विधानसभा चुनावों से पहले उजबेकिस्तान की गुप्त यात्रा, मौजमस्ती और सत्ता को उखाड़ फेंकने की साजिश! इस कहानी में फुल मसाला है। गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी कोई काम नहीं करते हैं और न ही उनका कोई कारोबार है, लेकिन वह चार्टर्ड फ्लाइट से चलते हैं, देश-दुनिया की सैर करते हैं, आलीशान होटलों में ठहरते हैं। आखिर इन सब के लिए पैसा कहां से आता है? विधानसभा चुनावों से पहले गांधी परिवार के राजकुमार एक फिर विदेश यात्रा से होकर लौट आए हैं। इस बार मुस्लिम बहुल देश उजबेकिस्तान को चुना गया। वहां वे एक लड़की के साथ देखे गए। सबसे खास यह कि वहां उन्होंने मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए साजिश रचने वाली शासन परिवर्तन एजेंट सामंथा पावर के साथ बैठक की। यानि मौजमस्ती के साथ मोदी सरकार के खिलाफ साजिश!
…तो सामंथा पावर से मिलने उजबेकिस्तान गए थे राहुल गांधी!
राहुल गांधी की रहस्यमय उजबेकिस्तान यात्रा क्यों? अभी क्यों? खासकर जब विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है? दरअसल वह “शासन परिवर्तन एजेंट” के साथ एक गुप्त बैठक करने के लिए उज्बेकिस्तान में थे। यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) की प्रशासक सामंथा पावर 23-24 अक्टूबर को क्षेत्रीय कनेक्टिविटी मंत्रिस्तरीय C 5+1 की अध्यक्षता करने के लिए उज्बेकिस्तान में थीं। सामंथा पावर को दुनिया के देशों में हस्तक्षेप करने के लिए जाना जाता है।
राहुल गांधी मौजमस्ती के लिए जाते हैं विदेश
ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के जीवन का मकसद अब यही रह गया है कि विदेशों में जाकर मौजमस्ती करो और जब मौका मिले भारत को नीचा दिखाओ। विदेशों में जाकर भारत विरोधी लोगों से मिलना और सत्ता की लालच में किसी भी हद तक गिर जाना यही उनका चरित्र बन गया है। भारत आकर भले वो कुली बन जाएं, किसान बन जाएं, बढ़ई बन जाएं, लेकिन उनकी असली तस्वीर यही है।
बराक ओबामा प्रशासन में बढ़ा था सामंथा पावर का कद
सामंथा पावर युद्ध संवाददाता के तौर पर काम किया, लेखक हैं, सरकारी अधिकारी रहीं और उसके बाद राजनयिक बनीं। “ए प्रॉब्लम फ्रॉम हेल: अमेरिका एंड द एज ऑफ जेनोसाइड” किताब के लिए उन्हें 2003 में पुलित्जर पुरस्कार मिला। सामंथा पावर ने ओबामा युग की अमेरिकी विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह राष्ट्रपति ओबामा को लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप करने के लिए मनाने में प्रमुख व्यक्ति थीं, जिसने लीबिया को अब एक आतंकवादी राज्य बना के छोड़ दिया है!!जून 2013 में, ओबामा ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत के रूप में नियुक्त किया।
बराक ओबामा का दोहरा मापदंड देखिए, भारतीय मुसलमानों के लिए चिंता जताई
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक इंटरव्यू में कहा था, “हिंदू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात करना अहम है। अगर मेरी मोदी से बात होती तो मेरा तर्क होता कि अगर आप अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करते हैं तो मुमकिन है कि भविष्य में भारत में विभाजन बढ़े। ये भारत के हितों के उलट होगा।”
ओबामा ने 1 साल में 7 मुस्लिम देशों पर गिराए 26171 बम, मिला शांति का नोबेल
