ्री देने का स्कीम चलाया और नतीजा यह हुआ कि आज वेनेजुएला में महिलाएं वेश्यावृत्ति करने के लिए पड़ोसी देशों में जाती है। इसीलिए बिजली फ्री, पानी फ्री, लोन फ्री आदि को तुरंत बंद करने की जरूरत है क्योंकि शार्ट टर्म में ये बड़े अच्छे लगते हैं लेकिन लॉन्ग टर्म में यह हमें बर्बाद कर देते हैं।

वेनेज़ुएला से क्यों भाग रहे हैं लाखों लोग?

वेनेज़ुएला में लाखों की संख्या में लोग देश छोड़कर जा रहे हैं, महंगाई हज़ारों गुना बढ़ गई है, अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर है और लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है। महामंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था और इन भयावह हालातों के ​लिए कई लोग राष्ट्रपति निकोलस माडुरो और उनकी सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन, देश में ये हालात बने कैसे। मंदी से निकलने की कोशिशों के बावजूद सुधार क्यों नहीं हो रहा है? वेनेज़ुएला के लोगों के लिए इस वक़्त सबसे बड़ी समस्या महामहंगाई कहा जा रहा है। विपक्ष के नियंत्रण वाली वेनेज़ुएला की राष्ट्रीय असेंबली के अनुसार औसतन हर 26 दिन बाद क़ीमत दोगुनी हो रही है। वहां सालाना महंगाई दर 83,000% तक पहुंच गई थी। इसके चलते वेनेज़ुएला के लोगों के लिए खाने-पीने का सामना और कुछ मूलभूत ज़रूरत की चीज़ें ख़रीदना भी मुश्किल हो गया है।

मुफ्तखोरी से पड़ोसी श्रीलंका हो गया बर्बाद

श्रीलंका की इस बदहाली की सबसे बड़ी वजह है, मुफ्तखोरी (Freebies) की राजनीति है। वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, तब श्रीलंका के राजपक्षे परिवार ने ये ऐलान किया था कि अगर चुनाव में उनकी पार्टी जीत गई तो वो देश में वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले Value Added Tax यानी VAT को आधा कर देगी। जब चुनाव में राजपक्षे परिवार की पार्टी जीती तो वादे के तहत VAT को 15 प्रतिशत से घटा कर 8 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे श्रीलंका को उसकी GDP के 2 प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ। आज श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक दौर से गुज़र रहा है। आज श्रीलंका पर साढ़े 6 लाख करोड़ रुपये कर्ज है।

चीजें मुफ्त देने पर निकल जाता है दिवाला

रेवड़ी कल्चर को एक उदाहरण से समझिए। मान लीजिए, शहर में आपकी एक छोटी सी दुकान है और वो दुकान आप एक ऐसे व्यक्ति को चलाने के लिए दे देते हैं, जो लोकप्रिय होना चाहता है। वो आपकी दुकान पर रखे सामान की बहुत ही कम कीमत में या मुफ्त में बिक्री शुरू कर देता है। इससे आपकी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ तो जुट जाएगी लेकिन उस दुकान का दिवाला निकल जाएगा। अब आप इसी दुकान की जगह पर एक राज्य को रख कर देखिए और सोचिए अगर आपके राज्य में एक ऐसी सरकार आ जाती है, जो लोकप्रिय होने के लिए मुफ्तखोरी (Freebies) की राजनीति शुरू कर देती है। आपको बिजली-पानी मुफ्त मिलने लगता है। महिलाओं और युवाओं को हर महीने आर्थिक मदद मिलने लगती है। बसों और रेल में सफर मुफ्त कर दिया जाता है तो उस राज्य का क्या हाल होगा। उस राज्य का भी इस दुकान की तरह दिवाला निकल जाएगा और इस समय हमारे देश के कुछ राज्यों में यही हो रहा है।

