कांग्रेस की स्थापना सन 1885 में अंग्रेजों ने की थी ताकि भारतीय लोगों को 1857 की तरह क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता संग्राम में हिंसक विद्रोह करने से रोका जा सके। भारतीयों में उमड़ती राष्ट्रीयता की भावना को रोका जा सके और राष्ट्रवाद की भावना को दबाया जा सके। अफसोस की बात है जिस राष्ट्रवाद को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कांग्रेस की स्थापना की थी स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस परिपाटी को खत्म करने की जगह उसे बढ़ावा देना जारी रखा। यही नहीं, नेहरू ब्रिटेन के चरणों में तो नतमस्तक थे ही उन्होंने अमेरिका के सामने भी घुटने टेक दिए। इसे इससे समझा जा सकता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के लिए काम करने वाली संस्था फोर्ड फाउंडेशन का दफ्तर 1952 में ही भारत में खुल गया। मजे की बात है कि फोर्ड फाउंडेशन ने अलग से कोई कर्यालय नहीं खोला बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सूचना केंद्र से ही काम करना शुरू कर दिया और नेहरू सरकार ने इसकी अनुमति भी दे दी। आज जब अमेरिकी अरबपति कारोबारी जार्ज सोरोस हिंदुस्तान को कमजोर करने के लिए भारत के राष्ट्रवाद पर हमले कर रहा है तब इस गठजोड़ को समझना हर भरतीय के लिए जरूरी हो जाता है।
नेहरू शासन काल में 1952 में भारत में स्थापित हुआ CIA से जुड़ा फोर्ड फाउंडेशन
यह सर्वविदित है जार्ज सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन और अन्य अमेरिकी एनजीओ अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के इकोसिस्टम का हिस्सा रही है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शासन काल में 1952 में CIA से जुड़ा फोर्ड फाउंडेशन भारत में स्थापित हुआ, तब से लेकर अब तक लाखों डॉलर भेजे गए, जब तक कि मोदी शासन ने इस पर लगाम नहीं लगाई। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने बिना किसी मंजूरी के सरकारी अधिकारियों को विदेशी टूर और छात्रवृत्ति प्रदान करके फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से घुसपैठ की।
फोर्ड फाउंडेशन ने भारत में लगभग 508 मिलियन डॉलर भेजे
फोर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट के अनुसार, इसने भारत में लगभग 508 मिलियन डॉलर भेजा है, जिसका कार्यालय 55, लोधी एस्टेट, दिल्ली में है। जो वही पता है जो भारत में संयुक्त राष्ट्र सूचना केंद्र का पता है। 1952 में भारत सरकार के साथ “हस्ताक्षरित ज्ञापन” के तहत 2014 तक वह इम्यूनिटी का लाभ उठाता रहा!
पीएम मोदी ने राष्ट्रवाद विरोधी एनजीओ पर लगाया लगाम
वर्ष 2014 में जैसे ही पीएम मोदी ने पदभार ग्रहण किया, गृह मंत्रालय ने राष्ट्रवाद विरोधी सभी विदेशी वित्त पोषित एनजीओ पर नकेल कस दी और बाद में 2015-19 के बीच एफसीआरए उल्लंघन के मद्देनजर 16 हजार से अधिक एनजीओ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
कांग्रेस की स्थापना भारत में ब्रिटिश राज को स्थायी बनाने के लिए हुआ था
हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने वाले स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ने सावरकर समग्र(खंड एक) में लिखा है- इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना सन 1885 में अंग्रेजों ने की थी ताकि भारतीय लोगों को 1857 की तरह क्रन्तिकारी और हिंसक विद्रोह करने से रोका जा सके। कांग्रेस के संस्थापक अंग्रेज ए.ओ.ह्यूम को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 17 जून 1857 को उत्तर प्रदेश के इटावा में जंगे आजादी के सिपाहियों से जान बचाने के लिये मुंह में कालिख लगा, साड़ी पहन और बुर्का डालकर ग्रामीण महिला का वेष धारण कर भागना पड़ा था। उस समय वे इटावा के मजिस्ट्रेट एवं कलक्टर थे। तब से वे ऐसी क्रांति की पुनरावृत्ति होने के डर से अत्यधिक भयभीत रहते थे।