यह वही ओबामा हैं, जिनके राष्ट्रपति रहते अमेरिका ने दुनिया के सात मुस्लिम देशों पर 26000 से ज्यादा बम गिराए। अमेरिकी सेना के इन हमलों में हजारों नहीं बल्कि लाखों मुसलमानों की मौत हुई, जिनमें अधिकतर निर्दोष आम नागरिक थे। पश्चिमी देशों का डबल स्टैंडर्ड देखिए कि इसके बावजूद ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार दे दिया। इसी ओबामा ने भारत को अल्पसंख्यकों के अधिकार पर ज्ञान दिया। ओबामा ने कहा है कि हिन्दू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा ध्यान देने योग्य है। बड़ी बात यह है कि ओबामा को यह दिव्य ज्ञान तब आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर थे।
डीप स्टेट का हिस्सा हैं सामंथा पावर, बाइडन ने बनाया USAID प्रमुख
सामंथा पावर उसी डीप स्टेट का हिस्सा हैं जो अपने हितों को साधने के लिए अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आता है। लीबिया, सीरिया और यमन इसके उदाहरण हैं। सामंथा पावर डीप स्टेट के लिए कितनी महत्वपूर्ण है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सत्ता आने के बाद उसे जनवरी 21 में USAID की प्रमुख के लिए पावर को नामांकित किया।
सामंथा की जार्ज सोरोस और वामपंथी संगठनों से नजदीकी
जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और अन्य वामपंथी संगठनों के साथ पावर की बैठकें भारत के लिएबेहद चिंताजनक है। इससे अधिक दिलचस्प बात हेनरी किसिंजर से उनकी निकटता है,जिन्हें मोदी जी के अधीन भारत से सख्त नफरत है। यानि जिन लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिक्कत है उन्हीं लोगों से राहुल गांधी की नजदीकी है। जो लोग भारत को विकसित नहीं देखना चाहते उन्हीं लोगों से राहुल के मिलने का मकसद क्या है?
सामंथा पावर ने 2022 में की थी भारत की यात्रा
सामंथा पावर की भारत में बहुत रुचि है। वह 25-27 जुलाई 2022 तक भारत में थी। 26 तारीख को उसने नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा पर भाषण दिए और उसके महत्व पर चर्चा की और भारत में नागरिक समाज संगठनों के लिए अमेरिका की निरंतर प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया। मतलब नागरिक अशांति के लिए फंडिंग का आधार बनाया।
सारा नाटक 2024 में लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा
राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु सैम पित्रोदा और सामंथा पावर के बीच लंबे समय से निकटता रही है। सैम पित्रोदा से सामंथा पावर की निकटता, सामंथा पावर की जार्ज सोरोस से निकटता, पीएम मोदी को हटाने के लिए जार्ज सोरोस की फंडिंग की घोषणा, सामंथा पावर के साथ राहुल की बैठक। इन कहानियों को जोड़ें तो यह साफ समझ आता है कि यह सारा खेल भारत में 2024 में होने वाले आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए अभी से साजिशें रची जा रही है। यानि चुनावों से पहले विदेशी हस्तक्षेप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
सामंथा उज्बेकिस्तान में थी, सोशल मीडिया पोस्ट से खुलासा
राहुल गांधी ने तो अपनी यात्रा गुप्त रखी लेकिन सामंथा पावर 23-24 अक्टूबर को क्षेत्रीय कनेक्टिविटी मंत्रिस्तरीय C 5+1 की अध्यक्षता करने के लिए उज्बेकिस्तान में थीं। इसका खुलासा उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में की है। जिसे नीचे देखा जा सकता है।
Today, continuing the commitment made by @POTUS at the UN General Assembly, I chaired the C5+1 Ministerial in Samarkand.
