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नीतीश के बाद केसीआर भी विपक्ष की राजनीति का चेहरा बनने को आतुर, टीआरएस अब बनेगी बीआरएस, क्या परिवारवादी पार्टी को अब देश स्वीकार करेगा?

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वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए विपक्षी पार्टियां अभी से कमर कस रही हैं। विपक्ष को इस बात का अहसास है कि वो सब मिलकर भी पीएम मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते हैं इसीलिए विपक्ष में एकता की बात लगातार कही जा रही है। लेकिन सभी दलों एवं इनसे जुड़े नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाएं भी हैं। सबसे पहले नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने की अपनी महात्वाकांक्षा व्यक्त करते हुए देशभर के विपक्षी दलों से मुलाकात की और अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की कोशिश की। ये अलग बात है कि उनको जिस समर्थन की उम्मीद थी वह नहीं मिल पाई। विपक्ष का पीएम उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने बीजेपी का दामन भी छोड़ दिया जहां कम से कम उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित थी। लेकिन अब राजद के साथ उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खतरे में है और पीएम उम्मीदवार बनने की आकांक्षा भी धूमिल होती नजर आ रही है। लालू यादव ने भी एक तरह से यह कहकर कि ‘सब मिलकर देश चलाएंगे’ उनको हैसियत बता दी है। उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पीएम उम्मीदवार बनने की आकांक्षा की वजह से ही गुजरात में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। केजरीवाल को पता है कि गुजरात चुनाव में उन्हें दो-चार सीट से ज्यादा नहीं मिलेगी लेकिन वह मेहनत इसीलिए कर रहे हैं कि उनका वोट शेयर बढ़ जाए जिससे उन्हें राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाए और पीएम उम्मीदवार की दावेदारी ठोक सकें। इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के मन में भी पीएम उम्मीदवार बनने की आकांक्षा हिलोरे मार रही है। इसके लिए वह अपनी पार्टी का नाम तक बदलने के लिए तैयार हैं। कल दशहरा के दिन संभवतः वह इसकी घोषणा कर सकते हैं। यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति(टीआरएस) अब भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) हो सकती है। हालांकि इसे अभी राष्ट्रीय पार्टी बनने में लंबा रास्ता तय करना है। यही वजह है कि पार्टी गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है। हालांकि केसीआर अपनी टीआरएस पार्टी में परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं जो कि देश के मूड के हिसाब से उनके खिलाफ जा सकती है। उनकी सरकार में उनका बेटा केटी रामाराव, बेटी कविता सहित कई रिश्तेदार भरे-पड़े हैं।

टीआरएस अब होगी बीआरएस, राष्ट्रीय राजनीति में कूदेंगे केसीआर

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव दशहरे पर अपनी राष्ट्रीय पार्टी की घोषणा करने वाले हैं। टीआरएस विधायक दल और राज्य कार्यकारिणी समिति की एक विस्तारित बैठक बुधवार को तेलंगाना भवन में होने की उम्मीद है, जिसमें टीआरएस के राष्ट्रीय दल बनने पर एक प्रस्ताव पेश किया जाएगा। इसे भारतीय राष्ट्र समिति, या बीआरएस कहा जाने की संभावना है। टीआरएस का नाम बदलने का प्रस्ताव चुनाव आयोग को भेजा जाएगा। राज्य से मान्यता प्राप्त पार्टी के रूप में टीआरएस किसी भी राज्य में चुनाव लड़ सकती है। केसीआर ने कथित तौर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कहा कि बीआरएस राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विकल्प के रूप में उभरेगी और यह 2024 में दोनों के बीच सीधी लड़ाई होगी। पार्टी अपने चुनाव चिन्ह एंबेसडर कार और अपने गुलाबी रंग को बरकरार रखना चाहती है। केसीआर 9 दिसंबर को दिल्ली में एक विशाल रैली की योजना बना रहे हैं। उस दौरान बीआरएस को आधिकारिक तौर पर संगठनों और इसके समर्थन करने वाले नेताओं की उपस्थिति में लॉन्च किया जाएगा।

केसीआर के अंदर राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रही

तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव काफी वक्त से राज्यों का दौरा करके मोदी सरकार के खिलाफ एक फ्रंट को एकजुट करने में जुटे हैं। वे कई मौकों पर केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोल चुके हैं। केसीआर ही नहीं उनकी बेटी और एमएलसी कविता और बेटे केटी रामाराव भी मोदी सरकार पर तीखे बयान छोड़ते रहे हैं। पीएम उम्मीदवार बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पाले केसीआर इन दिनों भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध का झंडा थाम रखा है। वे देश में मोदी विरोधियों का सबसे बड़ा चेहरा बनना चाहते हैं। उनकी राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रही हैं। वह लगातार मोदी विरोधी गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिल रहे हैं और गैर भाजपा-गैर कांग्रेस एक मोर्चा का हवाई किला बना रहे हैं। इसी सिलसिले में केसीआर पिछले हफ्ते झारखंड की राजधानी रांची पहुंचे। उन्होंने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकर कर राष्ट्रीय राजनीति और विपक्षी मोर्चा पर विचार-विमर्श किया।

