समय-समय पर किसी ना किसी मुद्दे को उठाकर अनशन पर बैठने वाले अन्ना हजारे एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान पर ‘सत्याग्रह’ करेंगे। अन्ना ने कहा है कि उनका यह अनशन लोकपाल और किसानों से जुड़े मुद्दों पर होगा। उन्होंने कहा है कि उनके मंच से राजनीतिक दलों को दूर रखा जाएगा लेकिन इसको लेकर सवाल है क्योंकि ऐसे मौके भी कम नहीं रहे हैं, जहां अन्ना के कदम दिशाहीन पाए गए। आइए एक नजर डालते हैं अन्ना से जुड़े ऐसे ही 10 संदर्भों पर जो उनके रुख पर सवाल उठाने वाले रहे हैं।
1.मंच पर देखते रहे और केजरीवाल का पार्टी बनाने का एलान
अन्ना हजारे कहते थे कि राजनीति से उनका कभी नाता नहीं होगा लेकिन अरविंद केजरीवाल ने उनकी मौजूदगी में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर डाली थी। 4 अगस्त 2012 की उस तारीख को कौन भूल सकता है। मंच पर अन्ना देखते रह गए थे और केजरीवाल उनका सहारा लेकर अपना राजनीतिक मतलब साध गए थे। अन्ना ने भरी सभा में अगर मंच पर ही उनके इस कदम का सीधा विरोध कर दिया होता तो आज उनके प्रति लोगों की श्रद्धा शायद कुछ और होती।
2.केजरीवाल के खिलाफ अनशन से हमेशा परहेज
अन्ना हजारे कहते रहे हैं कि उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है लेकिन जब भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से जुड़े भ्रष्टाचार का मामला आया, वे केवल बातों से काम चला ले गए। दिल्ली में जबसे केजरीवाल की सरकार बनी है, मुख्यमंत्री, उनके मंत्री और विधायकों पर जब ना तब भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। भ्रष्टाचार के प्रतीक बने केजरीवाल अन्ना के ही अनशन की राजनीतिक पैदाइश हैं लेकिन कभी अन्ना हजारे ने उनसे जुड़े मामलों को लेकर अनशन नहीं किया। सत्ता के पांच साल भी नहीं हुए लेकिन केजरीवाल सरकार के दस बड़े घोटाले हो गए, ये सब अन्ना की नजर से दूर हैं।
3.अन्ना की अपील पर भी AAP ने नहीं दिए डोनर के नाम
अन्ना हजारे ने खुद इस बात पर जोर डाला था कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी चंदा देने वालों के नाम वेबसाइट पर जाहिर करे। लेकिन अन्ना की इस अपील को केजरीवाल की पार्टी लगातार अनसुना करती आई है। यहां तक कि एक बार डोनर के नाम वेबसाइट पर डालकर उसे फिर ये कहते हुए गायब कर दिया कि यह चंदा देने वालों के लिए मुसीबत पैदा करने वाला है। सवाल है, ऐसी क्या वजह है जो मनमानी से सरकार चलाने वाले केजरीवाल के खिलाफ अनशन से वो लगातार कतराते नजर आ रहे हैं।
4.लोकपाल नियुक्त करने की मांग अभी कानूनसम्मत नहीं
अन्ना हजारे लोकपाल नियुक्त करने की मांग कर रहे हैं। जबकि सच ये है कि मोदी सरकार तकनीकी कारणों से लोकपाल नियुक्त करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकती। लोकपाल कानून के अंतर्गत, लोकपाल नियुक्त करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में नेता विपक्ष और प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित व्यक्ति होगा। लेकिन मौजूदा लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता ही नहीं है इसलिए समिति का गठन नहीं हो सकता है और इसलिए लोकपाल की नियुक्ति भी नहीं हो सकती। क्या अन्ना हजारे चाहते हैं कि सरकार असंवैधानिक तरीके से जनलोकपाल को चुने?
