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Jammu-Kashmir में आर्टिकल 370 के खात्मे से यहां के युवा हुए PM MODI के मुरीद, अब सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई संवैधानिक मुहर, घाटी में बढ़ा रोजगार और अमन की बयार

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में ऐसे कई ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं, जो न सिर्फ अप्रत्याशित और अविश्वसनीय है, बल्कि अकल्पनीय भी है। 05 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीरसे अनुच्छेद 370 को समाप्त करना ऐसा ही असंभव लगने वाला कदम था, लेकिन पीएम मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति और विजन ने दशकों के इस संकल्प को साकार कर दिखा। प्रधानमंत्री मोदी के साहसिक और ऐतिहासिक फैसलों ने संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए को हमेशा के लिए दफन कर दिया। अब मोदी सरकार के फैसले पर लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का केंद्र सरकार का फैसला बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को कहा – आर्टिकल 370 अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारतीय संविधान के सभी प्रावधान वहां लागू हो सकते हैं। कश्मीर घाटी का युवा पहले ही 370 को हटाने के फैसले से पीएम मोदी का मुरीद हो गया था, अब कोर्ट के फैसले से उसमें एक बार फिर खुशी की लहर दौड़ गई है।युवा बोले- पिछले चार साल में कश्मीर की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलीं
प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता और विजनरी सोच का ही कमाल है कि जम्मू-कश्मीर अब सचमुच ही ‘स्वर्ग’ बनने के रास्ते पर चल पड़ा है। आर्टिकल 370 के खात्मे पर संवैधानिक मुहर लगने के साथ ही एक देश, एक विधान, एक प्रधान और एक निशान का दशकों पुराना सपना साकार हो गया है। आज जम्मू-कश्मीर अमन, शांति और विकास के जिस रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, इसकी शुरूआत 05 अगस्त, 2019 को हुई, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का साहसिक फैसला लिया। श्रीनगर के युवा वसीम आरिफ कहते हैं कि सरकार के इस निर्णय ने पिछले चार सालों में जम्मू-कश्मीर की तस्वीर और यहां के लोगों की तकदीर बदलने का काम किया है। जम्मू-कश्मीर के पहले के नेता, जाहे जिस भी पार्टी के रहे हों, उन्होंने सिर्फ अपना और अपने परिवार का ही भला किया। कश्मीर का अवाम, युवाओं के बारे में कुछ नहीं सोचा।

घाटी के युवा पत्थरबाजी और हथियार छोड़कर अमन और उज्ज्वल भविष्य की ओर लौटे
गुलमर्ग के पढ़े-लिखे गाइड आफताब कहते हैं कि पीएम मोदी के अलावा ये बड़ा फैसला कोई और ले ही नहीं सकता था। घाटी में पहले तो ये हालात थे कि इंजीनियरिंग, पीएचडी करने के बाद भी युवा यहां किराए की गाड़ी चलाने को मजबूर थे। तब सियासतदानों को युवाओं को भविष्य को कोई लेना देना नहीं था। लेकिन अब केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भारत सरकार के कानून और योजनाओं को लागू करना संभव हुआ है। महिलाओं को उनका अधिकार और युवाओं को रोजगार के नित-नए मौके तेजी से मिल रहे हैं। यही वजह है कि अब युवा पत्थरबाजी या हथियार उठाने के बजाए अमन, शांति और खुद को आर्थिक रूप से समृद्ध करने के जतन कर रहा है। वे कहते हैं कि आप भी अखबारों में देख रहे होंगे कि पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में कितनी ज्यादा कमी आई है। भारत के साथ पूरी तरह एककीकरण से जनमानस में भी बदलाव आया है। प्रदेश में शांति का माहौल बना है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिला है और बाहरी निवेश में बढ़ोतरी हुई है।आर्टिकल 370 को निरस्त करने के लिए जारी राष्ट्रपति का आदेश वैध- सुप्रीम कोर्ट
बता दें कि केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से 370 हटा दिया था। इसके 4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘हम आर्टिकल 370 को निरस्त करने के लिए जारी राष्ट्रपति के आदेश को वैध मानते हैं। हम लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखते हैं।’ इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के लिए कहा है। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। बेंच के सामने लगातार 16 दिन तक चली सुनवाई 5 सितंबर को खत्म हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के 96 दिन बाद केस पर फैसला सुनाया।

चीफ जस्टिस बोले- केंद्र के हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म कर दिया था। साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। 5 जजों की बेंच ने सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की थी। CJI ने कहा कि केंद्र की तरफ से लिए गए हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से अराजकता फैल जाएगी। अगर केंद्र के फैसले से किसी तरह की मुश्किल खड़ी हो रही हो, तभी इसे चुनौती दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की यह दलील खारिज कर दी कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकता, जिसमें बदलाव न किया जा सके। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि आर्टिकल 356 के बाद केंद्र केवल संसद के द्वारा कानून ही बना सकता है, ऐसा कहना सही नहीं होगा। CJI ने बताया कि फैसले में 3 जजों के जजमेंट हैं। एक फैसला चीफ जस्टिस, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत का है। दूसरा फैसला जस्टिस कौल का है। जस्टिस खन्ना दोनों फैसलों से सहमत हैं।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सर्वसम्मति से फैसला लिया। आइये जानते हैं चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा पढ़े गए फैसले की खास बातें…

• प्रेसिडेंशियल प्रोक्लेमेशन वैध था या नहीं, इस पर हम विचार ही नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसे किसी ने चुनौती नहीं दी थी।
• राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र की ओर से लिए गए हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती।
• जम्मू-कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों से अलग कोई आंतरिक संप्रभुता ( Internal Sovereignty) नहीं है।
• संविधान का आर्टिकल 370 अस्थायी था, इसे रद्द करने की राष्ट्रपति की शक्ति अभी भी मौजूद है। जम्मू-कश्मीर युद्ध की स्थिति के कारण अंतरिम तौर पर इसे लाया गया था।
• जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को कभी भी परमानेंट बॉडी बनने का इरादा नहीं था। जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व खत्म हो गया तो जिस विशेष शर्त के लिए आर्टिकल 370 लागू किया गया था, उसका भी अस्तित्व खत्म हो गया।
• जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश भारत के राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी।
• सुप्रीम कोर्ट को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति की उद्घोषणा की वैधता पर फैसला देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती नहीं दी।
• चीफ जस्टिस ने कहा कि जम्मू-कश्मीर ने जब भारत में शामिल हुआ तो उसकी संप्रभुता नहीं रह जाती है।370 के खात्म के बाद पथराव, आतंकी घटनाओं और घुसपैठ में बेहद कमी आई
इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने के लिए विकास हो रहा है। सरकार की ओर से SG मेहता ने कोर्ट को बताया कि 2018 से 2023 की तुलना में आतंकवादी घटनाओं में 45.2% की कमी आई है और घुसपैठ में 90% की कमी आई है। पथराव जैसे कानून और व्यवस्था के मुद्दों में 97% की कमी आई है। सुरक्षाकर्मियों की हताहती में 65% की कमी आई है। 2018 में पथराव की घटनाएं 1,767 थीं, जो 5 साल में अब शून्य हैं। 2018 में संगठित बंद 52 थे और अब यह शून्य है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव पंचायत और नगर निगम चुनाव के बाद होंगे। हालांकि केंद्रीय चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग यह तय करेंगे कि कौन सा इलेक्शन पहले किया जाए। इसके लिए हम कोई निश्चित समय सीमा नहीं बता सकते, लेकिन हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी है।

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