अमेरिका और कनाडा में दो बड़े राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं। जहां अमेरिकी संसद में इलेक्टोरल वोट्स की गिनती के बाद डोनाल्ड ट्रम्प की जीत पर मुहर लग गई। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने ट्रम्प को आधिकारिक तौर पर विजेता घोषित किया। वहीं,दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बेवजह पंगा लेने वाले खालिस्तानी समर्थक कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को आखिरकार पद से इस्तीफा देना पड़ा। ट्रूडो की भारत विरोधी नीतियों के चलते उनकी लिबरल पार्टी के सांसदों की तरफ से भी कई महीनों से पद छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा था। अपने ही घर में अलग-थलग पड़ते जा रहे ट्रूडो ने कदम पीछे खींचना ही सही समझा। इस बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनने का ऑफर दिया। ट्रम्प ने यह ऑफर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के कुछ घंटों बाद ही सोशल मीडिया के जरिए दिया। ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका अब कनाडा से और व्यापार घाटा नहीं सहन कर सकता और न ही उसे और ज्यादा सब्सिडी दे सकता है। कनाडा को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है। ट्रूडो ये बात जानते थे इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
भारत को बदनाम करने वाले ट्रूडो को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते
जस्टिन ट्रूडो की अगुवाई वाली कनाडा की सरकार ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ा था। पीएम की कुर्सी बचाने और चुनाव जीतने की कोशिश में भारत को बदनाम करने वाले ट्रूडो की पोल खुल गई है। इस पूरे विवाद को लेकर जस्टिन ट्रूडो की काफी आलोचना हो रही है। कनाडा में अब लोग उनसे ऊब चुके हैं। कनाडा में चुनाव से पहले ही उनके इस्तीफे की मांग बहुत जोर पकड़ने लगी है। भारत और कनाडा में जारी कूटनीतिक विवाद के बीच कनाडा के एक लिबरल सांसद ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से अगले चुनाव से पहले पार्टी नेता के पद से इस्तीफा देने को कहा है। कनाडा के सांसद सीन केसी का कहना है कि देश के लोग जस्टिन ट्रूडो को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते।
आधे से ज्यादा सांसद जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की मांग कर रहे
कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के पास 153 सांसद हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 2025 के चुनाव में हार का अंदेशे के चलते आधे से ज्यादा सांसद जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। 31 दिसंबर 2024 को जारी नैनोस रिसर्च की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रूडो की लिबरल पार्टी, विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से 26 पॉइंट से पीछे चल रही है। कंजर्वेटिव पार्टी को 46.6% सपोर्ट मिला है। अगर ये बरकरार रहता है तो कंजर्वेटिव पार्टी को 2025 के चुनाव में प्रचंड बहुमत मिल सकता है। 3 जनवरी को आई एंगस रीड इंस्टीट्यूट की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक अगर लिबरल पार्टी पूर्व डिप्टी पीएम क्रिस्टिया फ्रीलैंड को लीडर बनाती है तो कंजर्वेटिव्स को थोड़ी टक्कर दी जा सकती है।
तीखी आलोचनाओं के बीच अपने ही घर में घिर गए थे ट्रूडो