Central Asia countries agreed to work together, with US technical support, to break down trade barriers and to reduce climate emissions. pic.twitter.com/5v0vHQ0I0h
— Samantha Power (@PowerUSAID) October 24, 2023
राहुल गांधी जब अमेरिका दौरे पर गए थे तब भी उन्होंने भारत विरोधियों से मुलाकात की थी। इस पर एक नजर-
अमेरिका में राहुल का जमात, सुनीता विश्वनाथ कनेक्शन, फोटो ने खोल दी पोल
राहुल गांधी पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से पहले 30 मई को अमेरिका पहुंचे थे। राहुल गांधी के विदेश दौरे का उद्देश्य भारत को नीचा दिखाना, पीएम मोदी और भाजपा को बदनाम करना और भारत में मुसलमान खतरे हैं, यही बताना रहता है। यह काम वह पिछले कई विदेश दौरे से करते आ रहे हैं। लेकिन जिस तरह सोशल मीडिया पर उनका एक फोटो वायरल हुआ उसने उनकी पोल खोलकर रख दी है। जिस अमेरिकी अरबपति कारोबारी जार्ज सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगला था, जिसने पीएम मोदी को सत्ता से हटाने की बात कही थी, जिसने राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 अरब डॉलर का फंड देने की बात कही थी, अब राहुल गांधी उसी के करीबी सहयोगी सुनीता विश्वनाथ के साथ बैठते करते देखे गए। आखिर राहुल गांधी देश विरोधी लोगों से क्यों मिल रहे थे? क्या भारत को कमजोर करने की जार्ज सोरोस की साजिश में वे भी शामिल हैं? राहुल गांधी का जमात, ISI और जॉर्ज सोरोस से जुड़े लोगों से मिलना यह साबित करता है कि वे भारत से प्रेम नहीं करते बल्कि सत्ता के लिए देश को कमजोर करने से लेकर किसी भी हथकंडे को अपना सकते हैं।
जॉर्ज सोरोस की प्रतिनिधि हैं सुनीता विश्वनाथ
सुनीता विश्वनाथ जॉर्ज सोरोस की प्रतिनिधि हैं, जिसने विपक्षी नेताओं, थिंक टैंक, पत्रकारों, वकीलों और कार्यकर्ताओं के एक नेटवर्क के माध्यम से भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए 1 अरब डॉलर देने का वादा किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राहुल गांधी सत्ता पाने के लिए इस हद तक समझौता कर रहे हैं। अमेरिकी एक्टिविस्ट सुनीता विश्वनाथ वही हैं जिन्हें तीन साल पहले अयोध्या में एंट्री से रोक दिया गया था।
हिंदुओं के विरोध में मुसलमानों के पक्ष में एजेंडा चलाती है सुनीता विश्वनाथ
सुनीता विश्वनाथ हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (एचएफएचआर) की सह-संस्थापक हैं, इसके जरिये भी वह हिंदुओं के खिलाफ एजेंडा चलाती है और इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) जैसे कट्टर संगठनों के साथ कई कार्यक्रमों की सह-मेजबानी करती हैं। पश्चिम में व्यापक जमात-आईएसआई सांठगांठ का हिस्सा हैं और भारत में सामाजिक भेदभाव के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना उनका काम है। उनके अन्य संगठन वुमन फॉर अफगान वीमेन को सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
मुस्लिम4पीस के कार्यक्रम में सुनीता का हिंदू और मोदी-विरोधी भाषण
अमेरिका में “डिसमेंटल ग्लोबल हिंदुत्व” अभियान चलाने वाली सुनीता सोरोस द्वारा वित्तपोषित कई संगठनों के साथ जुड़ी हुई है। मुस्लिम4पीस संगठन द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में उन्हें हिंदू, मोदी-विरोधी भाषण देते हुए साफ देखा जा सकता है। इससे यह आशंका दृढ़ हो जाती है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन की मंशा पाले लोगों द्वारा राहुल गांधी को तैयार किया जा रहा है?
Driving “Dismantle Global Hindutva” campaign to Afghan & US, she is/has been associated with Soros funded orgs.