रेवड़ी कल्चर से भारत में राज्यों की सेहत बिगड़ने लगी

भारत में सुप्रीम कोर्ट में मुफ्तखोरी या ‘रेवड़ी कल्चर’ पर सुनवाई चल रही है। सवाल है कि मुफ्तखोरी की सियासी परंपरा कब और कैसे खत्म होगी। मुफ्तखोरी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मुद्दा बताया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को सियासी दलों को फ्री वाले चुनावी वादों करने से रोकने के लिए जरूरी समाधान खोजने और हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके नुकसान के बारे में पहले ही बताया था और लोगों को इससे बचने की सलाह दी थी। ‘रेवड़ी कल्चर’ भले ही चुनाव में लोगों को आकर्षित करने की गारंटी बन चुका हो, लेकिन इसका नतीजा यह हो रहा है कि राज्यों की आर्थिक सेहत बिगड़ने लगी है और वो कर्ज की बोझ तले दबने लगे हैं। जाहिर है अगर खर्च ज्यादा हो और आमदनी कम हो, फिर कर्ज तो लेना ही पड़ेगा। भारतीय राजनीति में ‘रेवड़ी कल्चर’ का छोटे स्तर पर कई राजनीतिक दलों ने पहले भी इस्तेमाल किया लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘रेवड़ी कल्चर’ को चुनाव जीतने की गारंटी के तौर पर अपनाया और इसे व्यापक तौर पर बढ़ावा दिया। केजरीवाल ने फ्री बिजली, फ्री पानी के वादे के बाद फ्री शराब भी शुरू कर दिया था लेकिन वहां वे घोटाले में फंस गए तो इसे बंद करना पड़ा। यानी ये जितनी भी फ्री की बातें हो रही हैं दरअसल उसके पीछे मंशा कुछ और ही होती है- अपनी पार्टी के लिए काली कमाई जुटाना, अपने रिश्तेदारों, जानने वालों को लाभ पहुंचाना। अब इसी कड़ी में देश की राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की ताल ठोंकने वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेता ने दशहरा के मौके पर लोगों को फ्री की रेवड़ी बांटी।

‘रेवड़ी कल्चर’ से राज्यों की सेहत पर बुरा असर

‘रेवड़ी कल्चर’ से जहां राज्यों की आर्थिक सेहत पर बुरा असर हो रहा है तो वहीं दूसरे स्तर पर भी साइड इफेक्ट्स देखने को मिल रहे हैं। पंजाब में साल 1971 में सिर्फ 1,92,000 ट्यूबवेल थे। लेकिन बिजली बिल में माफी और सब्सिडी मिलने से इसकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। आज यहां ट्यूबवेल की संख्या 14.1 लाख तक पहुंच गई है। इससे भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। आलम यह है कि अधिक दोहन के चलते भूजल 20 से 30 मीटर नीचे चला गया है। जिससे पंजाब बहुत बड़े जलसंकट की ओर बढ़ रहा है।

देश में सबसे ज्यादा खराब हालत में पंजाब, फिर भी बांटी जा रही फ्री की रेवड़ियां

हमारे देश के कई राज्यों में भी आज ऐसा ही हो रहा है। इनमें पंजाब की स्थिति सबसे खराब है। वित्त वर्ष 2021-22 में पंजाब पर उसकी GDP के 53 प्रतिशत हिस्से के बराबर कर्ज था और ये पूरे देश में सबसे ज्यादा था। इसे ऐसे समझिए कि अगर पंजाब की GDP 100 रुपये है तो 53 रुपये उस पर कर्ज है। मौजूदा समय की बात करें तो इस समय पंजाब पर 2 लाख 82 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। अगर इस कर्ज को पंजाब की 3 करोड़ आबादी में बांटे दें तो इस हिसाब से राज्य के हर व्यक्ति पर लगभग 95 हजार का कर्ज हुआ। इसके बावजूद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान उन मुफ्त स्कीम को पंजाब में लागू कर रहे हैं, जिनका ऐलान चुनाव के दौरान हुआ था। पंजाब में चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया था कि वो सरकार बनने पर 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त (Freebies) कर देगी। हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से इस मुफ्त स्कीम को लागू कर दिया है, जिससे पंजाब पर सालाना 1800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने का अनुमान है। सोचिए, जिस राज्य पर उसकी GDP के 53 प्रतिशत हिस्से के बराबर कर्ज है, उस राज्य की सरकार लोगों को मुफ्त बिजली देकर अपने कर्ज को और बढ़ा रही है। ये तो बस अभी शुरुआत है।

