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मोदी सरकार के 9 सालः मोदी विजन से विरासत स्थलों का हुआ कायाकल्प, 9 साल में 10 विरासत स्थल यूनेस्को सूची में शामिल

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद खोई हुई सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। पीएम मोदी की पहल से देश में विरासत संरक्षण पर विशेष जोर दिया जा रहा है और इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि भारत के कई विरासत स्थल यूनेस्को के विरासत स्थल की सूची में शामिल किए गए हैं। आजादी के बाद 60 साल से ज्यादा के समय में जहां यूनेस्को के विरासत स्थल की सूची में भारत के 30 धरोहर स्थल शामिल किए गए थे वहीं 2014 से अब तक पिछले नौ साल में ही भारत के 10 धरोहर स्थल को इस सूची में स्थान मिला है। इसके अलावा तीन संभावित धरोहर स्थलों को यूनेस्को की सूची में स्थान दिया गया है। इसके साथ सरकार ने वर्ष 2022-2023 के लिए ‘विश्व धरोहर स्थल’ के रूप में विचार करने हेतु होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारकों को यूनेस्को को नामित किया है।

विरासत स्थल देश के लिए गौरव, पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा 

पीएम मोदी के विजन से आज देश में विरासत स्थलों का कायाकल्प किया जा रहा है और विरासत की चीजों उचित स्थान दिया जा रहा है। यह एक ओर जहां देश के लिए गौरव की बात है वहीं इससे पर्यटन को भी बढा़वा मिल रहा है। वर्ष 2022 में भारत के तीन नए सांस्कृतिक स्थलों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किया गया है। इसमें मोढेरा का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर, गुजरात का ऐतिहासिक वडनगर शहर और त्रिपुरा में उनाकोटी की चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियां शामिल हैं। इससे भारतीय सांस्कृतिक विरासत को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा।

मोदी सरकार ने विश्व धरोहर स्थल के लिए होयसल मंदिरों का प्रस्ताव भेजा

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये ‘विश्व धरोहर स्थल’ के रूप में विचार करने हेतु होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारकों को नामित किया है। 12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित होयसल मंदिर कर्नाटक में बेलूर, हलेबीडु और सोमनाथपुर के तीन घटकों द्वारा चिह्नित हैं। ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षित स्मारक हैं। ‘होयसला के पवित्र स्मारक’ 15 अप्रैल, 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं और भारत की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के साक्षी हैं।

होयसलेश्वर मंदिर, हलेबिड का अनुकरणीय स्थापत्य

हलेबिड में होयसलेश्वर मंदिर वर्तमान में मौजूद होयसलों का सबसे अनुकरणीय स्थापत्य है। इसका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन होयसलेश्वर के शासनकाल के दौरान 1121 ई. में किया गया था। शिव को समर्पित यह मंदिर दोरासमुद्र के धनी नागरिकों तथा व्यापारियों द्वारा प्रायोजित व निर्मित किया गया था। यह मंदिर 240 से अधिक दीवार में संलग्न मूर्तियों के लिये सबसे प्रसिद्ध है। हलेबिड में एक दीवार वाला परिसर है जिसमें होयसल काल के तीन जैन मंदिर भी है।

शैलखटी चट्टानों से निर्मित होयसल वास्तुकला की विशेषताएं अद्भुत

होयसल वास्तुकला 11वीं एवं 14वीं शताब्दी के बीच होयसल साम्राज्य के अंतर्गत विकसित एक वास्तुकला शैली है जो ज़्यादातर दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में केंद्रित है। होयसल मंदिर, हाइब्रिड या बेसर शैली के अंतर्गत आते हैं क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ है और न ही नागर। होयसल मंदिरों में एक बुनियादी द्रविड़ियन आकृति है, लेकिन मध्य भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भूमिजा मोड ( Bhumija mode), उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपराओं और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाटक द्रविड़ मोड के मज़बूत प्रभाव दिखाई देते हैं। इसलिये होयसल के वास्तुविदों ने अन्य मंदिर प्रकारों में विद्यमान बनावट पर विचार किया तथा उनके चयन और यथोचित संशोधन करने के बाद इन विधाओं को अपने स्वयं के विशेष नवाचारों के साथ मिश्रित किया। इसकी परिणति एक पूर्णरूपेण अभिनव ‘होयसल मंदिर’ (‘Hoysala Temple) शैली के अभ्युदय के रूप में हुई। होयसल मंदिरों में खंभे वाले हॉल के साथ एक साधारण आंतरिक कक्ष की बजाय एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में कई मंदिर शामिल होते हैं और यह संपूर्ण संरचना एक जटिल डिज़ाइन वाले तारे के आकार में होती है। चूंकि ये मंदिर शैलखटी (Steatite) चट्टानों से निर्मित हैं जो अपेक्षाकृत एक नरम पत्थर होता है जिससे कलाकार मूर्तियों को जटिल रूप देने में सक्षम होते थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिर की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