Take a glimpse as an apologist Hindu, anti-Modi speech at Iftar Party organised by MusIim4Peace, NJ.
Is Rahul Gandhi being groomed by regime-change-operators?
2/2 pic.twitter.com/B7E6Ms9E73
— The Hawk Eye (@thehawkeyex) June 2, 2023
बैठक में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का एजेंट भी शामिल
आपने सुनीता विश्वनाथ के साथ राहुल गांधी की तस्वीर देखी। इस बैठक में और कौन-कौन मौजूद थे? अब्दुल मलिक मुजाहिद द्वारा प्रवर्तित भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद के जिहादी – आईएसआई फ्रंटमैन भी थे। हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स केवल मुजाहिद द्वारा समर्थित संगठन है। राहुल गांधी के कांग्रेस यूएसए इनर सर्कल के कनेक्शन के बारे में जानकर गंभीर चिंताएं होती हैं। एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन इंगित करता है कि सर्कल के एक सदस्य को सोरोस द्वारा सीधे वित्त पोषित किया जाता है, जिसका आईएसआई और जमात ए इस्लामी से जुड़े संगठनों से संबंध है, जो आतंकी गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
सुनीता विश्वनाथ के पाकिस्तानी जमात-ए-इस्लामी से संबंध
हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स की संस्थापक सुनीता विश्वनाथ एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका कथित तौर पर पाकिस्तानी जमात-ए-इस्लामी के एक प्रमुख व्यक्ति अब्दुल मलिक मुजाहिद के साथ करीबी संबंध हैं, जो भारत में आतंकी हमलों में सीधे तौर पर शामिल होने के लिए जाना जाता है। मुजाहिद का भारतीय प्रवासी संगठनों पर प्रभाव स्पष्ट है। उनकी वेबसाइट पर भारत के खिलाफ एजेंडा के रूप में ‘सेव इंडिया फ्रॉम फासिज्म’ और ‘सेव कश्मीर’ आदि के पोस्टर-बैनर देखे जा सकते हैं।
सुनीता विश्वनाथ का आईएसआई और खालिस्तानियों से भी गहरा संबंध
सुनीता विश्वनाथ के बारे में और जानकारी हासिल करने पर पता चलता है उनका आईएसआई और खालिस्तानियों से भी गहरा संबंध है। इसके साथ ही कई अन्य संगठनों से भी संबंध है जो उनके भारत विरोधी होने को उजागर करते हैं। वह अमेरिका में आईएसआई समर्थित खालिस्तानी गुर्गों, भजन सिंह भिंडर और पीटर फ्रेडरिक के साथ एलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी की सह-संस्थापक भी हैं।
The plot thickens as we uncover Viswanath’s other associations. She was the co-founder of the Alliance for Justice and Accountability along with Bhajan Singh Bhinder and Pieter Friedrich, ISI-backed Khalistani operatives in the USA.
(4/n) pic.twitter.com/nCPayHetOh
— Radical Watch (@RadicalWatchOrg) June 2, 2023
भारत विरोधियों का कांग्रेस में सीधी पहुंच का क्या है मतलब?
