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बीजेपी से 21 साल पीछे चल रही है कांग्रेस, अब गुजरात में ओबीसी मुख्यमंत्री का दांव, बीजेपी ने 2001 में बना दिया था मुख्यमंत्री, 2014 में देश का पीएम बनाया

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बीजेपी ने अब से 21 साल पहले 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात को नरेंद्र मोदी के रूप में ओबीसी मुख्यमंत्री दिया था। गुजरात में अब जब पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और दूसरे चरण का मतदान 5 दिसंबर को है तो कांग्रेस ने आखिरी दांव चलते हुए बहुमत मिलने पर ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया है। हालांकि उसका यह दांव नाकाम ही साबित होगा क्योंकि वह उसी लकीर पर चलने की कोशिश कर रही है जिसे बीजेपी ने 21 साल पहले खींच दी थी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो पार्टी ने अगले मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को लेकर एक फॉर्मूला तैयार किया है। इस फॉर्मूले के तहत गुजरात में सरकार बनती है तो कांग्रेस ओबीसी समाज से किसी को मुख्यमंत्री बनाएगी। इस तरह बीजेपी और कांग्रेस की तुलना करें तो पता चलता है कि कांग्रेस बीजेपी से 21 साल पीछे चल रही है। क्योंकि बीजेपी ने 21 साल पहले 2001 में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया था जो कि ओबीसी वर्ग से आते हैं। इसके बाद वे लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री बने और 12 साल 227 दिन तक इस पद पर रहे। इसके बाद 2014 में प्रधानमंत्री बने। ऐसा प्रतीत होता है कि 1 दिसंबर को पीएम मोदी के अहमदाबाद में हुए मेगा रोड शो में उमड़े जनसैलाब को देखकर कांग्रेस ने प्रतिष्ठा बचाने के लिए यह दांव चला है। पीएम मोदी के मेगा रोड में जिस तरह लोग कई किलोमीटर तक उत्साह और उमंग के साथ उनकी अगवानी कर रहे थे उससे चुनाव के परिणाम का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। शायद इसी बात से घबराकर कांग्रेस ने यह आखिरी दांव चला है, लेकिन मतदाता तो वहां मोदीमय नजर आ रहा है।

गुजरात में दूसरे चरण के मतदान से पहले कांग्रेस का आखिरी दांव

गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान हो गया है और अब 5 दिसंबर को दूसरे चरण के लिए वोटिंग होगी। इसी बीच कांग्रेस के खेमे ने दूसरे चरण की वोटिंग को प्रभावित करने की मंशा से एक नया दांव चला। सूत्रों ने बताया कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो पार्टी ने अगले मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को लेकर फॉर्मूला तैयार किया है। गुजरात में सरकार बनती है कांग्रेस ओबीसी समाज से किसी को मुख्यमंत्री बनाएगी। यह भी बताया गया कि कांग्रेस की सरकार बनती है तो राज्य में तीन उप मुख्यमंत्री होंगे, एक दलित समाज से, एक आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के व्यक्ति को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। जानकारी के मुताबिक, 1 दिसंबर को जब पहले चरण के लिए वोटिंग खत्म हुई तो अहमदाबाद में कांग्रेस नेताओं की एक उच्चस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में मुख्य रूप से मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को लेकर ही चर्चा की गई और इस यह फैसला भी बैठक में ही लिया गया। बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद थे। उन्होंने वरिष्ठ पर्यवेक्षक गहलोत के साथ मिलकर यह फैसला लिया। माना जा रहा है कि कांग्रेस KHAM पार्ट-2 के रास्ते पर है, जिसके तहत क्षत्रिय, दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों को साधने की बात की जाती है।

गुजरात में पहले ही हार मान चुकी है कांग्रेस

दरअसल यह सारे जतन कांग्रेस अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए कर रही है क्योंकि वह गुजरात में पहले ही हार मान चुकी है। इसे राहुल गांधी के गुजरात से दूरी बनाए रखने की रणनीति से समझा जा सकता है। गुजरात चुनाव से राहुल गांधी के दूर रहने पर अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी कहते हैं कि डरो मत, तो उसमें सभी बातें आ जाती हैं। वो कहते हैं निडर होकर राजनीति करो। वो हार-जीत से डरने वाले नहीं हैं।

बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को 2001 में बनाया था गुजरात का सीएम

नरेंद्र मोदी को जब गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था तब वे गुजरात विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे। मुख्यमंत्री बनने के चार महीने बाद जनवरी, 2002 में उन्होंने गुजरात विधानसभा में जाने के लिए राजकोट-2 से चुनाव लड़ा था। इसके बाद वे विधायक बने और फिर 2002 के चुनावों को जीतकर फिर से मुख्यमंत्री बने। इससे पहले 4 अक्तूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी को गुजरात विधायक दल का नेता चुना गया था। उस वक्त वहां पर भाजपा के दिग्गज नेता कुशाभाऊ ठाकरे और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना की मौजूदगी थी। नरेंद्र मोदी का नाम ऐलान के वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल भी मौजूद रहे थे।

नरेंद्र मोदी के लिए वाजूभाई ने खाली की थी सीट

7 अक्तूबर, 2001 के लेकर 7 अक्तूबर, 2022 तक नरेंद्र मोदी लगातार संवैधानिक पद बने हुए हैं। बतौर मुख्यमंत्री 12 साल 227 दिन और अब बतौर प्रधानमंत्री वे काम कर रहे हैं। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि जब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नरेंद्र मोदी को विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था। तब राजकोट वेस्ट से विधायक वाजूभाई वाला ने उनके लिए सीट खाली की थी। जनवरी, 2002 में राजकोट पश्चिम में चुनाव हुआ था। बतौर मुख्यमंत्री चुनाव लड़ें नरेंद्र मोदी ने 57.32 फीसदी वोट हासिल करते हुए 14 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी।

