2जी घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष, आरोपियों के खिलाफ गुनाह साबित करने में नाकाम रहा। इस मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और डीएमके सांसद कनिमोझी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। यूपीए सरकार के दौरान ही 1 लाख 76 हजार करोड़ का यह घोटाला हुआ था और तभी चार्जशीट दायर की गई थी और उसी दौरान आरोप तय भी किए गए थे। उन्हीं आरोपपत्र के आधार पर सुनवाई पूरी कर निचली अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है।
यूपीए काल में सबूतों के साथ लीपापोती
2जी घोटाले के फैसले में सबसे बड़ी बात यह है कि सीबीआई और ईडी ने अपना आरोपपत्र 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने से पहले दायर किया था और चार्जशीट दायर होने के बाद अदालत के सामने कोई नया सबूत पेश नहीं किया गया। मई, 2014 से पहले यूपीए शासन के दौरान सीबीआई ने कोई पुख्ता सबूत पेश ही नहीं किया जिसके कारण कोर्ट को आरोपियों को बरी करना पड़ा। इससे साफ है कि यूपीए सरकार ने जाते-जाते सबूतों पर भी लीपापोती कर दी थी।
कपिल सिब्बल ने सीबीआई को दे दिया था संकेत
बताया जाता है कि राजा के बाद दूरसंचार मंत्री का प्रभार संभालने वाले कपिल सिब्बल ने ‘जीरो लॉस’ यानी ‘कोई राजस्व हानि नहीं’ की बात कहकर सीबीआई को जांच का रुख किस ओर करना है इसका संकेत दे दिया था। 2जी घोटाले के मामले में वे ही प्रधानमंत्री के संकटमोचक बन के उभरे थे, जब ए राजा ने कोर्ट में कहा कि हर फैसले की जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को थी। 2जी घोटाले में मनमोहन सिंह के साथ तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए थे। इस मामले में श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से बहुत पहले सीबीआई ने सारे जांच पूरे कर लिए थे, तब यूपीए सरकार के दौरान ही सीबीआई ने चार्जशीट दायर कर दी थी। यहां तक की आरोप भी तय किए जा चुके थे। तकनीकी रूप से यह फैसला उन सबूतों के आधार पर आया है, जो सीबीआई ने यूपीए शासन के दौरान जुटाए थे। सीबीआई की सुस्ती का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि, ‘मैं 7 साल तक लगातार 10 से 5 बजे तक सुनवाई करता रहा। गर्मी की छुट्टियों में भी सुनवाई की। मैं इंतज़ार करता रहा कि कभी कोई कोर्ट में ऐसा सबूत लेकर आए जिसे कानूनी तौर पर माना जा सके लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’
पिंजड़े में बंद तोता सीबीआई
अब बड़ा सवाल यह है कि सीएजी की रिपोर्ट में जिस घोटाले की बात की गई, उसके लिए जिम्मेदार कौन है? अगर घोटाले के आरोपों में दम नहीं था, तो पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा की कुर्सी क्यों गई ? ए राजा और कनिमोझी को जेल क्यों जाना पड़ा ? क्या सीबीआई ने जानबूझकर कमजोर सबूत पेश किए जो अदालत में टिक ही ना सके? क्या यूपीए शासनकाल में सीबीआई सच में पिंचड़े में बंद तोता बन गई थी?