ट्रूडो ने इस्तीफे का ऐलान करते हुए कहा कि अगर मुझे घर में लड़ाई लड़नी पड़ेगी, तो आने वाले चुनाव में सबसे बेहतर विकल्प नहीं बन पाऊंगा। कनाडा में इस साल संसदीय चुनाव होने हैं। विरोध के चलते अब कनाडा में ही जस्टिन ट्रूडो की खटिया खड़ी हो गई है। इससे पहले अपनी तीखी आलोचनाओं के बीच उनको यहां तक खुद कबूलना पड़ा है कि निज्जर हत्याकांड को लेकर उनकी सरकार ने भारत को कोई ठोस सबूत नहीं दिया है। अब इस मामले को लेकर वह अपने घर यानी कनाडा में भी घिरते नजर आ रहे हैं। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि निज्जर मसले पर ट्रूडो का रवैया उनकी अपरिपक्वता को दिखाता है। बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है, जबकि ट्रूडो के रवैये के चलते कनाडा को शर्मसार होना पड़ा है। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब ट्रूडो विवादों में रहे और कई बार तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगते हुए देखा गया।
भारत के बाद अमेरिका के साथ बिगड़ते रिश्तों का असर
ट्रूडो ने खालिस्तानी वोट बैंक के पॉलिटिकल सपोर्ट के लिए भारत के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर फायदा उठाना चाहा था। ट्रूडो ने ऐसा इंटरनल पॉलिटिकल क्राइसिस और करप्शन के आरोपों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया था। लेकिन वे इसमें बुरी तरह असफल रहे। इसके अलावा बेवजह बयानबाजी से ट्रूडो के भारत से रिश्ते और ज्यादा खराब हुए। अब ट्रम्प के बयानों और भारत के साथ बिगड़ते रिश्तों से कनाडा में ट्रूडो के खिलाफ माहौल बन गया। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने की बात कही है। इसके बाद नवंबर 2024 में फ्लोरिडा में ट्रूडो ने ट्रम्प से मुलाकात की। इस दौरान ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने का मजाक किया। ट्रम्प ने ऐसी बात सोशल मीडिया पर भी लिखी और ट्रूडो को ‘कनाडा का गवर्नर’ बताया।
गठबंधन टूटने से कनाडाई संसद में कमजोर हुए ट्रूडो
कनाडा की संसद में सीनेट और हाउस ऑफ कॉमन्स दो सदन हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स में 338 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 170 है। लिबरल पार्टी के पास 153 सांसद हैं। ट्रूडो इस सदन में खालिस्तान समर्थक कनाडाई सिख जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के 25 सांसदों के समर्थन के कारण बहुमत में थे। NDP ने सितंबर 2024 में समर्थन वापस ले लिया। गठबंधन टूटने से ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी। 1 अक्टूबर को जब संसद में विश्वास मत साबित करना था तो अलगाववादी ब्लॉक क्यूबेकॉइस के 33 सांसदों ने ट्रूडो को समर्थन दिया और सरकार बच गई थी। कनाडा के सरकारी फाउंडेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट टेक्नोलॉजी कनाडा (SDTC) से जुड़े एक घोटाले में जस्टिन ट्रूडो का भी नाम आ रहा है। हालांकि SDTC अब बंद हो चुका है। पिछले साल ऑडिटर जनरल ने इससे जुड़े अरबों डॉलर के ‘ग्रीन स्लश फंड’ को बंद कर दिया था। आरोप लगा कि इससे जुड़े लाखों डॉलर ऐसे लोगों और प्रोजेक्ट्स को दिए गए जो अयोग्य थे।
ट्रूडो के बाद कनाडा में भारत विरोध और खालिस्तानी आंदोलन कमजोर होगा
विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कनाडा में अगली सरकार कंजर्वेटिव्स की बनने जा रही है। इससे कनाडा में भारत विरोधी राजनीति और खालिस्तानी आंदोलन में कमी आएगी। दरअसल, ट्रूडो खुलेआम खालिस्तानियों के समर्थन में खड़े थे। उनके इस्तीफे के बाद आने वाली सरकार ज्यादा सख्ती से खालिस्तान समर्थकों पर काबू पा सकती है। खालिस्तानी ट्रूडो के लिए बड़ा मुद्दा रहे हैं, जिस पर वे कनाडा की स्वतंत्रता और सुरक्षा की दुहाई देकर अपने लिए एक गुट का सपोर्ट हासिल करते थे। अब उनके विपक्षी कंजर्वेटिव्स की चुनाव में जीत लगभग तय मानी जा रही है, निश्चित ही नई सरकार खालिस्तान समर्थकों को अपनी ऑप्टिक्स से दूर रखना चाहेगी और भारत से अपने संबंधों को सुधारना चाहेगी।’