वर्ष 2022 में भारत के तीन नए सांस्कृतिक स्थलों को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किया गया है। इनमें मोढेरा सूर्य मंदिर, वडनगर और उनाकोटी की मूर्तियां शामिल हैं। इन पर एक नजर-

1. विश्व प्रसिद्ध है गुजरात के मोढेरा का सूर्य मंदिर

यह सूर्य मंदिर प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में स्थित है, यह बहुत प्राचीन मंदिर हैं, इसका एतिहासिक महत्व भी है। मोढेरा में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर ग्याहरवीं शताब्दी का है। इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के समय तक इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है। इसकी दीवारों पर नक्काशी से पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है। यह मंदिर तीन हिस्सों में विभाजित है। इस मंदिर में सूर्य कुंड, सभा मंडप और गूढ़ मंडप बना है, कुंड में जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। यह मंदिर विश्वप्रसिद्ध है, इस मंदिर में वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसको बनाने में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। राजा भीमदेव के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था जिसमें सभामंडप और गर्भगृह आता है। सभा मंडप के आगे की ओर को एक कुंड बना हुआ है जिस सूर्यकुंड या रामकुंड कहा जाता है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। इसकी देख-रेख अब पुरातत्व विभाग के द्वारा की जाती है।

2. करीब 2500 साल पुराना है गुजरात का ऐतिहासिक वडनगर शहर

वडनगर गुजरात का प्राचीन शहर है। इसका इतिहास करीब 2500 साल पुराना है। पुरातत्ववेत्ताओं के मुताबिक, यहां हजारों साल पहले खेती होती थी। खुदाई के दौरान यहां से हजारों साल पहले के मिट्टी के बर्तन, गहने और तरह-तरह के औजार-हथियार भी मिल चुके हैं। कई पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि यह हड़प्पा सभ्यता के पुरातत्व स्थलों में से एक है। हड़प्पा सभ्यता भारत की सबसे प्राचीनतम सभ्यता मानी जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहनगर वडनगर में खुदाई में यहां से बौद्ध स्तूप मिले थे। खनन के दौरान अब यहां से करीब 2 हजार साल पुराने दो बौद्ध कक्ष और चार दीवारें मिली हैं। ये दीवारें करीब 2 मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी हैं। आसपास के हालात देखकर पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने यहां बौद्ध विहार होना का अनुमान लगाया है। महेसाणा जिले के वडनगर में चल रही खुदाई के दौरान हाल ही में तीसरी व चौथी सदी के बौद्ध स्तूप के अवशेष और सातवीं-आठवीं सदी का एक मानव कंकाल भी मिला था। यह मानव कंकाल सातवीं-आठवीं सदी का बताया गया है। खुदाई के दौरान तीसरी व चौथी सदी के समय का सांकेतिक बौद्ध स्तूप भी मिला था।

3. त्रिपुरा के रघुनंदन हिल्स में उनाकोटी की मूर्तियां काफी मशहूर

पूर्वोत्तर के त्रिपुरा राज्य में उनाकोटी की मूर्तियां काफी मशहूर हैं। यह मूर्तियां त्रिपुरा के रघुनंदन हिल्स के एक पहाड़ के चट्टानों को काटकर बनाई गईं हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां एक, दो या दस मूर्तियां नहीं हैं बल्कि इनकी संख्या 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां हैं। बंगाली भाषा में उनाकोटी का मतलब ही होता है एक करोड़ से एक कम। रिसर्चर्स की मानें तो इन मूर्तियों को करीब 8वीं या 9वीं शताब्दी में बनाया गया होगा लेकिन इसे किसने बनाया इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं हैं। हालांकि कुछ मूर्तियां इसमें से खराब भी हो गई हैं। उनाकोटी में ज्यादातर मूर्तियां हिंदू देवी-देवताओं की हैं। इनमें भगवान गणेश, भगवान शिव और दूसरे देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। फिलहाल इस जगह के संरक्षण की जिम्मेदारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास है। इसके बाद से यहां कि हालत में कुछ सुधार देखने को मिला है। यहां मौजूद कई मूर्तियां इतनी विशाल हैं कि इनके ऊपर से झरने बहते हैं। यहां देश के कई हिस्से से लोग घूमने के लिए भी आते हैं। गौरतलब है कि कुछ खास मूर्तियों के पास आमजनों को जाने की अनुमति नहीं है। यहां नंदी बैल भी है। यह नंदी बैल भगवान शिव के नजदीक है। इन नंदी बैलों की संख्या तीन है। अप्रैल के महीने में इस जगह पर एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है जिसे अशोकाष्टमी का मेला कहा जाता है। उनाकोटी में बनी भगवान शिव की मूर्ति को उनाकोटिश्वरा काल भैरवा नाम से पुकारा जाता है जो करीब 30 फीट के आस-पास ऊंची है। भारत सरकार अब इस जगह को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का टैग दिलाने की तैयारी कर रही है क्योंकि सरकार का कहना है कि यह एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर है।