तेलंगाना में जमीन खिसकता देख मोदी विरोध पर उतरे केसीआर

केसीआर कुछ दिनों पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक रहे हैं। राज्यसभा में जब भी विधेयकों को पास कराने की जरूरत पड़ती तो टीआरएस साथ देती रही। लेकिन इन दिनों केसीआर ने मोदी और भाजपा विरोध का झंडा उठा लिया है। इसका कारण यह है कि तेलंगाना में टीआरएस को भाजपा से जबरदस्त चुनौती मिल रही है। अब वहां टीआरएस का मुकाबला कांग्रेस के बजाय भाजपा से है। ऐसे में वे मोदी विरोधियों में सबसे आगे दिखना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन जैसे मोदी विरोधी मुख्यमंत्रियों से मुलाकात और बात कर रहे हैं। 20 फरवरी को मुंबई में जाकर उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। एक दिन पहले यानी 3 मार्च को राव ने दिल्ली में मोदी का लगातार विरोध कर रहे सुब्रमण्यम स्वामी और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैट से मुलाकात की। दिल्ली के बाद उन्होंने झारखंड का रूख किया।

केसीआर मतलब ‘अलीबाबा और चार चोर’

अलीबाबा 40 चोर के किस्से सब ने सुन रखे हैं। लेकिन कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का आरोप लगाते हुए कुछ साल पहले कहा था कि राव अपने मंत्री पुत्र के. टी. रमाराव और सांसद पुत्री कविता तथा दो अन्य रिश्तेदारों के साथ राज्य को लूटने में लगे हैं। उन्होंने कहा था कि मैंने ‘अलीबाबा 40 चोर’ के बारे में सुना था। यह एक पुरानी कहानी है। यहां (तेलंगाना में) तो अलीबाबा और चार चोर हैं। उन्होंने कहा कि केसीआर गिरगिट से भी तेज रंग बदलते हैं।

केसीआर ने तेलंगाना में हिंदी की जगह उर्दू को दिया दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा

तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए राज्य में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बनाने का एलान किया। यानी सरकारी कामकाज में तेलुगू के बाद उर्दू में भी कामकाज होगा। मुख्यमंत्री केसीआर का लंबे समय से मुस्लिमों के प्रति रुझान रहा है। लिहाजा, माना जा रहा है कि उन्होंने तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया है। इससे पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि हिन्दी को दूसरी आधिकारिक भाषा होने का गौरव प्राप्त होगा मगर मुख्यमंत्री ने ऐसा नहीं किया।

BRS का मतलब बार और रेस्तरां पार्टी : वाईएसआर शर्मिला

प्रजा प्रस्थानम यात्रा के तहत मेदक जिले का दौरा कर रही वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की अध्यक्ष वाईएसआर शर्मिला ने एक बार फिर सीएम केसीआर पर हमला बोला है। शर्मिला ने सीएम केसीआर की तुलना महात्मा गांधी से किये जाने को विडंबनापूर्ण बताया गया। उन्होंने कहा कि चोर दीक्षा करने वाले अब अपनी तुलना महात्मा से कर रहे हैं। करोड़ों लोगों ने लड़ाई लड़ी, लाखों लोगों ने अपनी संपत्ति का बलिदान दिया, और सैकड़ों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। तब जाकर पृथक तेलंगाना साकार आया है। और दावा कर रहे हैं कि केवल केसीआर ही तेलंगाना लेकर आये है। शर्मिला कहा कि सीएम केसीआर एक स्वार्थी और भ्रष्ट व्यक्ति है। कालेश्वरम परियोजना केसीआर के भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत है। तेलंगाना के खजाने को लूटने के बाद, अब देश में शासन करने के लिए हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर खरीद रहे हैं। आरोप गया कि जनता का करोड़ों का पैसा पार्टी पर खर्च किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गोल्डन तेलंगाना (बंगारु तेलंगाना) कह कर बियर तेलंगाना और बार का तेलंगाना कर दिया गया। उन्होंने कहा कि BRS का मतलब बार और रेस्तरां पार्टी है।

तेलंगाना में केसीआर का राजनीतिक सफ़र

साल 2014 में जब अलग तेलंगाना राज्य बना, तो वो पहले मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में उनकी पार्टी ने 119 में से 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। साल 2018 के अंत में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 88 सीटों पर जीत दर्ज़ की। दोनों चुनाव में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बन कर उभरी। 2014 में कांग्रेस के पास 21 सीटें थी। वहीं 2018 में कांग्रेस के पास 19 सीटें ही रह गई। लेकिन उसके बाद से राज्य में बीजेपी तेजी से उभरती हुई नज़र आ रही है। 2019 लोकसभा चुनाव में राज्य की 17 सीटों में से बीजेपी के पास 4 सीटें आई, कांग्रेस के पास 3 सीटें, एआईएमआईएम के खाते में 1 सीट और बाक़ी की 9 सीटों पर टीआरएस ने क़ब्ज़ा किया।

भाजपा की निगाहें राज्य के शासन पर

तेलंगाना में लगभग 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं। 2023 में टीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। भाजपा ने 2019 में चार लोकसभा सीटें जीतीं और बाद में दुब्बाका और हुजुराबाद में दो उपचुनावों में भी जीत हासिल की है। वोट शेयर में सुधार के बाद भाजपा ने हैदराबाद नगरपालिका चुनावों में भी वोट शेयर बढ़ाया है। अब भाजपा की निगाहें राज्य के शासन पर टिकी हैं।

 

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