नरेंद्र मोदी 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री बने

देश के लोकतांत्रिक इतिहास में 26 मई का विशेष महत्व है क्योंकि 2014 में शानदार चुनावी जीत के बाद नरेन्द्र मोदी ने इसी दिन देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। 2019 में नरेन्द्र मोदी ने लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला और इस बार 30 मई को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।

मोदी सरकार में 27 ओबीसी मंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में ओबीसी वर्ग के 27 मंत्रियों को शामिल किया गया है, जिनमें से 19 अति पिछड़ा जातियों से हैं। इसके अलावा ओबीसी समुदाय के पांच मंत्रियों को कैबिनेट रैंक दी गई है। ये ओबीसी मंत्री 15 राज्यों से हैं।

ओबीसी को अधिकार दिलाने में नरेंद्र मोदी की महती भूमिका

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबी देखी है। गरीबी झेली है। यही वजह है कि उन्हें गरीबी का एहसास है। गरीबों की पीड़ा को महसूस करते हुए कोरोना काल में अनाज मुहैया कराया गया। सबको फ्री वैक्सीन दी ताकि देश के लोग कोरोना से प्रभावित नहीं हो सकें। पीएम मोदी ने पिछड़ा समाज को उचित सम्मान दिया है। पहले की सरकारों ने पिछड़े वर्ग का उपेक्षा की। इतना ही नहीं, विपक्षी दलों ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का भी कड़ा विरोध किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों से गरीबी 20 प्रतिशत से कम होकर 10 प्रतिशत हो गई है। पीएम मोदी गरीबों को आवास दे रहे हैं। सरकारी जमीन पर भी घर बनाकर दिया जा रहा है। ओबीसी को अधिकार दिलाने में नरेन्द्र मोदी ने महती भूमिका निभाई। गरीब, शोषित, वंचित लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस की सरकार ओबीसी विरोधी रही है। बिहार में कर्पूरी ठाकुर ओबीसी को आरक्षण दे रहे थे, उस समय की कांग्रेस ने आरक्षण का विरोध किया था। उस समय भी जनसंघ जो आज भाजपा है, ने सरकार में रहकर सहयोग किया था। जब-जब ओबीसी को लाभ मिला है, उसमें भाजपा का सहयोग रहा है।

मोदी सरकार ने दिया राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा

ओबीसी के लिए वर्तमान सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना इसमें शामिल है। इसके लिए 123वां संविधान संशोधन करके संविधान में एक नया अनुच्छेद 338बी जोड़ा गया। आयोग को अब सिविल कोर्ट के अधिकार प्राप्त होंगे और वह देश भर से किसी भी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है और उसे शपथ के तहत बयान देने को कह सकता है। उसे अब पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने और उनकी स्थिति सुधारने के बारे में सुझाव देने तथा उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का भी अधिकार होगा। संविधान संशोधन विधेयक पर जो भी विवाद थे वे लोकसभा में हल हो गए और राज्यसभा में ये आम राय से पारित हुआ है। अब इस आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बराबर का दर्जा मिल गया है। बीजेपी ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दर्जा बढ़ाए जाने को सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया है।

मोदी सरकार का बड़ा कदम- ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए आयोग का गठन

मोदी सरकार का का ओबीसी आबादी के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण कदम है ओबीसी जातियों के बंटवारे के लिए आयोग का गठन। 2 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत एक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की। इस आयोग को तीन काम सौंपे गए हैं- एक, ओबीसी के अंदर विभिन्न जातियों और समुदायों को आरक्षण का लाभ कितने असमान तरीके से मिला, इसकी जांच करना। दो, ओबीसी के बंटवारे के लिए तरीका, आधार और मानदंड तय करना, और तीन, ओबीसी को उपवर्गों में बांटने के लिए उनकी पहचान करना। बीजेपी ने कहा है कि इस आयोग के बनने से अति पिछड़ी जातियों को न्याय मिल पाएगा। इस आयोग के गठन के पीछे तर्क यह है कि ओबीसी में शामिल पिछड़ी जातियों में पिछड़ापन समान नहीं है। इसलिए ये जातियां आरक्षण का लाभ समान रूप से नहीं उठा पातीं। कुछ जातियों को वंचित रह जाना पड़ता है। इसलिए ओबीसी श्रेणी का बंटवारा किया जाना चाहिए। देश के सात राज्यों में पिछड़ी जातियों में पहले से ही बंटवारा है।

ओबीसी के उत्थान के लिए मोदी सरकार का कार्यकाल स्वर्णिम काल

आजादी के बाद पहली बार जब कोई सरकार बना जिसनें अंतिम पंक्ति में खड़े ओबीसी समाज को आगे बढ़ाने का काम शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संपूर्ण देश के विकास के कार्य के साथ ही ओबीसी समाज के लोगों को आर्थिक व राजनीतिक रूप से मजबूत करने का कार्य योजनाबद्ध तरीके से किया गया है। मोदी सरकार से पहले कभी ऐसा किसी सरकार ने नहीं किया था। वर्तमान में पंचायत से लेकर राज्य व केन्द्र में ओबीसी समाज को बड़े पैमाने पर राजनीति में स्थान मिला है। इसके अलावा ओबीसी छात्र छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद पर जाने में मदद के लिए कई योजना सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। मोदी सरकार ने ओबीसी समाज के 17 नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर एक मिसाल कायम किया है। जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। ओबीसी समाज के उत्थान के लिए मोदी सरकार के 8 साल स्वर्णिम काल है, जिसमें अनेकों काम किये गए हैं।

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