वर्ष 2014 के पहले तक यूनेस्को की सूची में भारत के 30 विरासत स्थल थे जबकि पीएम मोदी के देश की बागडोर संभालने के बाद 10 विरासत स्थलों को इस सूची में शामिल किया गया है। उन पर एक नजर-

31. ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान

ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान और विश्व विरासत स्थल है इसे वर्ष 1999 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह राष्ट्रीय उद्यान अपने जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि इस राष्ट्रीय उद्यान में 800 प्रकार के पौधे, लगभग 25 प्रकार के वन और 185 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती है इस राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 2014 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।

32. रानी की वाव

रानी की वाव गुजरात राज्य के पाटण में स्थित एक प्रसिद्ध बावड़ी अर्थात सीढ़ीदार कुऑं है। इस बावड़ी का निर्माण सन् 1063 में सोलंकी शासक भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयामती ने राजा भीमदेव प्रथम की याद करवाया था। यह वाव 20 मीटर चौड़ा 64 मीटर लंबा और 27 मीटर गहरा है। यह वाव सोलंकी शासनकालीन वास्तु कला का सुप्रसिद्ध उदाहरण है क्योंकि यह भारत का एक अनोखा वाव है। 22 जून 2014 को इस बावड़ी को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

33. नालंदा विश्वविद्यालय – बिहार

नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य के राजगीर में स्थित है। यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक विख्यात केंद्र था जिसका निर्माण महान गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने करवाया था। यह एक बौद्ध विश्वविद्यालय था जिसमें बौद्ध धर्म के भग्नावशेष मिले हैं लेकिन इस विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म के साथ ही दूसरे अनेक धर्मों के छात्र भी पढ़ते थे। इस विश्वविद्यालय की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम के द्वारा किया गया तथा इसे वर्ष 2016 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

34. कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान – सिक्किम

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत के सिक्किम राज्य में स्थित एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्य है। इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1977 में की गई थी इस राष्ट्रीय उद्यान का संपूर्ण क्षेत्रफल 1784 वर्ग किलोमीटर है जो सिक्किम राज्य के कुल क्षेत्रफल का 25.14 है। इस राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुए, काले भालू, कस्तूरी मृग, जंगली गधा और लाल पांडा निवास करते हैं। वर्ष 2016 में इस राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

35. ली. कार्बुजिए के वास्तुशिल्प

चंडीगढ़ में स्थित ली कार्बुजिए के वास्तुशिल्प कार्य को आधुनिक आंदोलन के लिए उत्कृष्ट योगदान के हिस्से के रूप में वर्ष 2016 में UNESCO ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। सात अलग-अलग देशों के 17 स्थलों में ली कार्बुजिए के रचनात्मक एवं वास्तुशिल्प कार्य मौजूद हैं। यूनेस्को ने इन सभी स्थलों को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में मान्यता दी है।

36. अहमदाबाद के ऐतिहासिक शहर

अहमदाबाद के ऐतिहासिक शहर जिसे पुराना अहमदाबाद भी कहा जाता है, यह शहर अहमदाबाद का ही एक हिस्सा है जो भारत के गुजरात राज्य में स्थित है। इस शहर की स्थापना की 11वीं सदी में राजा आशा भील के द्वारा आशावल नाम से की गई थी तब से यह गुजरात सल्तनत का महत्वपूर्ण राजनैतिक और वाणिज्य केंद्र बना रहा। वर्तमान समय में भी यह ऐतिहासिक शहर आधुनिक अहमदाबाद शहर का हृदय है। इसे वर्ष 2017 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

37. मुंबई के विक्टोरियन और आर्ट डेको एनसेंबल

महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर के फोर्ट इलाके में स्थित विक्टोरियन और आर्ट डेको एनसेंबल का निर्माण 19वीं सदी में विक्टोरियन नियो गोथिक शैली में किया गया था जो विक्टोरियन नियो गोथिक सार्वजनिक भवनों एवं आर्ट डेको भवनो का संग्रह है। इसे वर्ष 2018 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया।