ब्रिटिश-निष्ठा की बेड़ियां पहनाने के लिए बनाई गई कांग्रेस
वीर सावरकर ने सावरकर समग्र में लिखा है- कांग्रेस की स्थापना के लिए जब आकलैंड ने ह्यूम की आलोचना की तो ह्यूम ने पत्र लिखकर उसे समझाया कि, “हिन्दुस्थान में सशस्त्र क्रांति की जो प्रवृत्ति बढ़ रही है, उसे यदि समय पर ही कांग्रेस की ब्रिटिश-निष्ठा की बेड़ियां नहीं पहनाई जाती तो सन 1857 जैसे सशस्त्र युद्ध का कोई संकट अंग्रेजी सत्ता को फिर से आ घेरता। उस तरह के सशस्त्र क्रांतिवाद से भारतीय लोगों को विमुख करने के लिए ही तो कांग्रेस का गठन किया गया है। ऐसे में उस कांग्रेस से ब्रिटिश शासन को कौन सा खतरा हो सकता है? ब्रिटिश सत्ता को हिन्दुस्तान में सुरक्षित रखने के लिए ही इसकी आवश्यकता था”।
ह्यूम को सार्वजनिक असंतोष की लहर का आभास थाः एनी बेसेंट
ब्रिटिश समाजवादी भारतीय राष्ट्रवाद की प्रचारक एनी बेसेंट ने लिखा है- ह्यूम यह अच्छी तरह जानता था कि लाखों भारतीय अत्यन्त दुःखी होकर भूखों मर रहे थे और इतना होने पर भी वे थोड़े से शासक वर्ग के लिए सब प्रकार का भोग साधन और विलास की सामग्री उत्पन्न कर रहे थे। ह्यूम को पुलिस की गुप्त रिपोर्ट पढ़ने का अवसर मिला था और वह अन्दरूनी असन्तोष की कहानी को जानता था तथा उसे भूमिगत षड्यन्त्र, गतिविधियों और सार्वजनिक असंतोष की लहर का आभास था, जो 1877 के अकाल के पश्चात एक बहुत बड़ा खतरा बन गया था। इसीलिए उसने कांग्रेस जैसे संगठन की आवश्यकता मह्सूस की थी।
सशस्त्र क्रांति को रोकने के लिए हुआ था कांग्रेस का निर्माण
कांग्रेस का निर्माण जनता के असंतोष के कारण सशस्त्र क्रांति को रोकने के उद्देश्य से भय के रूप में हुआ था। अंग्रेज सर विलियम वेडरबर्न ने एक बार ह्यूम से कहा था, भारत में असन्तोष की बढ़ती हुई शक्तियों से बचने के लिए एक अभय दीप की आवश्यकता है और कांग्रेस से बढ़कर अभय दीप दूसरी चीज नहीं हो सकती थी।
राष्ट्रीयता की भावना को रोकने के लिए बनाई गई कांग्रेसः विलियम वेडरबर्न
विलियम वेडरबर्न ने लिखा है, ह्यूम साहब की यह योजना क्रान्ति का भय दूर करने तथा भारतीयों में उमड़ती राष्ट्रीयता की भावना को रोकने के उद्देश्य से बनाई गई थी।
कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को खतरे से बचाना थाः लाला लाजपतराय
लेखक विद्याधर महाजन की किताब आधुनिक भारत के अनुसार, लाला लाजपतराय ने यंग इंडिया में लिखा है, राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को खतरे से बचाना था। भारत की राजनैतिक स्वतन्त्रता के लिए प्रयास करना नहीं, अंग्रेजी साम्राज्य के हितों की पुष्टि करना था।
कुशासन, लूट, अत्याचार को छुपाने के लिए बनी कांग्रेस
ए.ओ.ह्यूम ने कहा था, हमारे कार्यों (कुशासन, लूट, अत्याचार) के परिणामस्वरूप उत्पन्न असंतोष की बढ़ती हुई शक्तियों से बचाव के लिए सुरक्षा साधन की आवश्यकता थी, जिसकी रचना हमने इण्डियन नेशनल कांग्रेस के रूप में की। इससे अधिक प्रभावशाली सुरक्षा साधन का आयोजन असम्भव था।
भारतीय क्रान्ति को रोकने का अस्त्र थी कांग्रेस पार्टी
लेखक डॉ. अयोध्या सिंह लिखते हैं, “कांग्रेस राष्ट्रीय आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय क्रान्ति को रोकने का अस्त्र बनाने के लिए पैदा की गई. ब्रिटिश शासको ने अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए ऐसा अस्त्र पैदा करना जरूरी समझा था”।
कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी संस्थाओं को दबा दिया
1889 की इंडियन नेशनल कांग्रेस की रिपोर्ट में भी कहा गया था, “कांग्रेस की यह महत्ता है कि उसने भारत में फैली हुई क्रांतिकारी संस्थाओं को दबा दिया और राजनीतिक असन्तोष को वैधानिक उपायों द्वारा व्यक्त करने का साधन उपस्थित किया”।
ए ओ ह्यूम 22 वर्षों तक कांग्रेस के महासचिव पद पर रहे