खालिस्तानियों को खुश करने के चक्कर में ट्रूडो ने अपने लिए खाई खोदी
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ और खालिस्तानियों को खुश करने के चक्कर में भारत-कनाडा के रिश्तों में खाई खोदने का काम लगातार कर रहे हैं। जस्टिन ने पीएम मोदी से पंगा लेने की कोशिश की, लेकिन उनकी अब दाल गलती नहीं दिख रही है। अब कनाडा में ही जस्टिन ट्रूडो की खटिया खड़ी हो गई है। अपनी तीखी आलोचनाओं के बीच उनको यहां तक खुद कबूलना पड़ा है कि निज्जर हत्याकांड को लेकर उनकी सरकार ने भारत को कोई ठोस सबूत नहीं दिया है। अब इस मामले को लेकर वह अपने घर यानी कनाडा में भी घिरते नजर आ रहे हैं। कनाडा की मीडिया ने दोनों देशों के बीच के तनाव को ‘राजनयिक युद्ध’ बताया है तो वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि निज्जर मसले पर ट्रूडो का रवैया उनकी अपरिपक्वता को दिखाता है। बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है, जबकि ट्रूडो के रवैये के चलते कनाडा को शर्मसार होना पड़ा है। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब ट्रूडो विवादों में रहे और कई बार तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगते हुए देखा गया।
कनाडा में कई सांसद कर रहे थे जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की मांग
लिबरल सांसद सीन केसी का बयान इसलिए और ज्यादा गंभीर हो गया, क्योंकि ट्रूडो से इस्तीफा मांगने वाले इकलौते सांसद नहीं हैं। इससे पहले जून की शुरुआत में न्यू ब्रंसविक के सांसद वेन लॉन्ग ने भी जस्टिन ट्रूडो से इस्तीफा देने को कहा था। साथ ही न्यूफाउंडलैंड और लैब्राडोर के सांसद केन मैकडोनाल्ड ने प्रधानमंत्री जस्टिन के नेतृत्व समीक्षा की मांग की। यहां तक की मीडियो रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रूडो के नेतृत्व में कैबिनेट मंत्री रहीं ओटावा-क्षेत्र की पूर्व सांसद कैथरीन मैककेना ने भी कहा है कि पार्टी को एक नए नेता की जरूरत है। कनाडा के पीएम जस्टिन पर उनके अपने भी सवाल उठा रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानियों का वोट पाने के लिए भारत के खिलाफ प्रोपगैंडा रचते रहे हैं। वह खालिस्तानियों को खुश करके उनका वोट पाना चाहते हैं और चुनाव जीतना ही उनका असल और एकमात्र मकसद है। यही वजह है कि वह पिछले एक साल से ही भारत के खिलाफ बार-बार जहर उगल रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है। हालांकि भारत ने कनाडा के आरोपों को बेतुका बताया है और सिरे से खारिज किया है। इसके बाद भारत ने अपने राजनयिकों को कनाडा से बुला लिया और कनाडा के राजनयिकों को निकाल दिया। अब यह शीशे की तरह साफ हो गया है कि भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाकर ट्रूडो अपनी सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाना चाह रहे हैं।
पीएम ट्रूडो और विवादों का हमेशा से नाता रहा है। वे आए दिन गलतियां करते हैं और शर्मिंदा होते हैं। उनके विवादों के कुछ किस्से…
- कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो से जुड़े 5 विवादित किस्से