पंजाब 100 रुपये में से 20 रुपये पुराना कर्ज चुकाने पर खर्च कर रहा

आम आदमी पार्टी ने चुनाव में ऐलान किया था कि वो 18 साल से ऊपर की सभी महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए की आर्थिक मदद देगी। पंजाब में 18 साल से ऊपर की लगभग एक करोड़ महिलाएं हैं। यानी केवल इस वादे को ही पूरा करने के लिए सरकार को हर महीने एक हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। ये राशि कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पंजाब सरकार हर महीने पंजाब पुलिस पर भी इतना पैसा खर्च नहीं करती। 2021-2022 में पंजाब पुलिस का सालाना बजट लगभग 5 हज़ार 700 करोड़ रुपये था। इसी तरह आम आदमी पार्टी ने चुनाव में वादा किया था कि वो आम लोगों को 400 यूनिट तक के बिजली बिल पर 50 प्रतिशत की छूट देगी। किसानों को 12 घंटे मुफ्त बिजली दी जाएगी और कारोबारियों- दूसरे बड़े उद्योगों को भी सस्ते दामों पर बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। अगर पंजाब सरकार इस वादे को भी पूरा करती है तो इससे उस पर सालाना 5 से 8 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाएगा। पंजाब सरकार केन्द्र से कर्ज लेकर इन चुनावी वादों को पूरा करना चाहती है। जबकि सच ये है कि पंजाब पहले से हर 100 रुपये में से 20 रुपये अपना पुराना कर्ज चुकाने पर खर्च कर रहा है।

राजस्थान आर्थिक संकट के मुहाने पर

आरबीआई ने राजस्थान सहित 10 राज्यों के वित्तीय हालत पर चिंता जताई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के अलावा बिहार, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य कर्ज के भारी बोझ तले दबे हैं। पंजाब को एक्ट्रा बजटरी बोरोइंग देने के लिए आरबीआई ने बैंकों को ही मना कर दिया है। अब राजस्थान भी इसी राह पर चल पड़ा है। प्रदेश का कर्ज बढ़कर 4.77 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। इसमें 82 हजार करोड़ रुपये का गारंटेड लोन भी शामिल कर दें तो प्रदेश पर कुल कर्ज 5.59 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। साल 2019 तक बजट में शामिल कर्ज 3.39 लाख करोड़ रुपये था। इसके अलावा 61 हजार करोड़ से ज्यादा का गारंटेड लोन था।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी इस दौड़ में पीछे नहीं

आन्ध्र प्रदेश में मुफ्त सरकारी योजनाओं की सूची बहुत लम्बी है। आन्ध्र प्रदेश में 27 लाख आदिवासी महिलाओं को सालाना 15 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद मिलती है। बुजुर्गों को वृद्धा पेंशन के रूप में हर महीने 2250 रुपये मिलते हैं। इसके अलावा हाल ही में वहां की सरकार ने राज्य के डेढ़ करोड़ लोगों का मुफ्त में Health Insurance करवाया है और कॉलेज में पढ़ने वाले 14 लाख छात्रों की फीस भी माफ की है। आन्ध्र प्रदेश की सरकार अपने लोगों को मुफ्त (Freebies) का ये लाभ तब दे रही है, जब उस पर 3 लाख 98 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। इसी तरह तेलंगाना पर 3 लाख 12 हज़ार करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल पर 5 लाख 62 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है। लेकिन इतना भारी भरकम कर्ज होने के बावजूद ये राज्य वही गलती कर रहे हैं, जो श्रीलंका ने की। यानी ये मुफ्त की राजनीति से अपने राज्यों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं।

रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट कर रहा सुनवाई

यह अच्छा है कि उच्चतम न्यायालय उस जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा है, जिसमें रेवड़ी संस्कृति पर लगाम लगाने की मांग की गई है। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका पर केंद्र सरकार की ओर से यह कहा गया कि मुफ्तखोरी की राजनीति देश को आर्थिक तबाही की ओर ले जा रही है। उच्चतम न्यायालय ने इस विषय को गंभीर मानते हुए एक ऐसी समिति बनाने का सुझाव दिया, जिसमें केंद्र सरकार, चुनाव आयोग के साथ नीति आयोग, रिजर्व बैंक और विभिन्न दलों के प्रतिनिधि शामिल हों।

क्या है ‘रेवड़ी कल्चर’ ?

देश के दक्षिण राज्यों खासकर तमिलनाडु में सबसे पहले मुफ्त बांटने की सियासत शुरू हुई। यहां चुनाव जीतने के लिए मंगलसूत्र, टीवी, प्रेशर कुकर, वॉशिंग मशीन और साड़ी फ्री में बांटी जाने लगी। तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के कार्यकाल में अम्मा कैंटीन खूब फली-फूली। दक्षिण भारत के बाद अब यह उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में वोट पाने का एक शॉर्टकट जरिया बन चुका है। वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों ने मुफ्त बिजली-पानी, अनाज, लैपटॉप, मोबाइल, स्कूटी और बेरोजगारी भत्ता को हथियार बनाया। इसका नतीजा ये हुआ कि आज कई राज्यों की अर्थव्यवस्था कर्ज के बोझ तले दबने लगी है।

रेवड़ी कल्चर पर आगाह कर चुका है RBI

इससे पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी ‘रेवड़ी कल्चर’ से देश को होने वाले नुकसान को लेकर आगाह कर चुका है। ‘स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस’ नाम से आई आरबीआई की रिपोर्ट की मानें तो पंजाब, राजस्थान, केरल, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की हालत डांवाडोल है। कैग (CAG) के डेटा के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी पर राज्य सरकारों के खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जिससे कर्ज बढ़ता जा रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 में सब्सिडी पर राज्यों ने कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था। जो 2021-22 में बढ़कर 12.9% हो गया। सब्सिडी पर सबसे ज्यादा खर्च ओडिशा, झारखंड, केरल और तेलंगाना ने किया। वहीं पंजाब, गुजरात और छत्तीसगढ़ सरकार ने सब्सिडी पर अपने रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का 10% से ज्यादा खर्च किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त दे रहीं हैं। जिससे फ्री पानी, फ्री बिजली, बिल माफी और कर्ज माफी से सरकारों को कोई कमाई नहीं हो रही है। उल्टे सरकार को इस पर खर्च करना पड़ रहा है। RBI के मुताबिक कुछ ऐसे राज्य हैं जिनका कर्ज 2026-27 तक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 30% से ज्यादा हो सकता है। ऐसे राज्यों में पंजाब की हालत ज्यादा खराब होगी। पंजाब सरकार पर GSDP का 45% से ज्यादा कर्ज होने का अनुमान है। तो वहीं राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज भी 35% तक होने की संभावना है।