सुनीता विश्वनाथ का विवादों से नाता यहीं तक नहीं है। सुनीता ने कई कार्यक्रमों का सह-आयोजन किया है और IAMC जैसे संगठनों के साथ सहयोग किया है, जो 2014 से पहले से ही भारत के खिलाफ खुले तौर पर पैरवी कर रहा है, देश के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करता रहा है। इन खुलासों से संकेत मिलता है कि अमेरिका में सुनीता विश्वनाथ और राहुल गांधी की बैठक किसी खतरनाक मंसूबे के तहत हुई। वे भारत के खिलाफ किसी एजेंडे पर काम कर रहे हैं। यह सोचना भी परेशान करने वाला है कि इस तरह की सोच वाला कोई व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के अमेरिकी संगठन के अंदर तक सीधी पहुंच आखिर कैसे प्राप्त कर सकता है।
सुनीता विश्वनाथ भगवान शिव को बता चुकी ‘चिलमबाज’
हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स नामक संगठन की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ हिंदुओं के नाम पर हिंदुओं के खिलाफ झूठ और प्रोपेगेंडा फैलाने का काम करती रही है। ‘हिंदू बनाम हिंदुत्व’ के नैरेटिव का अभियान चलाकर लोगों को भ्रमित करने का काम करती रही है। वहीं सुनीता हिंदू देवी देवताओं को बदनाम करने के लिए उल-जुलूल बातें भी करती है। कभी वह भगवान शिव को चिलमबाज बताती है तो कभी कहती है हिंदुओं में शराब-सिगरेट का निषेध नहीं है, ये देवताओं को भी चढ़ाया जाता है।
क्या राहुल के भाषण की स्क्रिप्ट अमेरिका में लिखी जा रही?
करण थापर के एक शो में सुनीता ने कहा था कि भारत के हिंदुओं के लिए जरूरी है कि वो हिंदुत्व से लड़ें क्योंकि जो आज हो रहा है वो नरसंहार की शुरुआत है। सुनीता की तरह ही राहुल गांधी भी पिछले कुछ समय से हिंदू और हिंदुत्व को अलग बताकर प्रोपेगेंडा फैलाने में जुटे हैं। लेकिन इससे इस बात को बल मिल रहा है कि क्या राहुल के भाषण की स्क्रिप्ट अमेरिका में लिखी जा रही है।
राहुल के आयोजकों के नाम शाहीन बाग की लिस्ट जैसी क्यों?
अमेरिका में राहुल गांधी के कार्यक्रम के आयोजकों में से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार है- फ़्रैंक इस्लाम, माजिद अली, नियाज़ ख़ान, जावेद सैयद, मोहम्मद असलम, मीनाज़ ख़ान, अकील मोहम्मद आदि। इन नामों को देखने ऐसा लगता है कि गोया यह शाहीन बाग की वोटर लिस्ट हो। लेकिन नहीं, ये उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने राहुल गांधी का अमेरिका में प्रोग्राम ऑर्गनाइज़ कराया। इनमें से कई कश्मीर में कट्टरवाद के समर्थक हैं, यानी के आतंकवाद के समर्थक हैं। अब इससे यह समझना आसान हो जाता है कि राहुल गांधी क्यों सनातन संस्कृति का मजाक बना रहे थे और बस मुसलमान परेशान हैं, मुसलमानों को सेकेंड क्लास सिटीजन माना जाता है, भारत में यही सब गाना गा रहे थे।
राहुल गांधी इससे पहले 2022 में ब्रिटेन गए थे तब भी उन्होंने देश को नीचा दिखाया था। इस पर एक नजर-
राहुल गांधी ने कहा था- पूरे भारत में केरोसिन छिड़का जा चुका है, बस एक चिंगारी की जरूरत है
लंदन में 2022 में ‘आइडिया फॉर इंडिया’ कॉन्फ्रेंस में पहुंचे राहुल गांधी ने कहा था- ‘देश में धुव्रीकरण बढ़ता जा रहा है, बेरोजगारी अपने चरम पर है, महंगाई बढ़ती जा रही है। बीजेपी ने देश में हर तरफ़ केरोसीन छिड़क दिया है बस एक चिंगारी से हम सब एक बड़ी समस्या के बीच होंगे।’ यहां समझने की बात है कि राहुल को केरोसीन छिड़कने की बात कहनी थी तो उन्होंने इसमें बीजेपी को लपेट लिया।
राहुल ने लंदन में पाकिस्तानी प्रोफेसर कमल मुनीर के साथ मंच साझा किया