कांग्रेस के संस्थापक अंग्रेज ए ओ ह्यूम को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया। वे पूरे 22 वर्षों तक कांग्रेस के महासचिव पद पर रहे। ह्यूम चाहते थे कि कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता कोई अंग्रेज अधिकारी करे, अंग्रेजभक्त कांग्रेस के भारतीय सदस्य भी यही चाहते थे परन्तु डफरिन कूटनीतिक कारणों से इसे पूरी तरह भारतीय संस्था प्रदर्शित करना चाहते थे। इसलिए कांग्रेस के अधिवेशन की प्रथम अध्यक्ष की खोज अंग्रेजी राज और अंग्रेजियत के दीवाने एक धर्मान्तरित बंगाली ईसाई व्योमकेश बनर्जी पर जाकर खत्म हुई।
कांग्रेस के अधिवेशन में होती थी ब्रिटेन की रानी की जयकार
व्योमकेश बनर्जी ने अधिवेशन की शुरुआत निम्न वाक्यों से की: “We pledge our unstinted and unswerving loyalty to Her Majesty the Queen Victoria, the Empress of India” और सब ने एक सुर से इसे दोहराया। इस जयनाद से उत्साहित ह्यूम ने कहा- देखिये अब अंत में सिर्फ तीन बार ही नहीं अपितु तीन के तीन गुना और सम्भव हो तो उसके भी तीन गुना बार भारत सम्राज्ञी विक्टोरिया की जय जयकार करें। और ऐसा ही हुआ। आगे के कई वर्षों में भी कांग्रेस के हर अधिवेशन के अंत में हिन्द-सम्राज्ञी या सम्राट की जय जयकार प्रतिनिधियों तथा दर्शकों का गला सूखने तक चिल्ला-चिल्लाकर की जाती रही।
कांग्रेस अधिवेशन का मुख्य हिस्सा- ब्रिटिश साम्राज्य चिरायु हो
वीर सावरकर ने अपनी किताब में लिखा है- ब्रिटिशों के उपकार, हमारी सम्राज्ञी विक्टोरिया, माई-बाप सरकार, ब्रिटिश साम्राज्य ईश्वरीय वरदान, हम केवल उसके राजनिष्ठ प्रजाजन, ब्रिटिश साम्राज्य चिरायु हो इत्यादि उद्घोषणाएं कांग्रेस अधिवेशन का मुख्य हिस्सा होता था।
कांग्रेस नेता मानते थे- ब्रिटिश शासन भारत के लिए वरदान
कांग्रेस के उदारवादी नेताओं पर पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति का बहुत प्रभाव था। वे राजभक्त थे। उनकी यह धारणा थी कि ब्रिटिश शासन द्वारा भारत का आधुनिकीकरण सम्भव हो पाया है। अतः ब्रिटिश शासन भारत के लिए वरदान है।
गांधी और कांग्रेस ने कभी भारत की आजादी की मांग नहीं की
एनी बेसेंट ने कहा था, “इस युग के नेता अपने को ब्रिटिश प्रजा मानने में गौरव का अनुभव करते थे”। लेखक अयोध्या सिंह के शब्दों में, “कांग्रेसी नेता देश की स्वतन्त्रता और ब्रिटिश राज्य के अंत की मांग नहीं करते थे। स्वतन्त्रता और स्वाधीन भारत उनका लक्ष्य भी न था। कांग्रेस नेताओं ने बार-बार स्पष्ट कहा कि वे क्रान्ति नहीं चाहते, स्वतन्त्रता नहीं चाहते, नया संविधान भी नहीं चाहते, सिर्फ केन्द्र और प्रान्तों की कौंसिलों में भारतीयों के प्रतिनिधि चाहते हैं।”
गांधी का आन्दोलन सशस्त्र क्रांति से जनता को भटकाना था
लेखक अयोध्या सिंह ने लिखा है- वास्तव में गांधी के आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति से जनता को भटकाना था। और ब्रिटिश सरकार के अधीन ब्रिटिश शासन में छोटे मोटे पदों पर कांग्रेस की भागीदारी सुनिश्चित करना था जिसे वे सुराज या स्वशासन के शब्दों में लपेटकर प्रस्तुत करते थे। जिसे भारत की भोली भाली जनता आजादी समझकर उनके पीछे हो लेती थी। सुराज या स्वशासन का मतलब आजादी नहीं बल्कि सत्ता में अधिक भागीदारी होता है।
रायबहादुर का तमगा हासिल कर कांग्रेसी होते थे गौरवान्वित
वीर सावरकर ने अपनी किताब में लिखा है- कांग्रेस में जो कोई भी नेता बन जाता वह कुछ दिन बाद किसी ब्रिटिश शासन के विभाग के उच्च पद पर अंग्रेजों द्वारा नियुक्त कर दिया जाता। सर, रायबहादुर आदि कोई न कोई मानद अलंकरण सरकार की ओर से उसे दिया जाता था। किसी न किसी शासकीय समिति या सलाहकार समिति में कांग्रेस के इन ब्रिटिश निष्ठ नेताओं को लिया जाता था और ब्रिटिशों की ओर से मिलनेवाली इस राज्य मान्यता के प्रसाद चिन्हों के सम्बन्ध में कांग्रेस बहुत गौरवान्वित होती थी।