1. साल 2016 में जस्टिन ट्रूडो अपने अरबपति दोस्त के प्राइवेट आइलैंड पर छुट्टियां मनाने की वजह से विवादों में फंस गए थे। कनाडा में नैतिक मामलों की निगरानी करने वाली संस्था ने पहली बार दिसंबर 2017 में इस मामले में ट्रूडो की निंदा करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री ने नियमों का उल्लंघन किया है। तब रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया था कि आगा खान के फाउंडेशन को ट्रूडो और उनके अधिकारियों की लॉबिंग के लिए आधिकारिक तौर पर रजिस्टर्ड किया गया था। इसके बाद ट्रूडो ने कहा कि वह भविष्य में अपनी छुट्टियों के लिए वॉचडॉग की मंजूरी लेंगे। - 2. इसके अलावा मई 2016 में ट्रूडो की एक गलती के कारण उन्हें बेहद शर्मिंदा होना पड़ा। कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में हुई एक घटना को ‘एल्बोगेट’ के नाम से जाना जाता है। दरअसल विपक्ष के रवैये से परेशान होकर ट्रूडो एक शख्स को पकड़ने के लिए भागे इस दौरान उनकी कोहनी एक महिला के सीने पर लग गई। इस घटना के लिए ट्रूडो ने कई बार माफी मांगी। उन्होंने कहा ‘मैं भी एक इंसान हूं जो एक बेहद दबाव वाली नौकरी कर रहा है।’ उन्होंने वादा किया वह कभी ऐसा दोबारा नहीं करेंगे।
- 3. जस्टिन ट्रूडो साल 2018 में पहली बार भारत राजकीय दौरे पर आए थे, इस दौरान खालिस्तानी अलगाववादी जसपाल अटवाल के साथ ट्रूडो की तस्वीर को लेकर जमकर विवाद हुआ। अटवाल को पंजाब के मंत्री मलकीत सिंह सिंधु की हत्या की कोशिश के मामले में दोषी पाया गया था और उसे 20 साल की सजा सुनाई गई थी। मंत्री सिंधु 1986 में वैंकुअर गए थे जहां उनकी हत्या की कोशिश की गई थी। जसपाल अटवाल एक सिख अलगाववादी था, जो इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन से जुड़ा हुआ था।
- 4. एक और विवाद साल 2022 का है, जब ट्रूडो को ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के अंतिम संस्कार से दो दिन पहले उन्हें होटल की लॉबी में रैप सॉन्ग गाते हुए रिकॉर्ड किया गया था। वीडियो में ट्रूडो मरून टी-शर्ट और डार्क जींस पहने पियानो के ठीक बगल में खड़े होकर फ्रेडी मर्करी का हिट सॉन्ग गा रहे थे। सोशल मीडिया पर यह वीडियो काफी वायरल हुआ था, वीडियो में क्वीन एलिजाबेथ के अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे कनाडाई डेलिगेशन के अन्य लोग भी मौजूद थे। ट्रूडो की इस शर्मनाक हरकत की सोशल मीडिया पर लोगों ने काफी आलोचना की थी।
- 5. ताजा विवाद पिछले साल का ही है। जब उन्होंने स्पीकर फर्गस को आंख मारी थी। इसके जस्टिन ट्रूडो को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। दरअसल हाउस ऑफ कॉमन्स में स्पीकर फर्गस ने ट्रूडो को ‘सम्मानीय प्रधान मंत्री’ के तौर पर संबोधित किया तो वहीं ट्रूडो ने तुरंत उन्हें टोकते हुए ‘बहुत सम्मानीय’ जोड़ा। इस दौरान उन्होंने स्पीकर फर्गस को आंख मारी और अपनी जीभ भी बाहर निकाली। उनकी यह हरकत कैमरे में कैद हो गई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हुई।
वो 4Is मुद्दे जिनके चलते अपने घर में बुरी तरह घिरे ट्रूडो