लंदन में भारतीय लोकतंत्र और संस्थानों पर हमला करते हुए राहुल गांधी ने पाकिस्तानी प्रोफेसर कमल मुनीर के साथ मंच साझा किया। राहुल गांधी का परिचय पाकिस्तान में जन्मे कमल मुनीर ने एमबीए दर्शकों से कराया। कमाल मुनीर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले राजकीय सम्मान तमगा-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया है। मुनीर का पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ संपर्क है। इससे आप समझ सकते हैं कि डीप स्टेट भारत को तबाह करने के लिए किस स्तर पर काम कर रहा है। एक तरफ राहुल गांधी को खड़ा किया गया, लेफ्ट लिबरल गैंग प्रोपेगेंडा फैलाने में जुट जाती है। आईएसआई नेटवर्क के जरिये खालिस्तान मुद्दे को जिंदा किया गया जिससे देश में उथल-पुथल मचे।

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता राहुल गांधी ब्रिटिश धरती पर जाकर भारत के आंतरिक मुद्दों पर बात करते हुए विदेशी दखल की बात करते हैं। वह ऐसा पहली बार नहीं कर रहे हैं- इससे पहले उन्होंने निकोलस बर्न और अमेरिका के हस्तक्षेप की मांग की थी। और हम सभी को याद है कि कैसे कांग्रेस ने हाल ही में जॉर्ज सोरोस के बयान को लेकर हाय-तौबा मचाया था जबकि सोरोस राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डालर देने का ऐलान कर चुका है। यह एक बार नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता को कमजोर करने का एक सुनियोजित पैटर्न है। इससे यह भी साबित होता है कि राहुल विदेशी ताकतों के इशारों पर खेल रहे हैं।
राहुल गांधी हाल के समय में चीन का जिक्र बार-बार करते हैं। चीन भारत में घुसपैठ कर रहा है। चीनी सैनिक भारतीय जवानों को पीटते हैं। चीन में काफी सद्भावना है। इस तरह के न जाने कितने ही बयान हैं। लेकिन हाल में ब्रिटेन के दौरे के दौरान उनके जुबान से वह बात भी निकल गई जिसका उन्हें सब्जबाग दिखाया गया था। उन्होंने कहा- जैसा रूस ने यूक्रेन में किया, वही भारत के खिलाफ दोहरा सकता है चीन। पश्चिमी देशों के डीप स्टेट (दुनिया को अपने हिसाब से चलाने वाले) ने मई 2022 में राहुल गांधी के मेकओवर और पीएम उम्मीदवार बनाने की पटकथा तैयार की थी। उस वक्त राहुल भी ब्रिटेन के दौरे पर थे। उसी वक्त यह तय हुआ था कि जिस तरह यूक्रेन में आंदोलन खड़ा कर जेलेंस्की को प्रधानमंत्री बनाया गया उसी तरह 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर राहुल की ताजपोशी करवाई जाएगी।
राहुल के मेकओवर की पटकथा की कहानी भारत जोड़ो यात्रा से शुरू होती है। इसके बाद पटकथा के मुताबिक पीएम मोदी की छवि खराब करने के लिए बीबीसी डॉक्यूमेंट्री, अडानी समूह को बदनाम करने के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट और ANI, RSS जैसी संस्थाओं पर हमले किए जा रहे हैं। फिर रामचरितमानस विवाद के जरिये हिंदू धर्म को बदनाम करना और खालिस्तान मुद्दे को हवा देकर देश को आंदोलन की आग में झोंकने की साजिश रची जा रही है। यह कोई संयोग नहीं है कि खालिस्तान के नए झंडाबरदार अमृतपाल सिंह जो बात कहता है वही राहुल गांधी भी कहते हैं। RSS के खिलाफ एक तरफ कनाडा में रिपोर्ट तैयार होती है उसे आतंकवादी संगठन करार दिया जाता है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी लंदन में RSS के खिलाफ जहर उगलते हैं। RSS को लेकर उनसे प्लांटेड सवाल किए जाते हैं।
अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस ने साल 2020 में वैश्विक स्तर पर राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने की बात कही थी। उसने कहा था कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ‘राष्ट्रवादियों से लड़ने’ के लिए की जाएगी। सोरोस ने ‘अधिनायकवादी सरकारों’ और जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए खतरा बताया था। सोरोस ने कहा था कि राष्ट्रवाद अब बहुत आगे निकल गया है। सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका भारत को लगा है, क्योंकि वहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं।
डीप स्टेट भारत की तरक्की से खुश नहीं है और वह चाहता कि किसी तरह से भारत को कमजोर किया जाए। इसीलिए उसने प्यादे के रूप में राहुल गांधी को चुना है। राहुल गांधी इसके लिए योग्य उम्मीदवार हैं। उनके पास अपना कोई विजन नहीं है। डीप स्टेट जैसा कहेगा वो वैसा ही करते जाएंगे। जैसा कि यूक्रेन में हो रहा है। कुल मिलाकर डीप स्टेट चाहता है कि पश्चिमी देशों को चुनौती देने वाली दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भारत और चीन के बीच रूस-यूक्रेन की तरह युद्ध छिड़ जाए जिससे ये दोनों देश कमजोर हो जाएं। और राहुल गांधी लालचवश में उनके एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्हें इस बात से तनिक भी दुख नहीं है कि इससे देश का क्या होगा।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और पश्चिमी देश अपना हित साधने के लिए सरकार भी खरीद लेती थी और तमाम तरह की साजिश रचने में सफल हो जाती थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 90 के दशक में हुए इसरो जासूसी कांड है। उस वक्त भारतीय वैज्ञानिक नंबी नारायण के नेतृत्व में भारत लिक्विड प्रोपेलेंट इंजन बनाने में सफल होने के करीब पहुंच गया था लेकिन CIA ने कांग्रेस सरकार और नेताओं को खरीद कर नंबी नारायण को जेल में डलवा दिया और भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 20-30 साल पीछे चला गया। इसरो जासूसी कांड में जब नंबी नारायण को गिरफ्तार किया गया था तो उस वक्त केरल में कांग्रेस की सरकार थी। सीबीआई की जांच में सामने आया है कि नंबी नारायण की अवैध गिरफ्तारी में केरल सरकार के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी शामिल थे। हाईकोर्ट में सीबीआई ने कहा कि नंबी नारायण की गिरफ्तारी संदिग्ध अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी।
विदेशी ताकतें और जार्ज सोरोस जैसे लोग भारत में एक कमजोर और गठबंधन सरकार को पसंद करते हैं, जिससे वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उसे चला सकें। एक स्थिर, पूर्ण बहुमत वाली सरकार से वे डरते हैं और इसीलिए उसे हटाना चाहते हैं। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि राहुल गांधी 2022 में जब ब्रिटेन में थे उसी समय सोरोस भी ब्रिटेन में था। यह डीपस्टेट का षड़यंत्र है जिसमें कांग्रेस सहित लेफ्ट लिबरल मिले हुए हैं।
जिस तरह 2014 के बाद से भारत विकास के पथ पर अग्रसर है उसे देखते हुए देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिल में बसाया है। इसकी झांकी पीएम मोदी के रोड शो में साफ देखने को मिलती है। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं भारतीय मतदाताओं को प्रभावित करने वाले ये विदेशी ताकतें और जार्ज सोरोस कौन होता है। भारतीय मतदाता निश्चित रूप से 2024 में मोदी जी को फिर से वापस लाएगा! 2024 में सोरोस और विदेशी ताकतों का सपना चकनाचूर होगा। देशों में शासन परिवर्तन के उसके मंसूबे का अंत भारत में होगा। भारत में ऐसा कुछ करने की कोशिश करना मुश्किल है। अब देश ने पीएम मोदी को दिल में बसा लिया है।