38. गुलाबी शहर जयपुर

जयपुर भारत के राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा शहर है। इस नगर की स्थापना महाराजा जयसिंह द्वितीय के द्वारा की गई थी। यह शहर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस, संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। इस शहर में महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों के कारण इस शहर को भारत का पिंक सिटी या गुलाबी शहर कहा जाता है। इस शहर को जुलाई 2019 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।

39. रामप्पा मंदिर – तेलंगाना

रामप्पा मंदिर या रुद्रेश्वर मंदिर भारत दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य के मुलुंड जिले के पालमपेट गांव में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में स्थित शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सन् 1213 ईसवी में काकतीय साम्राज्य शासक गणपति देव के सेनापति रेचारला रुद्रदेव ने करवाया था। यूनेस्को ने वर्ष 2021 में इस मंदिर को अपनी विश्व धरोहर स्थलों की सूची में जोड़ा।

40. धोलावीरा, गुजरात 

धोलावीरा गुजरात राज्य के कच्छ जिले में स्थित सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रसिद्ध पुरास्थल एवं विश्व धरोहर स्थल है। यह स्थल अब तक ज्ञात सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े स्थलों में से एक है। यहां सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कई अवशेष और स्थल पाए गए हैं। धोलावीरा हड़प्पा संस्कृति का नगर है और दक्षिण एशिया में तीसरी से मध्य-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व काल की चंद सबसे अच्छे से संरक्षित प्राचीन शहरी बस्तियों में से है। अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में छठा सबसे बड़ा और 1,500 से अधिक वर्षों तक मौजूद रहा धोलावीरा न सिर्फ मानव जाति की इस प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन की पूरी यात्रा का गवाह है बल्कि शहरी नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन और विकास, कला, निर्माण, व्यापार और आस्था प्रणाली के संदर्भ में भी अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को प्रदर्शित करता है। अपनी अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धोलावीरा की बड़ी अच्छी तरह से संरक्षित ये शहरी बस्ती, अपनी बेहद खास विशेषताओं वाले इस क्षेत्रीय केंद्र की एक जीवंत तस्वीर दर्शाती है जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।

भारत के सभी 40 विश्व धरोहर स्थलों की सूचीः

क्र. विश्व धरोहर स्थल संबंधित राज्य/क्षेत्र घोषित वर्ष

1. आगरा का किला उत्तर प्रदेश 1983
2. ताजमहल उत्तर प्रदेश 1983
3. अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र 1983
4. एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र 1983
5. कोणार्क सूर्य मंदिरम उड़ीसा 1984
6. महाबलीपुरम के स्मारक तमिलनाडु 1984
7. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान असम 1985
8. मानस राष्ट्रीय उद्यान असम 1985
9. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान 1985
10. हम्पी के स्मारक समूह कर्नाटक 1986
11. खजुराहो स्मारक स्थल मध्यप्रदेश 1986
12. फतेहपुर सीकरी उत्तर प्रदेश 1986
13. गोवा के गिरिजाघर एवं कॉन्वेंट गोवा 1986
14. एलीफेंटा की गुफाएं महाराष्ट्र 1987
15. सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल 1987
16. पट्टादकल के स्मारक समूह कर्नाटक 1987
17. चोल मंदिर तमिलनाडु 1987, 2004
18. नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड 1988, 2005
19. सॉंची के बौद्ध स्तूप मध्यप्रदेश 1989
20. हुमायूं का मकबरा दिल्ली 1993
21. कुतुबमीनार एवं स्मारक दिल्ली 1993
22. भारतीय पर्वतीय रेलवे, दार्जिलिंग, विभिन्न भारतीय राज्य 1999, 2005, 2008
23. बोधगया का महाबोधि मंदिर बिहार 2002
24. भीमबेटका की गुफाएं मध्यप्रदेश 2003
25. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस महाराष्ट्र 2004
26. चंपानेर – पावागढ़ पुरातत्व उद्यान गुजरात 2004
27. लाल किला दिल्ली 2007
28. जंतर – मंतर, जयपुर राजस्थान 2010
29. पश्चिमी घाट महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल 2012
30. राजस्थान के पहाड़ी दुर्ग राजस्थान 2013
31. ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान हिमालय प्रदेश 2014
32. रानी की वाव गुजरात 2014
33. नालंदा विश्वविद्यालय बिहार 2016
34. कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान सिक्किम 2016
35. ली. कार्बुजिए के वास्तुशिल्प चंडीगढ़ 2016
36. अहमदाबाद के एतेहासिक शहर गुजरात 2017
37. मुंबई के विक्टोरियन ओर आर्ट डेको एनसेंबल महाराष्ट्र 2018
38. गुलाबी शहर जयपुर राजस्थान 2019
39. रामप्पा मंदिर तेलंगाना 2021
40. धोलावीरा गुजरात 2021