हमें बेसिक सुविधाए चाहिए या मुफ्तखोरी, फैसला हमारा

दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां मुफ्त (Freebies) योजनाओं और सुविधा के नाम पर लोगों के वोट तो हासिल कर लेती हैं। लेकिन इसके नाम पर ये पार्टियां आपको उस हक से वंचित कर देती हैं, जिस पर आपका सबसे पहले अधिकार बनता है। असल में लोगों को मुफ्त बिजली और पानी नहीं चाहिए बल्कि लोगों को एक ऐसी व्यवस्था और सिस्टम चाहिए, जो उनके जीवन को आसान बनाए। लोगों को अच्छी सड़कें चाहिए, अच्छा Drainage सिस्टम चाहिए, 24 घंटे बिजली-पानी चाहिए, अच्छे स्कूल और अस्पताल चाहिए और ऐसी कानून व्यवस्था चाहिए, जिसमें उनका हित हो। लेकिन क्या ये सब आपको मिलता है? ऐसे में आप एक बार फिर से सोचिए कि आपको मुफ्त बिजली चाहिए या आपको अपने शहर और इलाक़े में अच्छा Drainage सिस्टम और सड़कें चाहिए?

वेनेजुएला मुफ्तखोरी में हो चुका है बर्बाद

मुफ्त की ये राजनीति कैसे एक अमीर देश को कंगाल कर सकती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है वेनेजुएला। वेनेजुएला से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-

– एक ज़माने में Venezuela की गिनती दुनिया के सबसे अमीर देशों में होती थी. कहा जाता था कि Venezuela के पास जब तक तेल के बड़े बड़े भंडार हैं, तब तक उसका बुरा समय आ ही नहीं सकता।

– प्राकृतिक रूप से Venezuela आज भी इतना सम्पन्न देश है कि वहां दुनिया का सबसे बड़ा कच्चे तेल का भंडार मौजूद है।

– इसके अलावा Venezuela की 88 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है, इसलिए इसे Urban Country भी कहा जाता है।

– हालांकि आज इस Urban Country की हालत ये है कि यहां की 83 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. वहां एक करोड़ लोग, दिन में एक समय का खाना भी खरीद कर नहीं खा सकते।

– Venezuela की ये हालत इसलिए हुई क्योंकि वहां भी सरकारों ने एक समय वोटों के लिए लोगों को मुफ्त योजनाओं का लाभ देना शुरू किया था।

– ये बात वर्ष 1999 की है, जब Venezuela के लोगों ने सोशलिस्ट पार्टी के लीडर Hugo Chávez (ह्युगो चावेझ) को अपना राष्ट्रपति चुना।

– ह्युगो चावेझ का मानना था कि Venezuela को दुनिया में तेल बेच कर जितना भी पैसा मिलता है, वो पैसा वहां के लोगों पर खर्च होना चाहिए।

– जब वो राष्ट्रपति बने, उन्होंने इस अमीर देश में अमीर लोगों के लिए सबकुछ मुफ्त कर दिया. पानी, बिजली, स्कूल की फीस, अस्पताल का इलाज और पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबकुछ मुफ्त हो गया।

– Venezuela के लोग इतने अमीर थे कि उन्हें इस मुफ्त सेवा और सुविधाओं की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन वोटों की राजनीति की वजह से उन्हें ये सुविधाएं लेनी पड़ी और सरकार की इन गलत नीतियों का परिणाम ये हुआ कि वहां लोग परिश्रम करने से बचने लगे और वहां से बड़ी बड़ी कम्पनियां अपनी Manufacturing Unit दूसरे देशों में ले गईं। इससे Venezuela पर आर्थिक बोझ बढ़ा और वहां चीजें महंगी होने लगी। इस आर्थिक मॉडल ने Venezuela को बर्बाद कर दिया।

– इन्हीं नीतियों की वजह से ह्युगो चावेझ 2013 तक सत्ता में बने रहे। इससे ये पता चलता है कि मुफ्त की राजनीति, नेताओं का ही विकास करती है। नागरिकों का नहीं।

– एक समय Venezuela का एक Bolívar (बोलिवर), भारत के सात रुपये के बराबर था. लेकिन आज भारत के 25 रुपए लगभग 1 लाख बोलिवर से ज्यादा के बराबर है। आज Venezuela में महंगाई इतनी ज्यादा है कि वहां टीवी खरीदने के लिए भी लोगों को बोरों में भर कर पैसा ले जाना पड़ता है और ऐसा भी मुट्टीभर लोग ही कर पाते हैं।

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