विवादित रंजीत सिन्हा को सीबीआई निदेशक बनाना
यूपीए शासन काल में सीबीआई को तोता बनाने की शुरुआत लालू यादव जैसे राजनेताओं के साथ संबंधो को लेकर पहले से ही विवादों में रहे रंजीत सिन्हा को निदेशक बनाने के साथ ही हुई। रंजीत सिन्हा 2जी घोटाले से साथ कोलगेट, रेलवे रिश्वत घोटाला और चारा घोटाला को लेकर विवादों में रहे हैं। 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी सिन्हा 2012 से 2014 के बीच सीबीआई के निदेशक रहे थे। उन पर आरोप है कि उन्होंने राजनीतिज्ञों और व्यवसायियों सहित 2जी और कोयला घोटाले के कुछ आरोपियों से मुलाकात की थी। रंजीत सिन्हा पहले सीबीआई निदेशक बने, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जांच से बाहर रहने का निर्देश दिया। जाहिर है सिन्हा के कार्यकाल में सीबीआई की साख रसातल में पहुंच गई।
सीबीआई निदेशक को कोर्ट ने 2G केस की जांच से अलग होने को कहा
2 जी केस को कमजोर करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2014 में सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से इस जांच से अलग होने को कहा था। रंजीत सिन्हा पर वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि वह आरोपियों से अपने घर पर मिलते रहे हैं। प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को एक एंट्री रजिस्टर सौंपा था, जिसमें 2जी केस के कुछ आरोपियों के उनके घर आने-जाने का ब्योरा दर्ज था। कोर्ट ने तब कहा था कि ‘सब कुछ ठीक नहीं लगता’ और उनके खिलाफ कुछ अभियुक्तों को संरक्षण देने के बाबत लगे आरोप ‘पहली नजर में विश्वसनीय’ लगते हैं। तत्कालीन सीबीआई निदेशक सिन्हा पर मुकदमे की सुनवाई के अंतिम चरण में भी हस्तक्षेप करने का आरोप लगा था।
कोयला घोटाले में भी रंजीत सिन्हा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने दिया जांच का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा को कोयला घोटाले के आरोपियों से मिलने के मामले में सीबीआई निदेशक से जांच करने को कहा है। रंजीत सिन्हा को पहली नजर में कोयला घोटाले की जांच प्रभावित करने का दोषी माना था।
क्या है 2जी घोटाला
साल 2008 में यूपीए सरकार में 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया। इस आवंटन पर 2010 में पहली बार सवाल तब उठा जब देश के महालेखाकार और नियंत्रक (सीएजी) ने अपनी एक रिपोर्ट में इस स्पेक्ट्रम आवंटन से खजाने को नुकसान पहुंचने की बात कही गई। रिपोर्ट में दावा किया गया कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर स्पेक्ट्रम दिया गया। रिपोर्ट में दावा किया गया कि यदि लाइसेंस आवंटन नीलामी के आधार पर होता तो खजाने को कम से कम एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का इजाफा होता। सुप्रीम कोर्ट ने दो फरवरी, 2012 को इन आवंटनों को रद्द कर दिया था
1.76 लाख करोड़ रुपये के 2जी घोटाले में राजा और कनीमोई के अलावा अन्य आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के साथ मनीलांड्रिंग रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत आरोप तय किए गए थे। इन पर आपराधिक षडयंत्र रचने, धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज बनाने, पद का दुरुपयोग करने और घूस लेने जैसे आरोप लगाए गए थे। सीबीआई ने 2जी घोटाला मामले में अप्रैल 2011 में आरोपपत्र दाखिल किया था। सीबीआई ने आरोप लगाया था कि स्पेक्ट्रम के लिए 122 लाइसेंस जारी करने में गड़बड़ी के कारण 30,984 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
मनमोहन को थी जानकारी
ए. राजा ने कोर्ट में कई बार यह कहा कि उन्होंने जो भी बड़े फैसले लिए, उसकी जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी थी। राजा के तमाम आरोपों पर सीबीआई ने उन्हें बड़ा झूठा बताते हुए सबसे बड़ा आरोपी बताया था जिसने अनुभवहीन कंपनियों को लाइसेंस बांट दिए। प्रवर्तन निदेशालय ने अपने मामले में अप्रैल 2014 में 19 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार ईडी का कहना है कि कलाइगनर टीवी और डीबी रियल्टी के बीच 200 करोड़ के ट्रांजैक्शन हुए। यह पैसा डायनामिक्स रियल्टी से कुसेगांव फ्रूट्स ऐंड वेजीटेबल्स और सिनेयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड से होकर कलाइगनर टीवी तक पहुंचा।