प्रधानमंत्री संग्रहालय प्रत्येक सरकार की विरासत का जीवंत प्रतिबिंब : पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में प्रधानमंत्री संग्रहालय का उद्घाटन किया। खास बात ये रही कि उद्घाटन करने के बाद उन्होंने स्वयं सबसे पहले टिकट खरीद कर इस संग्रहालय को देखने के लिए अंदर गए। इस अवसर पर अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि इस संग्रहालय में जितना अतीत है, उतना ही भविष्य भी है। यह संग्रहालय देश के लोगों को बीते समय की यात्रा करवाते हुए, नई दिशा-नए रूप में भारत की विकास यात्रा पर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि यह संग्रहालय स्वतंत्रता के बाद पहले की सभी सरकारों की विरासत की जीवंत प्रतिबिंब साबित होगा।

प्रधानमंत्री संग्रहालय में सभी प्रधानमंत्रियों के बारे में मिलेगी जानकारी

प्रधानमंत्री संग्रहालय में अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों के कार्यों का प्रदर्शन होगा। मालूम हो कि पिछले महीने पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नेहरू संग्रहालय को पीएम म्यूजियम में तब्दील करने का फैसला किया गया था। कैबिनेट बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को स्वीकार करने के लिए यह फैसला किया है। हम सभी पीएम के योगदान को मान्यता देना चाहते हैं। प्रधानमंत्री संग्रहालय में सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के कार्यों को दिखाया गया है। पूर्व प्रधानमंत्रियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी के लिए उनके परिवारों से भी संपर्क किया गया। इस संग्रहालय में जवाहर लाल नेहरू, गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह,राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवगौडा, इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह को शामिल किया जाएगा।

पीएम मोदी ने ASI मुख्यालय ‘धरोहर भवन’ का किया उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के नए मुख्यालय ‘धरोहर भवन’ का उद्घाटन 12 जुलाई 2018 को किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण के लिए जन भागीदारी को अहम बताते हुए कहा कि हमें अपनी विरासत की जानकारी होनी चाहिए और उस पर गर्व होना चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 150 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह संगठन खुद में ऐतिहासिक संगठन हो गया है। आधुनिक तकनीक से पुरातात्विक के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। इसी की मदद से आज माना जाने लगा है कि सरस्वती नदी की बात काल्पनिक नहीं है, आज कई बातें सामने आ रही हैं। पुरातात्विक के क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा बदलाव करता है।

धरोहर के संरक्षण के लिए जन भागीदारी जरूरी

प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया में जहां ऐतिहासिक धरोहर नहीं हैं वे लोग उसका महत्व अधिक समझते हैं। आजाद होने के बाद से आज तक देश को एक ऐसी सोच ने जकड़ रखा है, जिन्हें देश की पुरातन धरोहर से कोई लगाव नहीं रहा है। उन्होंने कहा, “पुरातात्विक धरोहर को बचाने के लिए जन सहयोग, जन भागीदारी बहुत जरूरी है। दूसरे देशों में सीनियर सिटीजन क्लब बना कर धरोहर को बचाने में मदद करते हैं। वहां रिटायर्ड लोग गाइड का काम करते हैं, वे अपनी धरोहरों के बारे में पर्यटकों को बताते हैं। हमारे देश में यह मानसिकता बनानी है।” प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों, स्कूली बच्चों तथा कॉरपोरेट जगत को भी भागीदार बनाया जा सकता है।

पीएम मोदी की सलाह के बाद हटी फोटो लेने की पाबंदी

प्रधानमंत्री ने धरोहर स्थलों पर फोटो खींचने की मनाही को अप्रासंगिक बताते हुए कहा कि अब यह नियम बदलना चाहिए। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री की इस सलाह पर अमल करते हुए सांस्कृतिक मंत्रालय ने कहा है कि देशभर में प्राचीन और ऐतिहासिक इमारतों की फोटो लेने पर लगी पाबंदी अब हटा दी जाएगी। लोग जल्द ही जी-भर के ऐतिहासिक इमारतों की फोटो खींच सकेंगे। मंत्रालय के मुताबिक जल्‍द ही इस संबंध में आदेश जारी कर दिया जाएगा।

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