5.मोदी सरकार की किसान हितैषी योजनाओं को नजरअंदाज कर रहे
बताया जा रहा है कि अन्ना हजारे कृषि के विकास के लिए ठोस नीतियों की मांग को लेकर प्रदर्शन करने वाले हैं लेकिन क्या अन्ना ने कृषि और किसानों के हित में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए जमीनी कदमों पर बारीकी से गौर किया है? प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सॉयल हेल्थ कार्ड और eNAM जैसी योजनाओं ने कृषि संबंधी चिंताओं को दूर करने का काम किया है। नए बजट में किसानों को लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने का प्रावधान करने के साथ सरकार ऐसे तमाम प्रयासों में लगी है जो 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने वाले साबित होंगे। गौर करने वाली बात है कि किसानों को लागत से डेढ़ गुना पैसा दिए जाने पर अन्ना भी जोर देते रहे हैं। आज सरकार ने यह कदम उठाकर दिखाया है तो अन्ना चुप हैं।
6.कर्नाटक को क्यों नहीं चुना अनशन के लिए?
अगर किसानों के मुद्दे पर अन्ना को अनशन करना था तो उन्हें कर्नाटक का रुख करना चाहिए था जहां किसान आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर सिद्धारमैया सरकार पूरी से उदासीन नजर आ रही है। अन्ना के पास यह जानकारी है कि नहीं कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मौजूदगी में सरकारी डिनर पर लाखों उड़ाए जाते हैं जबकि उनकी सरकार में राज्य में अब तक करीब चार हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं?
7.ममता बनर्जी के साथ मंच शेयर करने को तैयार हुए थे
अन्ना हजारे राजनीति से दूरी बनाए रखने की बात तो हमेशा करते रहे हैं लेकिन वह कब किस नेता के साथ मंच शेयर करने को तैयार हो जाएं, कहना मुश्किल है। ऐसा ही एक संदर्भ सामने आया था 12 मार्च 2014 को जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ वो दिल्ली के रामलीला मैदान पर मंच शेयर करने को तैयार हो गए थे। हालांकि अन्ना तबियत खराब होने का हवाला देकर उस रैली में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन बताया ये भी गया कि रैली में सिर्फ चार हजार लोगों के आने की जानकारी पाकर अन्ना अत्यंत निराश थे। भले अन्ना इस रैली से दूर रहे थे लेकिन यह प्रकरण एक बार फिर बता गया था कि अन्ना को आसानी से कन्विंस करने का मौका निकालने वाले नेताओं की कमी नहीं।
8.भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रणाली के लिए मोदी सरकार के प्रयासों पर चुप
अन्ना हजारे की पहचान भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले समाजसेवी की रही है। लेकिन देश की शासन प्रणाली में दशकों से व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों को वे नजरअंदाज करते दिखते हैं। नोटबंदी हो, जीएसटी हो या डीबीटी, मौजूदा सरकार ने ऐसे कई कदमों के साथ भ्रष्टाचार मुक्त शासन की नींव रखी है। यानि अन्ना सरकार के सकारात्मक पक्षों को दरकिनार कर अनशन पर बैठने जा रहे हैं। यह अपने आपमें कई सवालों को जन्म दे जाता है।
9.लालू यादव के खिलाफ कभी क्यों नहीं आया अनशन का विचार?
चारा घोटाला मामलों में जेल काट रहे आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पिछले दो दशकों से देश में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े प्रतीक बने हुए हैं। लेकिन अन्ना को कभी लालू यादव के खिलाफ अनशन पर बैठने का ख्याल नहीं आया। अब तो लालू का पूरा कुनबा ही जिसमें उनकी पत्नी, बेटे, बेटी और दामाद सब भ्रष्टाचार के घेरे में आ चुके हैं। गौर करने वाली बात है कि लालू प्रसाद यादव ने अन्ना पर सीधा हमला बोलते हुए संसद में कभी यह भी कहा था कि लोकपाल बिल पास कराने के मामले में सिविल सोसाइटी को किसी भी तरह का अधिकार नहीं है।
10.अपनी बड़ी भूल से भी सबक नहीं ले रहे
अन्ना हजारे खुद कह चुके हैं कि अरविंद केजरीवाल जैसे लोगों को अपने आंदोलन से जोड़ना उनके जीवन की बड़ी भूल थी। लेकिन लगता है अपनी बड़ी भूल से भी सबक लेने को तैयार नहीं हैं। अभी उनके सारे मुद्दे ऐसे हैं जो उनके अनशन की वजहों पर उंगली उठाने वाले हैं। इसलिए इस अनशन को लेकर लोगों के ऐसे कमेंट भी सामने आने लगे हैं कि लोकपाल नियुक्त हो ना हो, किसानों का भला हो ना हो, लेकिन इससे कोई दूसरा केजरीवाल जरूर निकलकर आ जाएगा!