कांग्रेस सरकार घोटालों को लेकर काफी बदनाम रही है। एक नजर कांग्रेस की सरकारों में हुए कुछ प्रमुख घोटालों पर-
बोफोर्स घोटाला (1986)
1980 के दशक में इस घोटाले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, हिंदुजा और कई अन्य शक्तिशाली नाम शामिल थे। यह घोटाला भारत को 155 मिमी फील्ड होवित्जर्स के साथ प्रदान करने के लिए एक बोली जीतने के बारे में था।
सत्यम घोटाला (2009)
सत्यम कंप्यूटर सर्विसेजस के घोटाले से भारतीय निवेशक और शेयरधारक बुरी तरह प्रभावित हुए। यह घोटाला कॉरपोरेट जगत के सबसे बड़े घोटालों में से एक है, इसमें 14,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया था। पूर्व चेयरमैन रामलिंगा राजू इस घोटाले में शामिल थे, जिन्होंने सब कुछ संभाला हुआ था। बाद में उन्होंने 1.47 अरब अमेरिकी डॉलर के खाते को किसी प्रकार के संदेह के कारण खारिज कर दिया। उस साल के अंत में, सत्यम का 46% हिस्सा टेक महिंद्रा ने खरीदा था, जिसने कंपनी को अवशोषित और पुनर्जीवित किया।
कॉमनवेल्थ गेम घोटाला (2010)
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी और संचालन के लिए लिये लिया गया धन भारी मात्रा में घोटाले में चला गया। इसमें लगभग 70,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है। इस घोटाले में कई भारतीय राजनेता नौकरशाह और कंपनियों के बड़े लोग शामिल थे। इस घोटाले के प्रमुख पुणे के निर्वाचन क्षेत्र से 15 वीं लोकसभा के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि सुरेश कलमाड़ी थे। उस समय, कलमाड़ी दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन समिति के अध्यक्ष थे। इसमें शामिल अन्य बड़े लोगों में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री- शीला दीक्षित और रॉबर्ट वाड्रा हैं। इसका गैर-अस्तित्व वाली पार्टियों के लिए भुगतान किया गया, उपकरण की खरीद करते समय कीमतों में तेजी आई और निष्पादन में देरी हुई थी।
कोयला घोटाला (2012)
कोयला घोटाले के कारण भारत सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। सीएजी ने एक रिपोर्ट पेश की और कहा कि 194 कोयला ब्लॉकों की नीलामी में अनियमितताऐं शामिल हैं। सरकार ने 2004 और 2011 के बीच कोयला खदानों की नीलमी नहीं करने का फैसला किया था। कोयला ब्लॉक अलग-अलग पार्टियों और निजी कंपनियों को बेच दिये गये थे। इस निर्णय से राजस्व में भारी नुकसान हुआ था।
हेलिकॉप्टर घोटाला (2012)
यह घोटाला भारत में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जिसमें कई राजनेता, भारतीय वायु सेना के चीफ एयर मार्शल एसपी त्यागी और हेलिकॉप्टर निर्माता अगस्टा वेस्टलैंड जैसे वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। कंपनी ने 610 मिलियन आमेरिकी डॉलर के 12 हेलीकाप्टरों की आपूर्ति में एक अनुबंध पाने के लिए रिश्वत दी थी। इटली की एक अदालत में 15 मार्च 2008 को प्रस्तुत एक नोट यह संकेत करता है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी घोटाले में शामिल थीं।
टाट्रा ट्रक घोटाला (2012)
वेक्ट्रा के अध्यक्ष रवि ऋषिफॉर्मर और सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग प्रतिबंध अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला पंजीकृत किया था। इसमें सेना के लिए 1,676 टाटा ट्रकों की खरीद के लिए 14 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी।
आदर्श घोटाला (2012)
इस घोटाले में मुंबई की कोलाबा सोसायटी में 31 मंजिल इमारत में स्थित फ्लैटों को बाजार की कीमतों से कम कीमत पर बेचा गया था। इस सोसायटी को सैनिकों की विधवाओं और भारत के रक्षा मंत्रालय के कर्मियों के लिए बनाया गया था। समय की अवधि में, फ्लैटों के आवंटन के लिए नियम और विनियमन संशोधित किए गए थे। इसमें महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- सुशील कुमार शिंदे, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण के खिलाफ आरोप लगाये गये थे। यह जमीन रक्षा विभाग की थी और सोसायटी के लिये दी गई थी।