कनाडा में ट्रूडो सरकार अपनी नीतियों को लेकर बुरी तरह से घिर गई है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर खालिस्तानी आंदोलन और अलगाववादियों को खुली छूट, अवैध प्रवास के चलते बढ़ती आबादी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते उनकी लोकप्रियता बेहद कम हो चुकी है। कनाडा में 4 प्रमुख घरेलू मुद्दे जिन्हें 4Is के नाम से भी जाना जाता है वो हैं- इन्फ्लेशन (महंगाई), इनकम्बेंसी (सत्ता), इमीग्रेशन (अप्रवास), और आइडेंटिटी (पहचान)। कनाडा में महंगाई इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा है, कई ऐसे मौके सामने आए हैं जब कर्मचारियों ने सार्वजनिक तौर पर ट्रूडो को आसमान छूती महंगाई को लेकर घेरा है। आरोप है कि ट्रूडो सरकार आम जनता की परेशानियों और मुद्दों को अनसुना कर रही है। इसके अलावा करीब एक दशक तक सत्ता में बने रहने के कारण उनकी सरकार एंटी-इनकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर का भी सामना कर रही है। जिससे ट्रूडो का राजनीतिक आधार और भी कम हो गया है।
कनाडा में आइडेंटिटी क्राइसिस के बीच ट्रूडो का ‘ट्रंप कार्ड’ फेल
पीएम ट्रुडो की स्थिति को और जटिल बनाने के लिए कनाडा में पहचान की राजनीति एक बड़ी चुनौती बन गई है। देश की विविधता अब सामाजिक विभाजन का कारण बन गई है। खालिस्तान आंदोलन चलाने वाले समूह के दबाव में कनाडा की विदेश नीति प्रभावित हो रही है, जिससे भारत और कनाडा के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इन समूहों को कनाडा सरकार ने खुली छूट दी जो अब भारत के साथ संबंधों पर असर डाल रही है। कनाडा की मीडिया और कई राजनेता भारत के साथ विवाद को गलत कदम बता रहे हैं। माना जा रहा है कि ट्रूडो शायद जिसे ‘ट्रंप कार्ड’ की तरह इस्तेमाल करना चाह रहे थे, वही अब उनके खिलाफ बड़े विरोध का कारण साबित हो रहा है।
इमीग्रेशन: अप्रवासियों को शरण और नागरिकता देना अब बनी कमजोरी
वहीं इमीग्रेशन यानी अप्रवास अमेरिका की तरह कनाडा में भी एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है। कनाडा जो कि विभिन्नता के लिए जाना जाता था, यही अब इसकी समस्या बन चुकी है। अप्रवासियों को शरण और नागरिकता देना लिबरल पार्टी की ताकत थी, इसे लेकर अब ट्रूडो सरकार घिरने लगी है। दरअसल बढ़ती आबादी ने कनाडा की सोशल सर्विस और हाउसिंग इनफ्रास्ट्रक्चर को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि ट्रूडो सरकार को अप्रवासियों की संख्या को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। हाल ही में ट्रूडो सरकार ने स्टूडेंट वीजा में कटौती का फैसला किया था, जिससे भारतीय छात्रों की भी चिंता बढ़ गई थी। इसके अलावा कनाडा बॉर्डर से घुसने वाले प्रवासी श्रमिकों को लेकर अमेरिका-कनाडा के बीच तनाव भी सामने आया है। इसे लेकर अमेरिका लगातार कनाडा पर दबाव डाल रहा है।
2019 और 2021 के चुनाव में चीन के दखल का मुद्दा भी अहम
ट्रूडो सरकार के कार्यकाल के सबसे बड़े अनसुलझे मुद्दों में से एक कनाडा के चुनावों में चीनी हस्तक्षेप से निपटना रहा है। चीन पर कनाडा के आंतरिक मामलों खासकर चुनाव में हस्तक्षेप और फंडिंग के जरिए दखल का आरोप लगता रहा है। पिछले कुछ सालों में चीन पर कनाडा के चुनाव को प्रभावित करने और चीन समर्थक उम्मीदवारों को पैसे भेजने का आरोप लगाने वाली कई रिपोर्टें सामने आई हैं। 2023 में कनाडा की खुफिया एजेंसी ने खुलासा किया था कि 2019 और 2021 के चुनाव में चीन ने कनाडा के चुनाव में दखलंदाजी की है। आरोप हैं कि चीन ने उन उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने में मदद की जो बीजिंग को फायदा पहुंचाने वाली पॉलिसी के समर्थक हैं। इन आरोपों की जांच के लिए ट्रूडो ने फॉरेन इंटरफेयरेंस कमीशन (FIC) बनाया, जिसका काम कनाडा की चुनावी प्रक्रिया में चीन की भूमिका की जांच करना था। अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिससे ट्रूडो सरकार आगामी चुनाव में एक बार फिर घिर सकती है।