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कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस, AAP और जेडीएस का ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने पर फोकस, ऐसे लोकलुभावन वादों से बढ़ेगा अर्थव्यवस्था पर बोझ, सुप्रीम कोर्ट भी फ्रीबी उपहारों के पक्ष में नहीं!

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एक ओर सुप्रीम कोर्ट चुनाव से पहले फ्री योजनाओं के खिलाफ इस याचिका पर विचार कर रहा है कि क्यों न फ्री का प्रलोभन देने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द कर दी जाए? दूसरी ओर कर्नाटक के चुनाव से पहले कुछ राजनीतिक दल ऐसे ही कुत्सित प्रयासों में जुट गए हैं। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और जद एस जैसे राजनीतिक दल मुफ्त वादों के जरिए चुनावी लोकतंत्र की नींव को हिलाने में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसके पक्षधर हैं कि चुनावों से पहले ‘मुफ्त रेवड़ियां’ के वादे करने पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। क्योंकि इसके मूल में जनता का हित नहीं, बल्कि कुत्सित राजनीतिक स्वार्थ ही छिपे हैं। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की ओर से की गई लोकलुभावन घोषणाएं राज्य की अर्थ व्यवस्था पर भारी पड़ सकती हैं। कर्नाटक बेशक अमीर राज्य है, फिर भी उसकी प्रतिबद्ध देनदारियां इतनी हैं कि चुनावी वादों के नाम पर खैरात बांटने की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है।फ्रीबी योजनाएं स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की पवित्र अवधारणा के खिलाफ
दरअसल, चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करना या बांटना, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की पवित्र अवधारणा के खिलाफ है। मुफ्त उपहार और कुछ नहीं, मतदाताओं को पिछले दरवाजे से रिश्वत देने का ही प्रयासभर है। या यूं कहें कि कुछ राजनीतिक दल मुफ्त उपहारों के वादे से जनता का वोट खरीदने की कोशिश करते हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया दूषित होती है। इससे चुनाव मैदान में अवसरों की समानता का सिद्धांत प्रभावित होता है। इसके बावजूद राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने चार गारंटी कार्यक्रमों की घोषणा की है। जद एस और आम आदमी पार्टी ने भी कई रियायतें देने की बात कही है। कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव होंगे। 224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक राज्य में वोटों की गिनती 13 मई को होगी। और नई सरकार का रिजल्ट आएगा। कर्नाटक में मौजूदा वक्त भाजपा की सरकार है।राज्य का एक तिहाई बजट को कांग्रेस की घोषणाओं पर खर्च हो जाएगा-निर्मला
राज्य का बजट करीब तीन लाख करोड़ रूपये का है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बहुत सटीक आंकलन किया है कि अगर कांग्रेस कर्नाटक में निरंतर कर ही अपनी सभी घोषणाएं पूरी करे तो राज्य के कुल बजट का एक तिहाई से ज्यादा तो उस पर ही खर्च हो जाएगा। ऐसे में राज्य की अर्थव्यवस्था को गड्डे में चली जाएगी। राज्य के जनता के भले के लिए प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन के बारे में न सोचकर सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोकलुभावन घोषणाएं करना जनता के साथ अन्याय ही है। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने अभी घोषणापत्र जारी नहीं किया है और न ही कोई चुनावी वादे किए हैं। पार्टी की नीति पर चलते हुए बीजेपी से फ्रीबी घोषणाएं करने की उम्मीद भी नहीं है। क्योंकि वह चुनिंदा लोगों को लाभ पहुंचाने के बजाए सबका साथ- सबका विकास में मंत्र में विश्वास करती है।भाजपा सरकार के बेहतर वित्तीय प्रबंधन से कर्नाटक की आर्थिक स्थिति मजबूत
राज्य की मौजूदा बीजेपी सरकार के बेहतर वित्तीय प्रबंधन के चलते कर्नाटक की आर्थिक हालत मजबूत है। राज्य का कर राजस्व उसकी कुल राजस्व प्राप्तियों का करीब 70 प्रतिशत से अधिक रहा है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके 73 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। राजस्व घाटा भी नियंत्रित है। चालू वित्त वर्ष में प्रतिबद्ध देनदारियां जैसे वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक खर्चे 60 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। यह गत वित्त वर्ष के 55 प्रतिशत व 2021-22 के दौरान 45 प्रतिशत से अधिक है।सातवां वेतनमान लागू करने और ओपीएस से आएगा आर्थिक बोझ
सरकार लाखों कर्मचारियों के लिए अगले वित्तीय वर्ष से सातवां वेतनमान लागू करने की तैयारी में है। फिटमेंट फेक्टर को ध्यान में रखते हुए इससे 12 से 18 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार खजाने पर पड़ेगा। इनमें सब्सिडी व स्थानीय निकायों को वित्तीय सहायता आदि खर्च भी जुड़ेंगे। बजट के अनुसार चालू वित्त वर्ष में इस मद में कुल राजस्व प्राप्तियों का करीब 92 प्रतिशत खर्च होने का अनुमान है। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक दलों के घोषित मुफ्त उपहारों का भार राजस्व प्राप्तियां वहन नहीं कर पाएंगी। यह राजस्व घाटा बढ़ाए बिना संभव नहीं है। फिलहाल राजकोषीय घाटा जीएसटी तीन प्रतिशत से कम है। पुरानी पेंशन योजना के लिए अध्ययन हो रहा है। यदि ओपीएस लागू होने की नौबत आई तो मुफ्त उपहारों की गुंजाइश बिल्कुल खत्म हो जाएगी।

कांग्रेस समेत विपक्षी दल जप रहे हैं- मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन
राज्य की जनता को दिवास्वप्न दिखाने के लिए विपक्षी दल एक कतार में लग गए हैं। सभी राज्य की अर्थव्यवस्था की परवाह किए बिना जनता के लिए फ्री उपहारों की घोषणाएं करने में लीन हैं, जिनका पूरा होना भी मुश्किल ही है। केजरीवाल तो शुरू से ही फ्री मॉडल पर चलते आ रहे हैं। अब उनकी देखा-देखी कांग्रेस और अन्य दल भी इस स्तर पर उतर आए हैं। आइये जानते हैं कि कौनसा दल, मुफ्त की कौनसी योजनाओं का दम भर रहा है…
अखिल भारतीय कांग्रेस
200 यूनिट मासिक मुफ्त बिजली
2000 रूपये मासिक मदद घर की मालकिन को
3000 रूपये मासिक भत्ता स्नातक बेरोजगारों को
1500 रूपये मासिक भत्ता डिप्लोमाधारी बेरोजगारों को
दस किलो चावल निम्न आय वर्ग के लोगों को

आम आदमी पार्टी
300 यूनिट मुफ्त बिजली
3000 रूपये बेरोजगारी भत्ता
शहर की बसों में छात्रों को मुफ्त परिवहन सुविधा

जद (एस)
दस हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से दस एकड़ तक सहायता राशि
2 लाख रूपये किसान के बेटे से शादी करने पर
पांच मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर साल में
1200 से बढ़ाकर 5000 रुपये वृद्धावस्था पेंशन

 

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